पैशन से काम करने का अर्थ ही है मा फलेषु कदाचन

तडकभडक- सौरभ शाह

(`संदेश’, संस्कार पूर्ति, रविवार ३० जून २०१९)

आज यानी यह लेख जिस दिन लिखा जा रहा है, वह दिन आर.डी. बर्मन की ८०वीं जयंती का है. २७ जून १९३९ के दिन उनका जन्म हुआ था. पंचमदा को, उनके संगीत को एक ही शब्द में वर्णित करना हो तो आप किन शब्दों का प्रयोग करेंगे? पैशन. पैशनेट.

भगवद्गीता के कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन वाली उक्ति को कई बार दोहराया जाता है लेकिन हमारे दिमाग से उससे जुडी गलतफहमी दूर नहीं हुई है. फल की फ्रिक किए बिना दिल से काम करते रहने का नाम ही पैशन है. भगवान ने गीता में सबसे पहली जो शिक्षा दी है, वह है पैशनेट बनकर काम करने की शिक्षा. इस काम में पूर्णरूपेण मग्न हो जाएंगे, आस पास का सबकुछ भूलकर केवल इसी काम में एकाग्र हो जाएंगे तो कितना आनंद आएगा, यही हेतु होना चाहिए. इस आनंद के अलावा बाकी सारी बातें जाएं जहन्नुम में. केंद्र में आनंद है, काम करने का आनंद, नए नए काम और नए नए तरीकों से काम और नए नए लोगों- नई नई परिस्थितियों के साथ खुशी से, एड्जस्ट करके काम करने का आनंद. आर.डी बर्मन इसी तरह से काम करते थे. निरंतर सोचते रहते थे कि इस गीत में क्या नया करें. उनके साथ गाने-बजानेवाले कलाकारों को भी रोजाना उनके रिहर्सल रूम में या फिर रेकॉर्डिंग स्टूडियो पर जाते समय मन में ख्याल आता रहता था: आज क्या नया होनेवाला है.

हर कलाकार के लिए, रचनाकार के लिए हमारे मन में आदर होता है. हम उनके घोर प्रशंसक भी होते हैं. किंतु हर किसी की तासीर अलहदा होती है, फितरत भी अलहदा होती है. इसीलिए कभी भी दो महान रचनाकारों की तुलना करते समय किसी को भी नीचा दिखाने की चेष्टा नहीं की जाती. केवल समझाने के लिए ऐसी तुलना की जाती है.

आर.डी. बर्मन ने जो काम किया, जबरदस्त काम किया, वह सब पैसे की परवाह किए बिना किया (विधु विनोद चोपडा की `परिंदा’ के लिए तो पंचम ने अपने पैसे रेकॉर्डिंग की. ऐसे अनेक किस्से हैं जिसमें बैकग्राउंड म्युजिक के लिए प्रोड्यूसर के पास बजट नहीं रहने पर जो भी पैसा मिलता उसे लेकर, उसमें अपनी राशि जोडकर रेकॉर्डिंग ठीक से पूरी करते, बिना किसी अनावश्यक कॉस्ट कटिंग के या कॉम्प्रोमाइज के). पंचम हमेशा अपने साथियों के पक्ष में खडे रहते. रणजीत गजमेर (कांचा) उनके रिदमिस्ट थे. कांचा के स्लिप डिस्क के दर्द के समय छह महीने तक आर.डी. बर्मन ने उन्हें घर बैठे रोज की सिटिंग मनी, इतना ही नहीं बल्कि ओवर टाइम के पैसे भी भेजे थे. आर.डी. बर्मन के अन्य एक साथी होमी मुल्ला ने ये बात बताई है. होमी ही ये राशि कांचा के घर ले जाकर दिया करते 
थे. और याद रखिएगा कि ये राशि पंचमदा प्रोड्यूसरों के खर्च में शामिल नहीं करते थे. अपनी कमाई से ये सारी सेवा किया करते थे. ऐसे तो अनेक किस्से हैं उनके उदार स्वभाव के. टिपिकल फिल्मी पार्टियां वे कभी नहीं करते थे. ऐसा कोई उडाऊ खर्च वे नहीं करते थे. वर्षों तक उन्होंने फियाट का उपयोग किया. वो भी उसके पुराने मॉडल का, ओरिजिनल, जिसे प्यार से लोग `डुक्कर’ कहते थे, वह मॉडल. पार्टी वसंत पंचमी के दिन करते थे. बंगाल में सरस्वती पूजा का पावन अवसर. पंचमदा उस दिन फिल्म इंडस्ट्री के अपने मित्रों को घर भोजन पर बुलाते. प्योर शाकाहारी भोजन हुआ करता था. साथ ही बिल्डिंग में रहने वाले तमाम फ्लैट ओनर्स को सपरिवार न्यौता दिया करते थे. हर फ्लैट में न्यौता देने वे स्वयं जाते.

