(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल नवमी, विक्रम संवत, २०७९, रविवार, १० अप्रैल २०२२)
आज राम नवमी है. सभी को प्रणाम.
मुझे लगता है कि मैं अभी योगग्राम में आया उसके बजाय दस-बारह वर्ष पहले यहां आया होता तो अच्छा होता. ८ जून २००८ को स्वामी रामदेव ने हरिद्वार शहर से बीसेक किलोमीटर दूर राजाजी नेशनल पार्क के पास योगग्राम की विधिवत स्थापना की. योगग्राम में करीब दस वर्ष बाद (टू बी प्रिसाइज़ २०१७ में) निरामय को शामिल किया गया. २००८ के बाद के दो-चार वर्षों में ही मैं यहां आ गया होता तो अभी मेरी तबीयत जितनी अच्छी है उससे कहीं अधिक बेहतर होती (और स्वास्थ्य में जितनी खराबियां हैं, उनकी मात्रा थोड़ा बहुत, नगण्य सा होती).
मेरे हिसाब से ५० वर्ष की उम्र के आस पास किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह पूरी तरह हेल्दी हो-चाहे उसे छोटी बडी तकलीफें हों- योगग्राम में कम से कम सप्ताह दस दिन के लिए आकर रहना चाहिए. जीवन के आधे पड़ाव पर पहुंचने पर ही बाकी के पचास वर्षों की तैयारी कर लेनी चाहिए. पहले ५० वर्षों के दौरान जो कुछ भी खाया-पिया, जो कुछ भी अच्छी-खराब आदतें जीवनशैली में आईं उन सभी की बैलेंस शीट बनाने के लिए यह सप्ताह-दस दिन के हेल्थ वैकेशन बहुमूल्य साबित होगा.
वैसे यह अच्छा हुआ कि दस-बारह साल देर से ही सही लेकिन यहां आया तो सही. किसे पता कि यदि और दस-बारह वर्ष देर की होती तो यहां व्हीलचेयर में आना पड़ता.
मुझे तो यहां तक विचार आता है कि हर स्वस्थ-अस्वस्थ व्यक्ति को जीवन के हर दशक में ऐसा अनुभव लेना चाहिए जिससे कि किसी फाइन ट्यूनिंग की जरूरत हो तो की जा सके और घर लौटकर नए रुटीन का पालन करने की आदत डाली जा सकती है. पहले बीस वर्ष की उम्र में, फिर तीस, फिर चालीस, फिर पचास, साठ, सत्तर, अस्सी या फिर नब्ने वर्ष की उम्र में सात से दस दिन की ओवरहाउलिंग जरूरी है.
लेकिन ऐसी सीख मुझ जैसा कोई अनजाना व्यक्ति दे इसके बजाय आपको ही अपनी संतानों को इस बारे में प्रेरणा देनी चाहिए. संतानों के गले आपकी बात तभी उतरेगी जब आप ऐसा आचरण कर रहे हों. जैसे कि आप झूठ बोल रहे हों और बच्चों को सत्यवादी बनने की प्रेरणा दें तो बच्चे आपकी बात नहीं माननेवाले. उसी तरह से आप अपनी संतानों को योग-प्राणायाम-आयुर्वेद-नेचरोपथी के बारे में चाहे जितना लेक्चर दें लेकिन आप खुद ही यदि अलोपथी के चक्कर में पडे रहेंगे तो बच्चा आपका ही अनुकरण करेगा.
खाने पीने की आदतों में घर का वातावरण बड़ी भूमिका निभाता है. फास्ट फूड, जंक फूड, चॉकलेट-आइसक्रीम इत्यादि की आदतों के लिए बच्चों के स्कूल के वातावरण के बजाय उनके माता-पिता अधिक जिम्मेदार हैं. अधिक कठोर बने बिना छोटे बच्चों को दो समय घर का पौष्टिक भोजन और दो समय घर के पौष्टिक नाश्ते की आदत लगाई होगी तो उसका जंक फूड-फास्ट फूड की तरफ आकर्षण कम रहेगा. अपने मित्रों-फ्रेंड सर्कल के कारण वह देखादेखी में पिज्जा-कोकाकोला इत्यादि का `आनंद’ लेगा ही-आप मना करेंगे तो एकांत में लेगा. लेकिन ऐसे फूड पर ही उसके शरीर की गढन न हो, ऐसा तभी हो सकेगा जब आप उसे घर में बना ताजा स्वादिष्ट भोजन और घर का ताजा नाश्ता पेट भरकर खिलाएं. बच्चे पर कोई जोर जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं रहती. उसके पेट भरा होगा तो ही वह जंक फूड्स के चक्कर में नहीं पडेगा. लेकिन पैरेंट्स खुद ही यदि स्विग्गी-जोमैटो से मंगाया जंक फूड रात-दिन खाते हों तो बच्चा कहां से स्वामी रामदेव की सलाह मानेगा?
