(गुड मॉर्निंग: चैत्र कृष्ण प्रतिपदा, विक्रम संवत, २०७९, रविवार, १७ अप्रैल २०२२)
योगग्राम के बारे में सटीक व्याफ्या करनी हो तो मैं कहूंगा कि यह एक ओलिंपिक्स के खेल के लिए अभ्यास का मैदान है-ट्रेनिंग ग्राउंड-जहां कई विशेषज्ञ, अनुभवी ट्रेनर्स मौजूद हैं और आपकी क्षमता के अनुसार, आपकी ज़रूरत के अनुसार, वे दौड़ने का प्रशिक्षण देते हैं. आपको १०० मीटर, २०० मीटर, ४०० मीटर की स्प्रिंट रेस में दौड़ना है या फिर मैराथन रनर बनना है, यह आपको खुद तय करना है. ट्रेनर्स आपको सारी तालीम देंगे, आपको बहुमूल्य टिप्स देंगे और उन सूचनाओं का पालन होता है या नहीं इस पर ध्यान देंगे. आपके शारीरिक विकास के लिए जो कुछ भी जरूरी है, ऐसा आहार देंगे और विघ्न डालनेवाले आहार बंद कराएंगे. यहां के शीर्षस्थ डॉक्टर्स से लेकर डाइनिंग हॉल के वेटरों तक हर कोई ध्यान रखता है कि आपको जो खुराक रिकमेंड की गई है, वह आन लेते हैं या नहीं.
बस, एक बात वे नहीं करेंगे-वे आपकी ओर स दौड नहीं लगाएंगे, दौड़ने के लिए आपको धक्का भी नहीं देंगे, ट्रैक पर जाकर दौड़ना आपको है. यदि आप उनकी सूचनाओं का पालन करके नहीं दौड़ते हैं तो ओलिंपिक्स में तो क्या गली के नाके तक भी दौडने की रेस आप नहीं जीत सकते. दौडने का काम आपको खुद करना है, उसके लिए आपको कोई भी रिप्लेस नहीं कर सकता. आप चाहे कितने ही धनवान क्यों न हों, नौकर-चाकरों की फौज आपके पास होगी तो भी आपकी ओर से योगासन या प्राणायाम करने के लिए आप नौकरों से नहीं कह सकते, आपकी ओर से वे सात्विक आहार लेना शुरू कर दें और आप समोसा-जलेबी खाते रहें, ऐसी व्यवस्था लगाकर अपना स्वास्थ्य सुधार या संभाल नहीं सकते. करना तो आप ही को पड़ेगा. धैर्यपूर्वक करना पड़ेगा.
स्वामीजी जोर देकर कहते हैं कि जो कुछ भी करें वह ऊपर ऊपर से नहीं, पूरा पूरा करो, गहराई में उतर कर करो, खो जाओ, ओतप्रोत हो जाओ, एकाग्रता के साथ करो.
स्वामी रामदेव ने दो दिन पहले ही उपमा दी थी कि रोटी सेंकने के तवे को आप चूल्हे पर रखते हैं, फिर उसके गर्म होने का इंतज़ार करना पड़ता है. तवा गर्म होने से पहले ही रोटी उस पर रखकर सोचें कि अब वह तुरंत सेंका जाय तो ऐसा नहीं होना है. पानी या दूध उबालना हो तो वाष्प बनने तक इंतज़ार करना पड़ता है. बीज से वृक्ष बनने में समय लगता है. बालक से वयस्क बनने में समय लगता है. लेकिन हम योग से शरीर का रूपांतरण होने से पहले ही धैर्य गंवा देते हैं.
स्वामीजी जोर देकर कहते हैं कि जो कुछ भी करें वह ऊपर ऊपर से नहीं, पूरा पूरा करो, गहराई में उतर कर करो, खो जाओ, ओतप्रोत हो जाओ, एकाग्रता के साथ करो.
योग के आसन और प्राणायाम के संदर्भ में कही गई स्वामीजी की यह बात जीवन के हर कार्य पर लागू होती है.
स्वामीजी कहते हैं कि कोई भी योगाभ्यास एक मिनट से शुरू करके पांच-दस-पंद्रह मिनट करने लगते हैं तो आपको कहना नहीं पड़ता है कि इससे आपको क्या लाभ होगा, लाभ ऑलरेडी हो चुका होता है.
