२६/११ के हमले के समय कॉन्ग्रेसी गृहमंत्री शिवराज पाटिल का एटिट्यूड “मेरे बाप का क्या जाता है” वाला था.

(हिंदू आतंकवाद का भ्रम: लेख:८)

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(newspremi.com, मंगलवार, २ अप्रैल २०१९)

२६ नवंबर २००८ को रात करीब ९ बजे आर.वी.एस. मणि खा पीकर अपने घर में टीवी देख रहे थे कि तभी न्यूज चैनल्स सर्फ करते हुए कुछ हल्की सी खबर आई कि मुंबई में कुछ गडबडी हुई है. उन्होंने तुरंत गृह मंत्रालय के कंट्रोल रूम में फोन किया. शुरू में ऐसी कुछ खबर मिली कि गैंगवॉर हुआ है. पंद्रह मिनट बाद ही कंट्रोल रूम से फोन आया: `साहब, मुंबई में पटाखा बज गया.’ मुंबई की दो फाइव स्टार होटलों पर और अन्य कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया था. गृह मंत्रालय में इंटरनल सिक्योरिटी विभाग को संभालने वाली टॉप मैनेजमेंट की टीम तो पाकिस्तान में थी. मजे की बात ये है कि वे जिस चर्चा के लिए गए थे उसका विषय था: आतंकवाद को किस तरह से रोका जाय और ड्रग्स के व्यापार पर कैसे लगाम कसी जाय. मणिसर के अनुसार भारत-पाकिस्तान के बीच होम सेक्रेटरी लेवल पर इन दोनों विषयों पर अभी तक दर्जनों वार्ताएं हो चुकी हैं लेकिन हर बात पाकिस्तान कोई न कोई गुस्ताखी करके वार्ताओं पर पानी फेर देता है. ऐसे अनेक उदाहरण इस पुस्तक में दिए गए हैं.

रात ९.३० बजे मुंबई में आतंकी हमले की खबर पक्की होने के बाद मणिसर तुरंत ही गृह विभाग के कंट्रोल रूम में जाने के लिए तैयार हो गए. होम मिनिस्ट्री का कंट्रोल रूम संभालने की जिम्मेदारी भारतीय सैन्य दलों की होती है. ड्यूटी ऑफिसर के रूप में सामान्यत: असिस्टेंट कमांडेंट के पद का व्यक्ति होता है. उस दिन सीआरपीएफ के अफसर थे. कंट्रोल रूम पर पहुंच कर मणिसर ने देखा कि कंट्रोल रूम में पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय) से, विदेश मंत्रालय से, कैबिनेय सेक्रेटरियेट से, एंबेसी से और न जाने कहां कहां से फोन पर फोन आ रहे थे. मणिसर ने तुरंत दो दिशा में काम शुरू किया. एक हमले से जुडी अधिक से अधिक जानकारी जुटाना और दो: अभी वास्तव में क्या परिस्थिति है, इसका आकलन करना. ऐसे हमलों के समय कौन कौन सी जानकारी कहां से जुटानी चाहिए, इस बारे में मणिसर को अनुभव था. वर्ष २००८ सारे देश में जगह जगह पर आतंकवादी हमलों का वर्ष साबित हो रहा था. साल की शुरूआत ही ऐसे हमले से हुई थी. १ जनवरी २००८ को रामपुर के सीआरपीएफ कैंप पर टेरर अटैक हुआ था.

रात ग्यारह बजे होम मिनिस्ट्री के दो जॉइंट सेक्रेटरी मणिसर के साथ जुडे. उनमें से एक पुलिस डिप्लॉयमेंट के इनचार्ज थे, जिन्होंने नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एन.एस.जी.) के डी.जी. (डायरेक्टर जनरल) से बात करके तुरंत ट्रुप्स को मुंबई भेजने के बारे में चर्चा की थी. दूसरे जॉइंट सेक्रेटरी ने पी.एम.ओ., कैबिनेट सेक्रेटरिएट इत्यादि को घटना की जानकारी देने का जिम्मा संभाला था. मणिसर खुद भी धैर्य के साथ बाजी संभाल रहे थे. मुंबई के ए.टी.एस. (एंटी टेररिस्ट स्क्वाड) के सीनियर इंस्पेक्टर दिनेश अग्रवाल उस समय मणिसर के एकमात्र जानकारी का स्रोत थे. ए.टी.एस. में केवल वही सौभाग्य से जीवित बचे थे. मुंबई के पुलिस कमिश्नर हसन गफूर ताज महल होटल का मोर्चा संभाल रहे थे. जब कि उनके सेकंड इन कमांड ट्राइडेंट (ओबेरॉय) होटल के रेस्क्यू ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे.

सरकार ने नेशनल सिक्योरिटी गाड्र्स को मुंबई भेजने की मांग की थी और एनएसजी कमांडोज मुंबई पहुंचने के लिए तैयार हो गए थे. गृहमंत्री शिवराज पाटील एन.एस.जी. की टीम के साथ मुंबई जाना चाहते थे. पाटील ने इस संबंध में सूचना भर दी थी लेकिन बाद में पाटील ने सभी से संपर्क तोड दिया.

