लाचारी, अफसोस और गिल्ट का त्रिवेणी संगम

संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, रविवार – २५ नवंबर २०१८)

`क्या बात है सर, आज आप अकेले पी रहे हैं?’

`बातें करने के लिए इतना तरस रहा था कि सोचा थोडी पी कर अपने आप से कुछ कहूंगा… मणि, मैं कुछ चिडचिडा सा हो गया हूं. कभी गुस्से में भलाबुरा कह डाला करूं तो बुरा मत मानना…

`मेरी क्या मजाल, सर’

`जिंदगी भी एक नशा है, दोस्त…जब चढता है तो पूछो मत क्या आलम रहता है. लेकिन जब उतरता है…’

राजू गाइड और उसके पर्सनल सेक्रेटरी मणि के बीच हुआ यह यादगार संवाद जिन्होंने `गाइड’ के गीतों से पहले एल.पी. रेकॉर्ड पर सुना होगा उन्हें यह याद होगा और यह भी याद होगा कि इस संवाद के दौरान गिलास में शराब डालने और फिर सोडा डालने की आवाज भी स्पष्ट सुनाई देती है.

राजू और रोजी के बीच अभी तक जो भी गुलाबी-गुलाबी था वह सब ब्लैक एंड व्हाइट हो चुका है. रोजी की कमाई पर जुए में पैसे उडानेवाला राजू रोजी के लिए आई मार्को की किताब को छिपाता है लेकिन वह रोजी के हस्ताक्षर की नकल भी कर चुका है जो गलत इरादे से तो नहीं किया है लेकिन वह कानूनन अपराध है. रोजी को अभी तक सिर्फ वह बुकवाली ही बात पता थी, हस्ताक्षर वाली बात अभी तक उसके कानों तक नहीं आई थी. राजू और रोजी के बीच दूरी बढती जा रही है. राजू रोजी को मनाने की खूब कोशिश करता है अंत में हारकर वह अपने सेक्रेटरी के साथ पीने बैठ जाता है. ये वही सेक्रेटरी है जिसने अनजाने में, इनोसेंटरी मार्को की किताब देने की बात रोजी से कही थी जिसके कारण रोजी राजू से रूठ गर्ई थी और राजू ने यह गोपनीय बाद रोजी को बता देने के लिए मणि को डांटा था. अब इस मणि को राजू अपना और उसका पेग बनाने के लिए कह रहा है, माफी भी मांग रहा है. राजू जीवन में हताश हो गया है. दिन तो किसी तरह से काम के दौड भाग में खत्म हो जाता है लेकिन शाम के बाद आनेवाली उदास रात में उसके पास कोई नहीं है, उसके साथ कोई नहीं है.

दिन ढल जाये हाय, रात ना जाय

तू तो न आए तेरी, याद सताये,

प्यार में जिनके, सब जग छोड़ा, और हुए बदनाम

उनके ही हाथों, हाल हुआ ये, बैठे हैं दिल को थाम

अपने कभी थे, अब हैं पराये

दिन ढल जाये …

दिल के मेरे पास हो इतने, फिर भी कितनी दूर

तुम मुझ से, मैं दिल से परेशाँ, दोनों हैं मजबूर

ऐसे में किसको, कौन मनाये

दिन ढल जाये …

लाचारी, अफसोस और गिल्ट का त्रिवेणी संगम लिए शैलेंद्र के ये बोल आपके दिल में उतर जाते हैं, दिल के एकाकीपन से उठनेवाली भाप के बादलों से होने वाली वर्षा आंख में आंसुओं के रूप में बाहर निकलते हैं. शराब पीते हों या न पीते हों- ये गीत सुनकर/ देखकर आपकी आंखें नम हुए बिना नहीं रहेंगी.

चैलेंज.

इस गीत की धुन, उसके शब्द ये नहीं थे. एस.डी. बर्मन ने अलग धुन और अलग शब्दों वाला गीत रेकॉर्ड कर लिया था लेकिन देव आनंद-विजय आनंद ने जब सुना तब लगा कि उन्होंने यह धुन ओके करके गलती की है. लेकिन शेर से कौन पंगा ले. सचिनदा को फोन करने का साहस तो किया लेकिन कहें क्या. कहा कि गीत बहुत अच्छा बना है, लेकिन उसमें वो भाव नहीं आ रहा है जो सिचुएशन मांग रही है.

दोनों भाई गर्म मिजाज के सचिनदा के पास प्रत्यक्ष जाकर फिर से सिचुएशन समझाते हैं. जो कुछ भी हुआ है उसमें सिर्फ रोजी या राजू की गलती नहीं है. राजू ने रोजी को धोखा देने के लिए बल्कि मार्को फिर से रोजी के जीवन में प्रवेश करने की कोशिश करेगा, ऐसी असुरक्षा से किताब छिपाई थी. रोजी ने राजू को जुआ खेलने के लिए ज्यादा पैसे देते समय इतने सारे पैसे कहां खर्च हो रहे हैं, यह इस भाव से नहीं पूछा था कि ये उसकी अकेले की कमाई है, और राजू तो मेरे पैसों पर मौज कर रहा है. बल्कि ऐसे भाव से कहा था कि जरा संभल कर खर्च करेंगे तो भविष्य में जब मैं स्टेज शो करने की उम्र को पार कर चुकी होऊंगी तब पैसे बचाए होंगे तो काम आएंगे- इस भावना से डांटने के सुर में कहा था.

