पैसों के हिसाब की डायरी रखी है, क्या समय के हिसाब की डायरी रखी?

तडकभडक- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार ९ दिसंबर २०१८, संस्कार पूर्ति, `संदेश’)

आज रिक्शे के पीछे आपने कितने पैसे खर्च किए, सब्जियां कितने की ले आए, फिल्म की टिकटें कितने में आईं, महीने पहले सप्ताह में दूध का बिल कितना हुआ, किरानेवाले का बिल, बच्चों की फीस वगैरह सारा खर्च हिसाब की डायरी में लिखा. तकरीबन सभी ने लिखा. जिन्हें खर्च लिखने की आदत नहीं है उन्हें हर दिन का हिसाब लिखने के लिए डायरी लानी चाहिए. नया वर्ष शुरू हो गया है या होने जा रहा है. ये इस पर निर्भर है कि आपका वर्ष चैत्र से शुरू होता है या जनवरी से. हमारा तो चैत्र से शुरू होता है.

पैसे किसे दिए, कहां से दिए, किससे कितने लेने हैं- कितने देने हैं, ये सारा हिसाब रखने का पहला फायदा ये है कि पैसे का पूरा ट्रैक आपके पास रहता है. हिसाब रखने से अपना खर्च आप घटा सकते हैं या नहीं इसका तो पता नहीं, बचत बढा सकते हैं या नहीं , पता नहीं लेकिन पैसों की बर्बादी से बचाकर उसी पैसे का अच्छा उपयोग जरूर कर सकेंगे. बहुत अच्छा उपयोग यानी कोई बडी बडी बातें नहीं करनी हैं. बिलकुल सामान्य बात है. फिल्म देखने आप मल्टीप्लेक्स में गयए या दो चार लोगों के बीच इंटरवल में पांच सो हजार रुपए की पॉपकॉर्न जैसी बिलकुल फालतू चीज पर खर्च कर दिए. इसी राशि में बाहर किसी अच्छी जगह पर पेट भर कर स्वादिष्ट व्यंजन खाए जा सकते हैं, ऐसा ज्ञान आप नियमित हिसाब लिखते होंगे तो होगा. देखा देखी करके या लालच में आकर त्यौहारों के अवसर पर मॉल के चक्कर लगाकर परिवार के कपडे-जूते एक्सेसरीज के पीछे दस बीस हजार रूपए खर्च कर दिए हैं ऐसा आपको हिसाब लिखने से पता चलेगा कि इतने ही पैसों में आस पास के किन स्थानों पर घूमा जा सकता है. परिवार के सदस्यों के पास एक दो शर्ट शूज एक्सेसरीज भले कम हों लेकिन सब मिलकर कच्छ के रणोत्सव या चोरवाड के समुद्र तट पर या गिर के जंगल में या फिर स्टेचू ऑफ युनिटी का आनंद लिया हो तो वह पल मानसपटल पर जीवन भर अंकित रहेगा. खैर, घूमने जाना जरूरी नहीं है. कहने का मतलब ये है कि पैसे का हिसाब लिखा होगा तो आप अपनी प्रायोरिटी में बदलाव कर सकने की स्थिति में हैं, ऐसा आपको तुरंत ध्यान में आएगा.

हम जैसे सामान्य लोग जिस तरह से पाई पाई का हिसाब रखते हैं, उसी प्रकार से बडे लोग अपने जीवन में हर घंटे, नहीं घंटे नहीं, हर मिनट का हिसाब रखते हैं. मोदी से लेकर मोरारी बापू तक और अंबानी से लेकर अमिताभ तक सभी महानुभाव अपने समय के उपयोग के बारे में अत्यंत सतर्क रहते हैं. हम जिस प्रकार से घर में नया फ्रिज या टीवी या ऐसा कुछ भी लेना हो तो सौ बार सोचकर खर्च करते हैं उसी प्रकार से वे भी अपने समय को अंधाधुंध खर्च नहीं करते. देश और दुनिया के हजारों महानुभाव बडे बन गए और हम जहां के तहां रह गए, इसका एक मुख्य कारण ये है कि हमने अपनी हिसाब की डायरी में पैसे कहां खर्च किए हैं, यही लिखा है, समय कहां खर्च हो रहा है, यह लिखा ही नहीं. और नहीं लिखने के कारण ही हमें पता नहीं चलता है कि पिछले महीने या उसके पहलेवाले महीने में हमने कहां पर कितना समय बर्बाद किया है. पैसों का हिसाब तो शायद हिसाब की डायरियों को सुरक्षित रखा गया हो तो पांच दस साल पहले का हिसाब भी मिल जाएगा. लेकिन दो-पांच-दस दिन पहले आपने समय का उपयोग कैसे किया, कहां किया और कितना बर्बाद किया इसका हिसाब नहीं मिलेगा.

मोटामोटी हिसाब होगा. आज सुबह से रात तक इतने घंटे पढने में/ कॉलेज में/ दुकान संभालने में/ ऑफिस में इत्यादि में गए, बाकी कितना समय खाने में, कितना नहाने धोने में और कितना कसरत, योग-प्राणायाम करने में गया. लेकिन ऐसे मोटे हिसाबों से कुछ होना नहीं है. ऐसे तो हर महीने घर खर्च में एवरेज कितने रूपए खर्च हुए हैं इसकी आपको जानकारी है इसके बावजूद आप बारीक से बारीक बातों का हिसाब रखते हैं क्योंकि तभी आपको ध्यान में आएगा कि रोज रिक्शा का मिनिमम भाडा खर्च करके बस स्टेशन या रेलवे स्टेशन जाता हूं, इसके बदले यह छोटी दूरी चल कर तय करूं तो हर महीने मैं एक पुस्तक खरीद सकता हूं.

