“दिल्ली की जामा मस्जिद तोड दो”

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – २६ नवंबर २०१८)

कौन क्या बोल रहा है यह बात छोड दीजिए, कौन क्या कर रहा है इस पर ध्यान दीजिए, यह कह कह कर थक चुका हूं, लेकिन न तो मीडियावाले सुधरे, न ही मीडिया में छप रही या दिखाई जा रही हर बात को पत्थर की लकीर माननेवाले हम जैसे पाठक या टीवी दर्शक सुधरे. निजी जीवन में भी किसने मेरे बारे में क्या कहा उससे मुझे कोई लेनादेना नहीं. किसी ने मेरे प्रति कुछ बुरा किया. ठीक है. किसी ने बारे में अच्छा कहा. ठीक है. मेरे लिए महत्वपूर्ण ये है कि उसने मेरे लिए क्या कहा. जो मेरे बारे में अच्छा अच्छा बोलते हैं, लेकिन जिन्होंने मेरे लिए कभी खराब काम किया है उसकी मुझे परवाह नहीं है और जिसने मेरे लिए कुछ अच्छा किया है वह यदि मेरे बारे में चाहे किसी भी कारणवश खराब बोल रहा है तो मेरे मन में उसके प्रति लगाव का भाव एक प्रतिशत भी कम नहीं होता. ये तो हो गई निजी जिंदगी की बात जो हर किसी पर लागू होती है.

निजी जीवन को एक ओर रखते हैं. जो बातें हमारे सामाजिक जीवन को स्पर्श करती हैं उसमें भी यही सिद्धांत लागू होता है. जैसे कि आपके बारे में क्या बोला जा रहा है यह बात आप तक पहुंचानेवाला व्यक्ति जाने अनजाने (मोटे तौर पर अनजाने में ही) उन शब्दों को गलत तरीके से कोट कर रहा होता है ऐसा संभव है, संदर्भों को उलझा कर वे शब्द आप तक पहुंचाते हैं ऐसा हो सकता है. उसी तरह से सामाजिक जीवन पर मीडिया में छप रहे/ कहे जा रहे शब्द भी असर करते हैं. मीडियावाले जाने – अनजाने (मोटे तौर पर जानबूझकर) आप तक पहुंच रहे शब्दों को विकृत कर देते हैं. ऐसा एक बार नहीं हजारों बार होता देखा है. वर्षों पहले मैं भी अपने व्याख्यानों से मीडिया द्वारा संदर्भ के बिना उद्धृत किए गए शब्दों के कारण मुसीबत में पड चुका हूं. मेरे आस-पास- निकट के अनेक सेलिब्रिटीज को मैने इसका शिकार होते देखा है, कभी कभी बचा भी लिया है.

मीडिया पहले तो अपने निहित स्वार्थों के अनुसार सेलिब्रिटीज की छवि को धूमिल कर देता है. ऐसा करने के लिए वे अपने मुंह से निकल रही उल्टी को `सूत्रों के अनुसार’ शब्दों के प्रयोग में ढंक कर हम तक पहुंचाते हैं. उसके बाद मीडिया उस सेलिब्रिटी के सार्वजनिक भाषण में कहे गए शब्दों या पर्सनल इंटरव्यू के दौरान कहे गए शब्दों (तो कभी स्टिंग ऑपरेशन की बदमाशी से इल्लीगल रेकॉर्ड किए गए शब्दों को) को बिना संदर्भ के तोड मरोड कर मिसकोट करते हैं.

मीडिया की ऐसी नीच हरकतों के बारे में अमेरिका या ब्रिटेन में खूब प्रचलित हुआ रोचक किस्सा याद आ रहा है. आपने भी पढा होगा. नामदार पोप जब पहली बार अमेरिका के दौरे पर गए तब उनके सलाहकारों ने उन्हें चेताया था कि अमेरिकी मीडिया बहुत शातिर है, आप जवाब देते समय सावधानी बरतिएगा. पोप का विमान जैसे ही न्यूयॉर्क की धरती पर उतरा कि तुरंत ही न्यूज चैनल वालों ने पोप को घेर लिया और सवालों की झडी लगा दी. एक टीवीवाले ने पोप के मुंह में माइक का डंडा घुसाकर पूछा,`न्यूयॉर्क के हर्लेम इलाके में धंधा करनेवाली वेश्याओं की हालत अत्यंत दयनीय है. क्या आप उनसे मुलाकात करके उन्हें स्थिति से उबारेंगे?’

पोप ने सोचा कि अब तो फंस गए. अगर ना कहते हैं तो अगले दिन अखबारों में हेडलाइन होगी कि पोप में दया – करूणा का कोई अंश नहीं है और यदि हां कहेंगे तो आठ कॉलम में लीड बनेगी कि: नामदार पोप वेश्याओं की बस्ती में जाएंगे.

क्या करें? पोप ने रास्ता निकाला. उस प्रत्रकार को प्रतिप्रश्न किया: क्या न्यूयॉक जैसे प्रगतिशील शहर में अब भी वेश्याएं हैं?

