कब जुझना , कब झुकना : गुरुदेव का चौबीस कैरट का मार्गदर्शन

गुड मॉर्निंग एक्सक्लुसिव – सौरभ शाह

(गुरुवार – ११ अक्टूबर २०१८)

गुरुदेव बहुत प्रैक्टिकल हैं. जीवन में सात्विक समझौते करने पडते हैं. नीतिमत्ता के संबंध में नहीं, बल्कि व्यवहार के बारे में. ऐसे समझौतों के कारण बडे नुकसानों से बचा जा सकता है. `वन मिनट, प्लीज’ पुस्तक में आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरि महाराज साहेब का प्रश्न है:`संघर्ष के समय कैसा नजरिया रखना चाहिए?’ और उसका व्यावहारिक तथा सरल समाधान बताते हुए वे कहते हैं:`पवन हो तो जूझना चाहिए, तूफान हो तो झुक जाना चाहिए.’

हममें से काफी सारे लोग पवनवत्‌ संघर्ष के विरूद्ध भी लडने का इरादा नहीं रखते. थोडी सी मुश्किल आई कि झुक गए. थोडा विघ्न आया कि हिम्मत टूट गई. रणक्षेत्र में थोडा आह्वान मिला तो भीगी बिल्ली की तरह घर भाग गए. चुनौतियों के सामने लडना होता है और लडने की शक्ति प्राप्त करने की मानसिकता चुनौतीविहीन समय में जुटा लेनी चाहिए. आग लगने पर कुआं खोदेंगे, ऐसा विचार करने के बजाय शांति के समय में ही युद्ध की तैयारी कर लेनी चाहिए, जुझने के लिए मानसिक बल जुटा लेना चाहिए.

लेकिन हममें से कई लोगों की मानसिकता ऐसी हो जाती है कि मैं मर जाऊंगा पर जिद नहीं छोडूंगा. भले इंसान, तू जिस बात की जिद पकडे बैठा है, उसे पकडे रहने की जद्दोजहद में तू चल बसा तो सारी लडाई ही बेकार साबित होगी. सर सलामत तो पगडी पचास. यह बात हमारे बुद्धिमान बुजुर्ग समझा गए हैं तो भी तेरी खोपडी में अभी तक नहीं उतरी है. कोई पहलवान किसी दुबले पतले पर हमला करता है तो उससे पहले ही उस व्यकित को शरणागति स्वीकार कर लेनी चाहिए. मैं तेरी गाय हूं- कहकर पांव पकड लेने चाहिए. लेकिन कमजोर लोगों को ऐसे समय में स्वाभिमान का प्रश्न बनाकर, अपना नुकसान करके, सबकुछ बर्बादी के कगार पर ले जाते हुए पहलवान के खिलाफ लडने का जोश चढ जाता है. कई तमाशबीन चिल्ला-चिल्ला कर हमें उकसाते हैं. चढ जा बेटा सूली पर, बन जा बलि का बकरा.

भयानक तूफान के आगे झुक जाने में ही समझदारी है. टूट जाऊंगा पर झुकूंगा नहीं वाली जिद्द पवनवत्‌ संघर्ष के समय रखनी चाहिए, तूफान जैसे संघर्ष के समय नहीं. हमें अभी तक ऐसा किसी ने नहीं सिखाया है, गुरुदेव की ओर से जिंदगी में पहली बार ऐसी चौबीस कैरट सोने जैसी बात जानने को मिली है, इसे सहेज कर रखना चाहिए. भविष्य में हमें या दूसरे के काम आएगी.

कई लोगों के पास सारी अनुकूलता होने के बावजूद वे विफल हो जाते हैं? सफल होने की सारी सामग्री अपने पास होने के बावजूद वे क्यों सफल नहीं हो पाते. प्रश्न है: `सफलता और विफलता के बीच मुख्य रूप से क्या अंतर है?’ उत्तर है: `धैर्य’.

