(न्यूज़ व्यूज़ : शनिवार, १८ अप्रैल २०२०)
तीन मई के बाद भी सरकार लॉकडाउन बढ़ाएगी? कुछ कह नहीं सकते? आपका क्या मानना है सरकार को बढ़ाना चाहिए? कुछ कह नहीं सकते. लेकिन इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि तीन मई के बाद रातोंरात सबकुछ नॉर्मल नहीं हो जाएगा. लॉकडाउन के खुल जाने की घोषणा हो जाने पर भी अब कोरोना मेरा क्या बिगाड लेगा, ऐसा मानकर चार मई से सडक पर निकल नहीं जाना है. कोरोना कोई ऐसा रोग नहीं है जो रातोंरात छूमंतर हो जाय. और सरकार लॉकडाउन उठा लेने की घोषणा करती है तो भी उसके कई चरण होंगे, उसकी शर्तें होंगी, कई सारी सतर्कताएं और सावधानियां बरतनी होंगी.
लॉकडाउन के कारण नौकरीपेशा लोग तीन हिस्सों में बंट गए हैं. एक: जो घर से काम कर सकते हैं. उनका वेतन जारी है, कइयों के वेतन में कटौती की गई है लेकिन आय तो जारी है. दो: जो ऐसे काम में हैं जो कि घर बैठे नहीं किया जा सकता. लेकिन उनके मालिकों ने उन्हें नौकरी से निकालने के बजाय पूरे या आधे वेतन पर नौकरी पर रखा हुआ है. तीन: जो ऐसे क्षेत्र में हैं जहां व्यवसाय पूरी तरह से ठप है और लॉकडाउन खुलने के बाद भी काफी समय तक उसमें तेजी आने की कोई आशा नहीं है. उदाहरण के लिए हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री- होटल, रिसॉर्ट इत्यादि का उद्योग, टूर-टूरिज्म का व्यवसाय. ऐसे अनेक उद्योगों ने रातोंरात आर्थिक संकट के कारण अपने स्टाफ के कई लोगों को बिना वेतन के घर बिठा दिया है. ये नौकरीपेशा लोग प्रैक्टिकली बिना नौकरी के, बिना आमदनी के हैं.
इन तीनों के अलावा बेशक एक चौथा प्रकार भी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता. उनकी नौकरी जारी है. उन्हें पूरा वेतन मिलता है, कईयो को रोज का बोनस भी मिलता है क्योंकि वे अपनी जान जोखिम में डालकर आपके घर से कचरे की थैलियां उठाकर ले जाते हैं, आपके घरों को सुरक्षा देते हैं, आपकी सोसायटक्ष में नियमित जल आपूर्ति करते हैं, बिजली की आपूर्ति करते हैं और इसके चौबीसों घंटे चलते रहने का ध्यान रखते हैं. गांव-शहरों की गटर व्यवस्था का संचालन करते हैं, बिलकुल सतर्कता से पुलिस का काम करते हैं, अस्पतालों में मरीजों की सेवा करते हैं, सरकारी व्यवस्था तंत्र के पहिये थम न जाएं इसके लिए रात में जागते हैं, आपको साग-सब्जी-दूध-अनाज की नियमित आपूर्ति करने के लिए खेत में, गोडाउन्स में, मालवाहक वाहन चलाने में, दुकानों में व्यवस्त हैं और इसके अलावा हर दिन करोडो लोगों के लिए दो वक्त का खाना बनाकर उन्हें खिलाने की जिम्मेदार जिन्होंने ले रखी है, ऐसी हजारों छोटी बडी संस्थाओं तथा व्यक्तिगत रूप से चल रही गतिविधियों से जुडे हुए लाखों लोग इस देश को संभाल रहे हैं. मीडिया के पत्रकार तो हैं ही जो देश पर आनेवाले हर संकट के समय अपने दायित्व का वहन करके आप तक समाचार पहुंचाते रहते हैं और इनमें से कइयों को देश के शासकों के साथ पुरानी दुश्मनी हो, इस प्रकार से मौके का लाभ लेने से नहीं चूकते, पाठकों-दर्शकों को गलत राह पर ले जाने की उनकी पुरानी और जानीमानी रस्म वे ऐसे समय में भी नहीं छोडते.