तैराकी, दौडना, कसरत, स्पोर्ट्स, योग इत्यादि बच्चों के जीवन का अभिन्न अंग बन जाएं, यह किस माता-पिता को अच्छा नहीं लगेगा. लेकिन यह सब जीवन प्रवेश करे, इससे पहले यदि आहार के प्रति सभानता हो तो इन सभी का अधिक लाभ होगा.
योगग्राम में आकर मैं प्रति दिन अनुभव कर रहा हूं कि यहां आपके रोग या शरीर के विकारों पर लिटरली चारों तरफ से हमला किया जाता है.
किन चार दिशाओं से?
शाम पांच बजे अभी मुझे हर्बल टी (विदाउट हनी) का प्रिस्क्रिप्शन मिलता है. हर्बल टी भले ही चाय कही जाती है लेकिन उसे बनाने में चाय की एक भी पत्ती नहीं होती. जडीबूटी से वह बनती है. दो तीन चम्मच दूध डाला जाता है. यहां आकर चाय-कॉफी तो बिलकुल बंद है, दूध भी बंद है.
सबसे पहले तो खुराक. घर में आप जो कुछ भी खाते हों, वह सब बंद करके सुबह के पांच से रात नौ बजे तक का आपका सारा खाना (और) पीना कस्टमाइज्ड होता है. सुबह पांच बजे आपको एक क्वाथ या काढा मिलता है जिसके लिए आपको अपना प्रिस्क्रिप्शन लेकर डाइनिंग हॉल में जाना होता है. मुझे आजकल सुबह पांच बजे तुलसी-हल्दी-अदरक का गर्मागर्म क्वाथ मिलता है. पांच दिन बाद प्रिस्क्रिप्शन बदलेगा तो यह क्वाथ भी बदल जाएगा.
साढ़े सात बजे स्वामी रामदेवजी का योगाभ्यास का ढाई घंटे का सत्र पूरा होने के बाद गार्डन में ही सर्वकल्प क्वाथ मिलता है जिसके आधे घंटे बाद ब्रेकफास्ट के लिए डाइनिंग हॉल में जाना होता है. सुबह का यह नाश्ता हर किसी की प्रकृति-विकृति के अनुसार निर्धारित किया जाता है और वह भी बदलता रहेगा. आज कल मेरे ब्रेकफास्ट में लहसुन की दो कच्ची कलियां, अंकुरित मेथी, भाप दिए गए टमाटर, पांच भिगोए गए बादाम और कुछ अखरोट तथा मिक्स्ड वेजिटेबल जूस होता है. कभी उसमें मिक्स्ड स्प्राउट्स का सलाद शामिल होता है तो कभी उसमें अनार, सेब, पपीता, तरबूज, पेर (नाशपाती), संतरा जैसे फल में से कोई एक फल मिलता है-रोज नहीं.
उसके बाद दोपहर के भोजन में भी ड्रास्टिक बदलाव आ जाता है. आज कल मैं लंच में सूप (भोपले का) और एक फ्रूट खाता हूं. भोजन के बीस मिनट बाद मेथी-राई का चूर्ण लेना होता है और दोपहर को दो बजे फिर एक क्वाथ पीना होता है.
शाम पांच बजे अभी मुझे हर्बल टी (विदाउट हनी) का प्रिस्क्रिप्शन मिलता है. हर्बल टी भले ही चाय कही जाती है लेकिन उसे बनाने में चाय की एक भी पत्ती नहीं होती. जडीबूटी से वह बनती है. दो तीन चम्मच दूध डाला जाता है. यहां आकर चाय-कॉफी तो बिलकुल बंद है, दूध भी बंद है. मुझे बचपन से चाय-कॉफी की आदत नहीं थी. इस फील्ड में आने के बाद चाय-कॉफी पीने लगा लेकिन अभी भी उसकी आदत नहीं है कि अमुक समय पर चाय चाहिए तो चाहिए. दूध पीता हूं. घर रहता हूं तो सबेरे और रात में दो बार पीता हूं. लेकिन घर से बाहर दूध पीना टालता हूं. घर पर गाय का दूध आता है-पाश्चराइज्ड किए बिना जो लंबे समय तक बिना उबाले पडा रहे तो बिगड जाता है इसीलिए कांच की बोतल में आता है ताकि आप उसे तुरंत गर्म करके दो बार उबाल लाएं, फिर ठंडा करके फ्रिज में रख दें तो अगले दिन तक कोई परेशानी नहीं होती. वैसे, आदत तो दूध की भी नहीं है. मैं दूध में इलायची डालता हूं, शक्कर वगैरह नहीं. कभी मूड हुआ तो मसाला मिल्क बनाकर पीता हूं या फिर हॉट चॉकलेट मिल्क बना लेता हूं. फिर से, इसकी आदत बिलकुल नहीं है. न ही मिले तो भी जरा भी बेचैनी नहीं होती.