सफलता की राह में अधीरता नहीं होती. जो कुछ भी चाहिए, जो कुछ भी हासिल करना हो, वह अभी के अभी चाहिए, ऐसी जिद्द नहीं करनी चाहिए. हमने बचपन से सुना है कि धीरज का फल मीठा होता है और जल्दबाजी में आम नहीं पकता लेकिन गलती ये हो गई कि धीरज रखने के नाम पर निष्क्रिय बन गए. सफलता के मार्ग पर पडे रहने को धैंर्य नहीं कहा जाता. दूर दूर तक सफलता नजर नहीं आती है तो भी चलना ही चाहिए, निरंतर चलना चाहिए, थके बिना चलना चाहिए, उसी को धैर्य कहते हैं.

‍एक उम्र के बाद लोग सोचने लगते हैं कि बस, अब मुझे कितने दिन जीना है? सामान बांध कर प्लेटफॉर्म पर बैठे हैं, गाडी आ जाय तो बस! बहुत जी लिया, अब भगवान उठा लें मुझे. मन में बारंबार मृत्यु के विचार आते हैं तब आदमी नकारात्मक बन जाता है. परिवार-मित्रों को परेशान करने लगता है. उनके लिए अप्रिय बनता जाता है. जब तक अंतिम सांस नहीं ली जाती तब तक जीवन के ही विचार होते हैं, मौत के नहीं.

मृत्यु अटल है इसीलिए एक बार आराम से इस बारे में विचार हो जाना चाहिए. आपके लिए, आश्रितों के लिए जो कुछ भी व्यवस्था करनी हो वह जरूर कीजिये. लेकिन बाद ऐसी असुरक्षा में नहीं जीना चाहिए कि मर जाऊंगा तो क्या होगा, मौत आज आएगी या कल? महाराज साहेब बहुत ही सादगी भरे अंदाज में मौत की बात इस तरह से कहते हैं कि मन में विस्फोट हो जाए: प्र.: `मरने का विचार करना ही नहीं चाहिए?’ उ.: `मरने का विचार जरूर करना चाहिए. मरने का विचार करते ही नहीं रहना चाहिए.’

आवेश यानी पैशन. हमारे अंदर अपने काम को लेकर पैशन होना ठीक है, ऐसा होना भी चाहिए. अपने जीवन का ध्येय पूरा करने के लिए हम पैशनेटली काम करते रहते हैं, यह भी अच्छी बात है. लेकिन कभी कभी लगता है कि आवेश में आकर हम अपनी सीमा से बाहर जाकर बर्ताव कर बैठते हैं. आवेश में आकर भान छूट जाता है और विवेक बुद्धि खो जाती है. बाद में खूब पछतावा होता है. प्रश्न: `कैसी बात न बोलें?’ उत्तर है: `जो बात बोलने के लिए कल माफी मांगनी पडे वैसी बात आज नहीं बोलनी चाहिए.’

अपने भूतकाल के कारण हम गढे गए हैं लेकिन आज अभी वह भूतकाल बेकार हो गया है. आप उस बीते हुए समय को न तो वापस ला सकते हैं, न उसे मिटा सकते हैं. बारंबार भूतकाल को कुरेदने की आदत आपकी मानसिकता को कुंद कर देती है. भूतकाल में आपने क्या क्या गलतियां कीं या भूतकाल में आपने कैसी कैसी सिद्धियां प्राप्त कीं उस बारे में सोचना और बातें करना बंद कर देंगे तो ही वर्तमान में रहकर आनेवाले कल को गढ सकेंगे. अन्यथा हमारे आसपास के लोग आगे निकल जाएंगे और हम वहीं के वहीं रह जाएंगे. साहेबजी का प्रश्न है: `आगे बढते जाना हो तो?’ उत्तर है: `पीछे देख देख कर चलना टालना चाहिए.’