कोई भी प्राणायाम दो-चार बार कर लेने का मतलब ये नहीं कि पूरा हो गया. अनुलोम विलोम या कपालभांति या किसी भी प्राणायाम को आप यांत्रिक रूप से, सिर्फ करने के लिए दो-पांच बार करके, आगे बढ़ जाएंगे तो शायद ही कोई लाभ होगा. रोज उसके आवर्तन कम से कम पांच-दस मिनट तक, लगातार-बिना अटके, करेंगे तो जरूर लाभ होगा. शुरू में भले ही दस सेकंड, तीस सेकंड, एक मिनट तक ही किया जा सकता है. लेकिन रोज कुछ कुछ सेकंड बढ़ाते जाएं तो पंद्रह-बीस दिन में पांच –दस-पंद्रह मिनट के टार्गेट पर आसानी से पहुंचा जा सकता है.
यही बात योगासनों की है. जैसे कि मंडूकासन कर रहे हों तो एकाध मिनट या इवन तीस सेकंड से शुरू करें तो कोई परेशानी की बात नहीं है.फिर अभ्यास बढ़ाते बढ़ाते ये या कोई भी आसन की मुद्रा पकड़ कर दो-पांच-दस मिनट तक बढ़ाते जाते हैं तब असली लाभ की शुरूआत होती है.
ऐश्वर्य केवल धन का नहीं होता. बुद्धि और बल का भी होता है. शारीरिक समृद्धि का महत्व जीवन में सर्वोच्च है. हनुमानजी से प्रेरणा लेकर बलवान बनना चाहिए.
ये सब आपको यहां सिखाया जाता है- लेकिन करना तो आपको ही है. स्वामीजी बार-बार कहते हैं कि योगासन करते समय पसीना टपकना चाहिए, नहीं तो आप टपक जाएंगे!
आज यहां मेरा सत्रहवां दिन है. एक अप्रैल को आया था-१७ अप्रैल हो चुका है. कल चैत्र पूर्णिमा थी. हनुमान जयंती. शनिवार भी था. हनुमान चालीसा करते करते योगाभ्यास हुआ था. स्वामीजी मंच पर जिस स्फूर्ति से योगासन करते हैं, उसे देखकर हनुमान जयंती के कल के पावन अवसर पर सबेरे सबेरे मैने एक संकल्प लिया: `मुझे ऐश्वर्यवान बनना है.’
ऐश्वर्य केवल धन का नहीं होता. बुद्धि और बल का भी होता है. शारीरिक समृद्धि का महत्व जीवन में सर्वोच्च है. हनुमानजी से प्रेरणा लेकर बलवान बनना चाहिए. बलवान बनेंगे तभी माता सरस्वती की दी हुई प्रज्ञा संरक्षित रहेगी. अन्यथा अल्जाइमर्स, पैरेलिसिस, डिमेंशिया- न जाने क्या क्या प्रवेश करके शरीर को-मन को तोड देगा. बल- बुद्धि-विद्या में निरंतर वृद्धि होती रहे तभी आपके चारों तरफ ऐश्वर्य का वातावरण निर्मित होगा. बीमार होकर जिएंगे तो बैंक में रखा धन जीवन का आनंद लेने के लिए किस तरह से काम आएगा? तमाम मामलों में ऐश्वर्यवान होंगे तो ही असली सुख सारा जीवन भोग सकेंगे. स्वामीजी ने काफी समय पहले एक वाक्य कहा था जिसे मैने टीवी पर सुना था:`आपको भोगी बनना है तो भी पहले योगी बनना पड़ेगा.’
दुनिया के तमाम भोगों का अच्छी तरह से आनंद लेना हो तो योगी बनकर शारीरिक-मानसिक रूप से फिट रहना होगा. योगी बने बिना भोगी नहीं बन सकते, यह बात मुझे काफी पाथब्रेकिंग लगती है.
पिछले कुछ दशकों में एक नया ट्रेंड मेडिकल फील्ड में प्रवेश कर गया है. प्रिवेंशन इज़ बेटर दैन क्योर-इस स्वर्णिम सूत्र का घोर दुरूपयोग करके यह व्यापार चलता है.
