गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, शुक्रवार – २२ फरवरी २०१९)
एस.सी.एस. के बारे में आप जानते हैं. सी.बी.एस.ई और आई.सी.एस.ई. के बारे में भी आपको पता है. आपने खुद या आपकी संतान ने स्कूल से कॉलेज में जाने से पहले इनमें से किसी एक बोर्ड की परीक्षा पास की है, लेकिन बी.एस.बी. के बारे में क्या आप जानते हैं? नहीं जानते होंगे. यह स्वाभाविक भी है क्योंकि अभी तक इसका जन्म नहीं हुआ है, लेकिन ये जन्म लेने की तैयारी में है.
मोदी ने पिछले पौने पांच वर्ष में क्या किया है, इसकी सूची काफी लंबी है. उन्होंने जो कुछ भी किया है वह सब आप तक नहीं पहुंचा है, क्योंकि मीडिया ने पहुंचने नहीं दिया है या अखबार के किसी कोने में दबकर उसकी महत्ता गौण हो गई है.
भारतीय शिक्षा बोर्ड (बी.एस.बी.) की खबर इसी में से एक है. पहले जान लीजिए कि ये बी.एस.बी. है क्या. भारत की वैदिक संस्कृति तथा वेद विद्या की शिक्षा देने के लिए इस बोर्ड की स्थापना देश के एच.आर.डी. मंत्रालय द्वारा की जा रही है. मानव संसाधन विकास विभाग को किसी जमाने में शिक्षा विभाग माना जाता था, यह तो आप जानते ही हैं और अब शिक्षा मंत्री को अब एच.आर.डी. मिस्टर कहा जाता है यह भी आपको पता है जो कि प्रकाश जावडेकर हैं. अभी देश में कई पाठशालाएं चलती हैं, गुरुकुल चलते हैं. ऐसे अनेक विद्यालय हैं जिनमें वैदिक और आधुनिक शिक्षा का समन्वय होता है. ऐसी तमाम शिक्षा संस्थाओं को सरकारी स्वीकृति मिले, उचित अनुदान मिले तथा अन्य सुविधाएं मिलें, शिक्षकों तथा शिक्षकेतर कर्मचारियों की वेतन नीति में स्टैंडर्डाइजेशन किया जाय तथा इन शिक्षा संस्थानों में पढकर तैयार होने वाले विद्यार्थियों को एस.एस.सी. इत्यादि बोर्ड के प्रमाणपत्र लेकर निकलनेवाले विद्यार्थियों की तरह ही भविष्य में अवसर प्राप्त हों इसलिए भारतीय शिक्षा बोर्ड यानी कि बी.एस.बी. की स्थापना की जा रही है. बहुत जल्द कर जा रही है. प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
भारत सरकार ने तय किया है कि इस बोर्ड की स्थापना करने के लिए सरकार बीच में से हट जाएगी और निजी पक्षों को इसकार कारभार सौंप कर खुद निरीक्षक की भूमिका निभाएगी. सरकार द्वारा बी.एस.बी. को संपूर्ण मान्यता प्राप्त होगी.
भारत सरकार ने पहले ही `महर्षि सांदीपनी राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान’ (एम.एस.आर.वी.वी.पी) के तत्वावधान में एक सार्वजनिक सूचना जारी करके संबंधित संस्थाओं को बी.एस.बी. की रचना करने के लिए आमंत्रित किया है, इन संस्थाओं से `एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट’ यानी अभिरुचियां आमंत्रित की गई हैं.
वैदिक शिक्षा का राष्ट्रीय स्तर का बोर्ड यानी बी.एस.बी. का निर्माण करने के लिए संस्थानों की एक पात्रता तो ये है कि वह पिछले कम से कम पांच वर्ष से स्कुलों में वेद विद्या, संस्कृत भाषा की शिक्षा, योग आदि की शिक्षा द्वारा भारत की पारंपरिक विरासत का संवर्धन करने, समृद्ध करने तथा उसका प्रचार- प्रसार करने का काम करनी चाहिए. इसके अलावा संस्थान की शुद्ध संपत्ति रू.३०० करोड से अधिक होनी चाहिए और बी.एस.बी की रचना करने के लिए उस संस्थान के पास कम से कम २.५० करोड का कॉर्पस फंड अलग से जुटाने की क्षमता होनी चाहिए तथा डेवलपमेंट फंड की राशि अलग से होनी चाहिए.
