विरोधी की तुलना में समर्थकों को साथ लेकर चलना ज्यादा कठिन है

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – ८ सितंबर २०१८)

विरोधियों को साथ लेकर चलने से भी अधिक कठिन, अधिक चुनौती भरा काम है समर्थकों को साथ लेकर चलना.

एक तो जो आपके साथ हैं, उनकी आपसे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपेक्षा होती है कि आप उनके जीवन में काम आएंगे, उनके छोटे बडे काम करते रहेंगे, उनकी छोटी बडी समस्याओं के समय उनके साथ रहेंगे.

हर समय ऐसा फेवर करना संभव नहीं होता. कभी जरूरी भी नहीं होता, क्योंकि कई बार वे अपनी हैसियत से भी ज्यादा अपेक्षाएँ पाल बैठते हैं. ऐसे समय में वे नाराज न हों, आपका समर्थन छोडकर वे विरोधी के पाले में न चले जाएं, इसके लिए जरूरी है कि आप ऐसी नाजुक परिस्थिति का सामना डिप्लोमैटिकली करें. सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे की नीति अपनाएँ लेकिन इस तरह से कि उसमें असत्य न हो, अप्रामाणिकता न हो.

दूसरी बात, समर्थकों को साथ रखने के लिए उनके विचारों का आदर करना भी जरूरी होता है. कभी ऐसा होता है कि आप अपने समर्थकों के आग्रह पर खिंचे चले जाते हैं और जाना था जापान, पहुंच गए चीन वाली हालत हो जाती है. समर्थकों के आग्रह को या उनके विचारों का आदर करने का अर्थ ये नहीं है कि आप अपने मत को छोड दें. महान बनना है तो सभी विरोधों के खिलाफ आपको अपने विचारों, अपनी राय, अपने लक्ष्य के लिए, ध्येय के लिए दृढ रहना ही होगा. कभी कभी ऐसे मामलों में आपको शंका होती है कि आप अकेले पड जाएंगे, आपके सारे समर्थक आपको छोडकर चले जाएंगे. ऐसी परिस्थितियों में से जो राह निकाल सकता है वही अंत में महानता के शिखर तक पहुंच सकता है.

तीसरी बात, समर्थकों को भी सुरक्षित अंतर पर रखना जरूरी होता है. सत्ता का स्वाद यानी आपकी लोकप्रियता, आपकी पहुंच, आपके पास निहित साधन इत्यादि का स्वाद चख चुके आपके समर्थकों में से कुछ लोग कब  गद्दारी करके आपको ही पलट कर , आपकी जगह हासिल करने की कोशिश करें कुछ कहा नहीं जा सकता. अरब के तंबू मे बैठे ऊंट जैसी हालत हो सकती है. होम करते हुए हाथ जलने जैसी स्थिति खडी हो सकती है.

हम यहां पर सिर्फ राजनीति की बात नहीं कर रहे हैं. किसी भी क्षेत्र में महान बनना हो तो भी हर किसी की कई जरूरतें एक जैसी होती हैं. आपका क्षेत्र कोई भी हो. आप क्रिएटिव फील्ड में हों, बिजनेस में हों, विज्ञान या टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हों ता भी आपको यदि बच्चनजी, अंबानी या स्टीव जॉब्स बनना हो तो आपमें लगन, मेहनत तथा सभी को साथ लेकर चलने की कला – का त्रिवेणी संगम होना चाहिए. इसके बिना आप न तो राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकार बन सकते हैं, न ही पंडित रविशंकर जैसे संगीतकार बन सकते हैं, न प्रेमचंद या शरत्‌चंद्र या रेणु जैसे साहित्यकार बना सकते हैं न ही सचिन तेंडुलकर बन सकते हैं.

महान व्यक्तियों की लेखमाला को पूर्ण करने से पहले एक बात समझ लेनी चाहिए कि राज कपूर जैसी मूंछ रखने से या विराट कोहली जैसी दाढी रख लेने से कोई अच्छा ऐक्टर या क्रिकेटर नहीं बन सकता. मोदी जैसा आधी बांह का कुर्ता या जैकेट पहननेवाले मोदी नहीं बनेंगे. बाहरी दिखावों से नहीं बल्कि हमारी प्रेरणामूर्तियों में निहित आंतरिक शक्तियों को अपने भीतर बसाकर हम महानता की राह पर एक कदम आगे बढ सकते हैं. जीवन के हर क्षण में इस तरह से एक एक कदम बढाते रहें, महान व्यक्ति में निहित तीन लक्षण- उनकी तीन विशेषताओं को अपने संदर्भ में अपनाते हुए, इन तीनो गुणों की धार को लगातार तेज करते हुए चलते रहें, ट्वेंटी फोर बाय सेवन और तीन सौ पैंसठ दिन चलते रहें तो आज नहीं तो कल, इस साल या अगले साल, इस दशक में या फिर एक, दो, तीन दशक, चार दशक बाद हम जरूर सफलता की रेखा को पार कर महानता के शिखर पर विराजमान हो सकते हैं. बस इतनी ही बात याद रखनी है कि बिना हारे, बिना थके, बिना ऊबे, बिना हतोत्साहित हुए, इन तीनों इंग्रेडिएंट्स को उनकी बेहतरीन गुणवत्ता तक ले जाने की जिजीविषा में तनिक भी कमी न रहे: १. जिस क्षेत्र में काम करते हैं उस क्षेत्र से संबंधित लगन या टैलेंट. २. इस टैलेंट का पूरा उपयोग करने जितनी मेहनत और ३. सभी को साथ लेकर चलने की कला.

कल लीडरशिप के एक आधारभूत गुण के बारे में बात करके इस विषय को पूर्ण करेंगे.

आज का विचार

बहकावे में ना आना. दिमाग की बत्ती जलाओ. कोई भी सब्जी आज ५० रू. से ज्यादा की नहीं, कोई भी दाल १००रू. से ज्यादा की नहीं. लेकिन विपक्ष ने पेट्रोल-डीजल के नाम पर देश को सुलगाने की पूरी तैयारी कर ली है.

-वॉट्स‍एप पर पढा हुआ

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