पंडित नेहरू को सरदार पटेल के किए कार्यों से इर्ष्या होती थी

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – ८ नवंबर २०१८)

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के वर्ष की बात है. गांधीजी की हत्या से बीसेक दिन पहले सरदार वल्लभभाई पटेल ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ अपने मतभेदों के बारे में एक टिप्पणी गांधीजी को भेजी थी और उस टिप्पणी की प्रति स्वयं पंडितजी को एक कवरिंग लेटर के साथ भेजी थी.

१२ जनवरी १९४८ के दिन सरदार ने गांधीजी को जो टिप्पणी भेजी थी वह नेहरू द्वारा १ जनवरी १९४८ को गांधीजी को लिखे पत्र के संदर्भ में थी. नेहरू ने गांधीजी को लिखा था: `यह बात सच है कि सरदार और मेरे बीच केवल स्वभावगत अंतर ही नहीं हैं बल्कि आर्थिक और सांप्रदायिक विषयों के प्रति दृष्टिकोण में भी अंतर है. हम जब कांग्रेस में साथ साथ काम कर रहे थे, तभी से कई वर्ष बीत गए पर ये भेद जारी ही रहा. लेकिन यह मतभेद होने के बावजूद, परस्पर आदर और प्रेम के अलावा स्पष्ट रूप से बहुत कुछ दोनों के बीच समान थे और व्यापक दृष्टि से कहें तो स्वतंत्रता ही एकमात्र राजनीतिक उद्देश्य था. इसीलिए हमने इतने वर्षों तक साथ साथ काम किया और एक – दूसरे के अनुकूल बनने के लिए हमसे जो संभव था वह सब किया….(लेकिन आजादी मिलने के बाद अब) हमारा राजनीतिक उद्देश्य कमोबेश मात्रा में सिद्ध होने से हम जिन प्रश्नों पर कुछ हद तक मतभेद रखते थे वह अब अधिक से अधिक उभर कर सामने आ रहे हैं.’

इस पत्र में हम देख सकते हैं कि नेहरू और सरदार के बीच कितने बड़े मतभेद हो सकते हैं और इसके बावजूद दोनों ने एक ही उद्देश्य को नजर के सामने रखते हुए देश को आजादी मिलने का लक्ष्य पूरा करने के लिए परस्पर समझौता करके गाडी खींची. नेहरू को प्रधान मंत्री बनाया गया. सरदार को खारिज करके गांधीजी ने नेहरू को इस सर्वोच्च आसन पर बिठाया था. स्वाभाविक रूप से प्रधान मंत्री का पद मिलने के बाद नेहरू में सुषुप्त अवस्था में पडा अहंकार बाहर आना ही था कि अब तो मैं जो कहूंगा वही होगा, सरदार जो कहेंगे वह नहीं. इस कारण से मतभेद बाहर आते गए. नेहरू ने तो गांधीजी को इस पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा था:`….प्रधान मंत्री की जब इच्छा हो तब वह कदम उठाने के लिए आपको पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए….यदि प्रधान मंत्री इस तरह से कार्य करेगा तो वह मात्र शोभा की मूर्ति बनकर शायद ही आगे कार्यरत रह सकता है…’

एक तरह से नेहरू ने इस पत्र द्वारा गांधीजी को परोक्ष रूप से धमकी और खुले तौर पर चेतावनी दी कि यदि आप सरदार को `काबू’ में नहीं रखते हैं तो मैं प्रधान मंत्री के पद से इस्तीफा देने की चाल चलकर समुद्र में उतारी गई नई नई देश की नैया को डांवाडोल कर दूंगा.

सरदार ने ५६३ रियासतों को भारत में शामिल करने का भगीरथ कार्य कितनी कुशलता से किया, ये इतिहास हम सभी जानते हैं. सरदार का वह काम उनकी १८२ मीटर ऊँची प्रतिमा जितना ही विशाल था. यह काम यदि नहीं हुआ होता देश अंग्रेजों की इच्छा के अनुसार कई टुकड़ों में बंट चुका होता. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार की प्रतिमा का अनावरण करते समय अपने भाषण में जो कहा था वैसा ही होता? जूनागढ और हैदराबाद को भारत में मिलाने का काम सरदार ने नहीं किया होता तो आज हमें गीर के सिंह देखने या हैदराबाद का चारमीनार देखने के लिए विसा लेना पड़ता.

