एक वार और ३७० टुकड़े

एक वार और ३७० टुकड़े

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार, ६ अगस्त २०१९)

लोग मोदी की हिम्मत को दाद दे रहे हैं, छप्पन की छाती को सराह रहे हैं. मोदी में हिम्मत – साहस तो है ही लेकिन इससे भी विशेष कई सारी बातें हैं जो हाइप में ढंक जाती हैं.

सबसे पहली बात है- दृढ संकल्प. ३७० को हटाने का संकल्प मोदी ने पहली बार प्रधान मंत्री बनने की संभावना खडी होने पर ही कर लिया होगा. क्योंकि ३७० हटाए जाने की मांग में तो उन्हें मुख्य मंत्री बनने से पहले भी श्रद्धा थी. राम माधव द्वारा वह फोटो ट्विटर पर शेयर करने के बाद सोशल मीडिया पर खूब घूमी है. दृढ संकल्प मोदी के बेहतरीन साहस की पहली सीढी है.

लेकिन इस सीढी- सोपान की नींव तभी बनाई जा सकती है जब जमीन उसके अनुरूप हो. धारा ३७० हटनी चाहिए, इस मांग पर मोदी को श्रद्धा कब होगी? जब उनके पास सत्य इतिहास की समझ होगी तब. सेकुलर और साम्यवादियों के लिखे इतिहास से जिनकी परवरिश हुई हो, ऐसे लोग तो आज की तिथि में भी यह मानते हैं कि संविधान की धारा ३७० अनिवार्य है. जिनका अपना कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है, ऐसे लोग भी हमारे आस पास बडी संख्या में हैं जो यह मानने की गलती करते हैं.

वास्तविक इतिहास की समझवाली भूमिका और उस पर बनी दृढ संकल्प की पहली सीढी के बाद अगली बारी आती है दीर्घ दृष्टि की. मोदी को लंबी अवधि का विचार करने की आदत है और यह उन्होंने कदम कदम पर साबित किया है. कोई भी कदम उठाने से पहले मोदी इस बात का शीघ्रता से विचार कर लेते हैं कि उसके परिणाम अल्प अवधि में, मध्यम अवधि में और दीर्घ अवधि में क्या होंगे. २००२ के दंगे, वाइब्रेंट गुजरात, २०१४ का चुनाव प्रचार, नोटबंदी, जीएसटी और २०१९ के चुनाव और सर्जिकल स्ट्राइक- कई उदाहरण आपके सामने हैं. ट्रिपल तलाक जैसे संवेदनशील और उससे भी हजार गुना संवेदनशील तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव उत्पन्न करने वाले धारा ३७० को रद्द करने के मुद्दे का दीर्घ कालिक और सर्वव्यापी प्रभाव पडेगा, इस बारे में उन्होंने जो कुछ भी सोचा होगा, उसका सौवां भाग भी सोचने की क्षमता भी किसी में नहीं है- न सरकार में है, न ही जनता में.

तीसरा चरण है नियोजन का. पुख्ता नियोजन मोदी कर प्रशासनिक शक्तियों का प्रमाण है. मुख्य मंत्री बनने से पहले ही उन्होंने अपनी इस क्षमता को साबित किया था- २००१ में कच्छ में आए भूकंप के समय. २००२ में हुए हिंदू हत्याकांड के बाद गुजरात की जनता में इतना असंतोष था कि मोदी अगर न होते तो दोनों ही पक्षों के जान-माल का बहुत बडा नुकसान हो सकता था. वायब्रेंट गुजरात की योजना को तो भारत के अन्य राज्यों ने भी अपना लिया. चुनावी सभाओं का आयोजन तो अब उनके लिए बाएँ हाथ का खेल हो गया है. नोटबंदी- जीएसटी के क्रियान्वयन के बारे में अभी भी कई नाराज लोग और कर चोरी करने वाले तथा थियरी से चिपके रहनेवाले अर्थशास्त्री मीनमेख निकाल रहे हैं लेकिन कोई भी यह नहीं देख रहा है कि नोटबंदी जैसी इतिहास बदलनेवाली घटना के समय भी राजनीति दलों के उकसावे के बावजूद बडे दंगे होने की तो बात ही जाने दीजिए, जनता ने एक एटीएम तक का कांच नहीं फोडा. नोटबंदी और जीएसटी जैसी युगपरिवर्तन की घटनाओं के क्रियान्वयन में जो कुछ भी कमी रही, वह समय के साथ सुधरती चली गई. लेकिन बच्चे के जन्मते ही उसैन बोल्ट की तरह दौडने की अपेक्षा करनेवाले अधीर लोग अब भी नासमझी के कारण आलोचना करते हैं कि नोटबंदी और जीएसटी ने जन्म लेते ही दौडना क्यों नहीं शुरू कर दिया? धारा ३७० के संबंध में संसद में घोषणा करने से पहले मोदी ने अनेक पूर्व तैयारियां कीं जिसके बारे में आप जानते ही हैं. महबूबा- ओमर इत्यादि को नजरबंद करना, इंटरनेट बंद करना, मोबाइल बंद करना, पुलिस अधिकारियों के लिए सैटेलाइट फोन्स, हजारों सैनिक टुकडियों का बंदोबस्त, यात्रियों को वापस बुलाने का निर्देश- ये सब तो केवल भौतिक तैयारियां हैं. अंतर्राष्ट्रीय दबाव न बनने पाए इसके लिए डिप्लोमेटिक तैयारी, पाकिस्तान कोई उपद्रव न करे इसके लिए उसे `समझाने’ की तैयारी, संसद में और संसद के बाहर विरोधियों के होहल्ला मचाने पर उसका जवाब देनी की तैयारी. इसके अलावा कश्मीर की जनता उकसाने पर कुछ कर न बैठे और सिविल वॉर की परिस्थिति पैदा हो इससे पहले मोदी ने पूरे पांच वर्ष तक कश्मीर में इंस्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का बहुत बडा काम किया है. नई सडकें, नई रेलवे लाइनें, पंचायतों को केंद्र की ओर से सीधे आर्थिक मदद, आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लिए (८ लाख से कम वार्षिक आयवालों के लिए) दस प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करना जो कि भारत के कई राज्य पहले ही लागू कर चुके हैं. इन सारी पूर्व तैयारियों द्वारा मोदी ने पुख्ता इंतजाम कर लिया कि कश्मीरी आहत न हों और उन्हें उकसाने में कोई सफल न हो सके. तो ये था तीसरा चरण- प्लानिंग का.

