कोरोना रहे या जाय आर्थिक आपात्काल के नाम पर मोदी को खत्म करो: सौरभ शाह

न्यूज़ व्यूज़ : सौरभ शाह
(newspremi.com, मंगलवार, ७ अप्रैल २०२०)

कभी हम मूड में होते हैं, कभी हमारा मूड ऑफ होता है. ऐसे मूड स्विंग को हमने बिना किसी उलझन के स्वीकार कर लिया है. क्योंकि हम जानते हैं कि ऐसा होना स्वाभाविक है, प्राकृतिक है.

हमारे कार्यकाल में, हमारे जीवन में छोटे बडे उतार-चढाव आए हैं, आते रहेंगे. हमने स्वीकार कर लिया है इसे. भाग्य में जो लिखा होगा वह होगा, ऐसा सोचकर बिलकुल अपना खून गर्म नहीं करते. क्योंकि ऐसी धूप-छांव तो कुदरती है. भगवान ने अच्छा समय दिखाया उसके लिए उनका आभार और कठिन समय दिखाया तो उसे कसौटी मानकर इस दौर को सहन कर लिया- बिना किसी की गलती निकाले.

धंधा-व्यापार में उतार चढाव तो आने ही वाले हैं, ऐसा समझ कर हमने कामकाज शुरू किया था. यदि केवल लाभ ही लाभ होने का विश्वास होता तो कोई नौकरी न की होती, सभी ने अपने अपने तरीके से व्यवसाय में खुद को झोंक दिया होता. छोटे से छोटा आदमी भी अपने किसी छोटे व्यवसाय में होता. लेकिन व्यवसाय में खोट आ सकती है, इसकी सभी को जानकारी है. लगाई गई सारी पूंजी भी जा सकती है. इतना ही नहीं सिर पर कर्जा चढ जाता है, घर-बार बेचने की नौबत आ जाती है, ऐसा भी होता है. सब जानते हैं. इसीलिए तो सभी लोग व्यवसाय करने का साहस नहीं करते. और जो लोग अपना व्यवसाय शुरू करते हैं, वे साहसी माने जाते हैं. एंटरप्राइज करनेवाले- आंत्रप्रेन्योर कहे जाते हैं. उन्होंने मान लिया है कि व्यवसाय में जोखिम हैं, फिर भी व्यवसाय ही करना है. कभी नुकसान हुआ तो सह लेंगे. चार साल फायदे में बीते तो एक साल नुकसान ही सही. रोआ-रोहट करने की जरूरत नहीं है.

देश की अर्थव्यवस्था भी ऐसी ही है. देश की अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है? देश में व्यवसाय करनेवाले उद्यमियों का अर्थव्यवस्था में योग यानी देश की अर्थव्यवस्था. देश की सारी जनता की सामूहिक अर्थव्यवस्था यानी देश की अर्थव्यवस्था. इसमें  कभी कभी उतार चढाव आते हैं. क्योंकि हर किसी के व्यवसाय में उतार चढाव आते रहते हैं. देश की अर्थव्यवस्था जब तेजी से आगे बढती जाती है तब उसमें सभ देशवासियों का योगदान होता है और उस तेज गति का लाभ भी सभी देशवासियों को मिलता है. देश की अर्थव्यवस्था तब बिगडती है जब लोगों को अपने व्यवसाय में हानि सहनी पडती है और इस बिगडी हुई अर्थव्यवस्था की मार हर उद्यमी को अपने हिस्से के अनुरूप सहनी पडती है. प्राकृतिक आपदा के समय सरकार की गलती निकालने से, सरकार की नीतियों को गाली देने से कुछ नहीं होनेवाला. शायद ऐसा करके हम अपने मन की भडास बाहर निकाल सकते हैं. इससे अधिक और कुछ होना जाना नहीं है. लेकिन ऐसा करूंगा तो विपक्ष के गलत इरादे अधिक मजबूत होंगे, इसका ध्यान रखना चाहिए. व्यवसाय में लाभ ही लाभ हो रहा हो और स्विट्जरलैंड में वैकेशन मनाकर लौटते हैं तब प्रधान मंत्री को याद करके कभी चॉकलेट का एक बॉक्स भी कभी लाए हैं? तो फिर व्यवसाय में नुकसान होता है तब मोदी के नाम पर छाती पीटना बंद करना चाहिए.

