चारों प्रकार के विरोधियों को साथ लेकर चलने की कला

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शुक्रवार – ७ सितंबर २०१८)

विरोधी चार तरह के होते हैं. पहले प्रकार के विरोधी समझदार होते हैं. अपना नजरिया यदि आप धैर्य से, लॉजिकली समझाते हैं तो वे उदार मन से अपने मत में निहित कमियों को स्वीकार करके आपके प्रति विरोध खत्म कर देते हैं.

दूसरे प्रकार के विरोधी आपसे कुछ पाने के लिए आपका विरोध करते हैं. या तोवे आपके रिकग्नीशन के भूखे होते हैं. या तो वे आपकी प्रशंसा के इच्छुक होते हैं और कई को आपसे कोई भौतिक वस्तु की चाहत होती है. उन्हें जो चाहिए वह आप दे देते हैं तो वे आपका विरोध त्याग देते हैं.

तीसरे प्रकार के विरोधी आपका विरोध करके, खुद को जो चाहिए वह मिल जाने के बाद आपके साथ मिल जाते हैं, लेकिन उनके अंदर से विद्रोह की प्रवृत्ति नहीं मिटती. आपके साथ मिलकर वे आपका अधिक नुकसान करने में समर्थ हो जाते हैं.

चौथे प्रकार के विरोधियों को आप न तो समझा सकते हैं, न उदार रहकर उन्हें अपने साथ मिला सकते हैं. उनका सारा वजूद ही आपका विरोध करने पर टिका होता है. उन्हें पता होता है कि जिस पल वे आपका विरोध करना बंद कर देंगे, उसी पल उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, उन्हें कोई भाव नहीं देगा.

सबको साथ लेकर चलते समय इन चारों प्रकार के विरोधियों के साथ आपका पाला पडनेवाला है. सामने से आकर किसी को नहीं उकसाना अच्छी बात है. किसी का मन न दुखे, इसके लिए उसके साथ रहे मतभेदों के बारे में किसी तीसरे व्यक्ति की मौजूदगी में या सार्वजनिक रूप से उसकी चर्चा न करें तो भी यह अच्छी बात है. जिनके साथ मतभेद होता है उनके साथ भी कुछ विचारों में तो साम्यता रहने ही वाली है और यह साम्यता यानी हमारा कॉमन मिनिमम प्रोग्राम. उदाहरणार्थ, आपको किसी की सेकुलर विचारधारा से मतभेद है, तो भी आप दोनों के खाने के शौक एक जैसे हो सकते हैं या आप दोनों महादेवी वर्मा के साहित्य के प्रशंसक हो सकते हैं, इसीलिए आप दोनों को इस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तक एक दूसरे के साथ रिश्ता रखना चाहिए.

हमें बचपन से ही गलत संस्कार मिले होते हैं. माता पिता कहते हैं कि सभी को हम अच्छे लगें ऐसा आचरण करना चाहिए. किसी ने कहा नहीं या सिखाया नहीं है कि दूसरों के साथ मतभेदों का निराकरण किस तरह करना चाहिए. आपके स्कूल के मित्र, पडोस के मित्र, शिक्षक- बुजुर्ग, सगे संबंधी, कॉलेज- आफिस-बिल्डिंग के मित्र इत्यादि कई लोगों के साथ मतभेद पैदा होते ही अभी तक सुषुप्त रहे मतभेद किसी मुद्दे पर सामने आते हैं तो आपको खुद से छल किए बिना प्रामाणिक रूप से अपने विरोधियों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए, यह हमें नहीं सिखाया गया है. इसीलिए हम वाजपेयी, आडवाणी, मोदी, मोरारी बापू, लताजी, बच्चनजी इत्यादि महान व्यक्तियों के जीवन में झांककर सीखना पडता है कि अपने विरोधियों के साथ वे किस तरह से डील करते हैं, किस तरह से सभी को साथ लेकर चलते हैं.

एक बात स्पष्ट करके विषय को पूरा करते हैं. महान बनने के लिए सभी को साथ रखने का मतलब ये नहीं है कि आपको सभी को चौबीसों घंटे खुश रखना चाहिए, किसी को नाराज नहीं करना चाहिए. अपनी दृढता को गंवाए बिना आपको आगे बढना है. महान बनने के लिए दृढता अनिवार्य है और दृढता के कारण आप कई लोगों को अच्छे नहीं लगेंगे, यह स्वाभाविक है. विरोधी वर्ग समझाने पर भी नहीं समझते हैं तो उनसे डील करने का काम आपको अपने सपोर्टर्स को सौंप देना चाहिए. आपको विरोधियों के पीछे अपना वक्त बर्बाद करने की जरूरत नहीं है.

और यह याद रखना चाहिए कि सभी को साथ लेकर चलने से ही कोई महान नहीं बना जाता. इसके मूल में लगन चाहिए- ऊँची लगन और इसके अलावा मेहनत चाहिए- पसीने की अंतिम बूंद तक निचोड कर की गई मेहनत. इन दोनों के साथ छोटे बडे मिर्च मसाले, नारियल, धनिया जैसे गुण हों तथा सभी को सोथ लेकर चलने की कला हो तो व्यक्ति महान बनता है.

यह सब लिखना जितना आसान है उसे जीवन में उतारना उतना ही कठिन है. यदि अमल में लाने का काम आसान होता तो आज की तारीख में आपकी फोटो छपी डाक टिकटें प्रकाशित हो चुकी होतीं और आपकी जन्मतिथि को ड्राय डे रखा गया होता.

आज का विचार

बारिश का लेना हो आनंद, भीगना चाहिए,

छत, छज्जा या नय बनकर बहना चाहिए.

सूरज की तरह उगे हो, बहुत अच्छा हुआ,

किंतु सूरज की तरह समय पर ढलना चाहिए.

केवल शब्दवत जीवन बिताने का अर्थ क्या?

है रगों में रक्त तो रक्त खौलना चाहिए.

भर चुका है जलाशय आंख का, मैं जा रहा हूं,

और आपको भी यहां से वापस लौटना चाहिए.

– भगवतीकुमार शर्मा

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