दूसरों के लिए जीना या अपने लिए

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १७ दिसंबर २०१८)

ओशो रजनीश कहते हैं कि कभी किसी की अपेक्षा का शिकार मत बनो.

मैने अपने बेटे को पढाने के लिए ऐसा किया और बेटी की शादी करने के लिए वैसा किया कहकर शेखी बघारनेवाले दूसरों की अपेक्षा पूरी करने में अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेते हैं. रजनीशजी की बात के संदर्भ में आए विचारों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ. हमारा जीवन अपना खुद का है ये हम नहीं समझते. दूसरों की अपेक्षा को पूरा करने के परिणामस्वरूप हम यह भी मानने लगते हैं कि दूसरों के जीवन में दखल देने का अधिकार भी हमें है. मैं जो कुछ कमाता हूं, वह सब मेरी पत्नी और मेरी संतानों के लिए ही तो है, ऐसा माननेवाले पत्नी-बच्चों के जीवन में सबसे अधिक दखलंदाजी करने लगते हैं.

हमारे पारंपरिक विचारों में यह बात घर कर गई है कि `उसने तो भाई साहब समाज के लिए/ देश के लिए जिंदगी खपा दी’, ऐसा जिसके लिए कहा जाता है, वह व्यक्ति महान बन जाता है. तब हम सोचते हैं कि चलो, देश या समाज के लिए मुझसे कुछ हो या न हो, कम से कम मेरी पत्नी-बच्चे, मेरे परिवार, मेरे आस-पडोस के लोग, मेरी जाति के लोगों के लिए जो कुछ भी हो सके वह करूं.

असलियत तो ये है कि मुझे किसी की अपेक्षा पूरी नहीं करनी, मुझे किसी का भला नहीं करना. भगवान ने मुझे अपनी जिंदगी जीने के लिए इस पृथ्वी पर जन्म दिया है. मैं अपनी तरह से जिऊं, मुझे जिस तरह से जीना है उस तरह जिऊं और इस तरह से जीने में देश को, समाज को , संतानों को, परिवार को, जाति का अगर लाभ होता है तो अच्छी बात है लेकिन ये अप्रत्यक्ष फायदा है. गांधीजी ने अपने तरीके से जिंदगी जी. स्वामी विवेकानंद और सरदार पटेल से लेकर अभी तक के महान नेता या फिर हर क्षेत्र के बडे बडे लोग जो करना चाहते हैं वही करते हैं, जिस तरह से जीना चाहते हैं उसी तरह से जीते हैं- रजनीश के शब्दों में कहें तो `अपनी निजता का सम्मान करके’ जीते हैं. यह निजता यानी खुद का अनूठा व्यक्तित्व. पंडित शिवकुमार शर्मा से आप कहें कि २०१९ का चुनाव लडकर लोकसभा में आ जाइए, देश के लिए उपयोगी होगा तो आपकी गिनती मूर्खों में होगी. अरुण जेटली से आप कहें कि आप संतूर बजाकर संगीत साधना कीजिए तो भी उतने ही मूर्ख लगेंगे. सचिन तेंडुलकर को रिलायंस का चेयरमैन बनाने के लिए नहीं कहा जा सकता. मुकेश अंबानी को पांव में पैड बांधकर मुंबई इंडियंस की ओर से खेलने के लिए स्टेडियम में नहीं भेजा जा सकता.

रजनीश ने इस संदर्भ में जो `निजता’ शब्द दिया है उसे ग्रहण करने जैसा है. मुझे यह जीवन दूसरे की तरह नहीं जीना है, मुझे यह जीवन दूसरों के लिए भी नहीं जीना है. मैं अपनी तरह से, अपनी संपूर्ण निष्ठा-सच्चाई के साथ दिन रात अपनी क्षमता और प्रतिभा के अनुसार काम करने में मग्न रहूंगा तो उसका फल मुझे, नहीं मेरे आस-पास के सभी को, मेरे समाज को, मेरे देश को मिलने ही वाला है, लेकिन मेरा लक्ष्य ये नहीं होना चाहिए. दूसरों को फल मिलना तो सहज लाभ है. मैं इस देश के लिए अपना जीवन समर्पित करता हूं (या मैं अपनी संतानों के लिए जीता हूं) ऐसे विचारों के साथ काम करनेवाला प्रधान मंत्री या सैनिक या सामान्य पिता अहंकारी बन जाता है, अपनी कमजोरियों को भी जस्टीफाई करने लगता है, उसमें दंभ आ जाता है.

मैं संतूर अपने लिए बजाता हूं, अपने भीतर बसनेवाली अंतरात्मा को आनंद देने के लिए बजाता हूं, अगर इस भावना से संतूर वादन किया जाता है तो उसकी सच्चाई लाखो करोडों श्रोताओं तक पहुंचे बिना नहीं रहती, वह सभी की अंतरात्मा के तारों को झंकृत किए बिना नहीं रहती. और रजनीशजी एक ही सांस में दूसरी बात कहते हैं:`ना ही किसी को अपनी अपेक्षा का शिकार बनाओ.’

मेरा बेटा बडा होकर मेरा नाम रोशन करे, ऐसी अपेक्षा रखना दूसरे के जीवन में किया गया हस्तक्षेप है. पत्नी जब कहती है कि आप मेरे लिए इतना नहीं कर सकते? तब वह पति को अपनी अपेक्षा का शिकार बनाती है.

हम यदि अपने काम में पूरी तरह से मग्न होंगे तभी दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करने से बचेंगे, सरल भाषा में कहें तो टांग अडाना बंद करेंगे. दूसरों के लिए हम हमेशा जजमेंटल बनते हैं (ये ऐसा है, वो वैसी है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, उसे वैसा करना चाहिए था), क्योंकि हमें जो करना है वह हम नहीं करते.

निजता को संजोए रखने के लिए जिम्मेदारी उठानी पडती है- हम जो कुछ भी करते हैं उसकी अल्टीमेट जिम्मेदारी हमारी खुद की है, अपनी विफलता के दोष का ठीकरा हमें दूसरों के सिर नहीं फोडना है, ऐसी समझ जिसमें होती है वह अपने अनूठे व्यक्तित्व को पुष्पित पल्लवित कर सकता है, उसे जो करना है कर सकता है और ऐसा करते हुए मिलनेवाले सहज लाभों को देश में, समाज में, परिवार में सभी को बांट सकता है.

आज का विचार

खा पीकर नहाकर कविता नहीं बनती, ऐ दोस्त!

खून बहता है तभी कागज बीच में थामना चाहिए.

– डॉ. मुकुल चोक्सी

एक मिनट!

बका: तुम्हें पता है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ को मुख्य मंत्री क्यों बनाया गया?

पका: क्यों?

बका: क्योंकि विश्वेस्वरैया की तरह राहुल गांधी को ज्योतिरादित्य भी बोलना नहीं आता.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here