दुनिया के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्था का साया संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था पर पडती है. निफ्टी या सेंसेक्स ऊपर जाता है तब मुझमें व्यवसाय करने की कितनी कुशलता है, मेरा भाग्य कितना अच्छा है या मुझ पर भगवानजी की कितनी कृपा है इस बारे में सोचने वाले इन्वेस्टर्स या शेयर बाजार में काम करने वाले प्रोफेशनल्स को ग्राफ नीचे गिरने पर अपने फैसले, अपने भाग्य या फिर अपने इष्टदेव की अवकृपा का दोष निकालना चाहिए- न कि सरकार को दोष देना चाहिए. अखबार-टीवी वाले तो चौबीसों घंटे भडकाने ही वाले हैं. ब्लडबाथ, ब्लैक फ्राइडे, अमुक लाख करोड रूपए रातों रात नष्ट हो गए. उनका तो काम ही यही है. उकसाना. भडकाना. उनकी रोजीरोटी इसी पर चलती है. अन्यथा अखबार पढेगा कौन, टीवी कौन देखेगा. लेकिन हमें तो बुद्धि होनी चाहिए कि किसी के उकसाने पर बहाव में नहीं आना चाहिए.

भारत का दीवाला निकल जाएगा, ऐसी भविष्यवाणी करनेवाले विशेषज्ञों का आनेवाले दिनों में तांता लगनेवाला है. डूम्स डे के प्रेडिक्शन्स आपको रोज आठ कॉलम के लेखों में और प्राइम टाइम की मछली मार्केट में पढने-सुनने को मिलेगा. हम सभी के दिमाग पर ये नकारात्मकता छा जाय, इसके प्रयास भारत में ही रहनेवाले भारत के दुश्मनों द्वारा किये जाएंगे. “मोदी विफल हैं, मोदी की वित्त मंत्री में जरा भी दिमाग नहीं है, गृहमंत्री में कोई गुण नहीं है और इन्हें देश चलाने के बारे में कुछ भी पता नहीं है.” ऐसा प्रचार शुरू हो जाएगा. “कॉन्ग्रेस को सात दशकों तक शासन करने का विशाल अनुभव है. कॉन्ग्रेस तो सभी को साथ लेकर चलती है, भाजपा की तरह विभाजनकारी राजनीति नहीं करती. मोदी ने अपनी जिद के कारण कोरोना को मैनेज करने में मुंह की खाई है जिसके कारण सारे देश को भुगतना पड रहा है. मध्यमवर्गीय और गरीब लोग तो बेचारे कहीं के नहीं रहे. मोदी के मुट्ठी भर अमीर मित्रों ने कोरोना के समय कालाबाजारी करके खूब कमाई की. ऐसे माहौल के लिए आप तैयार रहिएगा. आपको खुद ही शंका होने लगेगी कि मोदी में विश्वास रखकर मैने कोई गलती तो नहीं की? कोई याद दिलाते हुए कहेगा कि ३७०, सीएए, राम मंदिर, बालाकोट… अब आपसे कहा जाएगा कि,“इन सबका अब क्या लाभ है? जब देश भूखा मर रहा है तब इसमें से कोई भी मुद्दा प्रासंगिक नहीं है.’’

ऐसा समय आएगा तब ये पांच बातें याद रखनी चाहिए-

१. यह देश भूखा नहीं मरेगा. हमारा देश समृद्ध है. सबके लिए दो समय का भोजन है. काम नहीं कर सकनेवालों को, कमजोर लोगों को, वृद्धों को और काम की तलाश कर रहे लोगों को भी संभाल सकने की क्षमतावाला ये देश है. ऐसी हमारी समाज व्यवस्था है और ऐसी वर्तमान सरकार है. अभी हम देख रहे हैं कि अनगिनत सरकारी योजनाओं के तहत लाखों देशवासियों को भोजन दिया जा रहा है. टाटा-अंबानी जैसे अनेक श्रेष्ठी गण हजारों करोड रूपयों का दान देकर गरीबों को संभाल रहे हैं. पीएम केयर फंड में करोडपति राष्ट्रवादी अभिनेताओं से लेकर नौकरीपेशा और विद्यार्थी भी अपनी जेब के अनुसार उदार हाथों से दान दे रहे हैं. आर.एस‍.एस. जिसे बदनाम करते हुए कांग्रेसियों का- सेकुलरों का- वामपंथियों का गला नहीं सूखता, उनके लाखों स्वयंसेवक सारे देश में दिन रात गरीबों-भूखों के लिए भोजन की व्यवस्था करने में आकंठ डूबे हं. इसके अलावा देश भर के मंदिर, देरासर, गुरुद्वारों तथा हजारों सेवाभावी संस्थाअें ने देश के हर कोने में पहुंचकर भोजन-आसरे की व्यवस्था की है. लखनऊ की फाइव स्टार होटल्स को खाली कराकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां डॉक्टर्स तथा मेडिकल सेवाओं के स्टाफ को रहने – खाने की सुविधा खडी की है. मुंबर्स में टाटा ने सामने से अपनी दो फाइव स्टार होटल्स को डॉक्टर्स इत्यादि के रहने खाने के लिए खाली करके दे दी है. ताज इंटरकॉन्टिनेंटल से रोज ११,००० फूड पैकेट्स कार्यरत डॉक्टर्स इत्यादि के लिए तैयार किए जा रहे हैं. हमारा देश सचमुच महान है. लेकिन राजदीन-बरखा-शेखर इत्यादि को तथा उपद्रवी अखबारवालों को तथा वामपंथी टीवी वालों को इस देश को बदनाम करने में ही रुचि है.

