(गुड मॉर्निंग क्लासिक्स: शनिवार, २५ अप्रैल २०२०)
सेकुलरवादियों ने जानबूझकर हिंदूवादी-राष्ट्रवादी संस्थाओं को बदनाम करने का अजेंडा रखा है जिससे कि इन संस्थाओं के अच्छे काम के सामने हम जैसी भोलीभाली जनता प्रश्नचिन्हे लगाती रहे. लॉकडाउन के पहले ही दिन से आर.एस.एस. के लाखों स्वयंसेवक देश के कोने कोने में जाकर करोडो भारतियों को (कौन हिंदू है और कौन मुसलमान है यह देखे बिना) तैयार भोजन/ राशि पहुंचा रहे हैं. लेकिन क्या एक भी सेकुलर अखबार ने इसका उल्लेख किया? वामपंथी टीवीवालों ने क्या रिपोर्ट दी?
आज हमारे सौभाग्य से देश के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के अलावा कई मुख्य मंत्री तथा उच्च पदों पर काम करनेवालों की जड़ें संघ से जुड़ी हैं.
नेहरू-मौलाना आजाद एंड कंपनी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ काफी बडे अभियान चलाए थे. नेहरू की बेटी के पौत्र तक, ये आगे चला. भिवंडी कोर्ट में राहुलबाबा को अपने विरुद्ध चल रहे आर.एस.एस. को बदनाम करने के मामले में जो बार- बार फिल्डिंग करनी पड रही है, उसे देखकर कांग्रेसी लोग सुधर जाएं तो बेहतर है.
ऐसा ही विश्व हिंदू परिषद के आधार स्तंभ आदरणीय डॉ. प्रवीणभाई तोगडिया के मामले में हुआ. तोगडिया तथा विश्व हिंदू परिषद के उनके साथियों को पिछले डेढ दशकों से इतना बदनाम कर दिया गया कि अच्छे अच्छे हिंदूवादी भी उनके साथ एक ब्रैकेट में रखे जाने से डरने लगे. सेकुलर मीडिया ने यह एक बहुत ही हीन कृत्य किया.
गोधरा हिंदू हत्याकांड के बाद के वर्षों में एक बार विश्व हिंदू परिषद ने अहमदाबाद के करीब स्थित पिराणा की दरगाह में तीन दिवसीय शिबिर का आयोजन किया था. सदियों पहले यहां के सूफी संतों ने अपनी खुद की पहचान हिंदू के रूप में कराना शुरू किया था, ऐसा यहां का इतिहास है. दरगाहों पर हरे रंग का ध्वज लहराता हुआ मिलता है. पिराणा की दरगाह पर सफेद ध्वज सुशोभित है, हरा नहीं. इस दरगाह का संचालन करने वाले ट्रस्टी मंडल में ७ सदस्य कच्छी कडवा पटेल हैं और ३ सैयद हैं. हिंदू परंपरा का वर्चस्व रखने वाले इस पावन स्थल पर वी.एच.पी. का शिबिर था जिसके पहले दिन के संबोधनकर्ताओं में मुझे भी जाना था. संबोधन पूरा करके, शिबिरार्थियों तथा वीएचपी के सीनियर, आदरणीय वरिष्ठों से मिलकर, भोजन के बाद मुझे अहमदाबाद लौट आना था. केवल १८ किलोमीटर का अंदर था. लेकिन वहां जाकर जब मुझे पता चला कि यहां पर बाकी के दो दिन किसका किसका और किन विषयों पर भाषण है तब मैं आयोजकों से अनुमति लेकर वहीं पर रुक गया.
तीसरे दिन अपने विषय का विशेषज्ञ ने भारत की जनसंख्या के प्रतिशत पर अपना भाषण किया. अत्यंत प्रभावशाली और चौंकानेवाला तथा बहुत ही उपयोगी भाषण था. उनसे मुझे सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज (२७, राजशेखरन स्ट्रीट, मायलापोर, चेन्नई ६००००४) द्वारा २००३ में प्रकाशित किए गए `रिलीजियस डेमोग्राफी ऑफ इंडिया’ नामक एक दमदार शोधग्रंथ के बारे में जानकारी मिली. ए.पी. जोशी, एम.डी. श्रीनिवास तथा जे.के. बजाज द्वारा संयुक्त रूप से किए गए रिसर्च के परिणामस्वरूप बना ये मौलिक ग्रंथ दिल्ली की `वॉइस ऑफ इंडिया’ प्रकाशन संस्था के नींव के पत्थर समान नी रामस्वरूप जी की स्मृति में समर्पित किया गया है.