नौकरीपेशा लोगों के अलावा एक बडा वर्ग विभिन्न व्यवसाय करनेवालों का है, मध्यम स्तर के व्यापारी, बडे बिजनेसमैन हैं, बिल्डर-उद्योगपति तथा सीए-आर्किटेक्ट -इंजीनियर जैसे प्रोफेशनल्स हैं. कई उत्पादकों के यहां अवसर और सुविधा होने के कारण उनका कामकाज दिन रात तीन तीन शिफ्ट में चलने लगा है. जीवनावश्यक वस्तुओं के व्यापार के साथ जुडे दूध-साग सब्जी- किराना के व्यापारी इत्यादि का व्यवसाय बंद नहीं हुआ है. लेकिन अन्य कई व्यवसाय अभी स्थगित हैं. फिल्म इंडस्ट्री, नाटक इंडस्ट्री, पुस्तक प्रकाशन इंडस्ट्री, रेडीमेड कपडों का उद्योग, रेस्टोरेंस, एयरलाइन्स इत्यादि सैकडों क्षेत्र ऐसे हैं जिनके मालिकों की आमदनी अभी शून्य पर आ गई है. उन सभी के लिए काफी कठिन दौर चल रहा है, उनके धैर्य की परीक्षा का समय है. यह चिंतन करने का अवसर है कि चिंतित हुए बिना, जो कुछ भी हाथ में है उसे सुरक्षित रखते हुए अभी तथा भविष्य में कहां पर किस तरह से काटकसर करनी है, कल्पनाशीलता से किस तरह व्यवसाय चलाना है/ फिर शुरू करना है/ आगे बढाना है.
करोडों लोगों के लिए ये समय ट्रांजिशन का है, कभी कल्पना नहीं की होगी ऐसे अनुभवों से गुजरते हुए बदल रही जीवनशैली का गवाह बनने का समय है. इतना तो निश्चित है कि भारी बदलाव आनेवाला है. निजी तौर पर भी हम खुद, हमारा देश, सारी दुनिया पहले जैसी थी, वैसी अब नहीं रहेगी.
तीन मई के बाद क्या होगा? इसी की बात करते हैं. कल मेरे एक मित्र ने मुझे एक बात फॉरवर्ड करके कहा कि इस बारे में तुम्हारी राय क्या है? सामान्य रूप से फॉरवर्डेड मैसेजेस मैं बिना देखे डिलीट कर देता हूं क्योंकि कौन, किस आशय से लिखता है, भेजता है इस मगजमारी में वक्त क्यों खराब करना. अपने पास अपना खुद का पढने, अध्ययन करने, सोचने, लिखने के लिए क्या कम है? लेकिन करीबी दोस्त जब कोई फॉरवर्डड मैसेज भेजते हैं तब वे सोचसमझकर और मेरे प्रति आदर को ध्यान में रखकर भेजते हैं. इस मैसेज में कई सारी सेंसिबल बातें लिखी थीं. सबसे पहली बात तो ये थी कि लॉकडाउन के कारण कोरोना का संक्रमण फैलने की गति धीमी हो जाएगी लेकिन वह पूरी तरह से नष्ट नहीं होनेवाला. कोरोना से बचने के लिए कोई सौ प्रतिशत रामबाण इलाज जब तक खोजा नहीं जाएगा, उसका टीका नहीं बन जाएगा तब तक दुनिया की कोई भी सरकार उसे पूरी तरह से नष्ट नहीं करने का दावा नहीं कर सकती. वैक्सीन बनाना, उसे टेस्ट करना और उसकी प्रभावकारिता को सिद्ध करने के प्रयोगों में कम से कम १८ से २४ महीने का समय लगता है. इसीलिए आगामी वर्ष ही नहीं, २०२२ तक कोरोना से सावधान रहना होगा. दुनिया को सामान्य होने में समय लगेगा. दुनिया की अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में समय लगेगा. जो कांग्रेसी और राहुलवादी मीडियाकर्मी अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी को फटकार रहे हैं उन्हें भी पता है कि भारत ही नहीं सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड रहा है. लेकिन मोदी को गालियां देने के लिए उन्हें एक स्वर्णिम मिला है और ये मीडिया वाले जिनके इशारों पर नाच रहे हैं उनके निहित स्वार्थों को सुरक्षित करने से उनका पेट भरनेवाला है, इस बात को वे जानते हैं.