लक्ष्मीकांत ने (प्यारेलालजी के पार्टनर) जूहू पर `पारसमणि’ बंगला बनाया था. उस जमाने में. जूहू के दसवें रोड पर एक सिरे पर लक्ष्मीजी का बंगला और समय बीतने पर दूसरे छोर पर `प्रतीक्षा’ बंगला बना, महान बच्चनजी का. आर.डी. बर्मन भी इतना कमा सकते थे, पैसे बचाकर दो-चार बंगले ले सकते थे और `पारसमणि’ बंगले की जगह पर अभी रिडेवलप होकर जो भव्य बडा `पारसमणि’ अपार्टमेंट नामक इमारत खडी है, शायद ऐसी ही कोई विरासत पंचमदा अपने पीछे छोड गए होते. (अफकोर्स, मृत्यु के कुछ महीने पहले उन्होंने फ्लैट से बंगलो में शिफ्ट होने का विचार किया था और जूहूतारा रोड स्थित उस समय की यश चोपडा के ऑफिसवाले बंगले के पास की एक जगह भी उन्होंने सुरक्षित रखी थी.)

पंचमदा ने बंगला बनाने का ख्वाब देखने के बदले, केडिलेक या इम्पाला में घूमने के बदले सांताक्रूज के नॉर्थ एवेन्यू की `मेरीलैंड’ और `ऑडिना’ नामक इकारतों में (एक एक कर) रहना ही मुनासिब समझा. आज उनकी स्मृति उनके द्वारा बनाए गए किसी बंगले के कारण कायम नहीं है, बल्कि अपने के संगीत के कारण वे अमर हैं.
इसका कारण क्या है? पैशन. काम के प्रति लगाव. अपने प्रोफेशन के लिए जिंदगी के हर क्षण को न्यौछावर कर देने का नाम ही पैशन है. पैशन ने ही उन्हें ५४ वर्ष की छोटी आयु में भी भरपूर जिलाए रखा और निधन के २५ से अधिक वर्ष होने के बाद भी वे हमें याद हैं, उनका संगीत याद है. आज की तारीख में पुराने संगीतकारों में सबसे अधिक आर.डी. बर्मन के गीत रिमिक्स होते हैं. हमारे मरने के पचीस साल बाद हम लोगों को याद रहेंगे या नहीं, इसकी कसौटी करने के लिए बैरोमीटर अब मिल चुका है. जो भी काम हम करते हैं, क्या उसे पैशनेटली करते हैं? इस सवाल का जवाब यदि `हां’ है तो जरूर पंचमदा की तरह हमारा काम भी हमारे चले जाने के बाद याद रहेगा. विरासत में बंगले गाडी छोड जाना है या जीते जी पैशन से काम करना है? इसका फैसला हमें करना है.

पान बनारसवाला

आदमी को जरा सा कुरेदो, तो खजाना निकलता है;
संभाल कर रखा, एक जमाना निकलता है.

– बैजू जानी.

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