इसी बीच, मुंबई ए.टी.एस. से मिलनेवाली रिपोर्ट से पता चल रहा था कि उन्होंने अपने कई अफसर और पुलिसमेन खो दिए है और दोनों ही होटलों पर टेररिस्टों का आतंक अब भी जारी था. होम मिनिस्टर शिवराज पाटील के घर फोन पर फोन ट्राय किए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. डैमेज कंट्रोल के लिए मुंबई से स्थानीय मदद ताज- ट्राइडेंट पर तुरंत पहुंचे इस हेतु गृहमंत्री से अनुमति लेनी थी लेकिन पाटील साहब आउट ऑफ टच हो गए थे.

एन.एस.जी. के अलावा मुंबई शहर और उसके आसपास के इलाकों में हमेशा अनुभवी सुरक्षा बल तैनात रखे जाते हैं. मुंबई में केंद्रीय अर्धसैनिक बल होता है. सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स होती है जिसे होटल्स, बडी रिफाइनरीज इत्यादि की सुरक्षा करने की तालीम मिली होती है. एन.एस.जी. के पहुंचने से पहले इन बलों को घटना स्थल पर पहुंचा दिया जाता तो डैमेज कंट्रोल हो सकता था. ये बल मुंबई एयरपोर्ट पर तैनात होते हैं, चेंबूर की राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टीलाइजर्स (आर.सी.एफ.) की रिफाइनरी पर हमेशा तैनात होते हैं. इसके अलावा नवी मुंबई में सी.आर.पी.एफ. की बटालियन होती है जो तुरंत घटनास्थल पर पहुंच कर कुछ नहीं तो कम से कम फर्स्ट एड जैसा काम तो कर ही सकती थी. लेकिन होम मिनिस्टर से इसका क्लियरेंस नहीं मिल पाया और इनमें से कोई भी सुरक्षा बल घटना स्थल पर नहीं भेजा जा सका. इस तरहफ पाकिस्तानी आतंकवादी शहर में खुलेआम आतंक मचाते रहे.

मणिसर लिखते हैं:`मैं होम मिनिस्ट्री में था. उस समय `मार्कोस’ को मुंबई के घटना स्थल पर क्यों नहीं भेजा गया, इस पर मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा.’ (`मार्कोस’ भारतीय नौसेना के `मरीन कमांडो फोर्स’ का संक्षिप्त नाम है. इन कमांडोज को जल-थल पर आतंकवादियों से लडने तथा बंधकों को छुडाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. मुंबई, विशाखापट्टनम, गोवा, कोच्ची तथा पोर्टब्लेयर में उनका बेस है. ये कमांडो अमेरिकन नेवी `सील’ (सी,एयर, एंड लैंड) टीम से प्रशिक्षण लेते हैं.)

मणिसर आगे लिखते हैं:`उस समय जम्मू-कश्मीर एक आर्मी युनिट मुंबई के करीब ही थी और रक्षा मंत्रालय की अनुमति लेकर वे आसानी से घटनास्थल पर पहुंच सकते थे. ऐसा क्यों नहीं हुआ, ये सवाल भी मैं नहीं पूछूंगा लेकिन उस समय मेरे मन में ये प्रश्न उठा जरूर था.’

एन.एस.जी. की टीम रात डेढ बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंच कर मुंबई रवाना होने के लिए उतावली थी, लेकिन होम मिनिस्टर शिवराज पाटील साहब तैयार नही हुए थे. पत्रकार संदीप उन्नीथन ने इस बारे में २०१४ में प्रकाशित हुई अपनी पुस्तक `ब्लैक टोर्नाडो: द थ्री सीज़ ऑफ मुंबई २६/११’ में वर्णित किया है. वर्तमान में वे `इंडिया टुडे’ के डिप्टी डायरेक्टर हैं. उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री का `चलता है, होता है’ वाला नजरिया नहीं होता तो बेशक कई जानें बच सकती थीं. इस सारी घटना के दौरान गृहमंत्री का व्यवहार मानो `मेरे बाप का क्या जाता है’ वाला था.

