न्यूज़ व्यूज़ : सौरभ शाह
(newspremi.com, शुक्रवार, २७ मार्च २०२०)
बडे बडे अंग्रेजी मीडिया हाउसों ने वीडियों बनाना शुरू किया है कि हमारा अखबार कितने स्वच्छ वातावरण में छपता है, हमारे प्रिंटिंग प्रेस को डिसइंफेक्ट किया गया है, सबकुछ ऑटोमैटिक होता है, एक भी काम ऐसा नहीं कि जिसमें किसी हाथ स्पर्श होता हो. जहां छूने की जरूरत है वहां वर्कर्स मास्क, ग्लव्स और सिर पर टोपी पहन कर काम करते हैं. आपके घर तो जो वेंडर अखबार लाते हैं उन सभी को ग्लव्स दिए गए हैं इत्यादि.
कोरोना वायरस जैसे संक्रामक रोग के कारण अखबार उद्योग जागकर बैठ गया है. कलकत्ता में अखबार अभी भी छप रहे हैं लेकिन वहां ८० प्रतिशत मांग घट गई है ऐसे समाचार हैं, मुंबई में अखबार बंद हैं, गुराजत में भी.
अखबार छापने का कामकाज अब कमोबेश स्वयंचालित हो गया है. पार्सल्स अपने आप बंधते है और उससे पहले प्रतियों की गिनती भी हो जाती है ऐसी मशीनें दशकों से भारत में भी गई हैं. इससे पहले प्रेस में कामगार हाथ से कॉपी गिनते थे. उदाहरण के लिए देवगढ बारिया के एजेंट को इक्यावन प्रतियां भेजनी हों तो हाथ से गिनी जाती हैं. फिर हाथों से उसका पार्सल बांधा जाता है. उसके बाद हाथ से उस पर एजेंट के नाम और पते का लेबल चिपकाया जाता है. अब ये सारा काम ऑटोमैटिक हो चुका है.
लेकिन प्रेस के बाहर अखबार निकलने के बाद हाइजीन का कितना ख्याल रखा जाता है? अभी कल तक की ही बात है. सुबह की शताब्दी से अहमदाबाद जाना हो तो घर से सुबह उठकर बोरीवली स्टषन पहुंच कर स्टेशन के सामने चाय की टपरी पर दो चाय के साथ बनमस्के का नाश्ता करना. उस एरिया के अखबार प्रेस से वही पर उतारे जाते हैं. पैकेट्स खुलने का इंतजार करके जितने चाहिए उतने अखबार ले लिए जाते हैं. ट्रेन में मुफ्त में अखबार मिलते हैं तब भी.
इन अखबारों के बंडल चायवाले के पीछे गंदे फुटपाथ पर छोड दिए जाते हैं. बारिश के दिनों में तो कई बार आपके हाथों पर अखबार को लगी हुई गंदगी भी लग जाती है.
कोरोना के समय में अखबार की डिलीवरी करने वाले वेंडर ग्लव्ज पहनें तो भी उन्होंने आपकी प्रति पर छींक नहीं खाई है, इसकी कोई गारंटी नहीं है. वह जब आपकी इमारत की लिफ्ट में आएगा तब लिफ्ट का बटन दबाते समय उसके ग्लव्स वाले हाथों पर लगे संक्रमित जंतु बटन पर ट्रांसफर नहीं होंगे, इसकी क्या गारंटी है. न्यूज पेपर्स किसी जमाने दूध-साग भाजी- अनाज की तरह असेंशियल कमोडिटी की सरकारी सूची में रखे जाते थे. अभी भी रखे जाते हैं. लेकिन अब अखबार असेंशियल नहीं रहे. जानकारी के साधन बढे हैं. समाचार प्राप्त करने के लिए २४ घंटे तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है. टीवी चैनल्स लाइव न्यूज दिखाते हैं (जब मच्छी मार्केट नहीं रहा होता है तब). नेट पर आपको तुरंत समाचार मिल जाता है. सोशल मीडिया में भी सभी अखबार समूह पूरी तरह से ऐक्टिव हैं.
यह पीस लिखने का कारण ये है कि यदि आपको लॉकडाउन के दौरान अखबारों की कमी साल रही है और आपको घर बैठे समाचारों से अवगत रहना है तो आपको केवल टीवी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है. आपके पास ये दमदार विकल्प हैं. वैसे मुझे अखबार का पी.डीएफ. पढने या ई-पेपर पढने में तकलीफ होती है. इसके बजाय अखबार की साइट पर जाकर वही समाचार नॉर्मल फॉण्ट में पढने के लिए मेहनत करना मुझे अधिक पसंद है. ये मेरी पर्सनल चॉइस है. इस के अलावा भी व्हॉट्सऐप या सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों से समाचार – लेखों का प्रचार प्रसार करने वाली अन्य सेवाएं भी अवश्य होंगी. कोरोना तो आज है कल नहीं, मित्रों. समाचार-लेख-कॉलम्स-अखबार-चैनल्स-सोशल मीडिया हमेशा रहेंगे.
छोटी सी बात
मेहरबानी करके कोई भी पुलिस द्वारा पिटाई की क्लिप्स व्हॉट्सऐप पर न डालें, घर वाली जब चाहे तब सामान लेने के लिए बाहर भेजती है.