स्वास्थ्य के बारे इतना कुछ चिंतन करने के बाद मुझे एक बात समझ में आ रही है. आप चाहे जितने तंदुरुस्त हों, ज्ञानी हों, नीतिवान हों (ये सब होना तो अच्छा ही है) लेकिन जीवन का कुल मिलाकर जब आपके हिसाब किताब की ऑडिटिंग होगी तो एक बात उठकर ध्यान में आएगी-आपने जीवन में क्या काम किया है. स्व-धर्म के अनुसार आपका प्रोफेशन चाहे जो भी हो, उसमें ऊंचा लक्ष्य रखकर उसे हासिल किए बिना जीवन अर्थहीन है-फिर आप चाहे जितने ही तंदुरुस्त हों, ज्ञानी हों, नीतिवान हों. जीवन में कर्मयोगी नहीं बने तो इस तबीयत, ज्ञान, नीतिमत्ता का कोई उपयोग नहीं है. यदि आप अपने काम में आकंठ डूबे न रहे तो भगवान द्वारा दी गई ये तीनों समृद्धियां आप द्वारा बर्बाद की गई मानी जाएंगी.
शरीर को संवारने के लिए या फिर रोग के इलाज के लिए हमारे भीतर विवेक होना ज़रूरी है. नीरक्षीर विवेक. दूध और पानी को परखने का विवेक. क्या अच्छा है, कितना अच्छा है, क्या खराब है, कहां रुक जाना है, कहां पर आगे बढ़ना है-इन सभी बातों का विवेक.
पिछले कुछ दशकों में एक नया ट्रेंड मेडिकल फील्ड में प्रवेश कर गया है. प्रिवेंशन इज़ बेटर दैन क्योर-इस स्वर्णिम सूत्र का घोर दुरूपयोग करके यह व्यापार चलता है. विशिष्ट उम्र के बाद हर छह या बारह महीने में बॉडी चेकअप करवाना अच्छा है ताकि बीमारी शुरू हो तो उसे उभरते ही खत्म कर सकें-ऐसी प्यारी प्यारी चिकनीचुपड़ी बातें सुनकर हम मूर्ख बन जाते हैं. डॉ. मनु कोठारी कहा करते थे कि आपको आर्थराइटिस है या नहीं, आपका फलां अंग ठीक से लच रहा है या नहीं, इसकी मुफ्त जांच करने के लिए जो कैंप-शिबिर चलते हैं उसमें स्वस्थ आदमी एक दरवाजे से प्रवेश करता है और बाहर निकलता है तब वह बीमार होता है!
ऐसे अधिकांश डायग्नोस्टिक्स कैंप डॉक्टरों और उनके अस्पतालों की ग्राहकी बढ़ाने के लिए होते हैं, न किजनता की सेवा के लिए.
डॉ. मेहरवान भमगरासाहब ने एक बहुत अच्छी बात कही है कि `डॉक्टरीविधा की लोगों से गुप्त रखी गई एक बड़ी बात ये है कि काफी तकलीफें, काफी बीमारियां अपने आप ही खत्म हो जाती हैं. कई तो अगले दिन सुबह होते ही खत्म हो जाती हैं. डॉक्टर ये बात अच्छे से जानते हैं; परंतु लोगों को बिलकुल जानने नहीं देते. क्योंकि उनका धंधा जो टूट जाएगा! चाहे जो भी हो. लेकिन रोग को समझदारी से भूल जाने की बात को प्राकृतिक चिकित्सा के हिमायती जेम्स थॉमसन खूब महत्व देते हैं. ऐसी एक पुस्तक भी है: इंटेलिजेंट लिविंग अलोन’.
डॉ. भमगरा छाती ठोंककर एक सत्य हम सभी तक पहुंचाना चाहते हैं और वो ये है: हमारे शरीर यंत्र का एक-एक अवयव अपनी क्रिया के लिए आवश्यक शक्ति के अलावा भी इतनी शक्ति रखता है कि उस पर्टिकुलर अवयव का लगभग आधा भाग बिगड़ भी गया हो तो भी वह अपनी क्रिया को यथावत् करता रहता है.