सचिनदा ने कहा: ठीक है. दोनों भाई लौट गए. कुछ ही दिन बाद अचानक सचिनदा को फोन आया. नई धुन तैयार है. सुनाई. लेकिन शब्द? शैलेंद्र को फोन करके बुलाया गया. धुन सुनकर शैलेंद्र ने पंद्रह मिनट में ही एकांत में बैठकर गीत की रचना कर डाली. निर्देशक की सूझबूझ, निर्माता के दोबारा खर्च करने की तैयारी, संगीतकार की खेलभावना और गीतकार की तत्परता का परिणाम है `दिन ढल जाए’ जैसे अमर गीत. मोहम्मद रफी ने गाने में पूरी जान डाल दी है.`तू तो न आए तेरी या…द सताए’ में याद शब्द के दो अक्षरों के बीच की जगह को लंबा करके इस दर्द को बडी शिद्दत से रफी साहब ने उसमें भरा है. `दिल के मेरे पास हो इतने’ वाले अंतरे में वहीदाजी सीढियां उतरकर नीचे आ रही हैं, आधे पर आकर ठहर जाती हैं और सीढियों की दूसरी तरफ देवसाहब हैं. दोनों फिर से मिलने के लिए आतुर हैं लेकिन मिलते नहीं, मिल सकते नहीं, दोनों के मन में इतना सारा है कि जिसे छोडकर फिर से मिलना किसी के लिए संभव नहीं है. गलतफहमियां और अहम के बीच जब टकराव होता है तब पहली बली संबंधों की चढती है. इस शॉट से पहले बरसात वाले अंतरे में मणि अधूरा गिलास छोडकर, देवसाहब को उनकी स्थिति में वैसे ही छोडकर चला जाता है. राजू फिर से अकेला पड गया है. राजी आती है लेकिन सारी सीढियां नहीं उतरती. फिर से ऊपर चली जाती है. दोनों के जीवन में, इस फिल्म में अब कोई आंधी आनेवाली है ऐसा संकेत यह गीत खत्म होने के बाद के दृश्य में मिल जाता है. राजू रोजी का साथ छोड देता है, उसका संग छोड देता है. गाइड के रूप में अपने असली पहनावे में आकर रोजी को अकेले ही शो के लिए थिएटर पर भेज देता है. और मामा के घर गई मां के पत्र लिखकर सूचित कर देता है: मां, तुम्हारा राजू लौट आया है, मगर तुम्हारे बगैर घर घर नहीं लगता. रात रात पडा रहता हूं, नींद नहीं आती, न कोई खिलानेवाला, न कहानी सुनाकर सुलानेवाला…

यह पत्र पढकर तुरंत मामा कहता है: `चलो, बहन सामान बांधो, शहर जाएंगे…’

रोजी के लिए के लिए जिसने सबकुछ छोडकर थक-हार चुका राजू मां के साथ पुनर्मिलन की राह देखते हुए अपने पुराने घर में रोजी की तस्वीरों को सहला रहा है कि तभी दरवाजे पर दस्तक होती है, रोजी मनाने आई होगी? मां वापस आई होगी?

नहीं. राजू का पुराना दोस्त गिरधारी है. पुलिस अफसर बन गया है. वह दोस्त के नाते नहीं, बल्कि कर्तव्यदक्ष सरकारी नौकर के रूप में आया है. इस गिरधारी का रोल कृष्ण धवन ने किया है. ये कृष्ण धवन कौन हैं? शैलेंद्र द्वारा निर्मित `तीसरी कसम’ में `चलत मुसाफिर’ गीत सुना है आपने? राज कपूर उस गीत में सिर्फ डफली बजाया करते हैं. मन्ना डे की आवाज में वह गीत फिल्म में कौन गाता है? `गाइड’ का पुलिसवाला गिरधारी उर्फ कृष्ण धवन, उसके बेटे को भी आपने टीवी सीरियल्स में तथा फिल्मों में देखा है. कौन? याद कीजिए. अगले रविवार को `गाइड’ के बाकी गीतों को गाकर पूरा करेंगे.

आज का विचार

मोदी तो सिर्फ प्रेरणा देते हैं हमें- भाजपा को वोट देने के लिए.

ये राहुल तो हमें मजबूर कर रहा है- भाजपा को वोट देने के लिए.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

संडे ह्यूमर

बका: बाजार में जा रहा हूं, कुछ लाना है?

बकी: केरोसीन, स्टोव की बाती, लालटेन, साइकिल, मिट्टी के मटके…

बका: पागल हो गई है क्या. अब इन सबकी क्या जरूरत है?

बकी: सुना है कि कॉन्ग्रेस आ रही है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here