समय के बारे में बारीक से बारीक हिसाब रखने की आदत पडी होगी तभी ये महानुभाव जिस स्तर के काम कर रहे हैं वैसा हम कर सकेंगे. समय का हिसाब रखने के लिए प्लानर इत्यादि तो मिलते ही हैं लेकिन मेरे हिसाब से वे अधूरे होते हैं. समय का सही हिसाब रखना हो तो हर घंटे और प्रेफरेबली हर आधे घंटे का उल्लेख हो, ऐसे खानों वाली डायरी होनी चाहिए जो बाजार में नहीं मिलती. चौबीस घंटे के दिन को २४ या ४८ खानों में बांटने की बात है. गूगल सर्च करने से ऐसा तैयार टेम्पलेट मिल जाएगा. अन्यथा कंप्यूटर पर खुद तैयार की जा सकती है- एक्सेल शीट की मदद से या अन्य किसी तरीके से. इस कवायद आरंभ में ही करनी पडेगी, एक बार आदत पड गई तो बाद में स्टैंडर्ड प्लानरवाली छोटी डायरियों से भी काम चल सकता है. लेकिन इससे पहले २४ घंटे को २४/ ४८ खानों में बांट दे ऐसा चौखट बनाकर उसके एथ्री साइज के महीनों तक चलनेवाले प्रिंटआउट ले लेने चाहिए. बात में हर दिन प्रत्येक आधे घंटे के दौरान आपने क्या किया (या क्या क्या किया) इसकी जानकारी यह मानकर लिखनी चाहिए कि इसे कोई पढनेवाला नहीं है ताकि उसमें काट पीट करने का मन न हो. ऑफिस में बैठे बैठे वॉट्सएप पर कितनी माथापच्ची की या फेसबुक पर किसके साथ गालीगलौज की यह भी लिखना चाहिए. टीवी पर सर्फिंग करने में अखबार के पन्ने पलटने में, पडोसी के साथ पंचायत करने में, खाने में, `पीने में’ और हर गतिविधि में कितना समय बिताया, यह लिखना चाहिए. पढाई करने के लिए दोपहर २ से शाम ७ बजे तक लायब्रेरी में गए, इतना ही लिखकर हाथ ऊंचा नहीं करना चाहिए. हर आधे घंटे के खाने में प्रामाणिकता से विवरण लिखना चाहिए कि ३.३० से ४.०० वो मिल गई इसीलिए कैंटीन में कॉफी पीने ले गया या फिर इकोनॉमिक्स पढते पढते प्रेमचंद का उपन्यास हाथ लग गया तो चार प्रकरण पढ लिए.

समय के बारे में सतर्कता बरतनी हो तो पहले इस तरह से बारीक हिसाब रखना सीखना होगा. पैसे का हिसाब नहीं रखेंगे तो भी कुदरत आपको थप्पड मारकर उस बारे में आपके होश ठिकाने पर लाएगी- आपके पास पैसे कम पडेंगे तो तुरंत अक्ल आ जाएगी कि कहां पर गलत तरीके से पैसे बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन समय तो आपको हर दिन २४ घंटे का मिलता ही रहेगा. कल आपने चाहे जितना बर्बाद किया होगा लेकिन आनेवाले कल में नए २४ घंटे मिलनेवाले हैं. आपको लगेगा कि आपके पास समय ही समय है इसीलिए आप उसकी बर्बादी के प्रति सचेत नहीं रहते.

पैसे खर्च नहीं करने पर बचत होती है जिसे आप कभी भी उपयोग में ला सकते हैं, जिसका निवेश करके आप उसमें वृद्धि कर सकते हैं, आप उसे संकट के समय में सुरक्षा की दृष्टि से उपयोग करने के लिए संभाल कर रख सकते हैं.

समय ऐसा नहीं है. जो समय आप उपयोग में नहीं लाते या नहीं कर सकते, उसे आप बचा नहीं सकते, उसका संग्रह नहीं कर सकते. ३० वर्ष की उम्र में बचाया गया समय मुझे ७५ वर्ष की उम्र में उपयोग करने में काम आएगा ऐसी कोई व्यवस्था प्रकृति आपको नहीं करने देगी.

जो समय हर दिन आपके हाथ में आता है उसके चौबीस के चौबीस घंटों का उपयोग हमें एक ही दिन में कर देना है. बल्कि हर घंटे, हर मिनट, हर सेकंड- जैसे जैसे मिलते जाते हैं उसी वक्त उनका उपयोग करना होता है. पहली तारीख को मिले वेतन का उपयोग पांच या पंद्रह तारीख को किया तो चलेगा. समय के बारे में पांच-पंद्रह दिन तो क्या पांच – पंद्रह सेकंड का विलंब भी नहीं किया जा सकता. इसीलिए पहले से ही तय करके रखना चाहिए कि इस आनेवाले मिनट का उपयोग कैसे करना है. और वह मिनट गलत तरीके से खर्च न हो जाए, उसका उपयोग जिंदगी की टॉप प्रायोरिटी के कामों में हो इसकी आदत पडनी चाहिए उसके लिए पैसे की तरह समय का भी बारीक हिसाब रखना आना चाहिए. पहली तारीख, गुरुवार, पूर्णिमा या एकादशी के मुहूर्त का इंतजार करने के बजाय आज से ही हिसाब रखना शुरू करें. अभी से.

पान बनारसवाला

जिंदगी में समय को बहुत महत्व है ऐसा नहीं है, जिंदगी में समय का ही महत्व है.

– अज्ञात

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