वे विदेश का एक उदाहरण देते हैं. दुर्घटना में मारा गया एक प्रौढ़ आदमी अपने सारे जीवन के दौरान कभी बीमार नहीं हुआ था. ऐक्सिडेंट में जब मौत होती है तब पोस्टमॉर्टम करना पड़ता है जिससे हर एक अंग की जांच करके कोरोनर विश्वासपूर्वक प्रमाणपत्र देता है कि किन कारणों से मृत्यु हुई है. पोस्टमॉर्टम करने पर पता चला कि (१) उसके फेफड़े में क्षय रोग के धब्बे थे और वे सिकुड़ चुके थे; (२) उसका लीवर खराब हो चुका था और उसका सारा खून ऊपर की तरफ तथा नीचे की तरफ नई शिराओं से ही गुजर रहा था; (३) उसे किडनी की क्रॉनिक बीमारी थी और दोनों किडनियों के कुछ हिस्से बेजान हो गए थे फिर भी सुरक्षित टिशूज़ द्वारा किडनी का कामकाज यथावत् चल रहा था; (४) और उसके हृदय की शिराएं सख्त हो जाने से हृदय चौड़ा हो गया था. उसे लंबे समय तक हाई ब्लडप्रेशर रहता था. उसके शरीर के चार महत्वपूर्ण अंगों की ऐसी प्राणघातक बीमारियां होने के बावजूद उसे जीते जी पता नहीं चला था.
डॉ. भमगरा इस किस्से का उल्लेख करके कहते हैं कि ऐसे उदाहरण इक्का दुक्का नहीं हैं. हमारे देश में भी कोरोनरों को पोस्टमॉर्टम करते समय क्षय के धब्बे पड चुके, संकुचित हो चुके फेफड़ों के अनेक मामले मिलते हैं. भमगरासाहब कहते हैं कि अमुक उम्र के बाद नियमित रूप से स्वास्थ्य की जांच करवाने की सलाह दी जाती है, क्या उसका पालन करना चाहिए? इस मामले में संदेह बेशक है. `पहले ही सचेत रहेंगे तो उपाय भी करने लगेंगे.’ ऐसी कहावत है. किंतु आरोग्य के संबंध में सचेत होने का मतलब दवाएं निगलना है, ऐसा अर्थ नहीं लगाना चाहिए. कई बार तो रोग की बात दोहराते दोहराते कई रोगी गंभीर मानसिक बीमारी का शिकार बन जाते हैं. बड़े शहरों में ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं.
डॉ. भमगरा खुशमिजाज़ मनुष्य थे. वे अत्यंत प्रसन्न और हंसमुख थे. मैने उनके चेहरे पर हमेशा स्मित देखा है. उन्होंने एक मजेदार कहानी बताई है:
एक गांव था. गांव एक पहाड़ी पर बसा था. पहाड़ी के किनारे सौ मीटर गहरी खाईं थी. काफी लोग उस किनारे से नीचे गिर पड़ते. कइयों की हड्डियां टूट जातीं तो कइयों की मृत्यु हो जाती. ऐसी दुर्घटनाएं बार बार होने लगीं तो ग्राम पंचायत ने उसका कोई ठोस उपाय करने का विचार किया. पहाड़ी के किनारे से नीचे की खाई में एक छोटा अस्पताल दिया. डॉक्टर्स और नर्सेस का स्टाफ नियुक्त कर दिया. छोटा ऑपरेशन थिएटर बनवा दिया. पहाडी से व्यक्ति फिसलता तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस भी रख ली.
भमगरा साहब कहते हैं कि ये सारा खर्च करने के बदले, उन भले लोगों ने किनारे से पहले एक दीवार खड़ी कर दी होती तो!
यह दीवार यानी योग-प्राणायाम-प्राकृतिक चिकित्सा-आहार विहार का नियमन. रोगां का उपचार करने की झंझट करने में दुनिया में प्रतिदिन अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं. लेकिन शरीर में रोग प्रवेश ही न करें, ऐसा तंत्र खड़ा करने के पीछे उससे हजारवें भाग का खर्च भी नहीं होता. कइयों को अस्पताल के, बायपास या एंजियोप्लास्टी के, या अन्य सर्जरियों के, वेंटिलेटर के, हजारों रुपए का एक इंजेक्शन की या आजीवन ली जानेवाली दवाओं के खर्च पर कोई आपत्ति नहीं उठाता लेकिन योगग्राम-निरामय के बारे में पहले दी गई वेबसाइट पर जाकर वे कहते हैं कि बाप रे बाप, ये तो बड़ा महंगा है. रोग न हों, इसकी रोकथाम के लिए योग इत्यादि से उसके निवारण के लिए खर्च करने की नीयत जिनकी नहीं होती, वे लोग ही ऐसी बातें करते हैं. किसी गंभीर बीमार में वे या उनके परिवारजन जब फंसेंगे तब यही लोग घर के आभूषण बेच कर या इनवेस्टमेंट तोडकर या घर बार व्यापार बेचकर डॉक्टरों से हाथ जोडकर कहेंगे: `डॉक्टर साहब, कुछ भी कर लो लेकिन मेरी मां को/ मेरे मुन्ने को बचा लो.’
