गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, मंगलवार – १८ सितंबर २०१८)
आर.के. नारायण के मूल अंग्रेजी उपन्यास `गाइड’ का एक दृश्य है. राजू गाइड रोजी का गलत हस्ताक्षर करने के अपराध में दो वर्ष की जेल की सजा पूरी करके एक अनजान गांव में आ जाता है जहां के भोलेभाले ग्रामीण उसे कोई साधु-महात्मा मान बैठते हैं और राजू इस भ्रम को तोडना चाहता है पर तोड नहीं पाता. अभी अकाल पडने ही वाला है. गांव के लोग राजू को- स्वामी को प्रार्थना करते हैं कि हमारे साथ सत्संग करो, हमारे साथ रोज अच्छी अच्छी बातें करो, कथा कहो. राजू इस परिस्थिति से बाहर निकलना चाहता है, गाइड के रूप में वह बोल-बच्चन तो करता था लेकिन श्रृंखलाबद्ध सत्संग करना उसके बस की बात नहीं थी, इतना तो वह समझता था. राजू गाइड को पता था कि वह खुद बोलने में तो माहिर है लेकिन प्रवचनकार बनना या व्याख्यान देना उसके बस की बात नहीं थी. (ऐसी समझ दुर्भाग्य से सभी वक्ताओं में नहीं होती).
लेकिन यदि राजू सीधे मना कर देता है तो लोगों का भ्रम टूट जाएगा और जिसके चलते ज्यादा नुकसान होगा और उसका दो वक्त के खाने का प्रबंध बिगड जाएगा, और शायद सिर से छत भी चली जाएगी. इसीलिए स्पष्ट मना करने के बजाय वहां एकत्र हुए लोगों से पूछता है कि आज सुबह से लेकर अभी तक आप लोगों ने जो कुछ भी कहा है उसे याद करके मुझे बताओ.
गांववालों ने कहा कि दिन भर में तो हमने बहुत कुछ बोला होता है, वह सब भला किस तरह से याद रहेगा.
राजू उनके शब्दों को पकडकर उपन्यास में ऐसी बातें बोलता है जिन्हें कई यादगार कोटेबल कोट्स में शामिल किया जा सकता है: `जब आपको खुद अपने ही शब्द ठीक से याद नहीं रहते हैं तो आप दूसरों के बोले गए शब्दों को कैसे याद रखेंगे?’
आर.के. नारायण ने सहजता से, बात-बात में ही राजू के मुख से बहुत बडी बातें हम सभी को सुनाई हैं.
हम खुद अपने ही आचरण के प्रति, अपने ही बर्ताव के प्रति सजग नहीं रहते. हम जो कुछ भी सोचते हैं, बोलते हैं वह सब हम खुद में समाहित नहीं करते, अब्जॉर्ब नहीं करते, अपने भीतर नहीं समाते, उसे छलका कर बहा देते हैं, बर्बाद कर देते हैं. दिन के दौरान की गर्स अनेक गतिविधियों को हम किसी भी तरह की सजगता या कॉन्शसनेस के बिना कर देते हैं.
`ध्यान’ बहुत बडा शब्द है. यह बात मेरे ध्यान में नहीं आई जैसे कैजुअल रिमार्क से लेकर मैं रोज सबेरे ध्यान में बैठता हूं जैसे गंभीर पहलू में `ध्यान’ के विभिन्न शेड्स समाए हैं. धर्मगुरुओं और उनसे प्रेरणा लेनेवाले चिंतकों-धर्म प्रचारकों- मोटिवेशनल वक्ताओं ने मेडिटेशन के नाम पर व्यापर शुरू कर दिया है. इस ध्यान शब्द का अपभ्रंश जेन है. जेन बौद्धमत का आधार हिंदु परंपरा और ध्यान में है. जेन के अनुसार आचरण करनेवाले जापानियों में टी-सेरेमनी का काफी महत्व है. सादी चाय जैसे पेय का आनंद लेने की परंपरा जापानियों ने विकसित की है. एकाग्रता धारण करने और साधना करने के हिस्से के रूप में होनेवाली इस टी सेरेमनी का व्यावहारिक महत्व राजू गाइड ने अनजाने में ही ग्रामवासियों को समझा दिया.
आप अपने स्वयं के शब्दों के प्रति सजग होना सीखिए. बाद में दूसरों के बोले गए शब्दों को सुनने की इच्छा प्रकट करें. संभव है कि यदि आप अपने एक – दो बर्ताव के प्रति सजगता बरत सकें तो आपको बाहर भटकना नहीं पडेगा. किसी को सुनकर, बासी उपदेश लेकर, जीवन को ऊंचे स्तर पर ले जाने की होड नहीं करनी पडेगी.
सुबह मैने तकिए से सिर उठाया, बाथरूम में जाकर मुंह पर पानी के छींटे मारे, मंजन किया, पानी पीया, चाय की हर घूंट, नाश्ते के हर निवाले को सजगता से पेट में उतारा, नहाते समय केवल नहाने के बारे में ही सोचा और ड्राइविंग करते समय केवल कार चलाने तथा ट्रैफिक के आवागमन को ही ध्यान में रखा, जेब से पाकिट निकाल कर कार्ड स्वाइप करते समय या किसी के साथ किसी छोटी या मामूली बात करते समय – या ऐसी हजारों छोटी बडी क्रियाएं करते समय हम कितने सजग रहते हैं? मोटे तौर पर हम ये सारी क्रियाएं यंत्रवत् कर देते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि लाइफ कितनी मेकैनिकल हो गई है. लेकिन जीवन अर्थहीन लगने लगता है. इस मीनिंगलेस जीवन को मीनिंगफुल बनाने के लिए किसी का सहारा तलाशते हैं और अधिक गहराई में उतरते जाते हैं.
जो अपना बोला हुआ याद नहीं रख सकता है वह दूसरे की बात कैसे याद रखेगा? आर.के. नारायण द्वारा राजू गाइड के मुख से बुलवाए गए इन शब्दों में गहरे उतरकर उसमें रही अपार सागर जैसी गहराई को जीवन में उतार सकते हैं तो आज से ही अन्य उपदेशकों को सुनकर जीवन में आगे बढने का मार्ग खोजने के बदले हम खुद ही अपने गाइड बन सकते हैं.
आज का विचार
कइयों के साथ संबंध है इसीलिए चुप हैं.
कइयों के साथ चुप हैं इसीलिए संबंध हैं.
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एक मिनट!
पप्पू: अपने गांव में आपको कोई तकलीफ है क्या?
ग्रामवासी: मां बाप, सभी सुखी हैं. बिजली-पानी का सुख है. सिर्फ एक बात की कमी है.
पप्पू: बोलिए किसकी कमी है?
ग्रामवासी: गांव में कहीं भी स्मशान नहीं है इसीलिए बहुत तकलीफ होती है.
पप्पू: ठीक है, इस बार मुझे जिताइए. गांव के हर घर में स्मशान बना दूंगा.