परिस्थिति पूरी तरह से ठीक होने में समय लगेगा. कम से कम एक साल. टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री जैसे अन्य कई क्षेत्रों को फिर से कार्यरत होने में कम से कम एक साल तो जरूर लग जाएगा. जब तक वैक्सी की खोज नहीं होती, लॉकडाउन नहीं रहने पर भी लोग अपनी मर्जी से घर में रहेंगे, भीडवाली जगहों से दूर रहेंगे, सेल्फ आयसोलेशन का पालन करेंगे.
इस साल के सितंबर महीनें में संभालना होगा. कुछ समय तक ऐसा लगेगा कि कोरोना नियंत्रण में है फिर भी सितंबर में वह फिर से उभर सकता है. दुनिया की अन्य सरकारों की तुलना में अपनी सरकार ने कोरोना की रोकथाम के लिए, उसके फैलाव को रोकने के लिए काफी अच्छे कदम उठाए हैं जिसके तुरंत परिणाम हमने देखे हैं. अमेरिका – ब्रिटेन जैसे देशों की तुलना में भारत जैसे विशाल देश की परिस्थिति काफी अच्छी है. इसके बावजूद इस कठिन समय में हम सभी को एक दूसरे को, अपने पडोसियों को, अपने घर-ऑफिस के कर्मचारियों को और अपनी सरकार को जितनी हो सके उतनी सहायता करनी चाहिए. राष्ट्र और मानवजाति के प्रति अपना सद्भाव व्यक्त करने का यही समय है. जो बात अभी तक विचारों में थी उसे व्यवहार में लाने की कसौटी होने वाली है. अब तय होगा कि क्या हम सचमुच देशभक्त हैं, सचमुच के मानवतावादी हैं या फिर खाली बातों के शेर बनते आए हैं.
दोस्त के भेजे गए संदेश के जवाब में मैने क्या लिखा? लिखा कि, इस संदेश के साथ मैं शतप्रतिशत सहमत हूं. असल में, पिछले दो दिन से अपने निकटतम मित्रों के साथ फोन पर जब बात होती थी तब यही मुद्दा हमारी चर्चा के केंद्र में होता है. मैने खुद भी तय किया है कि आनेवाले कम से कम एक साल तक किसी भी भीडवाली जगह पर नहीं जाना है. संबोधन करने-सुनने से दूर रहना है. सभा-समारोहों में हाजिरी नहीं देनी है. फर्स्ट डे फर्स्ट शो में पिक्चर देखने की पुरानी आदत को छोड देना है. नाटक के मित्रों को बुरा लगे तब भी नाटक देखने नहीं जाना है. शास्त्रीय संगीत के समारोहों या आर.डी. बर्मन के गीतों के इंस्ट्रूमेंटल शोज भी टालने हैं. ओला-उबर या किसी भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफर नहीं करना है. कहीं जाना अनिवार्य हो तो कई मित्रों के पास एक से अधिक वाहन-ड्रायवर है. निवेदन करना है. खाने पीने की वस्तुएं घर की ही रखनी हैं. नवरात्रि के पहले दिन से शुरू किया गया उपवास अब भी चल रहा है और तीन मई के बाद भी जारी रहेगा ऐसा अभी लग रहा है. देश पर, दुनिया पर और व्यक्तिगत रूप से हम सभी पर आर्थिक संकट छाया हुआ है, तो ऐसे में हर किसी को अपने तरीके बदलने होंगे. १९२९ में अमेरिका में महामंदी आई. वह देश आर्थिक रूप से बदहाल हो गया. १९४४ के दौरान दूसरे विश्वयुद्द के कारण अमेरिका-ब्रिटेन इत्यादि ने लॉकडाउन जैसी परिस्थिति का अनुभव किया. नौकरियां गईं, व्यवसाय बंद हुए, तंगी और अभाव का वातावरण छा गया. अभी भारत सहित सारी दुनिया दोनों संकटों का अनुभव एक साथ कर रही है. १९२९+ १९४४=२०२० के रूप में ये समीकरण बैठता है.
