गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, बुधवार – १९ दिसंबर २०१८)
क्लेम द होल स्काय. इट्स योर्स. रजनीश ने कहा है. हमारे भीतर अपार संभावनाएं हैं, लेकिन हम मुरझाकर जीते हैं. अपने पंख हम ही काट डालते हैं. ओशो रजनीश के इन शब्दों के रनवे पर टेक ऑफ लेकर जितनी ऊँची उडान भरी जा सकती है उतना करना है आज के लेख में.
बचपन से हमें छोटा लक्ष्य दिया गया जीवन के लिए. तुम्हें डॉक्टर बनना है. तुम्हे बैंक में नौकरी करनी है. तुम्हें पिताजी के साथ बिजनेस में जुडना है. ये लक्ष्य किसने तय किया. मोटे तौर पर पैरेंट्स ने. उनकी संकरी दृष्टि में जितना समा पाया वे उतना ही देख पाए. या फिर हमने अपने आस पास के लोगों को देखकर स्वतंत्र रूप से अपने जीवन के उद्देश्य को तय कर लिया. वे लोग भी संकुचित दृष्टि के थे, इसीलिए हमारा उद्देश्य भी संकुचित रहा. आपके एप्टिट्यूड टेस्ट के अंतर्गत आपको वोकेशनल गाइडेंस देने वाले प्रोफेशनल्स ने एसएससी की छुट्टी में आपका आई.क्यू. टेस्ट लेकर आपसे कहा होता कि १३५ से अधिक जिनका आई.क्यू. होता है वे जीनियस होते हैं और धरती पर रहनेवाले ९९ प्रतिशत लोगों के पास ऐसी बुद्धिमत्ता नहीं होती इसीलिए आइंस्टाइन ने जिस प्रकार के काम किए थे, उसी तरह का काम अपने मनपसंद क्षेत्र में करने जुट जाओ. तो आज बात ही कुछ और होती. लेकिन इसके बजाय वोकेशनल गाइडेंस वाले ने कहा कि आप ट्रक ड्रायवर बन जाइए, आजकल उसमें काफी कमाई है. भविष्य में लोन लेकर अपना खुद का ट्रक आप चलाने लगेंगे. सारी जिंदगी खाने पीने की चिंता नहीं रहेगी. आपके माता-पिता, मित्र, बुजुर्ग सभी ने अपनी अपनी राय दी: इतना अच्छा आई.क्यू. हो तो उसे प्लमर (`बी’ सायलेंट होता है) ही बनना ही चाहिए. बाथरूम का नल रिपेयर करते करते भविष्य में आपको कमोड फिट करना भी आ जाएगा और धीरे धीरे आप किसी अच्छे इंटीरियर डेकोरेटर का सबकॉन्ट्रैक्ट लेने लगेंगे. जीवन सुखी हो जाएगा. भविष्य में आप इतना विशाल घर ले सकते है जिसमें कि दो बाथरूम होंगे.
संकुचित लोगों ने आपकी अपनी दृष्टि को संकुचित कर दिया और आपको भी आंखों पर घोडे की पट्टी लगाकर दुनिया को देखने की आदत पड़ गई. आपके यहां संतानों का जन्म हुआ. आपने उन्हें भी डॉक्टर, इंजीनियर, प्लमर, ट्रक ड्रायवर बना दिया. वे संतानें भी अपनी संतानों को वही बनाएंगी.
यह श्रृंखला निरंतर चलती रहती है, यहीं पर रजनीशजी आकर दनदानाता हुआ तमाचा लगाते हैं. मनहूस मानवों ये क्या कर रहे हो? जिंदगी की कोई सीमा नहीं है, कोई सरहद नहीं है. मेरी सोसायटी की तमाम इमारतों के फ्लैट्स में मैं अकेले ही प्लमिंग का काम करूंगा और खूब कमाऊंगा, ऐसे सपने नहीं देखने चाहिए, बेवकूफ. (ये रजनीशजी कहते हैं, मैं नहीं). चोरवाड नामक गांव में शिक्षक के घर जन्मे बालक ने जैसे सपने देखे, वैसे सपने देखने चाहिए. ५६४ रजवाडों को एकत्रित करके भारत को अखंड बनाए रखने के सपने देखने चाहिए. डोनाल्ड ट्रंप जैसे आधा दर्जन वैश्विक नेताओं में अपनी गणना हो, ऐसे काम करने के सपने देखने चाहिए. दिलीपकुमार और अमिताभ बच्चन की मौजूदगी से चमकती इंडस्ट्री में `मन्नत’ जैसे आयकॉनिक बंगले का मालिक बनने के सपने देखने चाहिए.
अब तो ये सारे सपने भी बासी माने जाएंगे, क्योंकि ये सपने तो कोई देख चुका है, और साकार भी कर चुका है.
अब नए सपनों का सृजन करना है, उन्हें पूरा भी करना है. रजनीशजी के रजनीश बनने से पहले उन जैसा कोई भी नहीं था. वे एकमेव हैं. न भूतो न भविष्यति हैं. मुझे भी एकमेव बनना है. मुझ जैसा कोई न पहले हुआ और न भविष्य में होगा. कोई मेरी बराबरी न कर सके ऐसे काम मुझे इस जीवन में करने हैं. हमारे विचार इस तरह से दृढ हों, इसके लिए रजनीशजी कहते हैं कि `सारा आकाश अपनी आंखों में’ रखकर जियो.
ये कैसे संभव हो सकता है?
सबसे पहले तो रजनीशजी की इस बात को तब तक मन में रटते रहें जब तक कि ये बात हमारा स्वभाव न बन जाए. दिन-रात इस बात का चिंतन-मनन करते रहें और उसे अधिक बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करें.
दूसरे दौर में यह तय करेंगे कि इन अपार संभावनाओं में से मुझे क्या पसंद करना है. मुझे नया क्या करना है. ऐसा कुछ जो अभी तक किसी ने किया हो. ऐसा जो भविष्य में कोई कर न सके. आप किसी भी पुराने कीर्तिमान को तोड सकते हैं.
इतना ही नहीं, जिसमें किसी से भी बराबरी न हो ऐसा काम भी कर सकते हैं.
सीमाओं को पार करेंगे और दूसरों को भी सीमित नहीं बनाएंगे. मेरे ख्याल से रजनीशजी इतना ही कहना चाहते हैं.
आज का विचार
सहम सी गई हैं ख्वाहिशें
शायद जरूरतों ने ऊंची आवाज में बात की होगी.
– गुलजार
एक मिनट!
बका: पका, वोट किस पार्टी को देना चाहिए पता है?
पका: किस पार्टी को?
बका: उस पार्टी को नहीं कि जो जीते तो पाकिस्तान जश्न मनाए, बल्कि जिसकी जीत पर सारा खुश हो जाए उसे.