पोप अपने जवाब पर खुश होकर सारा दिन बिजी कार्यक्रमों को निपटाकर सो गए. अगले दिन सुबह सभी अखबारों में पहले पन्ने पर फोटो के साथ बडे शीर्षक थे: न्यूयॉर्क में कदम रखते ही पोप ने पूछा कि क्या यहां वेश्याओं की बस्ती है?

मीडिया के बडे हिस्से के मेरे जात भाइयों का (असल में उन्हें कमजात भाई कहना चाहिए) यही धंधा है. रोज रोज के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं. अगर यही काम करने बैठूं तो दूसरा कोई भी विषय मैं हाथ में नहीं ले सकूंगा, लेकिन यह मामला इस हद तक बिगड चुका है कि सुलगती समस्याओं को बारंबार आपके ध्यान में लाना पडता है.

भाजपा के यूपी से चुने गए लोकसभा सांसद साक्षी महाराज साधु हैं इसीलिए मीडिया को उनके साथ छेडछाड करने में मजा आता है. मीडिया और खासकर राजनीतिक टिप्पणियां लिखकर अपना गुजारा चलाने वाले निठल्ले लोगों का मेन टार्गेट हिंन्दूवादी ही हाते हैं, क्योंकि वे लोग खुद वामपंथी या मुस्लिमवादी सेकुलर या फिर मोदीद्वेषी या एंटी बीजेपी होंगे.

साक्षी महाराज ने दो दिन पहले कहा था कि दिल्ली की जामा मस्जिद को तोडेंगे तो उसकी सीढियों के नीचे से हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के अवशेष मिल जाएंगे.

अब यह बात जगजाहिर है कि भारत में सैकडों मस्जिदें ऐसी हैं कि जहां पर पहले मंदिर थे और मुगल राजाओं के जुल्मी शासन के दौरान मंदिरों को तोडकर उस भूमि पर मस्जिदें बन गईं. इस बारे में वॉइस ऑफ इंडिया द्वारा मेहनत से किए गए रिसर्च पर आधारित पुस्तकें दशकों से बाजार में उपलब्ध हैं. मुझ जैसे कई अध्ययनशील लोगों की लाइब्रेरी में ऐसी पुस्तकें वर्षों से सुशोभित हैं. इन पुस्तकों में कौन सी मस्जिद कब बनी और उनके बनने से पहले वहां कौन सा मंदिर था, किसने तोडा इत्यादि सारी सूची पुरातत्वशास्त्र के आधार पर तैयार की गई है. कई पुस्तकें तो सचित्र हैं.

साक्षी महाराज ने कुछ नया नहीं कहा है. उन्होंने तो सिर्फ इतना ही कहा था: `मैं राजनीति में जब आया तो मथुरा में मेरा पहला स्टेटमेंट था…अयोध्या, मथुरा, काशी को छोडो… दिल्ली की जामा मस्जिद तोडो, अगर सीढियों में मूर्तियां न मिलें तो मुझे फांसी पर लटका देना…आज भी मैं (इस बात पर) कायम हूं…’

साक्षी महाराज ने इसमें गलत क्या कहा? इसमें सांप्रदायिकता की बात कहां से आई? कौन कहता है कि उन्होंने भडकानेवाला वक्तव्य दिया है. मीडिया कहता है. अंग्रेजी मीडिया ने इसे हाथों हाथ लिया. हेडलाइन बनी: `रेज़ डेल्हीज़’ जामा मस्जिद: साक्षी महाराज’, `डिमोलिश जामा मस्जिद सेज़ बीजेपी एम.पी.’ और यह देखकर भारतीय भाषाओं के पत्रकार भी बेवकूफी या गैरजिम्मेदाराना या बदमाशी भरे शीर्षक बनाते हैं: `साक्षी महाराज ने दिल्ली की जामा मस्जिद तोड गिराने के लिए कहा.’

अरे दीवानों, थोडी तो शर्म करो. आदमी क्या बोल रहा है, आप पूरा बयान या भाषण सुने बिना ही छाप देते हैं जिससे बीजेपी के समर्थकों तथा हिंदूवादियों के मस्तिष्क में एक ग्रज पैदा हो जाता है, ऐसा भाव पैदा होता है जो पैदा नहीं होना चाहिए था.

ऐसा तो हर दिन चलता रहेगा. जैसे जैसे २०१९ का चुनाव करीब आता जाएगा वैसे वैसे ऐसे कांड बढेंगे- मीडिया में तथा सोशल मीडिया में. हम जिनका आदर करते हैं, जिनकी विचारधारा, जिनके कार्यों का आदर करते हैं उनके नाम से मीडिया में या सोशल मीडिया में कुछ अगडम बगडम पढते, सुनते या देखते हैं तब अगर हमारे मन में सवाल पैदा होता है कि क्या ये सच होगा? तो तुरंत आपको खुद को जवाब देना चाहिए: नहीं.

आज का विचार!

ठंडी में एक समस्या होती है: छांव में बैठें तो ठंडी लगती है और धूप में बैठें तो फोन का डिस्प्ले नहीं दिखता! आदमी जाय तो कहां जाए?

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

इंटरव्यू लेनेवाला: आपकी रिस्क लेने की क्षमता कैसी है‍?

बका: सर, भगवान से अगले जन्म में भी यही वाइफ मांगी है.

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