गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, सोमवार – ३ दिसंबर २०१८)
बचपन से हमें माता-पिता की ओर से, स्कूल में शिक्षकों की ओर से अनुशासन का पाठ पढाया जाता है. नियमित समय पर भोजना करना चाहिए, नियमित समय पर पढना चाहिए, नियमित समय पर सो जाना चाहिए, नियमित समय पर उठ जाना चाहिए.
लेकिन अनुशासन के ये पाठ हममें उतरते नहीं हैं. हमने मान लिया है कि अनुशासन यानी बंधन है और मैं यदि इस बंधन को स्वीकार करता हूं, अनुशासन में रहता हूं तो मैं अपना इच्छित कार्य नहीं कर सकूंगा, अपनी जिंदगी में अपने तरीके से मैं नहीं जी सकूंगा. हम अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता हासिल करने के लिए, अपना मनचाहा काम करने के लिए किसी के गुलाम न बन जाएं, इस भावना के साथ हमने अपनी जिंदगी को अपने तरह से जीने के लिए अनुशासन में रहने की बात को सीरियसली नहीं लिया, इतना ही नहीं बल्कि उसके विपरीत सिरे पर जाकर अनुशासनहीनता से रहने का चयन किया मानो हम विद्रोही बन रहे हों.
ये बहुत ही बडी गलतफहमी थी. बुजुर्गों ने भी नहीं समझाया कि अनुशासन में रहना और जीवन में मनचाहा करना, ये दोनों अलग बातें हैं, और एक दूसरे के साथ जोडनी ही हो तो इस तरह से उन्हें जोडना चाहिए कि यदि आपको जीवन में इच्छित कार्य करना हो तो पहली शर्त ये है कि अनुशासन में रहना होगा.
आपके परिवार में सभी लोग आपको डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते हैं, लेकिन आपको अपना मनचाहा करके तबलावादक बनना है तो प्रतिदिन नियमित रूप से सुबह उठकर घंटों रियाज करना होगा. ऐसा अनुशासन नहीं होगा तो आप तबलावादक बन चुके. क्रिकेटर बनना हो तो रोज जल्दी उठकर मैदान में जाकर अभ्यास करना पडता है, विभिन्न व्यायाम करने होते हैं, खाने पीने के संबंध में परहेज रखना पडता है. ऐसे अनुशासन के बिना आप क्रिकेटर नहीं बन सकते.
आपको अपने जीवन में मनचाहा करना है, आपको अपनी तरह से जीना हो तो उसकी पहली अनिवार्य शर्त है अनुशासन-डिसिप्लिन. इतना ही नहीं, आपको अगर अंडरवर्ल्ड में जुडकर अपने मन की बात करनी है तो भी अनुशासन का पालन करना होगा.
अनुशासन केवल जल्दी उठना या निश्चित समय पर खा लेना ही नहीं है. अनुशासन यानी नियमितता है. अनुशासन यानी संयम है. अनुशासन का ठीक विपरीत शब्द है लापरवाह, अमर्यादित या बिना मर्यादा के जीना.
जीवन में जो भी काम करना हो उसे करने से पहले जीवन में नियमितता, संयम, मर्यादा होना जरूरी है. उसके बिना आपमें भले कितनी ही प्रतिभा क्यों न हो, हम चाहे जितनी मेहनत कर लें, हमें चाहे जितने मौके मिलें- हम कुछ नहीं कर सकेंगे. या तो बिलकुल नाकाम होंगे, या फिर मीडियोकर स्तर के कामों में हाथ-पैर मारते रहेंगे.
टीनेज में हम सभी विदाउट कॉज होते हैं. मन में विद्रोह करने की तीव्र भावना होती है. दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है सब गलत है- उसे रातोंरात बदल देने का जोश होता है. उस समय हमें पता नहीं होता कि ये सब जो कुछ भी चल रहा है, वो हमारे बाप दादा नहीं थे, तभी से चलता आ रहा है. उसे बदल कर अगर कुछ अलग करना है तो उसे तोडकर कुछ नहीं होगा, उसके स्थान पर नया क्या करना है, इसका विचार पहले करना होगा. बाद में जो स्थापित बातें हैं उन्हें बदलने की बात की जा सकती है. कई संस्थाओं या देशों में भी किसी व्यवस्था तंत्र में परिवर्तन लाने की इच्छा रखनेवाले लोगों से कहें कि चलो, ये सब नष्ट कर दें. लेकिन उसकी जगह पर आप क्या नया लाना चाहते हैं, कितने समय में और किस तरह से लाना चाहते हैं, इसकी ठोस योजना बताइए? टीनेज में ही नहीं, उसके बाद की उम्र में भी हममें से कई लोग रिबेल बिदाउट कॉज जैसा बर्ताव करते हैं.
खैर, टीनेज में कोई भी हमें अनुशासन का पाठ पढाना चाहते है तो हमें वह बंधन में रखना चाहता है, ऐसा प्रतीत होता है. ऐसा लगता है कि कोई भी हमें अपनी तरह से जीने नहीं देना चाहता.
लेकिन अब देख लिया कि हमें अपनी तरह से जीना है तो अनुशासनबद्ध रूप से जीवनशैली को संवारना होता है. अनुशासित जीवनशैली के बिना हम अपनी तरह से नहीं जी सकते. यह बात अगर हम समझ लें तो हमें तो इसका लाभ होगा ही, इसके अलावा टीनेजर्स को अधिक लाभ होगा बशर्ते इस बात को आप उन्हें उनकी भाषा में, उनकी दुनिया को आत्मसात करके समझाएं. यदि ऐसा होता है तो यह पाठ पढाने के लिए वे आपका उपकार कभी नहीं भूलेंगे.
आज बस इतना ही.
आज का विचार
मैने सब्जीवाले से २० किलो आलू मांगे. पहले तो वह आश्चर्य से देखता रहा. फिर उसने धीरे से पूछा: मशीन आ गई क्या?
– वॉट्सएप पर पढा हुआ
एक मिनट!
बका: इस वॉट्सएप में जरूर तरह तरह के विटामिन होने चाहिए.
पका: क्यों तुझे ऐसा लगता है?
बका: अगर एक दिन हम वॉट्सएप का उपयोग नहीं करते हैं तो सारे दिन कमजोरी महसूस होती है, सुस्ती जैसी लगती है.