यहां आकर चाय-कॉफी नहीं मिलती है तो काफी लोगों को शुरुआत में प्रॉब्लम होती है. स्वामीजी एक बार कहते थे कि `कभी कोई मुझसे कहता है कि बाबा, आप इतने बडे आदमी हो तो भी हमें एक कप चाय तक नहीं पिलाते!’
दूध नहीं मिलता है, इससे मुझे कोई समस्या नहीं है. हां, चार दिन पूर्व पहली बार थोडी सी हर्बल टी मिली तो मन खुश हुआ. अब मैं रोज उठकर शाम पांच बजे मिलनेवाली हर्बल टी की आतुरता से राह देखता हूं.
कल एक घटना हुई. मैने हर्बल टी का पहला घूंट लिया और मुझे स्वाद में थोडा बदलाव लगा. मीठा लगा. फिर ध्यान में आया कि उसमें शहद डाली गई है जब कि मुझे प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार विदाउट हनी लेनी है. वेटर की यह भूल थी. मीठा खाने-पीने की अभ्यस्त हो चुकी मेरी जीभ को यह वाली मीठी `चाय’ पसंद नहीं आई! यहां आकर मेरा स्वाद बिलकुल बदल गया है. आशा करता हूं कि पचास दिन बाद घर जाने के बाद भी मिठास का आकर्षण कम हो जाय और नमक भी मेरे आहार से बिलकुल घट जाय. (यहां सफेद नमक किसी भी आहार में नहीं होता. आवश्यक हो तो सैंधव/ सेंधानमक) का उपयोग होता है.
पांच बजे की `टी पार्टी’ के बाद रात साढ़े सात बजे डिनर होता है. आज कल रात्रि के भोजन में मुझे एक ही फल मिलता है. दूसरा कुछ भी नहीं. डिनर के बीस मिनट बाद सरसों-मेथी फांकनी होती है और सोने से पहले एक और क्वाथ लेना होता है.
इसके अलावा दिन के दौरान जब भी पानी पीने की इच्छा होती है तब (या दवाएं-गोलियां लेनी होती हैं तब) थर्मस में दिया जानेवाला पानी पीना होता है. मुझे अभी कायाकल्प जल दिया जाता है. पहले गिलोय का पानी मिलता था, पूरे दिन के दौरान आठ से बारह गिलास पानी पीना ही होता था. वैसे मैं तो बीच बीच में पौना-आधा गिलास सादा पानी पी लेता हूं. कम से कम इतनी लग्ज़री तो चाहिए ही.
तो ये हुई चारों दिशाओं से किए जा रहे हमले की पहली दिशा-खाना-पीना.
दूसरी दिशा है योग और प्राणायाम की. सुबह ढाई घंटे (पांच से सात बजे) और शाम को डेढ़ घंटा (छह से साढे सात) कुल चार घंटे का योगाभ्यास कंपल्सरी करना होता है. अनुपस्थित रहें तो फाइन भरना पडेगा और अधिक अनियमित होंगे तो आपकी अन्य थेरेपियां/ ट्रीटमेंट बंद कर दिए जाएंगे, ऐसी सूचना आपके कमरे में फ्रेम करके लगाई गई है. आपको तमाम आसन सिखा दिए जाते हैं और उसके बाद कहा जाता है कि आपके लिए जरूरी चार से छह आसनों पर कॉन्सेंट्रेट करो. प्राणायाम में अनुलोम-विलोम, कपालभांति और भस्रिका पर सबसे अधिक जोर दिया जाता है. तो ये हुई दूसरी दिशा.