उस फॉरवर्डेड मैसेज और उसके साथ अपना यह रिस्पॉन्स- दोनों को मैने संदर्भों के साथ अपने कई सारे मित्रों को भेजा जो मेरे आत्मीय हैं. जिनकी सूझबूझ पर मुझे भरोसा है (और यदि मैं प्रधान मंत्री रहूं तो उन्हें अपनी कैबिनेट में महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो दूंगा).
उन मित्रों ने जवाब दिया जिसका सारांश दे रहा हूं. अर्थव्यवस्था के गहन अध्येता और भारतीय संस्कृति की ऊंचाई के जानकार मित्र ने लिखा: नॉर्मल लाइफ पुन:स्थापित होने में अभी कई महीने लगेंगे, इस बात से मैं सहमत हूं. तीन मई के बाद चमत्कार नहीं होगा. इसके बावजूद, जो डिप्रेसिंग चित्र खडा किया जा रहा है, उसमें काफी अतिशयोक्ति है. लॉकडाउन द्वारा कोरोना की श्रंखला को तोडने का प्रयास हो रहा है. यदि आनेवाले पंद्रह दिनों में कोरोना का एक भी केस दर्ज नहीं होगा तो मान लेना चाहिए कि कोरोना के अंत का आरंभ हो चुका है. एक बात तो तय है कि लोग अभी महीनों तक सतर्क रहेंगे, सावधानी बरतेंगे, जहां जहां भी काटकसर हो सकती है, वहां बचत करेंगे और ऐसा करना अच्छा ही है. जहां तक अर्थव्यवस्था की बात है तो मुझे लगता है कि अभी हम भविष्य का जो अनुमान लगा रहे हैं, उससे अधिक समय लगेगा.
बडी बडी कंपनियों के चीफ टेक्निकल ऑफिसर से लेकर सी.ई.ओ रह चुके मित्र ने मुझे जवाब में एक ट्वीट भेजा जिसमें ग्राफ के साथ आंकडे स्पष्ट किए गए थे. सिंगापुर को लग रहा था कि कोरोना पर पूरा नियंत्रण प्राप्त कर लिया है लेकिन परसों अचानक ही ७२८ नए केस आए. सोशल डिस्टेंसिंग को यदि जल्दबाजी में खत्म कर दिया जाता है तो सेकंड वेव आने ही वाली है. जहां लोग काम करने के लिए या फिर किसी कारणवश बडी संख्या में एकत्रित होते हैं, वहां पर एक दूसरे के संक्रमण का बडा खतरा है.
शेयर बाजार का बडा कारोबार करनेवाले और जीने में फिलॉसॉफिकल अंदाज रखनेवाले अत्यंत आशावादी मित्र ने लिखा कि मुझे लगता है कि इतने सारे निगेटिव विचार रखने की जरूरत नहीं है. एड्स, टीबी, फ्लू, कैंसर, डायबिटीज जैसे रोगों को जब हमने नियंत्रित कर लिया है और आर्थिक रूप से समृद्ध होते रहे हैं तो कोरोना को भी वश में कर लेंगे, इसमें कोई संदेह की बात नहीं है. हां, उचित सावधानी बरतना, पूरी सतर्कता रखना भी जरूरी है. लेकिन चिंता करके नींद हराम करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि ऐसा करने से हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड सकता है. और जब तक वैक्सीन की खोज नहीं हो जाती तब तक हमारे पास सबसे बड़ा शस्त्र इम्युनिटी ही है. इसीलिए इम्युनिटी बढाने के लिए हम सभी को सबसे पहले अपनी खाने पीने की आदतें सुधारने का काम करना चाहिए. टीबी और इंफ्लुएंजा कोरोना से अधिक खतरनाक हैं, ऐसे विभिन्न आंकडों का उल्लेख करके इस मित्र ने आगे लिखा: अभी तक हम टीबी, एन्फ्लुएंजा या फिर एड्स या कैंसर या डायबिटीज, बीपी, किडनी-लीवर की परेशानियों का जोखिम होने के बावजूद मजे से जिए ही हैं. कोरोना हमारे लिए अनजाना है इसीलिए हम डर गए हैं जबकि दुनिया में ३,२०,००० के करीब वायरस हैं जिसमें से केवल दो सौ-ढाई सौ को पहचाना गया है और टीबी, स्वाइन फ्लू, एड्स, कोरोना इत्यादि को नाम दिए गए हैं. हमारे शरीर में मौजूद सभी बैक्टीरिया और हमारी इम्युनिटी इन सभी वायरसों के खिलाफ लडते हैं. इम्युनिटी के मामले में हम भारतियों को प्रकृति का आशीर्वाद प्राप्त है.
