नौ सौ वर्ष के इस्लाम- अंग्रेजी शासन के बाद भी ८२ प्रतिशत भारत हिन्दू है

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – २४ जुलाई २०१८)

सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि हम पर आक्रमण करनेवाले जंगली और क्रूर थे. हमारी प्रथा, परंपरा दूसरों के साथ वाद-विवाद, शास्त्रार्थ करके उन्हें जीतने की रही है. आदि शंकराचार्य ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक यही किया. ब्रिटिश जब भारत आए तब हम मुगलों को लगभग हरा चुके थे. (लेकिन भारत के कम्युनिस्टों ने हमें उल्टा ही इतिहास सिखाया है.) मुगल ७०० साल तक हमारे साथ लड लड कर थक चुके थे. मराठों ने मुगलों पर विजय हासिल कर ली थी. उसी समय ब्रिटिश आए थे. मुगलों का आक्रमण फिजिकल था, ब्रिटिशों ने मानसिक आक्रमण शुरु किया. लेकिन मराठों ने ही केवल मुगलों से लडाई की थी ऐसा नहीं था. कर्नाटक के विजयनगर के राजाओं, आंध्र-असम और पंजाब के राजाओं ने मुगलों के विरुद्ध लडाई की थी. गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों की रीढ तोड दी थी. ब्रिटिशों ने आकर बाजीराव के साथ धोखाधडी की. उसके बाद १८५७ की क्रांति हुई. अंग्रेजों ने उसे विद्रोह कहा था, वह बगावत नहीं थी लेकिन वीर सावरकर के कहे अनुसार वह अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतंत्रता संग्राम था. और यह संग्राम राष्ट्रव्यापी था. तमिलनाडु वेल्लोद और कर्नाटक से लेकर सारे देश में लडाई छिडी थी, जिसका नेतृत्व झांसी की रानी ने किया था. दुर्भाग्य से यह संग्राम पर्याप्त तैयारियॉं होने से पहले ही शुरू हो गया था इसीलिए उसमें स्थायी जीत नहीं मिली लेकिन कुछ समय के लिए लाल किले पर भगवा पताका लहराई थी. उस समय दिल्ली में अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर का शासन था और इस राजा के मंत्री हिंदू थे. इस संक्षिप्त अवधि के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बादशाह ने जो सबसे पहला फरमान जारी किया था वह गौहत्या बंदी का था.

ब्रिटिशों ने तय किया था कि १८५७ जैसी घटना दोबारा न होने पाए इसीलिए दो काम करने पडेंगे. सबसे पहला तो यह कि इस घटना को किसानों का समर्थन हासिल था- उन लोगों ने इस अभियान को आर्थिक और शारीरिक शक्ति प्रदान की थी. इसीलिए कृषकों की कमर तोडनी चाहिए, उन्हें बर्बाद कर देना चाहिए. अंग्रेजों ने हर प्रदेश के अपराधियों को जमींदार के रूप में नियुक्त किया. उन पर एक ही जिम्मेदारी थी- जितना हो सके उतना धन चूसो, जो करना हो करो- उसमें से एक तय हिस्सा अंग्रेजों को देकर बाकी अपने पास रखकर ऐश करो. अंग्रेज इस आय से भारत का प्रशासन चलाते थे. जमींदारों को अंग्रेजों को खूब अधिकार दिए. यदि कोई किसान पर्याप्त धन या अनाज जमा नहीं करा सकता था तो जमींदार उस किसान की पत्नी के गहने जब्त कर सकता था. अगर उसके पास आभूषण भी नहीं बचते थे तो जमींदार किसान के भाई से वसूली कर सकता था. इस तरह से अंग्रेजों ने भारत के किसानों की समृद्धि को लूट लिया और १९४७ आते-आते अंग्रेजों की नीति के कारण अपने किसान बिलकुल कंगाल और बदहाल हो गए. बिटिशों ने भारत छोडा अपने अलग सिद्धांतों के कारण. उन्होंने तय किया था कि जिस दिन यहां की सेना उनके विरुद्ध हो जाएगी उस दिन वे यह देश छोड देंगे क्योंकि सेना अगर साथ नहीं होती तो भारत पर पकड बनाए रखना असंभव हो जाता और यह काम सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज – आईएनए ने किया. आईएनए के सैनिक पूना से जबलपुर तक पहुंच गए थे. ब्रिटिश इंडियन नेवी में भी बलवा हो गया था. ब्रिटिश लोग अमेरिका के साथ मिलकर दूसरा विश्व युद्द जीत गए थे. इस हिसाब से तो उन्हें भारत में शासन जारी रखना चाहिए था, लेकिन उन्होंने भारत छोडने का विचार किया क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि ब्रिटिश इंडियन आर्मी अब उनके कंट्रोल में नहीं रही है. इस दौरान उन्होंने देखा कि गांधीजी का आंदोलन शांति से और अहिंसक मिजाज से चल रहा है इसीलिए यदि गांधीजी के हाथ में सत्ता सौंप कर जाएंगे तो हमें शांति के साथ भारत से जाने दिया जाएगा लेकिन अगर देर हुई तो लोग हमें यहां से जाने नहीं देंगे, हमें यही के यहीं खत्म कर देंगे. जब १९५३ में क्लेमेंट एटली भारत आए थे तब उन्होंने यही बात कही थी. एटली १९४५ से १९५१ के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे. १९५३ में ब्रिटिश संसद में विरोधी दल के नेता थे. कलकत्ता में चीफ जस्टिस, जो कि गवर्नर भी थे, द्वारा दिए गए डिनर के दौरान क्लेमेंट एटली से पूछा गया था कि आपने भारत छोडने का निर्णय क्यों किया? आप तो वर्ल्ड वॉर टू भी जीत चुके हैं. हमारा भारत छोडो आंदोलन भी बिखर गया था. फिर आपने क्यों भारत छोडा? क्या गांधीजी के अहिंसा आंदोलन के कारण? उन्होंने आमरण अनशन की धमकी दी थी क्या इसीलिए? एटली ने कहा था कि नहीं, एकमात्र कारण यही था कि उन्हें रिपोर्ट मिली थी कि सुभाषचंद्र बोस के सैनिक ब्रिटिश इंडियन आर्मी में घुसपैठ कर ली थी और आर्मी किसी भी क्षण बलवा कर सकती थी. सुभाषचंद्र बोस प्लेन क्रैश में नहीं मरे थे. ताइवान की राजधानी ताईपेई में हुई विमान दुर्घटना में उनकी जान गई थी, ऐसा माना जाता है लेकिन जापानियों को हराकर अमेरिका ने ताइवान पर जब कब्जा किया उस समय अमेरिकियों के पास जो जानकारी दी गई वह जानकारी २०१३ में जस्टिस मुखर्जी की अगुवाई वाले कमिशन को सौंपी गई कि न तो ऐसा कोई विमान हादसा हुआ था, न ही कोई मृतदेह अस्पताल से मिला था.

