गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, गुरुवार – १० जनवरी २०१९)
ये उन दिनों की बात है जब राहुल देव बर्मन का पहला वैवाहिक जीवन खंडित हो रहा था. रीटा पटेल के साथ किस तरह से उनका विवाह हुआ इस बारे में पहले की किसी पंचम सिरीज में विस्तार से लिख चुका हूं. पंचम के खार के `जेट’ बंगले में माता-पिता के साथ रहते थे. वैवाहिक जीवन में कडवाहट शुरू हो गई. मां के साथ पत्नी का झगडा होता था. तब पंचम परिवार से दूर किंतु पास के ही इलाके में रहने चले गए. वे होटल सीजर्स पैलेस में वर्षों तक रहे. उनका म्यूजिक रूम, खाना-पीना, सोना सब कुछ वहीं होता था. खार में लिंकिंग रोड से एस.वी. रोड जाते समय ठीक बीच में मधु पार्क नामक गोल गार्डन है. लिंकिंग रोड से आप प्रवेश करते हैं तो उस गली में पहली ही इमारत होटल सीजर्स पैलेस की है. हम उस समय खार की प्यूपिल्स ऑन स्कूल में पढते थे. सीजर्स पैलेस के रेस्टोरेंट में कैबरे डांस होता था, इतना पता है. बाद में इस होटल में गलत कारणों से छापा पडा था. इसके एक मालिक, बिल्डर ढोलकिया बंधुओं में से एक की नरीमन पॉइंट में दिन दहाडे उनकी गाडी में तुलसियानी चैंबर्स के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
`मेरे जीवनसाथी’ के गीत बन रहे थे. प्रोड्यूसर विनोद शाह ने पुणे के `रोमांसिंग विथ आर.डी. बर्मन’ कार्यक्रम में चार जनवरी की शाम को, सदाशिव पेठ के तिलक स्मारक मंदिर में ये बात स्टेज से कही. निर्माता के साथ निर्देशक रवि नागाइच और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी भी आर.डी. की होटल रूम में थे. हीरो राजेश खन्ना तो थे ही. राजेश खन्ना अपनी फिल्म के गीतों के निर्माण में गहरी रुचि लेते थे, यह बात अब आपको पता है. आर.डी. को एक सिचुएशन दिया गया था जिसके लिए उन्होंने एक धुन तैयार की थी. बडे शान से आर.डी ने यह धुन सभी को सुनाई. निर्देशक रवि नागाइच को तुरंत पसंद आ गई. उन्होंन अप्रूव कर दी और कहा कि चलो, चलो सिटिंग हो गई, काम पूरा हो गया. रवि नागाइच का बडा नाम था. जीतेंद्र के साथ `फर्ज’, राजेश खन्ना के साथ `द ट्रेन’ के अलावा संजीवकुमार के साथ `राजा और रंक’ जैसी हिट फिल्में बना चुके थे. `राजा और रंक’ के गीत भी हिट थे: ओ फिरकी वाली तू कल फिर आना, मेरा नाम है चमेली मैं हूं मालन अलबेली और तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है ओ मां….ओ मां…जीतूभाई की `जिगरी दोस्त’ (१९६९) भी रवि नागाइच की ही थी: मेरे देस में पवन चले पुरवाई और फूल है बहारों का….`द ट्रेन’ तथा `फर्ज’ के गीत तो लोकप्रिय थे ही. अब इतनी हिट फिल्मों में जिन्होंने हिट धुनों को पसंद करके अप्रूव किया हो, उस निर्देशक के साथ वाद-विवाद करने का साहस भी भला कौन कर सकता है- राजेश खन्ना उस समय सुपर स्टार थे, उनका साहस भी नहीं चलता. आर.डी. बर्मन भी `पडोसन’, `द ट्रेन’, `कटी पतंग’ के बाद सुपरहिट संगीतकारों की कतार में थे. उनसे भी नहीं कहा जा सकता था कि आपकी धुन में कोई खास दम नहीं है. सीजर्स पैलेस से बाहर निकलकर रवि नागाइच तो चले गए. प्रोड्यूसर, हीरो और गीतकार उलझन में थे कि अब करें क्या? चलो, मेरे घर चलकर चर्चा करते हैं- राजेश खन्ना ने सुझाव दिया. विनोद शाह और मजरूह सुलतानपुरी को लेकर काका बांद्रा के कार्टर रोड स्थित सी फेसिंग बंगलो `आशीर्वाद’ में आए. प्रोड्यूसर को धुन पसंद नहीं थी, हीरो भी धुन को रिजेक्ट कर रहे थे. मजरूह साहब से पूछा गया कि आपको धुन कैसी लगी? तो उन्होंने कहा: मेरा क्या है, आप मुझे जो धुन देंगे, मैं उसमें शब्द पिरोकर दे दूंगा. अंत में तय हुआ कि पंचम को फोन करते हैं. राजेश खन्ना ने आर.डी. को फोन करके कहा कि तबला- हर्मोनियम लेकर आ जाइए. पंचम पहुंच गए. उनसे संकोच के साथ कहा गया कि आपने जो धुन सुनाई वो तो अच्छी है लेकिन इस सिचुएशन के लिए उससे भी अच्छी कोई धुन हो तो हम कंसिडर कर सकते हैं. पंचम ने कहा: उसमें क्या है, ये लो दूसरी ट्यून सुना देता हूँ…कहकर उन्होंने जो ट्यून सुनाई उसमें अगले ही दिन मजरूह साहब ने जो शब्द पिरोए थे वे इस प्रकार थे: ओ मेरे दिल के चैन, चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए…अपना साया देख के तुम जाने जहां शर्मा गए, अभी तो ये पहली मंजिल है तुम तो अभी से घबरा गए, मेरा क्या होगा, सोचो तो जरा, हाय ऐसे ना आहें भरा कीजिए…ओ मेरे दिल के चैन.