आपको शायद नता न हो लेकिन लॉसएंजल्स में वहां के प्रशासकों ने एक कसीनो की विशाल पार्किंग लॉट में अस्थायी सिंगल-सिंगल तंबू लगाकर कोरोना के मरीजों को रहने की व्यवस्था खडी करनी पडी है. अमेरिका समृद्ध देश है पर उसे देश को संस्कारों की विरासत नहीं मिली है. वहां की किसी भी फाइव स्टार होटल ने भारत की तरह अपनी होटल को इस आपत्ति के समय में सरकार को समर्पित नहीं किया है.

२. मोदी के बदले सोनिया-मनमोहन या फिर शरद पवार, ममता बैनर्जी या अन्य कोई भी सर्वोच्च स्थान पर होता तो देश की आर्थिक – सामाजिक हालत अभी और आनेवाले समय में कैसी होती? ये कल्पना करके कंपकंपी छूट जाती है. मोदीद्वेषी वर्तमान समय में बहुत बडी निभाएंगे. आपकी थाली में चार की जगह दो ही रोटी आ रही है और इसके लिए मोदी जिम्मेदार है इसीलिए मारो मारो मारों उन्हें- ऐसी हवा बनाई जा रही है. राहुल गांधी सहित तमान विरोधी नेता मोदी को बींधने के लिए अपनी धार तेज कर रहे हैं. राष्ट्र के संकट काल में सभी को एक दूसरे के साथ खडे रहना चाहिए, टांग खिंचाई नहीं करनी चाहिए, ये नेहरूजी ने किसी कॉन्ग्रेसी को नहीं सिखाया है क्योंकि नेहरू खुद भी इसी खेल के खिलाडी थे.

३. आपके निजी व्यावसाय-उद्योग- नौकरी में जो भी चढाव उतार आ रहा है उसके दोष का ठीकरा मोदी के सिर मढने का मन होगा लेकिन ऐसा नहीं करें. इसके दो दुष्प्रभाव हैं. एक, दूसरे की गलती निकालेंगे तो आप अपनी भूल को नहीं सुधार सकेंगे. और दो, सैनिक जब अपने सेनापति पर से विश्वास खो देते हैं तब शत्रु सेना हावी हो जाती है. पप्पू जैसा प्रधानमंत्री चाहिए तो ही मोदी की ताकत कम करने के लिए कुकर्म कीजिएगा.

४. अंग्रेजी में एक कहावत है कि हाइंडसाइट इज ऑलवेज द्वेंटी-ट्वेंटी. आंखों का नंबर निकालते समय २०/२० आता है तो इसका मतलब है कि आपकी नज़र परफेक्ट है. हाइंडसाइट का यानी पीछे नजर घुमाकर जो दिखता है वह. जो बन चुका है उसे सभी साफ साफ देख सकते हैं. भूतकाल की घटनाएं तो सभी को दिए की तरह साफ नजर आती हैं. कोई अनपढ भी मोदी से कह सकता है कि आपमें अक्कल नहीं थी- कोरोना का संक्रमण जब आया तभी- फरवरी में ही- आपको लॉकडाउन कर देना चाहिए था. उस समय आपको ये करना चाहिए था, वो करना चाहिए था. गांव की बुढियाएं इसी तरह से पंचायत करती हैं. सोनियाजी भी अब ऐसी ही अवस्था में पहुंच चुकी हैं. इस क्राइसिस में आर‍.एस.एस. सहित अनेक हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ता घर से बाहर निकलकर, जान की परवाह किए बिना सेवाकार्य कर रहे हैं जिसे दुनिया ने देखा है. लेकिन मीडिया नहीं दिखाएगा ये सारा कुछ. मीडिया तो केजरीवाल के विज्ञापनों के करोडो रूपए जेब में डालकर केजरीवाल के बयान दिखाएगा. `हमने रोज चार लाख मजदूरों के खाने पीने की व्यवस्था की है.’ लेकिन ये चार लाख लोगों के लिए रसोई कहां पर है, केजरीवाल‍? बालाकोट की स्ट्राइक के सुबूत मांगनेवाले केजरीवाल से चार लाख लोगों को खिलाने की व्यवस्था का प्रमाण मांगा जा रहा है तो दिल्ली का ये बदमाश मुख्य मंत्री चुप हो जाता है. इतना ही नहीं, ये फ्रॉड चीफ मिनिस्टर `आज तक’ जैसे ब्लैटेंट्ली एंटी-मोदी चैनल के जरिए ऐसे समाचार फैलाता है कि ये देखो, हम जो रसोई चला रहे हैं, वह देखिए. लेकिन वह विशाल रसोई कौन चला रहा था? सेवा भारती. आर.एस.एस. की सहयोगी संस्था. इसमें केजरीवाल या उनके दिल्ली राज्य की सरकार का रत्ती भर भी आर्थिक या अन्य सहयोग नहीं था. अंत में `आज तक’ ने इस झूठी खबर को प्रसारित करने के लिए माफी मांगनी पडी. केजरीवाल और `आज तक’ का स्वामित्व रखनेवाला इंडिया टुडे ग्रुप- सबकी कलई खुल गई.

