मोदी को मीडिया की नजरों से देखना बंद कर अपने विवेक के अनुसार आंकें

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, शनिवार, २५ मई २०१९)

२६ मई २०१४ को नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में जब शपथ लिया, तब से आज तक उनकी छवि खराब करने के लिए मीडिया दिन रात एक कर रहा है. कल (२४ मई को) टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने विशाल अंक के हर पन्ने पर इलेक्शन एनैलिसिस के नाम पर सेकुलर गैंग के सदस्यों से मोदी की छवि खराब करने का प्रयास करनेवाले लेख प्रकाशित किए हैं. इंडियन एक्सप्रेस भी इमें पीछे नहीं है. मोदी को राक्षस के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया है. अंग्रेजी अखबार जैसे नचाते हैं उस तरह से नाचने में आनंद मनाने वाले भारतीय भाषाओं के कई अखबारों के संपादक भी इस तरह से मोदी को सलाह देने बैठे हैं मानो वे मोदी से भी ज्यादा अच्छे हैं: इतनी प्रचंड जीत खतरनाक है, आप डिक्टेटर बन जाएंगे, मजबूत लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना जरूरी है. इत्यादि.

इस तरह से लिखनेवाले लोग झूठे हैं. लोकतंत्र में सभी को साथ लेकर चलने की भावना रखनी ही चाहिए, तो ही उसे लोकतंत्र कहा जाएगा, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि निर्णय लेने का काम सभी को सौंप देना चाहिए. आपको फैसले करने के लिए ही तो सत्ता सौंपी गई है. अब आपको अपनी सूझबूझ, अपने अनुभव और अपनी दूरदर्शिता के अनुसार निर्णय लेने चाहिए, न कि आपको जिन लोगों ने चुनकर दिया है, उनसे पूछ पूछकर.

अखबार के संपादक और चश्मा पहने राजनीतिक विश्लेषक अक्सर मोदी को सलाह देते रहते हैं कि दलित इस बार नाराज हैं, आपको उनके लिए ये करना चाहिए, किसानों की नाराजगी दूर करनी ही चाहिए, मध्यम वर्ग अब आर्थिक उन्नति चाहता है- एयरकंडीशन्ड केबिनों में बैठकर ग्रासरूट की समस्याओं के बारे में मनगढंत बातें लिखनेवाले बेवकूफों की दुनिया के किसी भी देश के मीडिया में कमी नहीं है, हमारे यहां भी नहीं है. जो देश चलाता है, उस व्यक्ति में अखबार चलानेवालों से अधिक समझदारी होती है. लेकिन ये बात अखबार चलानेवाले भूल जाते हैं. दिल्ली में लिए जा रहे निर्णय संपादकीय लेख पढकर नहीं लिए जाते. संपादकों के साथ देश की समस्या जानने के लिए जितने सोर्स होते हैं, उससे हजार गुना ज्यादा सोर्स और वह भी सबसे विश्वसनीय सोर्स, प्रधान मंत्री के पास होते हैं, उनकी सरकार के पास होते हैं. मोदी ऐसे सोर्स से निरंतर मिलनेवाली जानकारी और उसकी सच्चाई जांचकर निर्णयों को अमल में लाते हैं और सबसे महत्वपूर्ण ये है कि इस क्रियान्वयन की प्रक्रिया में करप्शन शब्द खत्म हो जाता है (या तो पहले की तुलना में मिनिमम हो जाता है) ऐसी व्यवस्था लगाना मोदी को आता है, क्योंकि उनकी नीयत साफ है.

मोदी कैसे हैं, क्या करते हैं और उनके बारे में अन्य लोग क्या सोचते हैं इसका ज्ञान कैसे होता है? आप मोदी को पर्सनली तो नहीं जानते. मोदी के बारे में आपके मन में पडी छाप मीडिया द्वारा निर्मित है. मीडिया कभी मोदी की दो प्रशंसा करेगा तो बाद में उनके बारे में चार ऐसी बातें करेगा जो आपके मन में उनके बारे में शंका पैदा करेगा. आप मोदी की कार्यक्षमता, उनके भविष्य को लेकर सवाल करने लग जाएंगे. आप पूछेंगे कि: लेकिन पहले के कांग्रेसी प्रधान मंत्रियों के बारे में तो मीडिया ने कभी संदेह व्यक्त नहीं किया, मीडिया हमेशा सरकार के खिलाफ ही होता है, ऐसा नहीं होता, जहां पर अच्छा है वहां मीडिया सराहना करता है, उन सभी प्रधान मंत्रियों ने जो अच्छे काम किए हैं उसके बारे में इसी मीडिया ने जनता तक जानकारी पहुंचाई है, मोदी जो गलत करते हैं, उसकी आलोचना करने का अधिकार क्या मीडिया को नहीं है?

मोदी कुछ भी `गलत’ नहीं करते, `गलत’ करने वाले प्रधान मंत्री मीडिया को पिल्ले की तरह गोद में खिलाते थे, बिस्कुट खिलाते थे, उनके मालिकों के दो नंबरी काम करनेवाले संपादकों को ब्रेकफास्ट पर बुला बुला कर उनकी `सलाह’ लेते और उनके संपादकीय लेखों में दी जा रही सलाहों द्वारा ही वे इस देश को चला रहे हैं, ऐसी गलत छाप संपादकों के मन में पैदा करते थे और ऐसे संपादक प्रधानमंत्री निवास से बाहर निकलकर बयान देते थे: `मेरी नौकरी इंडिया में दूसरे नंबर की सबसे इम्पॉर्टेंट नौकरी है. पहले नंबर पर पीएम की नौकरी है.’

