मेथी के साग का पीडीएफ मिले तो कौन सी सब्जी बनाएंगे : सौरभ शाह

(आज का संपादकीय: शनिवार, २५ अप्रैल २०२०)

समाचारों का महत्व है, अखबारों का नहीं. मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच को सरकार स्पष्ट बताया है कि मुंबई-पुणे तथा अन्य कई शहरों में अखबारों को छापने की छूट तो है लेकिन अखबार डालनेवाले फेरीवालों को घर घर जाने की छूट नहीं है. ये सरकार का अंतिम निर्णय है.

प्रिंट मीडिया का व्यवसाय तो ऐसे भी चौपट हो गया था, और कोरोना ने आकर बंद शटर पर ताला लगा दिया. अखबार वालों को अफसोस है कि सरकार ने साग-सब्जी वालों को इमारत के कंपाउंड तक जाने की छूट दी है तो उन्हें क्यों नहीं, हम भी जीवनावश्यक वस्तुओं की सरकारी सूची में शामिल हैं.

सरकार ने जैसे कई पुराने जीर्णशीर्ण कानूनों को रद्द किया, सुधारा है उसी प्रकार से जीवनावश्यक वस्तुओं की सूची से अखबारों-मैगजीन्स को निकाल देना चाहिए. ऐसा करने से मीडिया की अखबारी स्वतंत्रता पर कोई विपत्ति नहीं आएगी. सभी अखबार डिजिटल माध्यम द्वारा-पीडीएफ द्वारा आपके फोन-कंप्यूटर तक पहुंच सकते हैं, प्रिंटेड आवृत्तियों की कोई जरूरत नहीं है. साग-सब्जियों की डिलीवरी पीडीएफ द्वारा नहीं की जा सकती. लोगों के लिए रीयल साग सब्जी ही चाहिए, रीयल दूध ही चाहिए, रीयल दवाएं ही चाहिए. प्रिंटवाले नाहक ही उधम मचा रहे हैं. सरकार ने अखबार छापने के लिए मना नहीं किया है. वितरण के लिए ना कहा है. विक्रेताओं के पास जाकर ले आना है. लेकिन विक्रेता घर घर आकर खुद को और अपने ग्राहकों को कोरोना के खतरे में नहीं डालेंगे.

सूरत निवासी मित्र नरेशभाई कापडिया तथा जयेशभाई सूरती वर्षों से `अखबारी वाचन ग्रुप’ चला रहे हैं. तमाम गुजराती-अंग्रेजी अखबारों का पीडीएफ आपको वॉट्सऐप पर भेज देते हैं.

सरकार के इस आदेश का आदर करने के बजाय अखबारवाले फ्रंट पेज पर संपादकीय लेख लिख कर सरकार को फटकार लगा रहे हैं, सरकार की बेइज्जती कर रहे हैं. वर्तमान समय में जनता और प्रशासन के हितों का संरक्षण करने के बजाय अपनी जेबें भरने की इच्छा रखनेवाले संपादक-कम-मैनेजरजादों से पूछना चाहिए कि इस लॉकडाउन में लोगों के लिए क्या महत्वपूर्ण है? कोरोना फैलाने की संभावना वाले अखबारों को हाथ में लेने के बाजय वही अखबार पीडीएफ के रूप में या किसी अन्य डिजिटल स्वरूप में पढकर पाठक खतरे से दूर रहना चाहता है तो इसमें गलत क्या है? विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का हवाला देकर अखबारवाले बार बार छाती पीट रहे हैं कि `डब्ल्यूएचओ’ ने तो कहा है कि अखबारों से कोरोना नहीं फैलता. कॉमन सेंस ये कहता है कि कोरोना किसी भी माध्यम से फैल सकता है- सब्जियों और दूध से भी. लेकिन साग-सब्जियों को खाने के सोडे से धोकर आप उपयोग में ला सकते हैं, दूध के पाउच को भी साबुन-पानी से साफ कर सकते हैं. अब पाठक आपका अखबार धोने के लिए बाथरूम में बाल्टी भरकर साबुन-पानी का उपयोग करें और अखबार का निचोड कर पढें क्या आप ये कल्पना कर सकते हैं?

पाठक मरे तो मरे, विक्रेता मरे तो मरे लेकिन प्रिंट मीडिया का खजाना भरता रहे, ऐसी मानसिकता को अब छोड़ना होगा. कारोना से आपका पाठक मर गया तो डिजिटल रीडरशिप भी हाथ से जाएगी.

।।हरि ॐ।।

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