कांग्रेस के पास युवक कॉन्ग्रेस है. एन.एस.यू.आई. (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) के नामक एक विशाल विद्यार्थी संगठन है, आर.एस.एस. की देखादेखी में टोपी और हाथ में लाठी लेकर मार्च पास्ट करनेवाले `कांग्रेस सेवा दल’ के हजारों जीहुजूरी करनेवाले कार्यकर्ता हैं. इनमें से किसी का भी प्राणी आपने देखा इस कोरोना के काल में काम करते हुए? भूल चूक से खुद से कोई अच्छा काम हो जाता है तो तुरंत प्रचार करने के लिए उमड पडनेवाले कांग्रेसी चुप हैं क्योंकि देश प्रेम करने का दावा करनेवाले सभी कांग्रेसी अभी तबलीगियों को बचाने में बिजी हैं.

५. ये तो अच्छा हुआ कि देशव्यापी लॉकडाउन घोषित करनेवाले देशों में भारत सबसे पहला नहीं था. मोदी ने घोषणा की उससे पहले अन्य देशा लॉकडाउन घोषित कर चुके थे. लेकिन कल्पना कीजिए कि कोरोना का संक्रमण सबसे पहले भारत में फैलने लगा होता तो‍? लॉक डाउन हो सकता है ऐसी कॉन्सेप्ट ही सारी दुनिया में नहीं होता तो? और आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग के लिए जाने जानेवाले नए विचारों से देश की भगीरथ समस्याओं का निराकरण करने में काबिल साबित होने वाले हमारे प्रधान मंत्री ने दुनिया का सबसे पहला लॉकडाउन भारत में घोषित किया होता तो? तो विरोधी मोदी हेटर्स और वामपंथी मीडिया ने मोदी को मसल दिया होता. हमारे दिमाग में ऐसा भर दिया जाता कि भक्तों में कोई सूझबूझ नहीं है- ऐसे अक्कल बिना के पीएम को आप सब बेवकूफ सपोर्ट कर रहे हैं.

यदि मोदी ने सुनिया का सबसा पहला लॉकडाउन भारत में कराया होता तो विरोधियों ने देश को इतना भडकाया होता, जगह जगह लोगों को भडकाया होता या वर्ग विभाजन के नाम दंगे भी कराए होते.

यह समझना चाहिए कि कोरोना ऑर नो-कोरोना. विरोधी येन केन प्रकारेण मोदी का खात्मा करना चाहते हैं. विरोधी जानते हैं कि इस आदमी ने कानी उंगली से गोवर्धन उठाया है. हमें ये समझना चाहिए कि विरोधियों की मंशा पूरी हो जाती है, उनका बद इरादे साकार होते है और मोदी की उंगली को भी यदि कुछ होता है तो पर्वत के नीचे आश्रय लेनेवाले हम सभी- हम १३० करोड देशवासी- दब कर मर जाएंगे और तब हमारी बोटियां नोचने के लिए ये राजदीप, रवीश, राहुल, ममता, पवार, केजरीवाल, ओवैसी नाक के गिद्ध आ पहुंचेंगे.

आज का विचार

वातावरण इतना साफ हो गया है कि २०२९ तक क्लियर दिखाई दे रहा है.
– टि्वटर पर ट्रेंड कर रहा

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