वॉइस ऑफ इंडिया की अनुसंधानपूर्ण पुस्तकें सही अर्थ में राम जन्मभूमि के लिए भारत की आवाज़ बनीं

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, बुधवार १३ नवंबर २०१९)

(अयोध्या निर्णय सिरीज: भाग दो)

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या का फैसला सुनाए जाने से दशकों पहले इस फैसले के लिए वातावरण तैयार करने में कई व्यक्तियों और अनेक राजनीतिक दलों तथा गैर-राजनीतिक संगठनों ने भूमिका निभाई है. इस फैसले के लिए वातावरण कोई रातोंरात तैयार नहीं हुआ है. यह फैसला आए, इस आशा के साथ कई आंदोलन हुए, लडाइयां लडी गईं और ९ नवंबर २०१९ को इसी का फल प्राप्त हुआ. इस श्रृंखला में इन तमाम परिबलों के बारे में एक झलक देनी है. इस संबंध में इतनी सामग्री है कि पूरा एक ग्रंथ लिखा जा सकता है (और भविष्य में कोई न कोई तो लिखेगा ही) और इसे मुझे दस किस्तों की लेख माला में सार रूप में प्रस्तुत करना है. मैने अपने संशोधन के अनुसार और अपनी समझ तथा बुद्धि की मर्यादा के साथ ऐसे दस व्यक्तियों/ संगठनों का विश्लेषण किया है. अन्य संशोधकों की सूची मुझसे अलग हो सकती है, सिरीज में मैने जिन व्यक्तियों/ संगठनों के नामों का उल्लेख किया है उनसे भिन्न नाम भी अन्य लोगों के विश्लेषणों में शामिल हो सकते हैं. उनका नजरिया मुझसे अलग और विशाल हो सकता है. मैं जो कुछ कह रहा हूं, वह मैं कह रहा हूं. अपनी बुद्धि के अनुसार कह रहा हूं इसीलिए सारी बात सब्जेक्टिव होगी. आइए दस मुद्दों की बात शुरू करते हैं.

१. मेरी दृष्टि से राम जन्मभूमि आंदोलन को दो भागों में बांटा जा सकता है- जन आंदोलन तथा बौद्धिक स्तर पर शुरू हुआ आंदोलन. दोनों परस्पर पूरक हैं. जन आंदोलन की बात हम बाद में करेंगे. अभी बौद्धिक आंदोलन की बात करते हैं. मेरी दृष्टि से राम जन्मभूमि के बारे में बौदि्धक विश्व में जागृति लाने का सबसे बडा काम दो लोगों की जोडी ने किया- राम स्वरूप अग्रवाल (१९२०-१९९८) और सीता राम गोयल (१९२१-२००३). १९८१ में राम स्वरूपजी ने `वॉइस ऑफ इंडिया’ नामक प्रकाशन संस्था का आरंभ किया. सीता राम गोयल ने १९६३ में ऑलरेडी अपनी प्रकाशन संस्था शुरू कर दी थी जिसे बाद में आदित्य प्रकाशन के नाम से जाना गया. सीता राम गोयल `वॉइस ऑफ इंडिया’ से जुड गए. १९८१-८२ के बाद के दो दशकों के दौरान दोनों मित्रों ने `वॉइस ऑफ इंडिया’ के तत्वावधान में कई पुस्तकें प्रकाशित कीं जिनके कारण भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बसनेवाले स्कॉलर्स तथा रिसर्चर्स को भारतीय परंपरा के बारे में सही जानकारी मिलने लगी, भारतीय इतिहास का सही मायनों में निहितार्थ निकालने की संभानाओं के द्वार खुले. बाबरी मस्जिद तथा राम जन्मभूमि विवाद के बारे में `वॉइस ऑफ इंडिया’ ने प्रकाशन के क्षेत्र में आधारभूत काम किया है. साम्यवादी इतिहासकारों की पोल खोलने में भी सीता राम गोयल तथा राम स्वरूप को पथप्रदर्शक कहा जा सकता है. मजे की बात तो ये है कि तकरीबन पचीस वर्ष की उम्र तक तो दोनों ही मित्र कम्युनिस्ट थे लेकिन गधा पचीसी पूर्ण होने के बाद उनकी आंखें खुली और लाल रंग छोडकर वे राष्ट्रवाद के भगवा रंग में रंग गए.