दिन भर आपने किन किन विषयों के बारे में फेंकम फेंक की है उस बारे में आज रात को सोते समय सोचिएगा. मोदी को पेट्रोल की कीमतें घटानी चाहिए या नहीं, विराट कोहली को पैर में पैड किस तरह से बांधना चाहिए, लेखक को किस प्रकार लिखना चाहिए, होटल वाले को अपनी होटल कैसे चलानी चाहिए से लेकर नीताबेन अंबानी को किस रंग की लिपस्टिक लगानी चाहिए जैसे विषयों पर अपनी राय बरसाते रहते हैं. जिस क्षेत्र के बारे में जानकारी नहीं है उस क्षेत्र में भी मुंह डालने का शौक होता है सबको. जिस क्षेत्र का अनुभव नहीं है उसकी हम अथॉरिटी हैं, इस प्रकार से बात करके निर्णय, फैसले सुनाते रहते हैं. अंग्रेजी का एक जानामाना शब्द प्रयोग है. माइंड योर ओन बिजनेस. फिल्म स्टार को साधू-संतों को यह बताने की जरूरत नहीं है कि आप कैसा उपदेश दें, कैसा न दें. फिल्म स्टार का संबंध ऐक्टिंग के साथ होना चाहिए. उसे धर्मक्षेत्र का अनुभव नहीं है. साधु संतों को फिल्मस्टार को सीख नहीं देनी चाहिए कि उन्हें किस तरह से ऐक्टिंग करनी चाहिए. राजनीति और अर्थव्यवस्था के बारे में अज्ञानी लोग जब पेट्रोल-क्रूड ऑयल और डॉलर के भाव की चर्चा करते हैं तो बिलकुल मूर्ख, नादान और बचकाने लगते हैं. किराने वाले को रफ हीरे के भावताल के बारे में चर्चा नहीं करनी चाहिए. औरंगजेब को लता मंगेशकर को गाने के बारे में सलाह नहीं देनी चाहिए. `किस क्षेत्र का अंपायर नहीं बनना चाहिए.’ इस प्रश्न के उत्तर में गुरूदेव बताते हैं: `जिस खेल को हमने खेला ही नहीं है, उस खेल का अंपायर नहीं बनना चाहिए.’

नीति नियम अनिवार्य हैं. कायदे कानून का अनादर नहीं होना चाहिए. जो मर्यादाएं तय हुई हैं उनका पालन होना चाहि‍ए. पर कइयों को झंडा लेकर घूमना अच्छा लगता है, विद्राही बनकर `जला दो, जला दो, फूंक डालो ये दुनिया’ का नारा लगाना अच्छा लगता है, जो बिना सोचे नियमों का उल्लंघन करते हैं, अपनी पैठ बनाने के लिए या अपनी न्युइसेंस वैल्यू बढाने के लिए विद्रोह करते रहते हैं, उनका अंत कैसा होगा? प्रश्न: `सिग्नल की उपेक्षा करने का नुकसान?’ जवाब: `शायद एंबुलेंस बुलानी पड सकती है.’

एक सूची बनाइए. आपके पास ऐसी कौन कौन सी चीजें हैं जिनके बिना आप आराम से जी रहे थे और आज की तारीख में भी उसके बिना जी सकते हैं. दूसरी सूची बनाइए कि आपको क्या क्या चाहिए. उस सूची को दो दिन तक रखे रहिए और दोबारा पढिए. तय कीजिए कि इसमें से कौन कौन सी वस्तुओं के बिना आपका अभी तक का जीवन मजे से चला है और भविष्य में भी चलनेवाला है. वेतन कम पड रहा है, घर में जगह नहीं है, इसका कारण ये इच्छाएं हैं. टीवी के विज्ञापन, देखा देखी और कल्पनाओं के कारण खर्च बढते जाते हैं, संतोष घटता जाता है, मन निरंतर दो सिरों के बीच जुझता रहता है. `वर्तमान युग का अभिशाप?’ इस सवाल के जवाब में महाराज साहेब लिखते हैं: `जिसकी तुम्हें जरूरत हीं नहीं है, उसकी इच्छा आपमें पैदा करना.’

कल जारी.

आज का विचार

प्र.: महान मनुष्य की क्या विशेषता है?’

उ.:`भूल तो बडा इंसान भी कर सकता है. महान इंसान उसे सुधार सकता है.’

– आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरि

(`वन मिनिट, प्लीज’ में)

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