मोदी के आते ही ऐसे मीडिया को उनकी औकात दिखा दी गई. उनकी हैसियत के अनुसार उनसे बर्ताव किया गया है. यह काम उन्होंने पीएम बनने के बाद नहं किया है, सीएम बनने के बाद तुरंत ही शुरू कर दिया था. २००१-२००२ के दौरान मीडिया इस पर खफा है. यही गुस्सा मीडिया बार बार मोदी के बारे में हमारे मन मे रही छाप को खराब करता रहता है. हम सोचने लगते हैं कि सभी अखबार वाले जब मोदी के बारे में या मोदी की नीतियों के बारे में या मोदी के लिए गए निर्णयों और उन निर्णयों को लागू करने के बारे में आलोचना करते हैं तो कुछ न कुछ तो सत्य जरूर होगा ही ना? अखबार वाले, मीडिया आपके इसी भोलेपन का लाभ लेते हैं. वे आपको आसानी से बेवकूफ बनाते हैं. आपकी परिकल्पना को खंडित करने में ये मीडिया के उस्ताद प्रचुर अनुभव रखते हैं.

मोदी ये सब समझते हैं. लेकिन मीडिया की ब्लैकमेलिंग के जाल में नहीं फंसते. वे मीडिया को महत्व नहीं देते. बिस्किट के टुकडे डालना तो एक तरफ रहा, लगातार भौकनेवाली मीडिया को वे काटने दौडते हैं, चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने प्रिंट मीडिया को २० तथा टीवी चैनलों को १० इंटरव्यू दिए. आपको समय मिले तो अध्ययन कीजिएगा. जब भी इंटरव्यूअर ने उन्हें भौंक कर डराने की कोशिश की है तब तब उन्होंने बिना डरे सामना किया, कइयों को तो ऐसे काटा कि इंटरव्यू पूरा करके १४ इंजेक्शन का कोर्स शुरू करने के लिए अस्पताल दौडना पडा.

मोदी जिस तरह से मीडिया को गलत महत्व नहीं देते हैं, वैसा करने के लिए आपमें प्रामाणिकता होनी चाहिए, निष्ठा होनी चाहिए. कांग्रेसियों की तरह मीडिया को अपना दलाल बनाने के बजाय मोदी जनता के साथ सीधे संपर्क साधते हैं, जनता का काम करके सरकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचे ऐसी व्यवस्था करते हैं. तत्पश्चात आता है जनता के साथ सीधा संवाद- मन की बात और वीडियो कॉन्फरेंसिंग जैसे कार्यक्रमों द्वारा, सोशल मीडिया द्वारा. मादी को देखकर (या मोदी की सूचना से) उनकी कैबिनेट की टीम तथा सरकार के विभिन्न विभाग सोशल मीडिया में खूब सक्रिय हो गए हैं. इस कारण से मेन स्ट्रीम मीडिया को अपना महत्व घट गया है ऐसा लगता है और यह फ्रस्ट्रेशन मोदी पर अक्सर हमले करके वे बाहर निकालते हैं. याद है, आज से दस-बारह या पंद्रह साल पहले अभिताभ बच्चन पर मीडिया खूब प्रहार करता था तब बच्चनजी ने ब्लॉग का सहारा लिया. रोज लिखते थे. रात को जागकर लिखते. मीडिया द्वारा फैलाई जा रही गलतफहमियों का मुंहतोड जवाब देते. एक बार तो टाइम्स ग्रुप के मुंबई मिरर नामक टैब्लॉइड द्वारा छापे गए उनके इंटरव्यू में कई सारी बदमाशियां की गई थी उसका विस्तार से प्रमाणों के साथ उन्होंने ब्लॉग पर उल्लेख किया था. अब मीडिया ने बच्चनजी को टोकना बंद कर दिया है.

मोदी के लिए भी ऐसा ही होगा. लेकिन तब तक हमें मेन स्ट्रीम मीडिया की बदमाशी को पहचानना होगा, मोदी के बारे में विश्वास को अटूट रखना होगा. पांच पांच साल तक दिन रात मोदी को बदनाम करने के मीडिया के भरपूर प्रयासों के बावजूद मोदी २०१४ से भी दस प्रतिशत अधिक सीटें जीते हैं, इसका क्या मतलब है? इस देश की जनता मीडिया पर नहीं मोदी पर भरोसा करती है. और यही बात मीडिया को खटकती है. अगले पांच वर्षों के दौरान मीडिया का दर्द भयानक रूप धारण करेगा, हमारा पर्सेप्शन फिर खंडित हो जाएगा, २०२४ में हम फिर कहने लगेंगे कि इस बार तो मोदी गए ही समझो और तब मोदी २०१९ से भी दस प्रतिशत अधिक सीटें जीतकर सबकी बोलती बंद कर देंगे. २०२४ में भाजपा को ३०३+३० यानी ३३३ सीटें मिलेंगी.

आज का विचार

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी एक ग्रेट मैन और लीडर हैं. भारतीय जनता भाग्यशाली है कि उन्हें मोदी मिले हैं.
– डोनाल्ड ट्रम्प (अमेरिका के राष्ट्रपति)

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