कश्मीर कल, आज और कल

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

अपने देश के एक अविभाज्य अंग के रूप में जम्मू और कश्मीर राज्य को दी गई अत्यधिक स्वायत्तता के परिणामस्वरूप आज वहां पर जो परिस्थिति पैदा हुई है वह सारे देश के लिए चिंताजनक है. जे एंड के स्टेट की वर्तमान परिस्थिति और उसके भविष्य में झांकने से पहले अतीत के कुछ पन्नों को पलटना जरूरी है.

भाजपा ने मतदाताओं को संविधान की धारा ३७० को रद्द करने या उसके प्रभावों को न्यूट्रलाइज वचन दिया है. जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन या गवर्नर का शासन (यानी अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र का शासन) आ जाने से भाजपा इस धारा को खत्म नहीं कर सकती. कल को यदि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हों और मान लीजिए कि भाजना को पूर्ण बहुमत मिल जाय तो भी इस धारा को वह रद्द नहीं कर सकती क्योंकि ये विषय केंद्र का है, राज्य का नहीं. संसद के दोनों सदनों में भाजपा को दो तिहाई या तीन चौथाई बहुमत मिलने के बाद भी भाजपा रातोंरात धारा ३७० को रद्द या न्यूट्रलाइज (प्रभावहीन) नहीं कर सकती है क्योंकि यह एक संवेदनशील मामला है और कांग्रेस इस मुद्दे को उठाकर देश में गृहयुद्ध, विद्रोह की स्थिति पैदा कर सकती है, कश्मीर को तो पूरी तरह से सुलगाने की संभावना है.

ऐसा नहीं हो सकता और धारा ३७० के प्रमुख प्रभावों से जम्मू कश्मीर तथा सारे देश को मुक्त किया जा सके इसके लिए भाजपा ने तीन वर्ष तक मुफ्ती मोहम्मद सईद (और उनके निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा) के साथ हाथ मिलाकर मियां- महादेव का गठजोड किया जो अच्छा ही हुआ.

एक ओर भाजपा या हिंदुत्व के अनेक समर्थक अपनी निरपेक्षता और तटस्थता को जताने के लिए महबूबा का साथ छोडने के लिए मोदी का गला पकड रहे हैं तो दूसरी ओर सेकुलर- मार्क्सवादी – साम्यवादी लोग सैफुद्दीन सोज जैसे कांग्रेसियों से मिलकर सोज के अनापशनाप बयानों को प्रचारित कर रहे हैं कि सरदार पटेल तो कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले कर देना चाहते थे लेकिन नेहरू ने सरदार के इस फैसले को अमल में नहीं लाने दिया.

सोज का इंटरव्यू लेने वाले को पता है कि सोज ने बेवकूफी और गैरजिम्मेदाराना तरीके से सिर्फ झूठ ही नहीं बोला बल्कि बदमाशी से, जानबूझकर ऐसा असत्य फैलाया है. ऐसे झूठ का प्रचार करनेवाले पेड मीडिया सोज और कांग्रेस के इस बदमाशी भरे कदम को बढावा देकर आग में घी डालते हुए पत्थरबाजों को बढावा दे रहे हैं. लेकिन वर्तमान परिस्थिति तथा भविष्य में क्या होगा/ क्या होना चाहिए इस बारे में चर्चा करने से पहले एक डुबकी भूतकाल में लगानी होगी.

कल जैसे कि बताया गया कि जम्मू और कश्मीर राज्य के तीन के भाग हैं: जम्मू, लद्दाख और कश्मीर (वैली, घाटी). ब्रिटिशों के भारत में आकर पंजाब को जीतने से पहले ये तीनों प्रदेश पंजाब के के महाराजा रणजीत सिंह के कब्जे में थे. सिखों ने १८०८ में जम्मू लिया और कश्मीर का प्राचीन राज्य १८१९ में सिखों के हाथ में आया. १८२२ में रणजीत सिंह ने जम्मू का प्रदेश जम्मू के डोगरा राजपूत सरदार राजा गुलाब सिंह को उपहार में दे दिया था. रणजीत सिंह की सेना ने १८०८ में जब जम्मू पर विजय प्राप्त की थी उस समय गुलाब सिंह पाला बदलकर पंजाबी सेना में चले गए थे और बाद में रणजीत सिंह के दरबार में उन्होंने सम्मानजनक पद भी प्राप्त किया. गुलाब सिंह ने १८३७ में लद्दाख को भी अपने राज्य में मिला लिया.

रणजीत सिंह की मृत्यु १८३९ में हुई और उसके बाद सिखों के उस राज्य पर हक जमाने के लिए जो जद्दोजहद की गई उसमें सारा शासन ही बिखर गया और डोगराओं का वर्चस्व बढने लगा. सिखों की राजनीति में जम्मू के डोगरा राजपूतों का हस्तक्षेप बढा. रणजीत सिंह के जीवित रहने के दौरान अंग्रेज पंजाब से दूर रहे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद पडी फूट का लाभ लेकर अंग्रेजों ने पंजाब पर बुरी नजर डालना शुरू कर दिया. ब्रिटिशों की परेशानी से बचने के लिए सिख सरदारों ने गलाब सिंह से मदद मांगी. गुलाब सिंह ने सहायता की. सिखों को पता नहीं था कि गुलाब सिंह और ब्रिटिश सरकार छिपे रूप से हाथ मिला चुके हैं. ब्रिटिश हुकूमत की बढती ताकत से गुलाब सिंह वाकिफ थे. अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए दुश्मनों के साथ हाथ मिलाना उन्हें व्यावहारिक लगता था, कायरता नहीं लगती थी.

२० फरवरी १८४५ को ब्रिटिश सेना ने पूरे पंजाब पर कब्जा कर लिया. लाहौर पूरे पंजाब की राजधानी हुआ करती थी. ब्रिटिशों की ओर से लालसिंह को पंजाब का प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया. लालसिंह जम्मू के ब्राह्मण थे और दगाबाजी की राजनीति से परिचित थे. गुलाब सिंह और ब्रिटिश सरकार के चहेते लालसिंह ने पंजाब का प्रधान मंत्री बनकर राजनीतिक दृष्टि से दो मास्टर स्ट्रोक लगाए थे. खुद जिसके कंधे पर पैर रखकर आगे बढे थे उस गुलाब सिंह पर उन्होंने आरोप लगाया कि गुलाब सिंह ने ब्रिटिशों के साथ मिलकर सिखों से छल किया है. दूसरा, ब्रिटिश-सिख युद्ध में नुकसान के बदले ब्रिटिशों द्वारा मांगे गए डेढ करोड रूपए देने से लालसिंह ने इंकार कर दिया.

लालसिंह की इस चालबाजी से मात खाए बिना गुलाब सिंह ने ब्रिटिशों को ७५ लाख नानकशाही रूपए देकर जम्मू के अलावा काफी बड प्रदेश पर अपने राज्य के लिए स्थायी हक ले लिया जिसके संरक्षण की जिम्मेदारी ब्रिटिशों की थी. अमृतसर समझौते के रूप में विख्यात यह सौदा भारत के लिए आज किस तरह से और किस हद तक महंगा पड रहा है इसकी बात अब आनेवाली है.

आज का विचार

काम तो सारे यहां नीचे हैं,
तो तू वहां ऊपर क्या कर रहा है?

– किरणसिंह चौहान

एक मिनट!

पका: जिसे कान से कुछ भी सुनाई नहीं देता उसे क्या कहते हैं?

बका: जो कहना है वो कहो, उसे कहां कुछ सुनाई देनेवाला है!

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