हिंदुओं की बात क्यों दब जाती है

न्यूज़ व्यूज़: सौरभ शाह
(newspremi.com, मंगलवार, ३ मार्च २०२०)

जो बात सच है, वह हम तक नहीं पहुंचती. उसके बजाय फेक न्यूज़ और पूर्वाग्रह से ग्रस्त न्यूज़ एनैलिसिस की गटर रोजाना हमारे मानस को भडकाती रहती है. गलती ताहिर हुसैन की होती है पर दोष का ठीकरा कपिल मिश्रा के सिर फोड़ा जाताहै. हिंदुओं को कट्टरवादी के रूप में चित्रित किया जाता है. मोदी को असहिष्णु ही नहीं, राक्षस की तरह, बिलकुल विफल राजनेता के रूप में चित्रित किया जाता है. भारत एक खतरनाक और पिछडी हुई मानसिकतावाला देश है जिसकी अर्थव्यस्था डूब गई है, ऐसा प्रचार विदेशों तक जाकर किया जाता है. इस देश में खटपट, अपराध और सांप्रदायिकता के अलावा और कुछ नहीं चलता- हम सब मानो नाइजीरिया, निकारागुआ या वेनेजुएला में रहते हों, ऐसे अर्थ के समाचार दैनिक अखबारों के शीर्षकों में पढ़ते हैं, टीवी के प्राइम टाइम न्यूज में देखते हैं. कल के लेख के आखिर में लिखा था: `ऐसा क्यों होता है?’ चलिए जानते हैं `ऐसा’ होने का कारण क्या है?

भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने के बाद भी हमारे विचारों का प्रचार-प्रसार पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाता. हमारे विरुद्ध किए जा रहे- निगेटिव प्रचार बडे पैमाने पर होता है. हमारी भावनाओं की प्रतिध्वनि ठीक से नहीं सुनाई देती. इतना ही नहीं, हम जो कुछ भी सोचते हैं, कहते हैं उसे विकृत बनाकर, मिसकोट करके, लोगों तक पहुंचाया जाता  है. इसका क्या कारण है? हम जो मानते हैं, वह नैरेटिव दुनिया तक पहुंचने के बजाय उनका नैरेटिव, उनकी विचारधारा लोगों तक क्यों पहुंच जाती है?

इसका कारण ये है कि विचारों का सृजन करने, विचारों को बढाने और विचारों का व्यापक प्रचार करने वाले ईको सिस्टम पर वामपंथियों और इस्लामिकों यानी एंटीहिंदूवादियों का एकाधिकार हो गया है. ईको सिस्टम यानी ऐसे तो ईकोलॉजी सिस्टम अर्थात पर्यावरण व्यवस्था होता है. हम उसे सुविधा के लिए `वातावरण’ का नाम दे सकते हैं. लेकिन ईको सिस्टम शब्द का प्रयोग आजकल फैशन में है इसीलिए चला लेते हैं. दूसरा कारण ये है कि एको चैंबर्स- एको यानी प्रतिध्वनि जैसा कि पहले बताया गया है- गली में एक कुत्ता भौंकता है तो अन्य कुत्ते भी जरूरी हो या न हो भौंकने लगते हैं. एक व्यक्ति का अनुकरण बाकी के सौ मिलीभगत करनेवाले करते हैं- ऐसी देखादेखी करने के पीछे कोई प्रत्यक्ष कारण हो या न हो- बस शुरू हो जाओ.

हमारी बात उचित संदर्भ में पर्याप्त लोगों तक नहीं पहुंचती, इसका फ्रस्ट्रेशन है. मोदी के राज में ऐसा? ये सवाल हमारे मन में उठता है. लेकिन मोदी तो २०१४ में आए थे. उन लोगों का ईको सिस्टम १९४७ से बनता आया है. ये ईको सिस्टम रातोंरात नहीं बनता, रातोंरात टूटता भी नहीं है, इसीलिए ये रातोंरात बदलनेवाला भी नहीं है. ये ईको सिस्टम किस तरह से बनता है. समझने की कोशिश करते हैं. ईको सिस्टम किसी एक फैक्टर के कारण नहीं बनता. मेरे हिसाब से विचारों के प्रचार-प्रसार- स्वीकार का ईको सिस्टम दस स्तंभों पर खडा है, या यूं कह लीजिए कि दसों दिशाओं में फैला है. बात थोडी लंबी होगी लेकिन हर मुद्दे के बारे में विस्तार से बात करनी है.

१) शिक्षा: जैसा अन्न वैसा मन की तरह ही जैसी शिक्षा वैसा व्यक्तित्व. हमारे मानस को गढने में बचपन से मिलनेवाली शिक्षा का बडा योगदान है. बचपन से हमने अपने देश का गलत इतिहास पढा. बचपन से ही हमने इस देश को जातपात, अस्पृश्यता में और सती प्रथा में माननेवाले एक पिछडे हुए जंगी देश के रूप में पहचाना. हमारे इतिहास में अत्याचारी मुगल शासकों को उदारमतवादी और सहिष्णु सम्राटों के रूप में चित्रित किया गया. कॉन्वेंट या मिशनरी स्कूलों में पढे हुए लोगों में से अधिकांश भारतीय किशोरावास्था खत्म होने के बाद भी भारत को नीची निगाह से देखते हैं.

