सर्जिकल स्ट्राइक और प्रधान मंत्री मोदी

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – ९ फरवरी २०१९)

१६ सितंबर को जब उडी की भारतीय सैन्य छावनी में चार आतंकवादियों की घुसपैठ की घटना को याद करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं:`जिस तरह से हमारी सेना के जवानों को मार दिया गया, जीवित जला दिया गया, उस घटना ने मुझे बहुत बेचैन कर दिया था. और मेरे अंदर एक आक्रोश था. मैं केरल गया था, वहां एक पब्लिक मीटिंग में उसका उल्लेख भी कर दिया, क्योंकि मैं खुद को रोक नहीं सका. लेकिन मैं एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतिनिधि हूं. और मेरे व्यक्तिगत गुस्से, मेरे निजी आक्रोश, मेरी व्यक्तिगत बेचैनी का प्रभाव व्यवस्था तंत्र पर नहीं पडना चाहिए, इस प्रकार का संतुलन रखना चाहिए इसकी समझ मुझमें है. लेकिन ऐसा क्यों हुआ, इस बारे में लगातार सेना के अधिकारियों के साथ चर्चा करता रहा. लेकिन मैने अनुभव किया कि मुझसे अधिक आग सेना के लोगों के मन में लगी है. वे इस परिस्थिति में देश के जवानों का मॉरल टिकाए रखना चाहते थे, उन्हें न्याय दिलाना चाहते थे. मैने उनसे कहा कि इस बारे में हम क्या कर सकते हैं, इस संबंध में पूरा प्लान लेकर मेरे पास आइए और जो कुछ भी पूछना हो वह पूछने की आपको छूट है, आप पूछने में तनिक भी कसर बाकी मत रखिएगा. फिर साथ बैठकर तय करेंगे कि उसमें से कितना कर सकने की स्थिति में हम हैं, क्या क्या कर सकते हैं. मैने उन्हें पूरी छूट दी थी. उन्होंने पूरा प्लान बनाया, लेकर मेरे पास आए. दो बार हमें इस ऑपरेशन की तारीख बदलनी पडी, क्योंकि मैं फुल सिक्योरिटी चाहता था. अंत में फाइनल तारीख तय हुई. मैं जानता था कि बहुत बडा जोखिम है. और यह जोखिम मेरे लिए राजनैतिक लाभ या नुकसान का नहीं था- इस बारे में तो मैं सोच भी नहीं रहा था. मेरे जवानों का कोई नुकसान नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे मेरे शब्द पर जिंदगी का दांव खेलने के लिए निकल पडते हैं. उनके लिए जिन साधनों की जरूरत थी, उन सबकी व्यवस्था की गई ताकि उन्हें कोई तकलीफ न हो. दूसरा ये तय हुआ कि उन्हें विशेष तालीम देनी पडेगी तो उसकी व्यवस्था भी की गई जो कि अत्यंत गोपनीय रखना जरूरी था. ट्रेनिंग के दौरान उस क्षेत्र का भूगोल, वहां की टोपोग्राफी कैसी होगी, ये भी उन्हें बताया गया. कौन कौन सी बाधाएं आ सकती हैं, इसकी भी चर्चा की गई. मेरे लिए यह एक लर्निंग एक्सपीरिएंस था, इसीलिए मैं बडे उत्साह से, समय निकाल कर उसमें भाग ले रहा था. मुझे भी कुछ नया सीखने को मिल रहा था. बाद में जब हम बैठे तक तय हुआ कि फलां तारीख को ऑपरेशन करना है, कौन कहां होगा यह भी फाइनल हुआ. और ये तय किया गया कि सूर्यादय से पहले हमारे जवान लौट आने चाहिए. मैने स्पष्ट आदेश दिया था कि सफलता मिले या विफलता, इसकी चिंता मत कीजिएगा लेकिन सूर्योदय से पहले लौट आना है. हमें किसी मोह में पडकर दूर नहीं चले जाना है, ऐसा संभव है कि विफल होकर लौटना पडे तो ठीक है, लेकिन मैं अपने जवानों मरने नहीं दूंगा, ये मेरी पहली शर्त थी. उन्हें वेल इक्विप्ड किया गया था, वेल ट्रेन्ड किया गया था. उसके बाद भी उन्हें अपना खुद का फैसला करने का मौका दिया गया था कि इतना रिस्की काम है, आप तय कीजिए. खोजकर-चुनकर उनकी टीम बनाई गई. इस सारी प्रक्रिया में थोडा समय भी गया. देश में भी आक्रोश था. मैं लाइव कॉन्टैक्ट में था. लेकिन सुबह जानकारी आनी बंद हो गई. सूर्योदय होने जा रहा था और मैं फिर बेचैन हो गया. मैं मन ही मन सोच रहा था कि क्या हुआ होगा, एक घंटे से कोई समाचार नहीं आ रहा है, वर्ना लगतार खबर मिलती रही कि पहली टुकडी निकली है, दूसरी टुकडी… अन्य जानकारियां. लेकिन सूर्योदन के बाद कोई समाचार नहीं आया. मैं नहीं चाहता था कि मैं सामने संपर्क करूं, कहीं कोई परेशानी हो गई तो? सूर्योदय के एक घंटे बाद…वो समय मेरे लिए बडा कठिन था. मैं ये सुनने के लिए बेचैन था कि वे लोग किसी तरह से लौट आए हैं. वहां कितना और क्या नुकसान करके आए हैं, ये बात बाद में लेकिन हर जवान जीवित लौटे, ये मेरी प्राथमिकता थी. तब एक समाचार आया कि वे अभी हमारी सीमा में नहीं आए लेकिन दो तीन टुकडियां सेफ जोन में पहुंच गई हैं लेकिन चलकर लौटने में कुछ देर लगेगी. मुझसे कहा गया कि आपको अब चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. मैने कहा कि जब तक आखिरी जवान लौटकर न आ जाए तब तक मुझे सूचना मिलती रहनी चाहिए. सूर्योदय के दो घंटे बाद समाचार मिला कि सभी सलामत हैं. आखिरी जवान के लौटने का समाचार मिलने पर मैने कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी की मीटिंग बुलाई. आर्मी के लोगों ने उन्हें ब्रीफिंग दी. फिर पाकिस्तान को सूचना दी जाए और तत्पश्चात मीडिया को सूचित किया जाय, ऐसा तय किया गया. पाकिस्तान के लोग फोन पर नहीं आ रहे थे. यहां मीडिया को ग्यारह बजे आने के लिए कहा गया. मैं भी परेशान था. अंत में साढे ग्यारह -पौने बारह बजे उन लोगों के साथ फोन पर बात हुई. मीडिया को बारह बजे ब्रीफिंग दी गई. सफलतापूर्वक ऑपरेशन पूरा होने का रोमांच था. पहले तो चिंता थी ही. लेकिन जिस बारीकी से ये ऑपरेशन संपन्न हुआ उसमें मुझे अपनी सेना की शक्ति का नया परिचय हुआ. हमारी सेना में ये जो सामर्थ्य है, वो अद्भुत है. मैं तो उन्हें सिर झुका कर नमन करता हूं, मुझे अपनी सेना पर गर्व है.’