तीसरी दिशा है विभिन्न चिकित्साएं-ट्रीटमेंट या थेरेपियां जिसमें, सुबह के समय चक्षु प्रक्षालन तथा जलनेति से शुरू करके दिन के दो सत्रों में (सुबह और दोपहर) होनेवाली थेरेपियों का समावेश है. इन सभी थेरेपियों को लेने के लिए यहां के थेरेपी सेंटर में पहुंच जाना होता है-मडबाथ, फुल बॉडी मसाज, काफ (पिंडली) मसाज, शंख प्रक्षालन, स्टीम बाथ इत्यादि अनेक थेरेपियां मैने बारी बारी से ली हैं और अभ भी अन्य कई बाकी हैं जो आगामी दिनों में लूंगा. डॉक्टर्स तय करते हैं कि कब, किस दिन आपको कौन सा उपचार दिया जाना है.
चक्षु प्रक्षालन के लिए आई कप्स तो यहां आते ही मुझे मिल गए थे. जलनेति के लिए पात्र भी साथ ही दिया गया था. मैने अब क्या किया है कि सुबह उठकर चार बजे ट्रीटमेंट सेंटर में जाकर ये दो क्रियाएं करने के बादले अपने रूम के एकांत में, अपने बाथरूम की बेसिन में ही मैं ये दोनों क्रियाएं करता हूं. मेगास्टोर से पतंजलि का त्रिफला चूर्ण तथा सफेद नमक खरीदा है. रात को दो चम्मच त्रिफला एक गिलास पानी में मिला दी जाती है. सुबह खादी की रुमाल से दो बार छानना होता है. चक्षु प्रक्षालन के लिए पानी तैयार है. इसी तरह से जलनेति के लिए, रूम में ही पानी गर्म करके उसमें चम्मच भर नमक मिलाकर जलनेति का जल तैयार हो जाता है. ट्रीटमेंट सेंटर पर जाने-आने का समय बच जाता है और हमें अपनी प्राइवेसी भी मिलती है.
सुबह जल्दी जागने से कोई तकलीफ नहीं होती. साढ़े तीन का मेरा अलार्म बजने से पांच-दस मिनट पहले ही आंख खुल जाती है. हां, रात आठ-साढ़े आठ बजने पर लगता है कि अब दिमाग की बत्ती धीरे-धीरे गुल हो रही है और नौ बजे के बाद तो बिलकुल निष्क्रिय हो जाते हैं. कल अपवाद स्वरूप मुंबई से एक मित्र का फोन आया तो प्रेम से गप्पे लगाए जिसके कारण सोने में देर हो गई, इसीलिए आज सुबह जागते समय थोडी तकलीफ भी हुई लेकिन फिर से दिन के दौरान स्फूर्ति ही स्फूर्ति.
तो ये सारी जो थेरेपियां और ट्रीटमेंट्स हैं, वे तीसरी दिशा हुईं.
चौथी दिशा है आयुर्वेदिक दवाइयों की. पतंजलि में दिव्य फार्मसी के ब्रांड से अनेक दवाएं तथा अन्य प्रोडक्ट्स बनते हैं. पहले दिन मुझे जो दवाएं लिखकर दी गई थीं, उन्हें अब मैने लेना शुरु कर दिया है.लेकिन दवाएं लेने से पहले ही शुगर-बीपी नॉर्मल हो गए थे. यहां के डॉक्टर की सलाह है कि अभी दवाएं ले लेनी हैं- उन्हें कब बंद या कम करना है, यह जाते समय तय करेंगे. इन दवाओं का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और दूसरी बात, ये दवाएं आपके रोग-विकार को हटाने में सहायक होती हैं और इसके अलावा आपके शरीर को अन्य कई तरह से पोषण देने में उपयोगी होती हैं. स्वामीजी और आचार्या बालकृष्ण की पर्सनल देखरेख में इन दवाओं का फॉर्मूला बनता है. मेडिकल सायंस के जो पैरामीटर्स हैं, उनके अनुसार लैब में परीक्षण होता है. उसके बाद अन्य परीक्षण होने के बाद वे बाजार में पहुंचती हैं. अलोपथी के विश्वासपात्र डॉक्टर्स भी दिव्य फार्मसी की दवाओं की सौ प्रतिशत शुद्धता की गारंटी देते हैं. बाकी, जिन्हें आयुर्वेद या स्वामी रामदेव की गतिविधियों का विरोध करना है, वो तो करेंगे ही.
तो इन चार दिशाओं से अभी मेरे शरीर पर जुटे छोटे-मोटो रोग-विकारों पर हमला किया जा रहा है. २१ मई की सुबह इस युद्ध का विजय दिवस मनाकर मैं मुंबई के लिए रवाना होनेवाला हूं. आज ही रिजर्वेशन करवा लिया है.