बी.एस.बी. की स्थापना करने का बीडा अभी तक तीन संस्थानों ने उठाया है. इनमें किसी एक को सरकारी मान्यता मिलेगी. इन तीनों में से एक संस्था स्वामी रामदेव की पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट है जिसके ट्रस्टियों में रामदेवजी के अलावा आचार्य बालकृष्ण, स्वामी मुक्तानंद तथा शंकरदेवजी है.
भारत की सांस्कृतिक और शैक्षिक विरासत काफी बडी है. मुगल काल में, अंग्रेजों के समय में, सवाए मुगल और ड्यौढे अंग्रेज यानी नेहरू के काल में तथा उसके बाद उनके मानसपुत्र समान वामपंथी सेकुलरों के काल में इस समृद्ध विरासत को दरकिनार करने की काफी कोशिश की गई. आज की तारीख में भी वामपंथी तो यही कर रहे हैं और कांग्रेस के साथ विपक्षी भी यही चाहते हैं, लेकिन बी.एस.बी. की स्थापना होने के बाद आप देखिएगा कि वेद शिक्षा, संस्कृति शिक्षण, अपने शास्त्रों तथा दर्शनों की शिक्षा तथा भारतीय परंपराओं की शिक्षा हिरन की तरह कुलांचे भरने लगेगी.
एस.एस.सी. जैसे बोर्ड की तरह बी.एस.बी. अपना पाठ्यक्रम तैयार करेगी, यह सिलैबस पढाने के लिए अपनी पाठ्यपुस्तकें बनाएगा, परीक्षाएं लेगा और प्रमाणपत्र प्रदान करेगा. वर्तमान में चल रहे गुरुकुलों, विद्यालयों तथा भविष्य में शुरू होनेवाले आधुनिक शिक्षा के साथ साथ वेदाभ्यास करानेवाले विद्यालयों को इससे काफी बडा लाभ होगा.
स्वामी रामदेव तो पहले से ऐसी पाठशालाएं चला रहे हैं. इसके अलावा आर.एस.एस. द्वारा विद्या भारती की स्कुलें चलती हैं.
आर्य समाज गुरूकुलों का संचालन करता है. साथ देश में कई जगहों पर व्यक्तिगत आधार पर, निजी या सार्वजनिक ट्रस्तट द्वारा तथा मंदिरों – देवस्थानों द्वारा जगह जगह पर संस्कृत पाठशालाएं तथा गुरूकुल चलाए जा रहे हैं. भविष्य में इन सभी को खूब लाभ होगा, देश को लाभ होगा, हम सभी को लाभ होगा. दसवीं ही नहीं, बारहवीं कक्षा तक ये सभी संस्थान अपने विद्यार्थियों को सही मायने में भारतीय नागरिक बनाने के लिए संस्कार दे सकेंगे. हमें लगेगा कि काश पचास-साठ साल पहले ऐसा हुआ होता! आजादी मिलने के तूरंत बाद ही बी.एस.बी. की रचना हुई होती तो? ये हमारा दुर्भाग्य है कि हम नेहरू- युग में पैदा हुए. हमारा सौभाग्य है कि हमें मोदी युग देखने को मिल रहा है.
आज का विचार
इमारान खान यदि बातचीत और चर्चा से समस्या का हल कर सकते तो उन्हें तीन बार तलाक नहीं लेना पडता.
– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ
एक मिनट!
बका: अरे बकी, सुना क्या, पी.एम. ने इस महीने सारे देश के तमाम ऑफिसों स्कुलों- कॉलेजों को २९,३० और ३१ तारीख को छुट्टी की घोषणा की है.
बकी: ऐसी बात? बहुत अच्छा है.
चलो तीन दिन गोवा के बीचेस पर घूम आते हैं.
(बकी अभी बिकिनी खरीदने गई है. आकर बैग तैयार करने में बिजी हो जाएगी.)