गुड मॉर्निंग क्लासिक्स : सौरभ शाह
(newspremi.com, रविवार, ५ अप्रैल २०२०)
नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने से पहले के समय से ही उनकी तुलना चाणक्य के साथ की जाती रही है. और ऐसा होना स्वाभाविक भी है. ऐसे देखा जाय तो राजनीति छलकपट, धोखेबाजी, प्रतिशोध, विश्वासघात, षड्यंत्र और प्रतिहिंसा का क्षेत्र है. राजनीति धूर्त लोगों का व्यवसाय माना जाता है. ऐसे क्षेत्र में रहकर लोगों की चालबाजियों को समझना और उसका शिकार न बनना ये बहुत बडी कला है. राजनीति में रहकर देश के लिए. देश की जनता के लिए कुछ करना हो तो इन्हीं सारे गंदे खेलों का सामना करना पडता है.
आचार्य चाणक्य के माता पिता ने उनका नाम रखा था विष्णु गुप्त. इसके अलावा उन्हें लोग अन्य नामों से भी पहचानते हैं: १. वात्स्यायन, २. मल्लनाग, ३. कौटिल्य, चाणक्य, द्रमिल, पक्षिल, वराणकस्वामी और गुलस्वामी.
चणक के पुत्र होने के कारण चाणक्य और कुटिल नीति के पक्षधर होने के कारण कौटिल्य के नाम से पहचाने जानेवाले आचार्य चाणक्य ने `कौटिलीय अर्थशास्त्र’ नरेंद्र मोदी के लिए ही लिखा होगा, ऐसा वहम आपको हो सकता है. यहां पर `अर्थशास्त्र’ यानी `इकोनॉमिक्स’ नहीं बल्कि `राजनीतिशास्त्र’- पॉलिटिकल साइंस होता है, आज के जमाने में इसे यही कहा जाता है. प्राचीन काल में राजनीति शास्त्र के लिए इसी शब्द का उपयोग होता था. चाणक्य ने जो ये ग्रंथ लिखा उसका संक्षिप्तीकरण `चाणक्यनीति’ के नाम से प्रसिद्ध है. इसके अलावा आचार्य ने `चाणक्य सूत्र’ भी दिए हैं. `चाणक्य नीति’ में श्लोक हैं, `चाणक्य सूत्र’ में एक एक वाक्य है. कुल ५७२ `चाणक्य सूत्र’ हैं. (चाणक्य नीति में १७ अध्याय हैं और हर अध्याय में औसतन २०-२० श्लोक हैं.)
५७२ `चाणक्य सूत्रों’ में मेरे हिसाब से नरेंद्र मोदी की ऐसी जीवनकथा प्रस्तुत होती है जो कभी लिखी ही नहीं गई. मोदी के जीवन के प्रसंगों का वर्णन करनेवाली दर्जनों पुस्तकें पिछले कुछ वर्षों में बाजार में मिलने लगी हैं लेकिन साहब की मानसिकता को समझने का प्रयास करना हो तो `चाणक्य सूत्र’ पढते पढते उन्हें याद करके, उनके राजनीति जीवन की छोटी मोटी घटनाओं को याद करके विचार करेंगे तो उनके व्यक्तित्व के भीतर हम झांक सकते हैं. ऐसा नहीं करना हो तो ऐसे के ऐसे ही चाणक्य सूत्र पढ जाएं तो भी मजा आएगा. शायद पढकर आप या आपकी संतान भविष्य में मोदी बन जायं. ओवर टू आचार्य चाणक्य:
१. सुख का मूल धर्म है. (यानी सुख की इच्छा रखनेवालों को धर्म का आचरण करना चाहिए. यहां धर्म केवल `धर्म’ के अर्थ में नहीं है, भगवद्गीता के `स्वधर्म’ के अर्थ में भी है.)
२. धर्म का मूल अर्थ (राजनीति) है.
३. अर्थ (राजनीति) का मूल राज (सत्ता) है. (यानी जब राज्य ही नहीं होगा तो राजनीति कैसे करोगे?)
