उपन्यास का मार्को और फिल्मवाला मार्को

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, शनिवार – २९ सितंबर २०१८)

मार्को गुफाचित्रों के अध्ययन में आकंठ डूबा हुआ था. मार्को ने अपनी मदद करनेवाले राजू गाइड पर पूरा विश्वास जताते हुए ऐसा बर्ताव शुरू कर दिया था मानो वह उसके परिवार का सदस्य  हो. मार्को में व्यावहारिकता नहीं थी, वह अपनी धुन में रहने वाला प्राणी था, अध्ययनकर्ता था. उसका दिमाग हर समय पुरातात्विक अवशेषों में मग्न रहता. दुनिया के रुटीन व्यवहारों के साथ उसका कम ही रिश्ता था. व्यावहारिक मामलों में उसकी समझ बहुत ही कम थी. यात्रा में खाने पीने रहने की व्यवस्था करने या टिकट बुकिंग करने की समझ उसमें नहीं थी. ऐसे सीधे सादे काम उसके लिए कोई बडा पहाड चढने जैसे कठिन थे. वैसे गुफा देखने के लिए वह ऐसे पहाडों की चढाई सरपट चढता-उतरता था. उसने शायद शायद ही इसलिए की थी कि उसे संभालने वाला कोई घर में हो, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी भेंट रोजी से हो गई जो खुद कुछ बनने के सपने देखती थी, जिसे अपने अरमानों को पूरा करनेवाला कोई चाहिए था. उसे यदि ऐसा पति मिल गया होता जो उसकी नृत्यांगना के रूप में कद्र कर सकता, उसकी कला को पहचान कर उसके जीवन को गढ सकता, तो अच्छा होता. राजू को लगने लगा था कि वह खुद ऐसी कमी को पूर्ण कर सकता है. राजू अपना सारे कामकाज के प्रति लापरवाह होकर रोजीमय बन गया था.

मार्को फॉरेस्ट बंगलो में महीने से अधिक समय तक रुका था. राजू उसकी सारी सुविधाओं का ख्याल रखता. बाय द वे, फिल्म में मार्को को रंडीबाज और शराबी दिखाया गया है, लेकिन उपन्यास में ऐसा कुछ भी नहीं है. आर.के. नारायण इस बदलाव को लेकर बडे नाराज थे. उनके द्वारा लिखे गए मार्को के पात्र में इस तरह के अप्रेम है कि पाठक के मन में उसके प्रति सहानुभूति पैदा होती है. फिल्म में दर्शकों को यह पात्र विलन लगता है. शायद हिरोइन की एडल्टरी को जस्टिफाई करने के लिए ऐसा किया गया होगा. ऐज इट इज देवा आनंद ने `गाइड’ के बारे में एक इंटरव्यू में भी कहा था कि कहानी में विवाहेतर संबंधों की बात है इसीलिए (खुद को नैतिकता का पहरेदार माननेवाले) कई लोगों ने इस निर्माणाधीन फिल्म को रोकने के लिए दिल्ली जाकर शिकायत की थी, सेंसर बोर्ड को भी शिकायत की थी. ऐसे लोग यदि `गाइड’ को रोकने में सफल हो गए होते तो गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी के बारे में जो फैसला दिया है उसे पढकर उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई होती. एक महान साहित्यिक कृति और एक महान फिल्म के यज्ञ में हड्डी डालने के लिए दुनिया उन्हें कभी माफ नहीं करती.

बहरहाल.

मार्को फॉरेस्ट हाउस में रहने लगा था, लेकिन मालगुडी की होटलवाली रूम भी उसने रिजर्व रखी थी. गफूर की टैक्सी भी उसने २४ घंटे अपने अधीन रहे ऐसी व्यवस्था कर रखी थी. फॉरेस्ट बंगलो का रखवाला जोसोफ मार्को के खाने-पीने की जिम्मेदारी बढिया ढंग से संभाल रहा था इसीलिए दूसरी कोई चिंता नहीं थी. राजू को छूट दी गई थी कि भले ही उसे अपनी रोज की फीस पूरी की पूरी मिल रही हो लेकिन यदि उसे किसी दूसरे टूरिस्ट की सेवा में जाना हो तो भी कोई परेशानी नहीं है. वैसे तो मार्को को राजू की जरूरत बहुत ही कम पडती थी. राजू का ज्यादा काम रहता था रोजी की देखभाल करना. हर दो-एक दिन में रोजी मालगुडी से फॉरेस्ट बंगलो जाया करती थी. मार्को को कंपनी देती थी. राजू के ध्यान में आया कि उसने जब से अपनी गहरी भावनाओं को रोजी के सामने व्यक्त किया है तब से मार्को के प्रति रोजी का ध्यान बढ गया था, लेकिन मार्को के लिए यह सब जैसे का तैसा ही था. वह अपनी ही धुन में रहता था. इसके बावजूद रोजी जोसेफ को कहकर मार्को के खानेपीने की अधिक चिंता करती. मार्को के अस्तव्यस्त पडे कमरे को ठीक-ठाक कर देती. क्या रोजी अपनी गिल्ट फीलिंग को दूर करने के लिए ये सब कर रही थी?