गलत और खराब शिक्षा लेकर बढी जनता में से बहुत कम लोग मैच्योर हुए या फिर समझ में आ जाता है कि शिक्षा हमारे साथ धोखा कर रही है. नेहरू ने मौलाना आजाद जैसे कट्टरवादी मुस्लिम को शिक्षामंत्री बनाया और मौलाना ने वामपंथी तथा इस्लामिक विचारधारा रखनेवाले शिक्षाविदों/ इतिहासकारों के हाथ में इस देश की नई पीढी की बागडोर सौंप दी.

भारत में सरकारी स्तर पर शिक्षा नीति जब तक नहीं बदलती है तब तक ८०% हिंदू जनता की शिकायत जारी रहेगी. गुरुकुल पद्धति तथा देश प्रेमी शिक्षा संस्थाएं हमारे देश में हैं. लेकिन उनके सामने देश के प्रति गौरव न हो, ऐसी शिक्षा प्रणाली अपनानेवाले स्कूल/ कॉलेज/ विश्वविद्यालय दस गुना हैं. सरकारी स्तर पर रातोंरात शिक्षा नीति बदलना कठिन है. नोटबंदी या बालाकोट की एयर स्ट्राइक रातों रात हो सकती है लेकिन शिक्षा पद्धति रातोंरात नहीं बदली जा सकती. इस दिशा में वाजपेयीजी की सरकार के शिक्षामंत्री मुरली मनोहर जोशी ने थोडा काम किया था लेकिन उस समय की एनडीए सरकार बीस धावक एक दूसरे के पांवों बंधी रस्सी के साथ दौडें, इस प्रकार से लडखडा रही थी. उस समय जितना काम हुआ उसके खिलाफ भी साम्यवादी तथा कांग्रेसी `इतिहास के भगवाकरण’ की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने लाल सलाम वालों तथा बनावटी गांधीवादियों को चपत लगाई और वाजपेयी सरकार के `भगवाकरण’ को बरकरार रखा. लेकिन बाद में २००४ में सत्ता परिवर्तन हुआ. सोनिया-मनमोहन की सरकार में कपिल सिब्बल नामक हिंदू विरोधी एच.आर.डी. मंत्री बने. कपिल सिब्बल ने देश के बच्चों को शिक्षा देनेवाली सलाहकार समिति में किसे जगह दी थी, जानते हैं. तीस्ता सेतलवाड को.

२०१४ में और २०१९ में मोदी सरकार खुद निर्णय ले सकती है और बहुमत के साथ काम रही है. ट्रिपल तलाक, ३७०, और सीएए से लेकर कई फैसलों के बारे में हमने उनकी दृढता देखी है. मोदी सरकार में स्मृति इरानी और प्रकाश जावडेकर के बाद पिछले नौ-दस महीने से रमेश पोखरियाल मानव संसाधन विकास मंत्री की भूमिका निभा रहे हैं (जो पहले शिक्षा मंत्रालय कहलाता था). पोखरियाल भी सक्षम व्यक्ति हैं. चीफ मिनिस्टर के रूप में दो साल उत्तराखंड की सरकार चला चुके हैं. संघ के पुराने व्यक्ति हैं. पोखरियाल ने उपन्यास, कहानी संग्रह तथा कविताओं सहित कुल ४४ किताबें हिंदी में लिखी हैं जो देश के जाने माने प्रकाशन वाणी प्रकाशन तथा डायमंड बुक्स ने प्रकाशित की हैं.
कई हिंदूवादी शिकायत करते रहते हैं कि मोदी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नहीं किया. इरानी-जावडेकर विफल थे वगैरह. मोदी सरकार ने उच्च शिक्षा को प्रायोरिटी देकर देश में हार्वर्ड-कैंब्रिज-ऑक्सफोर्ड के स्तर की अपनी युनिवर्सिटियां बनाने के लिए कई लाख करोड रुपए खर्च करने का प्रावधान किया है. आईआईटी- आईआईएम तथा एम्स की शाखाओं की संख्या बढाई हैं और अब जम्मू कश्मीर में भी इन संस्थाओं का निर्माण होगा.

मौलिक शिक्षा के लिए एच.आर.डी मंत्रालय के अंतर्गत एनसीईआरटी (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) कार्य करती है जिसके जरिए स्कूलों के दस धन दो साल के अभ्यासक्रम तथा उससे जुडी पाठ्यपुस्तकों की गाइडलाइन्स बनाई जाती हैं.

