नेहरू दूरदृष्टा थे या सरदार?

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – २२ नवंबर २०१८)

सरदार वल्लभभाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू के बीच मतभेदों के बारे में हम बात कर रहे थे. प्रमाणिक स्रोतों का उल्लेख किए बिना, केवल मनगढंत बातों से इतिहास की जानकारी नहीं मिलती.

हमने स्कूल-कॉलेज में भारत का जो इतिहास पढा है वह उन लेफ्टिस्टों द्वारा लिखा गया है जिन्हें आजादी के बाद नेहरू ने खुली छूट दे रखी थी. ये वामपंथी या साम्यवादी या आज के सेकुलरवादी इतिहासकार भारत द्वेषी थे और अत्याचारी मुस्लिम शासकों की चापलूसी करनेवाले थे. भारत की बदनामी करने में उन्हें मजा आता था. भारतीय परंपरा में सौ में से दो बातें अनुचित हों तो उसे बढा चढाकर, तिल का ताड बनाकर इस तरह से रखते हैं कि बाकी की ९८ अच्छाइयां ढंक जाती हैं और वही दो बेकार की बातें ही लगातार हर जगह हाइलाइट होती रहती हैं. इसके विपरीत, वे मुगल शासन या ब्रिटिश शासन की सौ में से दो बातें अच्छी हों और बाकी की ९८ बातें उनके द्वारा किए गए शोषण, अन्याय की हों तो वे लोग उन दो बातों को इस तरह से पेश करेंगे कि बाकी ९८ गलतियां छिप जाती हैं. साम्यवादी इतिहासकारों ने भारत की आजादी के बाद जन्मी पीढियों के दिमाग में ऐसा भूसा भर दिया है कि उसे साफ करने में अभी काफी वक्त लगेगा. इन इतिहासकारों ने ७० वर्षों के दौरान भारत का इतना बडा अहित किया है कि उस प्रत्येक व्यकित को चुन चुन कर सार्वजनिक रूप से फांसी पर चढा दिया जाए तो भी पाप नहीं लगेगा. मेरा तो प्रमाणिकता से ऐसा मानना है कि जो इतिहासकार कब्र में जा चुके हैं उन्हें भी बाहर निकाल यह सजा दी जानी चाहिए.

यह पृष्ठभूमि बना कर इस श्रृंखला के बारे में कई जानकारियां देना चाहता हूं. सरदार के काम को, उनके विचारों को तथा गांधीजी-नेहरू सहित तत्कालीन राजनेताओं के बारे में उनके विचारों को यदि हम तटस्थतापूर्वक जानना चाहते हैं तो उसका सबसे बडा प्रामाणिक स्रोत उनके द्वारा लिखे गए तथा उन पर लिखे गए पत्र हैं.

सरदार के पत्रों को एकत्रित करके उनका संपादन करने का काम मूल रूप से दुर्गादास ने किया है. १९७२ से १९७४ के दौरान १० गहन अंग्रेजी पुस्तकों का प्रकाशन हुआ. इन १० पुस्तकों में से चुने गए पत्रों का संकलन सरदार के सचिव वी. शंकर ने किया. यह संकलन कुल १३०० पृष्ठों में दो खंडों में प्रकाशित हुआ है. अंग्रेजी के अलावा हिंदी और गुजराती में भी इन दो खंडों का प्रकाशन हुआ है. गुजराती में यशवंत दोशी, नगीनदास संघवी और दीपक मेहता जैसे तीन सीनियर अध्ययनकर्ता लेखकों की विद्वत्तापूर्ण लेखनी द्वारा किया गया उनका अनुवाद गांधीजी द्वारा स्थापित प्रकाशन संस्था `नवजीवन’ द्वारा प्रकाशित किया गया है. मेरे पास इसकी पहली आवृत्ति है जिसमें से योग्य संदर्भ के साथ इस श्रृंखला में सरदार को और सरदार को पत्र लिखनेवालों को उद्‍धृत कर रहा हूँ.