नेहरू ने सरदार को हमेशा अंडरमाइन किया, अंडरवैल्यू किया. नेहरू के पास अपनी पर्सनैलिटी का करिश्मा था लेकिन सरदार के पास लगन, निष्ठा और चाणक्य बुद्धि का संगम था. देश आपकी पर्सनैलिटी कितनी स्मार्ट है इस आधार पर नहीं चलता. देश चलाने के लिए समझदारी, धैर्य और दूरदर्शिता होनी चाहिए, जिसका नेहरू में अभाव था. रियासतों को एकत्रित करने के सरदार के काम की आज हर कोई प्रशंसा करता है लेकिन उस समय नेहरू सरदार के इस विराट कार्य में तकनीकी आपत्तियां उठाते रहते थे. गांधीजी को लिखे उस पत्र में नहरू आगे क्या लिखते हैं, ये पढते हैं:

`देशी राज्यों का मंत्रालय एक नया मंत्रालय है. उसके ऊपर महत्वपूर्ण प्रश्नों का समाधान करने की जिम्मेदारी है. मैं ये कहूं कि अभी तक उसने (इस मंत्रालय ने) इन प्रश्नों को असाधारण सफलता से हल किया है और लगातार खडी होनेवाली रुकावटों को पार किया है. पर इसके बावजूद मुझे लगता है कि जिसमें सैद्धांतिक प्रश्न शामिल होते हैं ऐसे अनेक निर्णय प्रधान मंत्री से पूछे बिना लिए जा रहे हैं. जहां तक मेरा सवाल है, मैं इन फैसलों से सहमत हूं, लेकिन मंत्रि मंडल या प्रधान मंत्री को पूछे बिना यदि ये निर्णय लिए गए हैं तो यह कार्यशैली मुझे गलत लग रही है. नया मंत्रालय होने के कारण यह स्वाभाविक बात है कि वह प्रचलित प्रणालि से बाहर रहकर काम कर रहा है. कुछ हद तक प्रचलित प्रणालि को नियमों के अंदर लाने का प्रयास होना चाहिए.’

हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि नेहरू की इस गोल गोल भाषावाली शिकायत में उनकी हीनभावना तथा सरदार के नेत्रदीपक प्रदर्शन के प्रति ईष्या दिखती है. रियासतों को एकजुट करने की जिम्मेदारी यदि नेहरू ने अपने सिर पर ली होती तो आज दुनिया में गोंडल और देवगढ बारिया जैसे देश होते जिनका अपना राष्ट्रध्वज होता, अपनी मुद्रा होती और ऐसे पांच सौ से अधिक राष्ट्र होते, भारत छिन्न भिन्न हो चुका होता. यूरोप में या सोवियत रूस के टूटने से जो छोटे छोटे देश बने हैं वैसी हालत इस प्रदेश की होती. सरदार ने मंत्रिमंडल या प्रधान मंत्री को विश्वास में लेकर यह काम करना चाहिए था जिसके पीछे नेहरू का यह आशय हो सकता है कि ऐसे भगीरथ कार्य का अल्टीमेट श्रेय नेहरू खुद ले सकते थे, सरदार तो चिठ्ठी के चाकर थे, ऐसी छाप पडती और रियासतों को एकजुट करके भारत को अखंड रखने का ताज नेहरू के सिर बंधता. और यदि सरदार ने सचमुच में रूल बुक के अनुसार काम किया होता तो? कश्मीर का मामला जैसे यूनो में है उसी प्रकार से जूनागढ और हैदराबाद ही नहीं, गोवा-दीव-दमण-पांडिचेरी के मसले भी यूएन में होते, यह देश बर्बाद हो चुका होता.

कल अखबार बंद रहेगा. परसों देखेंगे कि नेहरू द्वारा गांधीजी को लिखे इस पत्र की प्रति गांधीजी ने जब सरदार को भेजी तब सरदार ने उसका क्या जवाब दिया.

आज का विचार

सिर्फ ऋतु बदलती है तो कई सारे लोगों को सर्दी-खांसी हो जाती है. अभी तो सारा देश बदल रहा है. कई सेकुलर साम्यवादियों को दस्त होना स्वाभाविक है.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

बका फूट फूट कर रोया, जब पत्नी का कक्षा ८ का रिजल्ट उसके हाथ लगा जिसमें लिखा:

`मृदु भाषी और शांतिप्रिय और आचरण अच्छा.’

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