भारत के संविधान के अनुसार देश को चलाने के लिए कुछ विषय केंद्र के अधीन होते हैं, कुछ राज्य तथा कुछ दोनों की जिम्मेदारी होते हैं. जैसे कि मुद्रा, रक्षा, विदेश नीति से लेकर अन्य कई विषय केंद्र के अधीन होते हैं. उसमें राज्य या राज्य की सरकार का हस्तक्षेप बिलकुल नहीं चलता. शिक्षा को मूल संविधान में राज्यों का विषय माना गया है लेकिन १९७६ में संविधान की धारा ४२ में संशोधन करके शिक्षा को कॉन्करंट लिस्ट में रखा गया यानी शिक्षा अब केंद्र और राज्य दोनों के सहयोग से चलाया जानेवाला विषय है, ये तय हो गया है.

पिछले पांच-छह वर्ष से चल रही कसरत के अंत में इस साल मोदी सरकार नई शिक्षा नीति की घोषणा करेगी. इसके लिए इंतजार करना होगा.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) तो आंखों में चढ चुका है. देश की अन्य कई युनिवर्सिटीज में वामपंथी इहिासकारों ने देशद्रोहियों को बढावा देनेवाला वातावरण पिछले दशकों से तैयार किया है. इस कारण विद्यार्थियों को तथा उन्हें पढाने वाली फैकल्टी को मानस वामपंथियों ने लाल रंग से रंगा है. भगवा रंग देखकर उनका भडकना स्वाभाविक ही है.

सत्तर साल से वामपंथी इतिहासकार जिस सिस्टम में घुसे हों उस सिस्टम में पढकर तैयार हुए विद्यार्थी किसी भी काम धंधे नौकरी से जुडेंगे तो उनके मन में भगवे रंग के प्रति अरुचि तो रहेगी ही. कभी कभी नफरत भी हो सकती है. वे चाहे किसी भी उम्र में वोट देने जाएंगे तो भी उनके मन पर उनकी शिक्षा हावी रहने ही वाली है. हमारे खिलाफ उन लोगों का पक्ष लेनेवाले ईको सिस्टम होने के दस कारणों में से ये एक सबसे बडा कारण है- शिक्षा. मोदी सरकार शिक्षा प्रणाली में भारी फेरबदल करेगी तो विपक्षी, अभी सीएए के खिलाफ जितने दंगे कर रहे हैं उससे भी कई गुना ज्यादा हंगामा करेंगे. जोरशोर से ऐसा प्रचार करेंगे कि `भारत में शिक्षा का भगवाकरण हो रहा है’ और `भारत को हिंदूराष्ट्र बनाने की कोशिश हो रही है’. हमें उनका तडपना देखना चाहिए और पूछना चाहिए: भारत की शिक्षा को भगवा रंग से न रंगे तो पाकिस्तान की शिक्षा का भगवाकरण करें? भारत हिंदूराष्ट्र के नाते गौरव महसूस नहीं करेगा तो क्या पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान खुद को हिंदुराष्ट्र कहलाएंगे?

शिक्षा के बाद दूसरा मुद्दा है मीडिया और तीसरा है ब्यूरोक्रेसी. उसके अन्य सात मद्दों पर बात करनी है.

इन दसों क्षेत्रों में किस तरह से वामपंथियों और इस्लामिस्टों ने एंटीहिंदू वादी मानसिकता कैसे फैलाई है, ये समझेंगे तो पता चलेगा कि उनका ईको सिस्टम कैसे काम करता है. अब बारी बारी से बाकी के नौ मुद्दों पर चर्चा करेंगे.

आज का विचार

भारत में रहनेवालेलाखों लोग तथा नागरिकों को अलग करने के इरादे से भरमाने के लिए `भारत माता की जय’ जैसे आतंकवादी (मिलिटेंट) नारे लगाए जा रहे हैं.
– भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
भारत मात की जय के नारे में क्या दिक्कत है?
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

छोटी सी बात

तुम रात को सपने में आती हो. तुम कैसे सह पाती हो डेढ गुना रिक्शे का किराया?
– डिम्पल पटेल (ट्विटर से)

3 COMMENTS

  1. सबसे पहले आपको नमस्कार मैं यश त्रिपाठी सौरभ भाई आपका साक्षात्कार हमारे परम मित्र श्री भरत वधानी के सौजन्य से हुआ
    और उनके ही द्वारा हमें आपका लिंक मिला और हम आपका लेख अच्छी तरह से पढ़ते हैं काफी सटीक विचार से हम काफी प्रभावित हुई है अच्छा लगा इस तरह की पत्रकारिता का मैं अभिनंदन करता हूं और आप को सैल्यूट करता हूं
    इस घोर कलयुग में कोई इस तरह की पत्रकारिता करें हमें बिल्कुल विश्वास नहीं होता बहुत ही सटीक पत्रकारिता और बहुत ही सुंदर पत्रकारिता लेख आपका अति उत्तम है मैं आपसे काफी प्रभावित हुआ मैं आपसे आग्रह करूंगा की हमें भी आपका लिंक प्राप्त हो हमारे व्हाट्सएप पर जिससे हम आपके विचार और समाज के विचार जानने का प्रयास कर सकें
    और आपको बहुत-बहुत शुभकामना आप इसी तरह से अपने विचारों को हमारे लोगों के बीच में देते रहें अच्छे विचार हैं इसकी इज्जत में करता हूं और करता रहूंगा

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