`वॉइस ऑफ इंडिया’ की स्थापना भले ही १९८१ में हुई हो लेकिन दोनों मित्र लेखन-प्रकाशन द्वारा हिंदू विचारधारा के प्रचार-प्रसार के काम में १९४० के दशक के अंत से ही जुट गए थे. `वॉइस ऑफ इंडिया’ द्वारा प्रकाशित की गई पुस्तकें मुझ जैसे अनेक पत्रकारों-लेखकों के लिए हिंदू विचारधारा की गंगोत्री के समान हैं. सीताराम गोयल लिखित `हिंदू टेम्पल्स: वॉट हैपन्ड टू देम’ या फिर कोनराड एल्स्ट लिखित `अयोध्या एंड आफ्टर’ या फिर जय दुबाशी लिखित `द रोड टू अयोध्या’ सहित दर्जनों किताबें हर राष्ट्रवादी पत्रकार को खरीदकर संजोकर रखनी चाहिए. इस्लाम या इसाइयत या फिर भारतीय इतिहास में साम्यवादियों द्वारा फैलाई गई गप्पबाजी के बारे में भी अनेक किताबें `वॉइस ऑफ इंडिया’ ने प्रकाशित की हैं. मेरी लायब्रेरी में एक पूरा विभाग ही भारत के इतिहास से जुडे ग्रंथों का है जिसमें हिंदू धर्म के बारे में, इस्लाम के बारे में, इसाइयत के बारे में तथा सिख-जैन-बौद्ध धर्मों के बारे में कई सारे ग्रंथ हैं. इन सबमें एक पूरा सेक्शन `वॉइस ऑफ इंडिया’ द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का है. मेरी हिंदूवादी समझ को प्रकाशित करने, तराशने तथा उज्ज्वल बनाने में राम स्वरूपजी और सीताराम गोयल द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का मौलिक योगदान है. इन किताबों का एक्सपोजर मुझे गुजराती भाषा के प्रथम पंक्ति के सीनियर पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र पारेख ने दिया. पारेख मूलत: अंग्रेजी भाषा में काम करते थे. `इंडियन एक्सप्रेस’ सहित अन्य अग्रणी अंग्रेजी प्रकाशनों के आर्थिक मामलों के विभाग में ऊंचे पद पर उन्होंने काम यिका है और हसमुख गांधी से आकर्षित होकर `समकालीन’ से जुडे तथा गुजराती पत्रकारिता को समृद्ध किया. सीता राम गोयल तथा राम स्वरूपजी – दोनों के साथ पारेख साहब की निजी जान पहचान थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जमाने में पहले का समय भारतीय मीडिया के लिए कैसा था इसके बारे मे आपमें से अधिकांश लोगों को पता होगा. हम सब तो उस कालखंड से गुजरे हैं, उसमें तपे हैं, जले हैं, चोटिल हुए हैं, लहूलुहान हुए हैं, मूर्च्छिद हुए हैं. सेकुलरिज्म का बोलबाला हुआ करता था और हिंदुत्व शब्द को साम्यवादी मीडिया ने गाली जैसा बना दिया था, उस दौर में `वॉइस ऑफ इंडिया’ की पुस्तकों ने हमारे लिए संजीवनी का काम किया है. उन पुस्तकों को सूंघ सूंघ कर हम लक्ष्मणजी की तरह फिर से बैठे और रामजी की शरण में रहकर कांग्रेसी-साम्यवादी-सेकुलरवादी रूपी दस सिर वाले रावणों पर तीर चलाते रहे.