और देवता मान लिए गए डॉक्टर जब उन्हें नहीं बचा सके तब हाथ झटककर वे कहेंगे कि,`सॉरी, अब इन्हें दवा की नहीं, दुआ की ज़रूरत है!’
ज़रूरत पडने पर रिपोर्ट्स निकालते हैं लेकिन बात-बात में डॉक्टर के कहने पर घबराने की जरूरत नहीं होती. यहां आकर मुझे पतंजलि की लैब में ब्लड रिपोर्ट्स निकलवानी थी. यहां के डॉक्टर्स ने तो मना कर दिया था क्योंकि उनके पास मैने चार महीने पहले बुकिंग करवाते समय जो रिपोर्ट्स भेजी थीं, वह थी. लेकिन मुझे ही धुन थी कि लेटेस्ट ब्लड रिपोर्ट हो तो बेहतर. मैने योगग्राम के लोबोरेटरी इनचार्ज भूपेनप्रताप मौर्य से बात की. शुगर के अलावा अन्य दो-चार-छह टेस्ट मेरे द्वारा शामिल कर दिए जाने के बाद मुझे विचार आया कि जो ब्लड ऑलरेडी लिया है, उसी से तो ये सारे टेस्ट होने हैं तो चलो कुछ रुपए ज्यादा खर्च करके और दो-तीन टेस्ट करवा लेते हैं. भूपेनप्रताप जी ने मुझसे पूछा कि आपको इसमें से कोई रोग है? मैने कहा,`नहीं, लेकिन चेक करवा लेना बेहतर है…’ वे कहते हैं,`आपको ऐसी कोई शिकायत है?` मैने कहा,`बिलकुल नहीं’.
`तो फिर क्यों अतिरिक्त टेस्ट करवा रहे हैं? मत करवाइए.’
मेरा आग्रह होने के बावजूद उन्होंने मुझे रोका. कोई कमर्शियल लैब होती तो मुझे ऐसी सलाह नहीं मिलती. सेवा-परमार्थ करने वालों में और जेबकतरों में क्या फर्क होता है, यह समझ में आ जाता है.
टू बी ऑन सेफ साइड एक एम.आर.आई. या सीटी स्कैन करवा लेना अच्छा है, ऐसा सभी डॉक्टर कहते हैं. उस प्रत्येक डॉक्टर का आशय शुभ हो यह जरूरी नहीं है. जिन्होंने लाखों करोडो की ऐसी मशीनें स्थापित की हैं, उनकी ईएमआई भी भरी जाय इसके लिए ऐसी मालप्रैक्टिस होती है. कुछ दशक पहले बिना कारण गर्भाशय निकलवाने के लिए ऑपरेशनों का ट्रेंड ऐसे मेडिकल माफियाओं ने शुरू किया था. बायपास सर्जरी, स्टेंट-एंजियोप्लास्टी, कैंसर सहित अन्य तरह तरह की गांठों, घुटने- जांघ के प्राकृतिक स्पेयरपार्ट्स बदल कर नए कृत्रिम अंग लगवाने-जैसे अनेक मामलों में आवश्यक नहीं होने पर भी आपको सलाह मिलती है कि ऑपरेशन करवा दें तो अच्छा है. फिर आप पूछते हैं कि डॉक्टर साहब, ऑपरेशन के बाद मैं बिलकुल ठीक तो हो जाऊंगा न? तब आपसे या तो कहा जाता है: आपका शरीर उस पर किस तरह से रिपॉन्स देता है, इस पर सारा कुछ निर्भर है. या फिर कहा जाता है: पांच साल तक कोई परेशानी नहीं आएगी. या फिर कहा जाता है: भविष्य में कोई प्रॉब्लम हुई तो हम बैठे हैं ना!
प्रॉब्लेम हुई हम उठ गए तो क्या भूत बनकर डॉक्टर से मिलेंगे!