आपको दूसरी बात जोरशोर से यह कहनी है कि इस देश के हिंदुओं ने कभी भी गुलामी को स्वीकार नहीं किया, हमारी जनता ने अपना धर्म बदलना स्वीकार नहीं किया. एक समय था जब ईरान में जोरोस्ट्रियन्स (पारसियों) का शतप्रतिशत शासन था. इस्लाम ने ईरान पर आक्रमण करके पंद्रह साल में ईरान का इस्लामीकरण कर दिया. मेसोपोटेमिया और बेबीलोन जो अब ईराक के रूप में जाने जाते हैं, उसकी अपनी संस्कृति थी और उस पर इस्लाम ने आक्रमण करके – अपने खास तरीके से (यानी हिंसा और खूनखराबे से) सत्रह (१७) साल में उसका पूरी तरह से इस्लामीकरण कर दिया. यूरोप को ५० वर्ष में इसाई ताकतों ने पूरी तरह से क्रिश्चियन बना दिया. लेकिन भारत ७०० वर्ष के इस्लामी शासन और २०० वर्ष के ब्रिटिश शासन के बाद भी ८२ प्रतिशत हिंदू है. इसका अर्थ क्या हुआ? हमने लगातार आक्रमणकारियों से मुकाबला किया है. ब्रिटिशों के विरुद्ध भी भारत के हर प्रदेश ने संघर्ष किया है. लेकिन हमें पढाया जाता है कि हमने ब्रिटिशों की गुलामी को स्वीकार कर लिया था. मैकाले ने कहा था कि भारत के लोगों का ब्रेन वॉश करके उन्हें जीता जा सकता है- हम भारत में ब्राउन इंग्लिशमैन तैयार करेंगे, जो अपने विचारों से ब्रिटिश होंगे, उनकी फूड हैबिट्स ब्रिटिश होंगी, उनका मैनरिज्म ब्रिटिश होगा.

यह परिस्थिति १९४७ में अंग्रेजों के जाने के बाद बदलनी चाहिए थी लेकिन दुर्भाग्य से १९४८ में महात्मा गांधी की हत्या हो गई, जो एक सच्चे देशभक्त हिंदू थे. सरदार पटेल शारीरिक बीमारी के कारण और मन से टूट चुके थे इसीलिए अधिक जीवित नहीं रह सके. सुभाषचंद्र बोस को रूस में मार दिया गया और जवाहरलाल नेहरू इस देश पर एकछत्र शासन करने लगे.

अन्य बातें कल.

 

आज का विचार

आजकल लोग वैकेशन पर जाने के लिए ऐसी जगह पसंद करते हैं जहां का वातावरण खुशनुमा हो या न हो, पर जहां नेटवर्क अच्छा आता हो!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

 

एक मिनट!

बका: ये पढा? २०३७ तक पानी की तंगी बढने वाली है.

पका: लगता है कि बुढापा बीयर पीकर ही गुजारना पडेगा!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here