आज न तो राम स्वरूपजी इस संसार में हैं, न ही सीता राम गोयल. लेकिन `वॉइस ऑफ इंडिया’ को आज भी उनके वारिस किसी तरह से चला रहे हैं, जो कि हमारा सौभाग्य है. भारत के इंटेलेक्चुअल्स में हिंदुत्व का बीजारोपण करके उसे घने वटवृक्ष में तब्दील करने में `वॉइस ऑफ इंडिया’ के प्रकाशनों ने जो योगदान दिया है वह बेमिसाल है और इसीलिए इन दोनों दिवंगत महानुभावों के बारे में थोडा अधिक परिचय देकर, उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के बारे में थोडी गहराई से जानकारी देते हुए इस श्रृंखला का श्रीगणेश करेंगे. कल राम स्वरूपजी और सीताराम गोयल के जीवन संघर्ष के बारे में तथा पुस्तक प्रकाशन की दुनिया में उनके द्वारा प्रदर्शित साहस और दूरदर्शिता के बारे में बात करके `वॉइस ऑफ इंडिया’ द्वारा प्रकाशित दर्जनों उत्कृष्ट प्रकाशनों में से कुछ सारगर्भित रत्न समान पुस्तकों की चर्चा करेंगे.

अयोध्या के निर्णय के बाद जो प्रतिक्रियाओं की आंधी चली थी, अब वो थम चुकी है इसीलिए इस श्रृंखला में धीरे धीरे आगे बढते हुए बनारसी पान जैसी चाल रखेंगे तो उसका स्वाद हमेशा के लिए मनोमस्तिष्क में अंकित रहेगे और यह भी संभव है कि ये बनारसी पान हम सभी के मस्तिष्क के बंद कपाटों को फिर से खोल दे.

शेष कल…

3 COMMENTS

  1. धन्य है वह भारतभक्त जिन्होंने अपने धर्म की रक्षार्थ ज्ञान के आधार पर अंतिम समय तक निरंतर संघर्ष जारी रखा…. स्व.श्री रामस्वरूप जी व स्व.श्री सीताराम जी के अथक प्रयासों को आगे यथावत बढाये रखना हम सब का दायित्व है…. मैं स्वयं भी एक राष्ट्रवादी चिंतक व लेखक होने के नाते सतत् इसी कार्य हेतु सक्रिय रहता हूँ। सामाजिक जागृति द्वारा बड़े बड़े संकट को दूर करा जा सकता है। जनता की हुंकार बहरी सरकार को भी उसके दायित्वों का बोध करा देती है। वर्षों से आत्मग्लानि की अनुभूति से ग्रस्त हिन्दू अपने स्वाभिमान के लिये छटपटा रहा था। आक्रोशित हिन्दू समाज का जब क्रोध फूटा तो 2014 में समय परिवर्तित हुआ और मोदी सरकार का गठन हुआ। परिणाम स्वरूप आज हिंदुत्व की सकारात्मक धारा बहने लगी है यह राष्ट्रवादियों की वर्षो के परिश्रम का परिणाम है। स्व.रामस्वरुप जी व स्व.सीताराम जी को शत शत नमन उनके अतुलनीय सहयोग के लिए विश्व का सम्पूर्ण हिन्दू समाज उनका ऋणी रहेगा। श्री राम जन्मभूमि मंदिर के इतिहास के साथ- साथ हिंदुओं को अपने अधिकारों व धर्मांधों के आक्रमणों के प्रति जागरूक होकर बौद्धिक स्तर पर संघर्षरत रहने के लिए प्रेरक योद्धाओं के इतिहास में आपके नाम का उल्लेख भी स्वर्ण अक्षरों में होगा।
    वंदेमातरम
    *विनोद कुमार सर्वोदय , गाज़ियाबाद

  2. धन्यवाद सौरभ जी इस तरह का लेख लिखकर आपने अत्यंत ही सराहनीय कार्य किया है आपको साधुवाद

  3. अयोध्या निर्णय सीरीज के हर भाग का इन्तजार रहेगा।
    बनारसी पान की तरह

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