गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, बुधवार – १९ सितंबर २०१८)
जब अच्छे उपन्यास या अच्छी पुस्तक के आधार पर अच्छी फिल्म बनती है तब सोने पर सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है, जवाहरात के बाजार में इत्र का टैंकर लढक जाने जैसी घटना होती है.
जब मारियो पुजो के उन्यास `गॉड फादर’ (१९७२) या फ्रेडरिक फोसिथ के `द डे ऑफ द जैकाल’ (१९७३) या फिर बोरिस पास्तरनाक के उपन्यास `डॉ. जिवागो (१९६५) के आधार पर क्रमश: फ्रांसिस फोर्ड कोपोला या फ्रेड जाइनमैन या डेविड लीन फिल्म बनाते हं तब दर्शकों को मूल उपन्यास पढने जैसी संतुष्टि मिलती है, और जिन दर्शकों ने नहीं पढा है उनके लिए अति आनंद की बात होती है.
उसी तरह से रिडली स्कॉट ने फिल्म `अमेरिकन गैंगस्टर’ (२००७) की रचना `न्यू यॉर्क’ मैगजीन में छपे मार्क जैकबसन के लेख पर आधारित पुस्तक `द रिटर्न ऑफ सुपर फ्लाय’ से डेवलप की. स्टीवन स्पिलबर्ग ने ऑस्ट्रेलियन लेखक थॉमस केनेली द्वारा लिखित सत्य घटना पर आधारित उपन्यास `शिंडलर्स आर्क’ पर से `शिंडलर्स लिस्ट’ (१९९३) बनाई. तो क्लिंट ईस्टवुड ने जॉन कालिन की पुस्तक `प्लेइंग द एनिमी: नेल्सन मंडेला एंड द गेम दैट मेड द नेशन’ पुस्तक के आधार पर `इन्क्विट्स’ (२००९) का निर्माण किया.
उपन्यास पर या फिक्शन पर या सत्यघटना का बयान करती पुस्तक पर या नॉन-फिक्शन के आधार पर फिल्म बनाने का काम कठिन है. ऐज इट इज उपन्यास लिखना, नॉन-फिक्शन लिखना तथा फिल्म बनाने का काम तो कठिन ही होता है. लेकिन अच्छी फिक्शन या अच्छी नॉन-फिक्शन से अच्छी फिल्म बनाने के काम अधिक कठिन हो जाता है. ये पुस्तकें ऑलरेडी बेस्ट सेलर बन चुकी होती हैं. लाखों या करोडों पाठनकों तक पहुंच चुकी होती हैं. जिन्होंने ने नहीं पढा होता है उन्हें भी इस पुस्तक की लोकप्रियता- गुणवत्ता के बारे में जानकारी तो होती ही है. इतना सारे लोगों की कसौटी पर अपनी फिल्म खरी उतरेगी या नहीं, ऐसी अग्निपरीक्षा जैसा अनुभव डायरेक्टर तथा उसके साथ मिलकर स्क्रीन प्ले लिखनेवालों को होती है. फिल्म बनने के बाद यदि उसे मूल पुस्तक के पाठकों की भी सराहना मिलती है तो मान लेना चाहिए कि वह बॉक्स आफिस पर खूब कमाई करेगी. कभी ऐसा भी होता है या कभी नहीं भी होता है कि ओरिजिनल नॉवेल बेमिसाल होता है पर उसका फिल्मी संस्करण बिलकुल घटिया होता है. १९४३ में आइन रैंड के लिखे उपन्यास `द फाउंटेनहेड’ आज की तारीख में भी इतनी रिलैवेंट है कि हर कॉलेजियन उसे पढने के बाद ही दुनिया के रीतिरिवाजों में कदम रखेगा. लेकिन १९४९ में वॉर्नर ब्रदर्स ने बेस्ट सेलर बन चुके इस उपन्यास पर फिल्म बनाई जो कितनी घटिया थी यह देखने के लिए आपको यू ट्यूब पर चक्कर लगाना पडेगा. फिल्म रिलीज होने के बाद हर समीक्षक ने उसकी कडी खबर ली थी. फिल्म २५ लाख डॉलर में बनी और उसने कमाई की २१ लाख की. उसके बाद दो-तीन ख्यातनाम निर्देशकों ने `द फाउंटेनहेड’ पर आधारित फिल्म बनाने के लिए प्रोजेक्ट तैयार किए. इस साल भी हॉलिवुड में उस पर फिर एक बार काम शुरू हुआ है. लेकिन १९४९ की नाकामी के दा अभी तक इस दमदार उपन्यास पर फिल्म नहीं बन सकी है. भाग्य की बात है.
फिल्मों के बारे में गजब का ज्ञान रखने वाले अमृत गंगर ने तो १७ गुजराती-हिंदी- बंगाली- अंग्रेजी पुस्तकों/ उपन्यासों पर आधारित फिल्मों के बारे में एक विस्तृत अध्ययनपरक (पौने चार सौ पृष्ठों की) पुस्तक लिखी है- `रूपांतर’. यह पुस्तक `सरस्वतीचंद्र’ और `मानवीनी भवाई’ से लेकर `देवदास’, `उस की रोटी’ और एक अंग्रेजी उपन्यास `एनिमी ऑफ द पीपल’ के बारे में विस्तारपूर्वक बात की है. हालांकि इसमें अधिकांश फिल्में आम दर्शकों तक पहुंचकर सराहना नहीं प्राप्त कर पाई थीं, यह बात अलग है. गुजराती में ध्रुव भट्ट के उपन्यास `तत्वमसि’ के आधार पर बनी `रेवा’ भी उसी कैटेगरी की फिल्म थी- उसे केवल चार लोगों में सराहना पाकर ही संतोष करना पडा.
हमें रूचि होती है स्तरीय और साथ ही लोकप्रियता की कसौटी पर खरे उतरनेवाले उपन्यासों पर बनी स्तरीय और लोकप्रिय फिल्मों में. ऐसी अनेक हिंदी – अंग्रेजी फिल्में बनी हैं. इन सभी फिल्मों की पूरी सूची देने का कोई अर्थ नहीं है. इसमें से केवल एक ही फिल्म लेकर देखेंगे कि मूल उपन्यास में से क्या क्या हटाने के बाद भी फिल्म अच्छी बनी.
ऐसी एक फिल्म/उपन्यास के बारे में बात करनी है. कौन सी फिल्म है. अंदाजा लगाइए!
आज का विचार
ऐसी लागी लगन….सब को हो गई जलन!
– ६५ वर्षीय अनूप जलोटा की २८ वर्षीय प्रेमिका के बारे में वॉट्सएप पर पढा हुआ.
एक मिनट!
सेना अधिकारी: सरपंच जी, आपने तो कहा कि आपके गांव में ५०० की आबादी है लेकिन हम तो अभी तक यहां से २,००० लोगों को बाढ के पानी से हेलिकॉप्टर द्वारा निकाल चुके हैं. ऐसा कैसे हो सकता है?
सरपंच: साहब, ये लोग मुफ्त की हेलिकॉप्टर राइड लेने के लिए फिर से आकर पानी में कूद जा रहे हैं.