होम सेक्रेटरी के साथ इस्लामाबाद गया प्रतिनिधि मंडल २७ नवंबर को दोपहर ३ बजे दिल्ली लैंड होगा, ऐसी खबर थी. २७ तारीख को होम सेक्रेटरी के लिए ब्रीफिंग हेतु नोट्स तैयार करके देर शाम को मणिसर तकरीबन २४ घंटे बाद थकेमांदे घर पहुंचे. पर कई सारी बातें उनके मन में सोते समय भी उमड रही थीं. उनके डिपार्टमेंट को खबर मिली थी कि २६/११ के महले से एक सप्ताह पहले भारतीय कोस्ट गार्ड ने भारत की सीमा को छूकर तुरंत लौटकर पाकिस्तान की सरहद में जा रहा पाकिस्तानी जहाज देखा था. उस जहाज के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं था लेकिन किसी भी समय समुद्री मार्ग से भारत पर हमला हो सकता है ऐसी संभावना के बारे में जानकारी मिल चुकी थी. और दो बातें मणिसर को चुभ रही थीं: ए‍क थी, आतंकवादी कोलाबा के बधवार पार्क के सामने की मच्छीमारों की बस्ती से होकर उन लोगों ने मुंबई में प्रवेश किया था. ये मच्छीमार लोग अनजाने लोगों को अपनी कालोनी बिलकुल सहन नहीं करते. जब कि यहां तो दस अनजान युवक पीठ पर बडे बडे थैले लेकर गुजरे थे. उस समय रात भी नहीं थी कि लोग सोए हों. सात-साढे सात बजे का समय था. सभी जाग रहे होते हैं, बरामदे में होते हैं. क्या इन्हीं मछुआरों में से किसी ने दस लोगों को सही सलामत वहां से ले जाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ली थी? यदि हां, तो किसने? मणिसर को एक ऐसे राजनेता पर शक है जो खुद को इन मछुआरों के लीडर के रूप में देखते हैं.

बाद में उस समय के केंद्रीय मंत्री (अल्पसंख्यक मामलों के) अब्दुल रहमान अंतुले (जो कोंकणी मुस्लिम थे) द्वारा राज्यसभा में चर्चा के समय दिया गया बयान खूब चर्चित हुआ था.

दूसरी एक बात मणिसर को रह-रह कर चुभ रही थी कि जब ताज पर हमला हुआ तब महाराष्ट्र सरकार के गृह विभाग के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी ताज में थे और हमले के दौरान वे बिना किसी हानि के किसी तरह से ताज से बाहर आ गए थे. जुत्सी मैडम आतंकवादियों के संपर्क में हो सकती हैं, ऐसी पूरी आशंका मणिसर व्यक्त करते हैं, इस बारे में कल बात होगी.

इसी बीच, एक बात यह भी विचारणीय है कि जो दस आतंकवादी शाम के ७- ७.३० बजे धुंधलके में जीवन में पहली बार मुंबई में आते हैं, वे बिना किसी की मदद लिए अपने गंतव्य पर कैसे पहुंच जाते हैं. यहां तो स्थानीय मुंबईवासी भी किसी इलाके में दो-पांच साल तक न गया हो, और फिर भी वहां जाय तो उस जगह को खोजने में उसे कठिनाई आती है, इतनी तेजी से मुंबई का चेहरा बदलता है. क्या किसी स्थानीय सहायता के बिना पाकिस्तानी आतंकवादी इतना बडा ऑपरेशन करके डेढ सौ – पौने दो सौ लोगों की जान ले सकते हैं? ये स्थानीय मददगार कौन थे, इसकी जांच अभी तक नहीं हुई है. गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ऐसी शंका उस समय जताई थी. बाय द वे, कल सुबह साहब ने वर्धा में चुनाव प्रचार करते समय एक सभा में कहा कि कांग्रेस ने शांतिप्रिय हिंदुओं के आतंकवादी होने का भ्रम फैलाने का पाप किया है.’ यही बात परसों अमित शाह ने भी कही थी कि कांग्रेस ने आतंकवाद को हिंदू धर्म के साथ जोडने का षड्यंत्र रचा था. स्वामी असीमानंद के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं होने के बावजूद कांग्रेस ने अपनी वोट बैंक को खुश करने के लिए एक बेगुनाह संन्यासी को जेल में डालने का षड्यंत्र किया.’

शेष कल.

आज का विचार

राहुल गांधी ४९ साल के हो गए. तो भी कोई उन्हें अपनी बेटी नहीं दे रहा है. तो फिर हम अपना कीमती वोट क्यों दें?

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

अभिषेक बच्चन: अंकल नमस्ते. एक रोल है मेरी फिल्म में, काम करेंगे?

शत्रुघ्न सिन्हा: क्या रोल है जरा सुनाओ तो.

अभिेषक बच्चन: वह रिटायर्ड, चिडचिडे, गुड फॉर नथिंग बुजुर्ग का रोल है जो हर दिन अपने घर में खाने के समय खाने को लेकर झिकझिक करता है और पडोसी के घर कितना अच्छा खाना बनता है ऐसा कहकर झगडा करता है. एक दिन उसके परिवार वाले तंग आकर उसे घर में खिलाना ही बंद कर देते हैं. वह पडोसी के दरवाजे पर जाता है, तो वहां से भी उसे दुत्कार दिया जाता है…बस तभी से भूख भगाने के लिए वह भीख मांगने के लिए घूमता रहता है.

शत्रुघ्न सिन्हा: तेरे बाप का दोस्त हूं, मेरी कुछ तो शर्म कर….

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