अस्मिता पर्व और आहुति

(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स, सोमवार, २५ मई २०२०)

`मैं वित्त और व्यवस्ता का आदमी नहीं हूँ.’ ऐसा कहकर पूज्य मोरारीबापू ने तलगाजरडा में आयोजित ६०० वीं रामकथा में घोषित किया था कि`…सेवा की गतिविधियों का फैलाव इतना भी नहीं करना चाहिए कि जिससे व्यक्ति अपना आंतरिक विकास न कर सके.’

ये बात कहे वर्षों बीत चुके हैं. कथा की संख्या ७९० के करीब पहुंच रही है. मोरारीबापू और रामकथा एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं जो सर्वमान्य वास्तविकता है. लेकिन जैसे `रामकथा यानी मोरारीबापू’ वाले कथन में अतिशयोक्ति है उसी तरह `मोरारीबापू यानी रामकथा’ वाले कथन में अल्पोक्ति है. मोरारीबापू नौ दिनों तक रामकथा करने के बाद अन्य कई सार्वजनिक सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियां करते हैं जिसमें अधिकांश के प्रणेता वे स्वयं हैं.

बापू सच ही कहते हैं कि वे वित्त और व्यवस्ता के आदमी नहीं है. वे आयोजन के नहीं अपितु आयोजन की कल्पना के आदमी हैं. वे धन या प्रशासन नहीं बल्कि उस संबंध में जिम्मेदारियां निष्ठा से निभा सकें ऐसे लोगों को आकर्षित करनेवाले आदमी हैं और वित्त तथा व्यवस्था से जुडे श्रेष्ठ लोग उनकी नि:स्वार्थ तथा पारदर्शक नीति के कारण ही मिलते हैं. बापू ऐसे अनेक व्यक्तियों में अपना विश्वास रोपित करके अपनी सेवा की गतिविधियों का व्यापक प्रसार कर सके हैं. और इसी तरह के बेनाम और अनगिनत लोगों के प्रेम व आदर के चलते बापू की आंतरिक विकास यात्रा तेज गति से आगे ही आगे बढती जा रही है.

एक संपूर्ण गुजराती साहित्य परिषद और पूरा गुजराती साहित्य अकादमी मिलकर भी ये काम नहीं कर सकते, उससे सौ गुना प्रभावी तथा स्तरीय काम एक ही व्यक्ति के आश्रय से पिछले बीस साल से हो रहा है.

अभी, जब ये लिखा जा रहा है, तब महुवा में हनुमान जयंती के निमित्त से हर वर्ष आयोजित होनेवाले अस्मिता पर्व का रंग चढ रहा है जिसका सीधा प्रसारण `आस्था’ चैनल द्वारा दुनिया भर के पौने दो सौ देशों में हो रहा है.

एक संपूर्ण गुजराती साहित्य परिषद और पूरा गुजराती साहित्य अकादमी मिलकर भी ये काम नहीं कर सकते, उससे सौ गुना प्रभावी तथा स्तरीय काम एक ही व्यक्ति के आश्रय से पिछले बीस साल से हो रहा है. मातृभाषा गुजराती के लि, नि:स्वार्थ प्रेम `मुंबई समाचार’ ने बार बार अनेक योजनाओं द्वारा व्यक्त किया है. बापू अस्मिता पर्व द्वारा मुंबई-गुजरात और समस्त भारत के अलावा दुनिया में जहां जहां गुजराती बसते हैं उन तक अपनी भाषा के धुरंधर तथा तेजस्वी नवोदित लेखकों के साहित्य, उनकी कविताओं को और उनकी लेखनकृतियों को अस्मिता पर्व द्वारा पहुंचा रहे हैं.

रामकथा के अलावा बापू की सार्वजनिक गतिविधियों का एक और पहलू है अस्मिता पर्व. लेकिन फिर से, मोरारीबापू यानी रामकथा और उसमें अस्मिता पर्व को जोड दें तो भी वह थोडी बडी तो लगेगी पर अल्पोक्ति ही मानी जाएगी, इतना सारा फैलाव उनकी प्रवृत्तियों का रहा है. बापू के विराट व्यक्तित्व का अंदाज समझना हो तो उनकी रामकथा तथा उनके अस्मिता पर्व में गहराई तक जाना पडेगा, इसके अलावा उनकी ठोस, नियमित और नि:स्वार्थ गतिविधियों पर भी नजर डालनी पडेगी.

वे रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के बारे में एक विशाल, सर्वग्राही, समग्र विश्व में अनूठा बनाने वाले तुलसी रिसर्च सेंटर का निर्माण कर रहे हैं.

`अस्मिता पर्व: २०’ का ७ अप्रैल, शुक्रवार को उद्घाटन हुआ, जिसमें एक अद्भुत ग्रंथ का लोकार्पण हुआ. ज्ञानपीठ के विजेता साहित्यकार और गुजराती जनता के दिल तक पहुंचनेवाले साहित्यकार रघुवीर चौधरी ने `आंुति’ नाकम एक उत्कृष्ट ग्रंथ का विमोचन किया. बडे आकार का यह ग्रंथ ३०० से अधिक पृष्ठों का है फिर भी बापू की सारी प्रवृत्तियों की झलक उसमें आपको देखने को मिलेगी. जरा सोचिए कि ऐसी हर गतिविधि के बारे में विस्तार से दस्तावेजीकरण करना हो तो ऐसे अन्य कई सारे ग्रंथ तैयार करने पडेंगे? एक दर्जन से भी ज्यादा.