४. राजनीति का मूल इंद्रियों पर विजय प्राप्त करना है. (यानी राजा को यदि अपना राज्य, अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना है तो उसे संयमी बनना होगा.)
५. इंद्रिय विजय का मूल विनय है. (विनय यानी चरित्र की दृढता.)
६. विनय का मूल वृद्धों की सेवा है. (ज्ञानवृद्ध, वयोवृद्ध व्यक्तियों की सेवा करके अर्थात उनके निकट रहकर, उनका निरीक्षण करके, उनका उपदेश-उनकी सलाह सुनकर, उनकी आलोचनाओं को सहकर ही विनय उपजता है.)
७. वृद्ध व्यक्तियों की सेवा का मूल विज्ञान (ज्ञान और विवेक) है.
८. विज्ञान संपन्न और विवेकशील बनने से आत्मा की उन्नति होती है.
९. विज्ञान संपन्न व्यक्ति ही आत्मविजयी बनता है और आत्मविजयी ही विश्वविजेता बन सकता है.
१०. आत्मसंयमी व्यक्ति सभी अर्थों में संपन्न होता है.
११. अर्थ-संपत्ति (यानी राजकीय कौशल) ही अमात्य (प्रधान मंत्री) इत्यादि की प्रकृति-संपत्ति का आधार है.
१२. प्रकृति-संपत्ति (आज के जमाने में उसे इमोशनल इंटेलिजेंस कहते हैं) से संपन्न व्यकि्त से नेतृत्वहीन राज्य का संचालन संभव होता है.
१३. अमात्य इत्यादि का कोप (क्रोध) अन्य तमाम तरह के कोपों से अधिक कष्टदायक होता है.
१४. अविनीत (जो विनीत न हो. विनीत यानी सौम्य, विवेकी, नम्र, उदारमतवादी) स्वामी होने की तुलना में स्वामी ही न होना अधिक कल्याणकारी माना जाता है. यहां चाणक्य ने पप्पू का उल्लेख नहीं किया है.
१५. अपनी पात्रता अर्जित करने के अलावा योग्य सहायक मिलने की आशा रखना भी जरूरी है.
१६. सहायकों के बिना राजा के विचार अस्थिर और अनिश्चित ही रह जाएंगे.
१७. राजा और उसके सहायक दो पहिए हैं और गाडी एक पहिए से नहीं चलती. यहां चाणक्य ने अमित शाह और अजित डोभाल का भी उल्लेख नहीं किया है.
१८. सुख-दुख में साथ देनेवाले ही असली मायने में सहायक बन सकते हैं.
१९. मनस्वी राजा को अपने जैसे ही मनस्वी व्यक्ति को अपने सलाहकार के पद पर नियुक्त करना चाहिए.
२०. लेकिन जिनके प्रति स्नेह भाव हो, ऐसे विनयहीन व्यक्ति को सलाहकार समिति में कभी नहीं रखना चाहिए. अरुण शौरी साहब याद हैं ना.
२१. हर प्रकार की परीक्षाओं में पार हो चुके तथा उत्क्रोच (रिश्वत, घुसखोरी), प्रलोभन तथा बंधु स्नेह (पक्षपात) से मुक्त योग्य और प्रमाणिक व्यक्ति को ही अपने मंत्री पद पर नियुक्त करना चाहिए.
२२. राज्य का सारा कारोबार (उसकी सफलता) मंत्री पर ही निर्भर होता है.
२३. मंत्र (यानी कार्य) की रक्षा करने से (यानी कार्य की जानकारी अन्य किसी तक न पहुंचे इसकी सावधानी बरतना) ही कार्यसिद्ध हो सकता है. नोटबंदी.
२४. मंत्र की गोपनीयता उजागर हो जाने से कार्य की हानि होती है.
२५. प्रमाद के कारण व्यक्ति अपने शत्रु के वश में आ जाता है.
नरेंद्र मोदी का हर कदम, उनका काम करने का तरीका, उनकी नीतियों का आप बारीकी से निरीक्षण करेंगे तो पता चलेगा कि हर चाणक्य सूत्र उनकी रग रग में दौड़ रहा है.
चाणक्य नीति के बारे में अन्य स्वतंत्र बातें कल.