मैं जिनके साथ काम कर चुका हूं, ऐसे मेरे पत्रकार मित्र ने मुझे जवाब देते हुए लिखा है: जो लोग मध्यम वर्ग तथा उससे ऊपर के हैं, ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे लॉकडाउन का पालन करें. और यदि आपको गरीबों-मजदूरों की जरा भी चिंता है तो पूरी तरह से लॉकडाउन का पालन करें. तभी जाकर कुछ दिनों बाद कुछ हद तक आर्थिक गतिविधियां शुरू होंगी जिससे गरीब और मजदूर वर्ग को राहत मिलेगी. हमारी भूल के कारण यदि ये स्थिति अधिक लंबे समय तक खिंचती है तो गरीब-मजदूर हिंसक बन जाएंगे.
मैने उन्हें लिखा कि आपकी बात सच है. जितना हो सके उन लोगों को संभालना चाहिए. कल ही हमने घर में निर्णय लिया है कि लॉकडाउन खुलने पर भी कुछ महीनों तक सतर्कता बरतने के लिए घर काम करनेवालों को रोक देना चाहिए, घर का सारा काम खुद करना चाहिए. उन लोगों को तकलीफ न हो इसलिए हर महीने कुल वेतन उनके बैंक खाते में जमा कर देनी चाहिए. सामने से पत्रकार मित्र ने भी लिखा: `हमने एक दिन पहले ही (घरकाम करनेवालों को) फोन करके उनकी जरूरतों के बारे में पूछा था.’ फिर उन्होंने लिखा कि मुद्दा ये है कि हम सभी को अपने समूहों में इस संबंध में प्रयास बढाने होंगे’.
मेरे एक अन्य सीनियर पत्रकार मित्र ने खुद अति व्यस्त होने के बावजूद काफी लंबा जवाब दिया: `मुझे लगता है कि मोदीजी इस अवधि का सदुपयोग करके भारतीयों को अनुशासन का पाठ पढाएंगे. नई पीढी में अनुशासन की कमी है. मेरे कई रिश्तेदारों से मुझे जानकारी मिल रही है कि उनकी संतानें फास्ट फूड के बिना जी नहीं सकती थी, अब वे घर में बैठकर चाय और ठेपला खाने लगे हैं, और इतना ही नहीं बर्तन उठाकर मम्मी की मदद भी करने लगे हैं. एक तरह से देखा जाय तो अभी देश में अघोषित रूप से इमरजेंसी ही चल रही है. यह वैश्विक घटना इसीलिए राजनीतिक दल राजनीति करने से डरते हैं क्योंकि वे यदि ऐसा ज्यादा करेंगे तो लोग उन्हें धो देंगे. हां, कोरोना बिलकुल ही खत्म नहीं होगा लेकिन लोगों को ठीक तरीके से समझाया जाय, अनुशासन की सीख दी जाय, सोशल डिस्टेंसिंग और हाइजीन रखने के लिए पर्याप्त सजग किया जाए तो दुनिया के कुछ देशों की तरह भारत में भी लॉकडाउन हट जाएगा क्योंकि लोग अपना ज्यादा ख्याल रखने लगेंगे, जैसे कि अन्य रोगों के मामले में करते हैं. आजादी के बाद भारतीय जनता में राष्ट्रवाद का जो प्रचंड ज्वार आया था वैसा ही दौर फिर आ रहा है. देश के प्रति निष्ठा दिखाने के लिए लोग देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पहले जो मेहनत करते थे उससे भी अधिक मेहनत करेंगे. किसी के कहे बिना या बिना किसी प्रचार के स्वदेशी उत्पादों का उपयोग बढ जाएगा. एक बात तो तय है कि ये समय भारत के लिए बहुत सारे सकारात्मक बदलाव लाएगा.’
