आओ फिर से दिया जलाएँ

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – २८ अगस्त २०१८)

वाजपेयी-आडवाणी के बीच ६५ वर्ष के संबंधों का अवलोकन और आकलन करते समय नीचे दिए गए कई मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए:

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रह चुके वर्तमान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में एक बहुत ही सुंदर निरीक्षण किया है. गडकरी ने कहा था:`समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह की पार्टी, आरजेडी लालू यादव की, जेडीयू नीतीशकुमार की, अकाली दल प्रकाश सिंह बादल की (और कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार की) पार्टी बनकर रह गई है, लेकिन भाजपा के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता. वैसे जब भाजपा का जन्म हुआ तब उसमें एकमात्र वाजपेयी (और फिर आडवाणी) के अलावा कोई दूसरा कद्दावर नेता था ही कहां? वाजपेयी अगर चाहते तो भाजपा भी दूसरी पार्टियों की तरह उनके इस नेता के नाम पर, वाजपेयी की पार्टी के रूप में पहचानी जाती. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया. भाजपा को सबकी बनाया. इस पार्टी में किसी एक व्यक्ति का फैसला अंतिम नहीं होता- न वाजपेयी का, न आडवाणी का, न पार्टी अध्यक्ष का.’ भाजपा व्यक्तिवाद और परिवारवाद से मुक्त पार्टी है और इस तरह से पूरे भारत में उसका अपना अनूठा स्थान है और इसको श्रेय वाजपेयी को, आडवाणी को तथा भाजपा के अभी तक के अन्य सभी अध्यक्षों को जाता है. भाजपा एक सही मायने में लोकतांत्रिक पद्धति से चलनेवाली राजनीतिक पार्टी है. जब नितीन गडकरी यह नजरिया देते हैं तब ध्यान में आता है कि बात बिलकुल सही है. मीडिया द्वारा उडाई जा रही विद्वेष की बातें जो कइयों के मन में गहराई तक बैठ चुकी है उसके बारे में गडकरी का यह निरीक्षण उल्लेखनीय है.

मीडिया कई बातों को बारंबार उछालता रहता है जिसके कारण हम झूठ को सच मान बैठते हैं. वर्षों से हम सुनते आए हैं कि १९७१ में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश को अलग करने का पराक्रम जब भारतीय सेना ने किया तब इंदिरा गांधी देश की प्रधान मंत्री थीं इसीलिए इस विजय के बाद संसद में किए गए भाषण में विरोधी दल के नेता के रूप में खुद वाजपेयी ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्हें दुर्गा की संज्ञा दी थी.

यह बात बिलकुल असत्य है, लेकिन वर्षों नहीं दशकों तक यह झूठ चलता रहा. १९९७-९८ में वाजपेयी ने रजत शर्मा की `आपकी अदालत’ में दिए गए इंटरव्यू के उत्तरार्ध में स्पष्ट शब्दों में इनकार किया है कि मैने ऐसा कहा ही नहीं और इस बारे में बार-बार स्पष्टीकरण देने के बावजूद मीडिया इस झूठ को प्रचारित करता रहता है.

संसद में किसी सदस्य ने मजाकिया लहजे में मुर्गा के साथ दुर्गा का अनुप्रास मिलान किया था जिससे दुर्गा शब्द उठाकर वाजपेयी के मुंह में रखने की शरारत किसी शरारती पत्रकार ने की और उसके बाद जो चक्कर घूमा तो फिर घूमता ही रहा, वाजपेयी के स्वयं बयान देने के बावजूद चलता रहा. मुर्गा-दुर्गा वाली बात पत्रकार कूमी कपूर ने लिखी है.

ऐसा ही एक भ्रम और भी फैलाया गया है जिसमें वाजपेयी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शामिल है. इमरजेंसी के समय वाजपेयी और आरएसएस ने इंदिरा गांधी से माफी मांगनेवाला पत्र लिखा था ऐसी अफवाह दशकों से फैलाई जा रही है. आपको आश्चर्य होगा कि यह अफवाह उडानेवाले और कोई नहीं बल्कि सुब्रमण्यम स्वामी हैं. स्वामी हिंदू विचारधारा के प्रखर समर्थक हैं और आज की तारीख में भाजपा में हैं. इसके अलावा इमरजेंसी के दौरान उन्होंने जिस साहस का प्रदर्शन किया उसके लिए हर कोई उनकी सराहना भी करता है.

लेकिन क्या इसीलिए वाजपेयी-संघ के बारे में उनके द्वारा फैलाई गई अफवाह सच साबित हो जाती है? नहीं. तो फिर स्वामी क्यों अपनी ही विचारधारा को माननेवालों की बदनामी कर रहे थे? ये तो भगवान जानें. हम तो बस इतना जानते हैं कि वाजपेयी की पहली बार बनी १३ दिन की सरकार टूटने के बाद जो चुनाव हुआ उसमें भाजपा ने सबसे बडे दल के नाते साथी दलों के साथ मिलकर जो सरकार बनाई वह भी केवल १३ महीने चली और अविश्वास प्रस्ताव पर केवल १ वोट से गिर गई जिसमें सुब्रमण्यम स्वामी का हाथ था. वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के ३५ सदस्यों का समर्थन था. स्वामी ने जयललिता और सोनिया गांधी की चाय पर मुलाकात कराई और वाजपेयी सरकार से बाहर हो जाने के लिए जयललिता को कंन्विस कर लिया था. स्वामी के हिंदू प्रेम के लिए, रामजन्मभूमि तथा नेशनल हेराल्ड सहित अन्य कई कोर्ट केसेस में उनकी भूमिका को लेकर कोई दो राय नहीं है. उनके प्रति अपार आदर है. लेकिन उन्हें किन्हीं कारणों से भाजपा की हर सरकार में सत्ता से दूर रखा जाता है. चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तब उन्हें (वित्त मंत्री नहीं बल्कि) वाणिज्य और उद्योग मंत्री (तथा कानून मंत्री का अतिरिक्त प्रभार) बनाया गया था. वे आज भी मानते हैं कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनका समावेश नहीं करके उनके साथ अन्याय किया जा रहा है.

खैर, राजनीति में ही नहीं हर क्षेत्र में आपके विरोधियों तथा आपके अंदर के लोग भी आपके बारे में झूठ फैलाते रहते हैं. हर किसी का अपना अपना कारण होता है. निकट के लोगों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों से विश्वसनीयता बढ जाती है, लेकिन झूठ तो आखिर झूठ है. ऐसी असत्य बातों से, कुप्रचारों से दूर रहकर हम वाजपेयी-आडवाणी के बीच के संबंधों को देखेंगे, आधारभूत और ठोस स्रोतों से मिली जानकारी द्वारा निहारना है. इस स्रोत में आडवाणी लिखित आत्मकथा `माय कंट्री, माय लाइफ’ में वाजपेयी के बारे में दिया गया प्रदीर्घ अध्याय पर मेरी यह नई श्रंखला काफी हद तक आधारित है.

शेष कल.

आज का विचार

भरी दुपहरी में अंधियारा

सूरज परछोईं से हारा

अंतरतम का नेह निचोडें

बुझी हुई बाती सुलगाएँ

आओ फिर से दिया जलाएं

हम पडाव को समझें मंजिल

लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

वर्तमान के मोहजाल में

आनेवाले कल न भुलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं

आहुति बाकी, यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज्र बनाने

नव दधीचि हड्डियां गलाएं

आओ फिर से दिया जलाएं.

– अटल बिहारी वाजपेयी

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