एक जनवरी को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री द्वारा कहे गए इन शब्दों को बार बार पढकर हृदय में सुरक्षित रखना चाहिए. प्रधान मंत्री के स्तर का व्यक्ति यदि देश के लिए सारी रात जाग सकता है, विफलता की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाकर मिशन की सफलता के लिए बारीक से बारीक पहलुओं का फैसला करने में लीन हो जाते हैं तो हम अपने सामने आनेवाली तकलीफों का सामना करने के बदले सरकार के प्रति चिडचिडे क्यों हो जाते हैं? हम क्यों सहन करना नहीं सीखते. क्यों छोटी छोटी बातों पर सरकार की शिकायत करते रहते हैं. क्यों नहीं समझते हैं कि ये देश सलामत रहेगा तो ही हम सलामत हैं और देश किसके हाथों में सलामत है, ये बताने की जरूरत नहीं है. संक्षिप्त में कहें तो आप सब समझते हैं.

आज का विचार

अब जब आपके कान में आवाज सुनाई देती है कि: `लोकतंत्र या भारतीय संविधान खतरे में है’ तब समझना चाहिए कि चौकीदार ने एक और चोर को पकड लिया है.

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

एक मिनट!

बका: किसी जमाने में घर-घर से अफजल निकलेंगे वाली स्कीम शुरू हुई थी, याद है?

पका: हॉं भई याद है.

बका: अब हर राज्य में से प्रधान मंत्री निकलेगा, वाली स्कीम आई है.

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