इतने विषयों पर स्पष्ट नजरिया रखते हुए इस सीनियर पत्रकार मित्र ने कहा:`तब्लीगी जमात ने सामने से आकर सरकार को मौका दिया है कि देशहित में काम नहीं करनेवाले मुस्लिमों को खोज निकालो और ये सरकार हाथ में आया मौका जाने नहीं देगी. विदेश से आनेवाले तब्लीगियों पर तो कानूनी प्रतिबंध आ ही गया है और लॉकडाउन खुलने के बाद उनके खिलाफ अन्य काफी कडे कदम उठाए जाएंगे. विदेशी और देशी तब्लीगियों ने साथ मिलकर सीएए के विरोध के नाम पर देश को अस्थिर करने का बडा षड्यंत्र रचा था. लॉकडाउन के बाद मुसलमान अधिक आक्रामक बनेंगे क्योंकि उनके कानों में लगातार ज़हर घोला जा रहा है कि कोरोना के बहाने आपको टार्गेट किया जा रहा है, आपके खिलाफ सरकार षड्यंत्र रच रही है. इस कारण आक्रामकता बढने वाली है. बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले आक्रामकता की आग में सेकुलर राजनीतिक दल पेट्रोल डालने का मौका चूकेंगे नहीं.’
और अंत में दुबई से मेरे पाठक और मित्र लिखते हैं:`आगामी एक साल तक या उससे भी अधिक समय के लिए मूवीज, टूरिज्म, बडे समारोहों – जैसे सारे आयोजन जो कि जीवन की आवश्यक गतिविधियां नहीं है- वे बंद हो जाएंगे और उनके राह पर आने में वक्त लगेगा. लेकिन जो जीवनावश्यक हैं वे क्षेत्र- फूड, सैनिटाइजर, लाइफ सेविंग ड्रग्स इत्यादि क्षेत्रों में ऑलरेडी तेजी आ चुकी है. मई का महीना खत्म होने तक भारत के कई जिलों में (कुछ नियंत्रणों के साथ) परिस्थिति सामान्य हो जाएगी. कई उद्योग फिर तेजी से चलने लगेंगे.’
तो बात ये है मित्रो. हर मित्र की बात में दम है. हर किसी के पास जिंदगी का बडा अनुभव है. हर कोई अपने अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ है. कोरोना का प्रभाव उनके कामकाज पर भी पडा है. इनमें से किसी भी मित्र ने कभी मेरे साथ मीठी मीठी बात नहीं की है. वे फ्रैंकली विचार रखते हैं. इसीलिए उनके अध्ययनपूर्ण मतों का मैं आदर करता हूं. भारत के लिए हर कोई आशावादी है. मोदी की लीडरशिप का सभी आदर करते हैं. प्रकृति ने इस कसौटी के समय में हमें सोनिया-मनमोहन की सरकार नहीं दी है, इसके लिए हमें भगवान का आभार मानना चाहिए. ये लेख पूरा करते समय ही एक मित्र का संदेश आना शेष था जो कि आ गया और वे लिखते हैं:`उलझन में पडने की जरूरत नहीं है. लोग किसी भी परिस्थिति में एड्जस्ट कर लेते हैं. पहले सोशल मीडिया नहीं था इसीलिए `सार्स’ या `एच-वन, एन-वन’ जैसे अधिक खतरनाक वायरसों का इतना खौफ नहीं था जितना कि कोरोना ने फैलाया है. ये समय भी बीत जाएगा.’