ऐसी बात नहीं थी कि आर.डी. अपनी कोई कमजोर ट्यून प्रोड्यूसर का बेचना चाहते थे, लेकिन क्रिएटिव मनुष्ट को कोई इंस्पायर करने के लिए भी चाहिए. उन्हें प्रोत्साहित करने, उनके काम को अधिक अच्छा बनाने के लिए कई बार उद्दीपक- कैटलिस्ट की जरूरत होती है. प्रोड्यूसर विनोद शाह और राजेश खन्ना ने थोड सा प्रोत्साहन दिया और आर.डी. अपने मस्तिष्क के खजाने से मोती खोजकर ले आए.
`दीवाना ले के आया है’ और `ओ मेरे दिल के चैन’ के बाद एक और गीत इस फिल्म का है. विनोद शाह ने रसिक श्रोताओं से कहा कि, कुछ साल पहले इंडियन सिनेमा की शताब्दि मनाने के लिए `बॉम्बे टाकिज’ नामक फिल्म बनी थी. करण जौहर- अनुराग कश्यप इत्यादि ने बनाई थी. इस फिल्म में राजेश खन्ना के योगदान को सराहने के लिए उन्हीं का कोई गीत लेना था. राजेश खन्ना तो म्यूजिकल स्टार थे. उनके दर्जनों गीत ऐसे हैं कि एक याद करें तो एक भूल जाते हैं. उन लोगों ने आपस में चर्चा करके जो गीत तय किया उसके राइट्स लेने के लिए `मेरे जीवनसाथी’ के प्रोड्यूसर विनोद शाह को फोन आया. विनोद शाह ने इस गीत के लिए खुशी से सहमति लिखित रूप में भेज दी: चला जाता हूं किसी की धुन में धडकते दिल के तराने लिए, मिलन की मस्ती भरी आंखों में हजारों सपने सुहाने लिए.
किशोर कुमार के गाए और पंचम के स्वरबद्ध किए मजरूह साहब के लिखे इस गीत के अंतरों में एक ही पंक्ति में तीन बार तीन अलग अलग शब्दों के आखिर के अक्षरों में जो यॉडलिंग आती है, उस तरह से दुनिया के अच्छे खासे सिंगर्स नहीं गा सकते ऐसा जावेद अख्तर का मत हम किशोरदा की सिरीज में लिख चुके हैं: ये मस्ती के , नजारे हैं, तो ऐसे में संभलना कैसा मेरी कसम. यहां `के’, `हैं’ और `में’ के समय जो यॉडलिंग है उस पर ध्यान दीजिएगा. बाद की पंक्तियों में जो लहराती, डगरिया हो, तो फिर क्यों ना, चलूं मैं बहका बहका रे…यहां पर `ती’, `हो’ और `ना’ के समय यॉडलिंग पर ध्यान दीजिएगा.
बेशक, राजेश खन्ना पर फिल्माए गए कम से कम पच्चीस गीतों में से किसी एक को पसंद करना हो तो घंटों तक चर्चा चल सकती है, और सिर फूट भी जाए तो कोई निर्णय शायद न निकले. ऐसे में आर.डी. का `चला जाता हूं’ गीत राजेश खन्ना को रिकग्नाइज करने के लिए भी पसंद किया जाए तो उसमें हम सभी की सहमति होगी ही.
`शिल्पकार’ के बैनर के तहत विनोद शाह और उनके भाई हरीश शाह ने रवि नागाइच के ही निर्देशन में `मेरे जीवनसाथी’ रिलीज की उसके दो साल बाद, १९७४ में एक और फिल्म बनाई जिसमें आर.डी. बर्मन का ही संगीत था, मजरूह के गीत थे. फिरोज खान, परवीन बाबी, डैनी, हेलन, प्रेम चोपडा की इस फिल्म के गीत भी सुपरहिट थे: ताक धुम नाचो नशे में चूर, कोई आया आने भी दे, कोई गया और डैनी का आशा भोंसले के साथ गाया गीत: `सुन सुन कसम से, लागू तेरे कदम से.