मोदी की चौथी खासियत है उनका धैर्य और सीक्रेसी. किसी भी योजना का क्रियान्वयन जब तक नहीं हो जाता, तब तक उसके बारे में बवाल नहीं करना चाहिए. लोग चाहे जो कहें, उनका जवाब नहीं देना है. खुद जो करते हैं, करना चाहते हैं या नहीं करना चाहते,, उसके बारे में कोई स्पष्टीकरण या खुलासा नहीं करना है. बात जब बाहर आएगी तब की तब देखी जाएगी, अभी चुपचाप काम किया जाय. आवश्यकता पडने पर संकेत दीजिए लेकिन पूरे का पूरा पेपर ही लीक करने की जरूरत नहीं है- चाहे कितना ही दबाव क्यों न आए- फिर चाहे वह पार्टी से हो, विरोधियों का हो या मीडिया का- बस चुप रहना है, काम करते जाना है.

मोदी की पांचवीं और सबसे प्रमुख बात ये है कि एक बार अमल में लाने के बाद सार्वजनिक रूप से उस बात का श्रेय यदि मिल रहा हो तो नि:संकोच नम्रता दिखाए बिना, स्वीकार कर लेना चाहिए. क्योंकि यदि अपयश मिलता तो लोग उन्हीं के माथे पर ठीकरा फोडते. कल्पना कीजिए कि अभिनंदन वाली सर्जिकल स्ट्राइक में जरा भी गडबडी हुई होती तो क्या लोगों ने उनके माइक्रो प्लानिंग करनेवालों की गलती निकाली होती? बिलकुल नहीं. मोदी को पर सारा ठीकरा फोड दिया होता. तो फिर जो कुछ भी सफलता से संपन्न हो रहा है, उसका श्रेय मोदी क्यों न लें.

इस पूर्वभूमिका के बाद धारा ३७० हटाने से जुडी एक छोटी सी लेख माला शुरू करेंगे. किंतु उससे पहले दो बातें. सेकुलरवादियों के प्रचार के कारण तथा साम्यवादी इतिहासकारों के लिखे इतिहास की किताबों के कारण मैं खुद भी एक जमाने में यह मानता था कि नैतिक रूप से (और कानूनन भी) कश्मीर पर हमारा कोई अधिकार नहीं है. लेकिन १९८८-८९ के दौर में १९४६ से १९४८ के दौरान कश्मीर संबंधी उपन्यास (`जन्मोजनम’) के लिए जब २५ दिन तक जम्मू कश्मीर में घूमा और अनुसंधान करके कई दस्तावेज देखे तब मेरी आंखें खुलीं. (वह उपन्यास १९८९ में गुजराती पत्रिका `चित्रलेखा’ में धारावाहिक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था. वह पुस्तक के स्वरूप में प्रकाशित नहीं किया जा सका क्योंकि उसे अच्छी तरह से नहीं लिखा गया था. काफी कच्चे था.)

उसके बाद कश्मीर के इतिहास के संदर्भ देकर मैने धारा ३७० के बारे में `गुड मॉर्निंग’ के पहले सीजन (१९९५- १९९९) के दौरान खूब लिखा. उसके आधार पर एक प्रदीर्घ लेख बना जिसका अंश २००२ में प्रकाशित हुई मेरी पुस्तक `३१ स्वर्णमुद्राओ’ में है (पुस्तक आउट ऑफ प्रिंट है).

कश्मीर और धारा ३७० ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें समझने के लिए और हल निकालने के लिए मोदी की नजर, मोदी की मानसिकता तथा मोदी की योजना शक्ति होनी चाहिए.

भारत सचमुच में भाग्यशाली है.

आज का विचार

दुख सहने के भय से हम जीवन की विराट संभावनाओं को, अवसरों को व्यर्थ कर देते हैं.

– सद् गुरु जग्गी वसुदेव

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