सरदार के कार्य के बारे में जानने का दूसरा महत्वपूर्ण स्रोत है सरदार के सेक्रेटरी वी.पी. मेनन की लिखी दो पुस्तकें: `द स्टोरी ऑफ द इंटिग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ जिसमें सरदार ने ५५० से अधिक छोटे बडे राज्यों को किस तरह से एकसूत्र में बांधा था, इसकी विस्तृत कहानी है. यह पुस्तक रोमांचकारी शैली में लिखी गई है. दूसरी पुस्तक है `ट्रांसफर ऑफ पावर’ जिसमें भारत को आजादी मिलने, भारत का विभाजन होने के दौरान अंग्रेजों तथा भारतीय राजनेताओं द्वारा निभाई गई भूमिका का वर्णन है. ये दोनों पुस्तकें अंग्रेजी में आसानी से उपलब्ध हैं.

सरदार के बारे में और भी गहराई में उतरना हो तो गुजराती पुस्तक `गांधीजीनो अक्षरदेह’ तथा तेंडुलकर और प्यारेलाल लिखित पुस्तकों का संदर्भ लेना चाहिए. साथ ही नेहरू की पुस्तकों का संदर्भ भी लेना चाहिए. सरदार को `सेकुलर’ के रूप में चित्रित करनेवाली कर्स बकवास पुस्तकें गुजराती- अंग्रेजी में प्रकाशित हुईहैं जिन्हें गटर में डाल देना चाहिए. वामपंथी विचारधारा वाले इन लेखकों से पूछना चाहिए कि यदि सरदार आपके चित्रण के अनुसार सचमुच `सेकुलर’ थे तो कांग्रेस ने क्यों उन्हें ७० वर्ष तक उपेक्षित रखा.

क्यों उस प्रसिद्ध तस्वीर में से सरदार गायब थे जो १९८५ में मुंबई में हुए कांग्रेस के १००वें अधिवेशन में लगाई गई थी, जबकि असल में उस तस्वीर में सरदार, गांधीजी, नेहरू की त्रिमूर्ति सफेद गद्दों पर बैठकर चर्चा में मग्न होने का चित्रण है? अब गैर कांग्रेसी सरकार कांग्रेस के उसी स्तंभ समान भारत के शिल्पी के कार्य को सम्मानित कर रही है तो आपके पेट में मरोड क्यों उठ रहा है? सरदार का लोहे के समान व्यक्तित्व नेहरू के डगमगाते मस्तिष्क द्वारा लिए गए निर्णयों के बिलकुल विपरीत था. सरदार भारत की जमीन से जुडे थे. नेहरू का भारत के प्रति दृष्टिकोण `उनका रसोइया भी गरीब’, `उनका ड्रायवर भी गरीब’ जैसा था जो उनकी बेटी में उतरा था, बेटी के बेटे में उतरा था, बेटी के बेटे के बेटे में भी उतर आया है. सरदार के काम से प्रेरित होकर राजनीति की ओर आकर्षित हुई एक पूरी पीढी आज भारत का संचालन कर रही है, उसने सरदार की विराट प्रतिमा बनाकर समग्र गुजरात ही नहीं, संपूर्ण भारत भी नहीं बल्कि समस्त विश्व के फलक पर सरदार को रख रही है. कांग्रेसियों को इस बात से पेट में जलन हो रही है कि ऐसा कोई विचार उन्हें नेहरू के लिए क्यों नहीं आया.

सरदार के पत्रों से यह साबित होता है कि नेहरू का व्यक्तित्व कितना संकुचित और बौना था. इसे हम कल देखेंगे. सरदार के पत्रों से यह भी साबित होता है कि भारत के वास्तविक दूरदृष्टा सरदार थे, नेहरू नहीं. नेहरू सिर्फ सपने देखा करते थे. सरदार वास्तविकता के साथ ताल मिलाकर हर समस्या का समाधान करने के लिए जूझ रहे थे.

शेष कल.

आज का विचार

अब कश्मीरी पुलाव को भूल जाओ, कश्मीरी खिचडी आ रही है: पीडीपी धन एनसी धन कांग्रेसी!

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: कल बार में एक अमेरिकी से मुलाकात हो गई.

पका: अच्छा क्या बात हुई?

बका: मुझसे पूछा कि आप इंडियन लोग अरेंज्ड मैरेज करके एक दूसरे के साथ बिना जान पहचान की औरत के साथ कैसे शादी कर लेते हैं?

पका: अच्छा? फिर तूने क्या कहा?

बका: मैने कहा, जान पहचान के बाद शादी कैसे हो सकती है?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here