`रोमांसिंग विथ आर.डी. बर्मन ‘ कार्यक्रम में विनोद शाह श्रोताओं को बताते हैं कि: काला सोना बनाने में खूब खर्च हो गया था. फिल्म तकरीबन पूरी हो गई थी. फिल्म ओवर बजट जा रही थी. बैकग्राउंड म्यूजिक बनाना बाकी था इसीलिए आर.डी. बर्मन के असिस्टेंट सनी के साथ तय किया कि पहले की फिल्म के लिए रेकॉर्ड किया गया बैकग्राउंड म्यूजिक खोजकर सीन में जहां फिट हो वहां चिपका देंगे. फिल्म अच्छी ही बनी है, गीत भी अच्छे हैं. बैकग्राउंड म्युजिक नया रेकॉर्ड करने के बजाय इस तरह से काम चला लेंगे. पंचम को पता चला. बैकग्राउंड म्यूजिक तो उनके लिए संगीत की रीयल ताकत दिखाने का विभाग था. उन्होंने विनोद शाह से कहा कि बैकग्राउंड म्युजिक नया बनेगा. विनोद शाह ने कहा पंचमदा , बजट नहीं है, पैसे खत्म हो गए हैं. पंचम ने कहा: कितने पैसे हैं? विनोद शाह ने कहा: सिर्फ पचास हजार रुपए हैं. उसमें कैसे बैकग्राउंड म्यूजिक बनेगा (उस जमाने में पचास हजार में एक गीत की रेकॉर्डिंग होती थी. १९७४ की ही आर.डी. – राजेश खन्ना की फिल्म `आप की कसम’ का जय जय शिवशंकर सुनिएगा. उसके अंत में किशोरदा ने `अरे बजाओ रे बजा, पचास हजार खर्च किया है’ जो बोलते हैं, उसका संदर्भ किशोरदा की सिरीज में लिया जा चुका है.)
आर.डी. बर्मन ने विनोद शाह के पचास हजार रूपए में अपने बीस-तीस हजार डालकर `काला सोना’ का बैकग्राउंड म्यूजिक बनाया. आर.डी. ने कभी विनोद शाह को नहीं बताया कि कितना खर्च हुआ, इसकी जानकारी विनोद शाह को बाहर से हुई.
विनोद शाह ने १९८१ में एक छोटी क्विकी फिल्म बनाने का फैसला किया. हॉरर फिल्म थी. राकेश रोशन, बिंदिया गोस्वामी, प्रेमा नारायण और नवीन निश्चल थे उसमें. एक पुराने कब्रिस्तान के प्लॉट पर बनी होटल में एक के बाद एक हत्याएं हो रही हैं ऐसा प्लॉट था. निर्देशन हिंदी हॉरर फिल्मों के बेताज बादशाह तुलसी रामसे और श्याम रामसे का था.कम बजट की फिल्म थी. आर.डी. उस समय खूब बिजी थे. १९७९-८०-८१ इन तीन वर्षों के दौरान उनके संगीत में तीन दर्जन से अधिक हिंदी फिल्में रिलीज हुईं जिसमें कई सुपरहिट हुईं. विनोद शाह ने आर.डी. की व्यवस्तता और फिल्म के बजट को ध्यान में रखकर `होटल’ के लिए उषा खन्ना को साइन किया. विनोद शाह ने कहा: मेरी ऑफिस खार में, और आर.डी. सांताक्रूज में रहते थे. एक दिन अचानक मेरी ऑफिस में आकर केबिन का दरवाजा खोलकर कहा: मैं तेरे साथ झगडा करने आया हूं. विनोद शाह ने कहा: दादा, आइए बैठिए तो सही. आर.डी. ने कहा कि: ये बैनर मेरा है, मेरे बैनर में किसी दूसरे का म्यूजिक कैसे हो सकता है? विनोद शाह ने परिस्थिति समझाई और आर.डी ठंडे पड गए. विनोद शाह- आर.डी. बर्मन के ऐसे संबंध थे. एक दूसरे के लिए इतना अपनापन. इसके बावजूद विनोद शाह ने `अब इंसाफ होगा’ फिल्म के बारे में जो बात की वह सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हो गईं. विनोद शाह ने अपनी भर्राई हुई आवाज में सजल नेत्रों से कहा: उस समय हम पंचम दा से आंख मिलाने लायक नहीं रहे…शेष कल.
आज का विचार
अब कहां लाभ औ’ शुभ कहां कुमकुम की छाप,
दीवारें घर की ढहा कर हम चुप हो गए हैं.
– मनोज खंडेरिया
एक मिनट!
चाणक्य: जहां आपका कोई मान न हो वहां नहीं जाना चाहिए.
गुजराती आदमी: लो, अब अपने घर भी नहीं जा सकते!