इस ग्रंथ में जनगणना के जो आंकडे दिए गए हैं, वे आधारभूत हैं, सरकारी हैं. अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुई तथा कई बदलावों के साथ अभी तक चल रही दस वर्षीय जनगणना के बारे में ये आंकडों विश्वसनीय और मूलभूत मानता है. इन आंकडों को धैर्यपूर्वक समझने के बाद उसके निष्कर्ष निकालने पडत हैं और उन निष्कर्षों के पीछे ऐतिहासिक तथ्यों को जांचना पडेगा. अंग्रेजों ने १८८१ में भारत में विधिवत जनगणना आरंभ की थी. इसीलिए उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों के आंकडे भी हमारे पास हैं.
इस तकनीकी बात को जान लेते हैं. हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध तथा आदिवासियों के विभिन्न संप्रदायों को भारतीय धर्म परंपरा में रखा जाता है. इसमें आस्था रखनेवालों को इंडियन रिलिजनिस्ट माना जाता है, भारतीय धर्म के अनुयायी माना जाता है.
इसी प्रकार से मुसलमना, इसाई, पारसियों, यहूदियों को भारत में अन्य धर्मीय माना जाता है.
सबसे पहले हमें आंकडों द्वारा यह जांचना चाहिए कि ये दोनों प्रकार की जनता यानी भारतीय धर्म के अनुयायी और अन्य धर्मी या विधर्मियों की संखया भारत में कितनी थी और अब कितनी है.
परिणामत: इन आंकडों का अध्ययन करने के बाद आपको आपको मणिपुर में (और इससे पहले आसाम में ) भाजपा की सरकार बनने का महत्व समझ में आएगा. पूर्वात्तर भारत के ७ में से इन दो राज्यों में नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद भाजपा की सरकार बनी है. इतना ही नहीं, भूटान, म्यांमार और चीन के साथ सीमा साझा करनेवाले पूर्वोत्तर भारत के तीसरा राज्य अरुणाचल प्रदेश में भी भाजपा ने २०१४ में विधान सभा के चुनाव में ३१.३ प्रतिशत वोट हासिल किए थे. भले ही सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली थीं तब भी इसे बेहतर कहा जा सकता है. (अरुणाचल में २०१४ के विधान सभा चुनाव ९ अप्रैल २१०५ को हुए थे जो तकनीकी रूप से मोदी के पीएम बनने से पहले हुआ था लेकिन भाजपा का वोट शेयर बढना मोदी की आंधी का प्रताप ही था.) यूपी सहित अन्य राज्यों के चुनावों में २०१७ में जिस तरह से भाजपा विजयध्वज लहराया उसे ध्यान में लेकर चीन का मीडिया कहता है कि इसके कारण चीनी सरकार के पेट में बहुत तेज दर्द उठा है, क्योंकि अब (चीन सहित) अंतर्राष्ट्रीय विवादों में भारत (यहां मोदी पढें) को कोई रोक नहीं सकता.
इसका ये अर्थ हुआ कि कांग्रेस की सरकार अभी तक चीन के लिए अनुकूल ही रहती थी, क्योंकि उस समय चीन यदि भारत को झुकने को कहता तो भारत चीन को साष्टांग दंडवत करने लगता था. १९६२ में हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगानेवाले नेहरू को जब चीन से हुए युद्ध में अच्छी सीख मिली तब नेहरू ने कहा था कि चीन ने हमसे धोखा किया. इस संदर्भ में स्वामी सच्चिदानंद ने एक पुस्तक में लिखा है कि दुश्मन तो धोखा ही देगा ना. नेहरू कितने भोले थे!
जनगणना के आंकडों में गहराई में उतरने से पहले इतनी पृष्ठभूमि बनाना अनिवार्य था. ताकि मुस्लिम तथा ईसाइयों की बढती जनसंख्या के कारण भारत का हित किस किस राज्य में खतरे में पड रहा है उसका वास्तविक अंदाजा मिलेगा.
शेष कल….
(यह लेख मार्च २०१७ में लिखी एक सिरीज को अपडेट करके लिखा गया है)
आज का विचार
शनि, राहू और केतू ने राहुल गांधी को फ्रेंड रिक्येस्ट भेजते हुए कहा है कि इतना नुकसान तो हम भी कभी किसी का नहीं कर सके!
– वॉट्सऐप पर पढा हुआ
आँकड़े भयावह हैंऔर हिंदू सोया हुआ है
निगम साब.,सौरभ शाह बहोत, सावधानात्मक लेख लिखते है.ये मुझे मालूम है. क्रांती हंमेश विचारोसे ही होती है.विवेकानंदजी यही कहते.”ऊतिष्ट: जागृतः
सौरभ जी इस लेख द्वारा हमे जागृत कर रहे है.
ऐसी जानकारी ही हमारे साथीयो को मिले.
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित लेख।
इस तरह की जानकारी मिलती रहना चाहिए।
यह हमे सच्चाई दिखाती है।
आभार