गफूर समझ गया था कि रोजी और राजू के बीच क्या पक रहा है. दोस्ती के नाते उसने राजू को विवाहित स्त्री की जटिलताओं में नही पडने की सलाह भी दी थी. राजू ने उसकी सलाह पर ध्यान देने के बजाय पुरानी शैली के धोती कुर्ता को छोडकर दर्जी से थोडे नए फैशनेबल बुश शर्ट्स और कॉर्डरॉय की पतलून सिला ली और हेयर-फेस लोशन्स तथा परफ्यूम्स पर काफी सारा पैसा खर्च कर दिया. स्टेशन की खाने-पीने की दुकान को संभालने के लिए रखा पोर्टर का बेटा हिसाब में गडबडी करता था, लेकिन राजू जानने के बावजूद उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता था. मालगुडी स्टेशन पर उतरनेवाले कई टूरिस्ट राजू गाइड के लिए रोज पूछताछ करते थे लेकिन उन सभी को जवाब मिलता था कि राजू गाइड तो आजकल बहुत ही व्यस्त है, आपकी सेवा में नहीं आ सकता.

रोजी जब फॉरेस्ट बंगलो नहीं जाती तब मालगुडी के होटल की रूम में राजू के साथ रहती. राजू और रोजी जब एक दूसरे से प्रेम करते तब अचानक रोजी को न जाने क्या हो जाता कि वह राजू से अलग हो जाती और कहती,`गफूर से कहो कि टैक्सी निकाले, मुझे अभी के अभी उनसे मिलने जाना है.’

राजू दुविधा में पड जाता. अभी तक उनके प्रेम में ऐसा दौर नहीं आया था कि यह रोजी पर क्रोधित हो जाय. वह शांति से जवाब देता,`गफूर कल इस टाइम पर आएगा. तुम कल ही तो वहां गई थीं, वह भी ऐसा ही मान रहा होगा कि तुम कल आनेवाली हो.’

`हां’, कहकर रोजी विचारों में खो जाती. फिर कुछ देर ठहर कर कहती,`आखिर वो है तो मेरा पति. मुझे उनका सम्मान सुरक्षित रखना चाहिए. उन्हें इस कदर अकेला छोडकर नहीं आना चाहिए.’

राजू औरतों के मामले में अनुभवहीन था. औरत के स्वभाव को परखने का उसके पास कोई पैमाना नहीं था. रोजी जो कुछ कह रही है उसका अर्थ क्या होता है यह समझने में वह असमर्थ था. रोजी पति की कमियां उसके सामने क्यों रखती थी, ऐसा प्रश्न राजू के मन में उठता:`मुझे उकसाने के लिए? मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए?’

रोजी राजू से कहती:`मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं जो कुछ भी कर रही हूं वह ठीक है? जिसने मुझे जैसी को अपना कर जीवन के सारे भौतिक सुख दिए हैं, उसके साथ मैं ऐसा करूं तो क्या यह उचित कहा जाएगा? मैं यहां अनजाने शहर की अनजान होटल में अकेली रहूँ, इस पर उन्हें भले कोई आपत्ति न हो, वे अपनी सज्जनता के कारण भले मुझे कुछ न कहते हों लेकिन क्या पत्नी के रूप में मेरा कोई कर्तव्य नहीं है कि वे मेरे साथ चाहे जैसा दुर्व्यवहार करें तो भी मैं सदा उनके संग रहूं, उनके काम में सहयोग दूं?’

राजू के लिए यह स्थिति एकदम कंफ्यूजिंग थी. कभी उसे विचार आता था कि वो आदमी फॉरेस्ट बंगलो छोडकर इस बला को यहां से उठाकर मद्रास अपने घर लौट जाए और वह खुद भी मालगुडी स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर अपने काम में लग जाए. मार्को या रोजी को कुछ भी कहे बिना राजू आज, इसी क्षण ऐसा कर सकता था. उसे कौन रोकनेवाला था?

आज का विचार

अधिक समझदार और मूर्ख के बीच कोई अंतर नहीं होता. दोनों ही किसी का भी कहा नहीं मानते.

– ओशो

एक मिनट!

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