कविबंधु हरिश्चंद्र जोशी और विनोद जोशी बापू का `नितांत करूणामय सहज प्रेम’ पाने के पात्र बने हैं. `आहुति’ की परिकल्पना और संपादन उनकी अताह मेहनत तथा अनोखी कल्पना शक्ति का सुंदर परिणाम है. पुस्तक में करीब ७०-७५ सारस्वतों, विद्वानों, लखकों, कलाकारों, शिक्षाविदों ने बापू की एक एक प्रवृत्ति को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा है और उससे जुडी जानकारी जुटाकर उसमें अपना दृष्टिकोण मिलेकर पाठकों तक पहुंचाया है. गुजराती लेखन के क्षेत्र के प्रैक्टिकली तमाम जानी मानी लेखनियां आपको यहां देखने को मिलेंगी. रघुवीर चौथरी तो हैं ही और जोशी बंधु भी हैं, इसके अलावा तुषार शु्क्ल, मनसुख सावलिया, नीतिन वडगामा, हर्ष ब्रह्मभट्ट और भद्रायु वछराजानी से लेकर भाग्येश झा, जय वसावडा, काजल ओझा वैद्य, अंकित त्रिवेदी और हितेन आनंदपरा के अलावा कई नाम आपको उनकी पुस्तक की अनुक्रमणिका में देखने को मिलेंगे. आशा पारेख, पं. शिवकुमार शर्मा, पं. अजय चक्रवर्ती अैर अवधेश कुमार सिंह ने भी इस ग्रंथ के लिए लिखा है.

क्या लिखा है?

बापू की कई सारी गतिविधियों का परिचय तथा कई प्रवृत्तियों के साक्षी होने के बावजूद मुझे यह बात पता नहीं थी कि वे रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के बारे में एक विशाल, सर्वग्राही, समग्र विश्व में अनूठा बनाने वाले तुलसी रिसर्च सेंटर का निर्माण कर रहे हैं. `तुलसीघाट’ नाम प्राप्त यह सेंटर अभी महुवा के कैलाश गुरुकुल में है. रामचरित मानस को समझने के लिए, उसके बारे में गहराई में उतरकर संशोधन करने के लिए समग्र तुलसी-साहित्य इस संशोधन केंद्र में है और अधिक सामग्री का समावेश निरंतर हो रहा है. तुलसीदास द्वारा उपयोग में लाए गए आधार ग्रंथ तथा तुलसी ने जो कुछ भी लिखा- कहा उसकी प्रामाणिक प्रतियां इस रिसर्च सेंटर के लिए जुटाने का भीरथ कार्य काफी आगे बढ चुका है. गुरुकुल के संयोजक जयदेव मांकड ने दिल्ली, लखनऊ, पटना जैसे स्थानों पर जाकर दुर्लभ ग्रंथ जुटाए हैं.

जानते हैं ये जानकारी मुझे कहां से मिली? `आहुति’ में नगीनदास संघवी द्वारा लिखे एक छोटे से लेख से.

कौशिक मेहता के लेख में नगीनदास संघवी के इन शब्दों को उद्धृत किया गया है:`मुझे मोरारीबापू की रामकथा से भी अधिक रस उनके सामाजिक सरोकारों में हैं…बापू की कथा तो अच्छी लगती ही है, लेकिन उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता अधिक हृद्यस्पर्शी है…शायद इसी कारण से वे अन्य कथाकारों या सतों या धर्मगुरुओं से अलग हैं. उनके लिए ये कोई स्पर्धा नहीं है, न ही कोई दिखावा है. वे अत्यंत सहजता से ये सब करते हैं…’

संघवीजी के इन शब्दों का समर्थन करते हुए सुमन शाह ने कहा है:` बापू की सकारात्मकता वास्तविक है. कोई लिप सर्विस नहीं है. केवल जीभ हिलाकर, यूं ही बात नहीं की है.’

बापू की अनेक गतिविधियों की `आहुति’ द्वारा परिचय प्राप्त करनेवाले इसी ग्रंथ के आरंभ में वर्णित राजेंद्र शुक्ल का ये शेर पठनीय है. बापू जो कुछ हैं वह किसलिए हैं और आपके लिए जो लोग दुश्मन समान हैं, ऐसे दुश्मनो को भी बापू क्यों अपना लगते हैं, इसका रहस्य ऋषिकवि राजेंद्र शुक्लने दो पंक्तियों में उद्घाटित किया है. यदि इस बात को आप स्वीकार कर लें (आप यानी आप नहीं बल्कि ये लिखनेवालों सहित सभी लोग) तो जो लोग आपको दुश्मन जैसे लगते हैं उनके प्रति आपकी देखने की दृष्टि बदल जाती है, और आप भी उन्हें बापू की तरह देखने लगते हैं. शेर है:

निषध किसी का नहीं, विदाई किसी की नहीं,

मैं शुद्ध स्वीकार हूं, मैं सभी का समास हूं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here