पैशन, आग, आवेग, जुनून

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – १० सितंबर २०१८)

कल पूर्ण किए गए महानता, लीडरशिप के गुणों के संबंध में नए सिरे से विचार करनेवाली श्रृंखला का हैंगओवर अभी भी है. इस श्रृंखला के लिए लिखे गए चार-पांच लेखों को मन में रिवाइंड कर रहा था कि तभी एक नया मुद्दा सूझा और लगा कि यदि इस मुद्दे को समाहित कर लिया जाता है तो यह श्रृंखला अधिक परिपूर्ण हो जाएगी. कम से कम इतना तो सत्य ही है कि यदि इस मुद्दे को मैं शामिल नहीं करता हूँ तो मेरे लिए यह श्रृंखला अधूरी ही रहेगी.

पसंद, मेहनत और सभी को साथ लेकर चलने की बात में चौथी बात को शामिल करना है जिसे मैने शीर्षक में ही लिख दिया है. इन तीनों विशेषताओं को सचमुच में संवारता है, इन तीनों गुणों को जो तेज धार देता है, वो है पैशन, उसे आप आवेग कहें, आग या जुनून कहें, उत्साह के रूप में पहचानें, आपको मन को जो अच्छा लगे उस शब्द का उपयोग करें. हम उसे पैशन कहेंगे.

महान बनने के लिए कुछ करने का जुनून होना चाहिए, मन में लगातार एक ऐसी आग प्रज्ज्वलित होनी चाहिए जो आपको याद दिलाती रहे कि आपको जहां हैं वहां से ऊपर उठना है. आपके जीवन के सभी सद्गुणों को तेज धार देनी है और नए गुणों को शामिल करना है, और जो बेकार हैं उन्हें छोड देना है.

फिल्में बनाने का शौक होना एक बात है और फिल्में बनाने का पैशन होना अलग बात है. राज कपूर से लेकर यश चोपडा तक फिल्मकारों में ये पैशन था. पॉलिटिक्स का शौक आपको अधिक से अधिक कॉर्पोरेटर बना देगा या जिला पंचायत का सदस्य बना देगा. राजनीति या सार्वजनिक जीवन के लिए पैशन हो तो आप सरदार वल्लभभाई पटेल बन जाते हैं, नरेंद्र मोदी बन जाते हैं. चित्रकला का शौक हो तो आपको अधिक से अधिक अच्छे चित्र बनाने की प्रेरणा मिलती है, लेकिन चित्रकला के लिए जुनून हो तो वह आपको विन्सेंट वान गोघ या पाब्लो पिकासो बना देता है.

पैशन यानी अर्जुन द्वारा देखी गई पक्षी की आंख. आपको अपने लक्ष्य के अलावा और कुछ भी नहीं दिखता. दिन-रात, उठते-बैठते, जागते-सोते, खाते-पीते केवल उसी लक्ष्य के विचार मन में आते रहते हैं और आपकी हर प्रवृत्ति, आपका हर कदम उस लक्ष्य की दिशा में आगे बढता रहता है. पैशन यानी अपने लक्ष्य को भेदने के लिए मर-मिट जाने की तैयारी. पैशनेट बनने में जोखिम है. भारी रिस्क है. अपना घर आप ही जला बैठने का समय आ जाता है. जो है वह भी चले जाने का जोखिम पैदा हो जाता है और इसीलिए जो लोग अपने पास जो है उसे संभालकर बैठने में सलामती महसूस करते हैं वे सफल बनकर फंस जाते हैं, महानता के शिखर तक नहीं पहुंचते.

पैशन दिखावा नहीं होता. उस आग की आंच को बाहर निकालना नहीं होता. वह आपकी आंतरिक शक्ति को इस तरह से बढाती रहती है कि जिसका आभास किसी अन्य व्यक्ति को नहीं होता. लक्ष्य भेदन करने के बाद ही लोगों को ध्यान में आता है कि आप कहां से कहां पहुंच गए हैं. पैशन का प्रदर्शन नहीं किया जाता. दूसरा कारण यह है कि लोगों को दूसरे के पैशन को कम करके देखने की आदत होती है और तीसरा कारण यह कि कई लोगों को बिना कारण दूसरों के पैशन के हवन में हड्डी डालने की आदत होती है. इसीलिए वह आग आपके भीतर ही जलती रहे, उसकी ज्वालाएँ बाहर दिखनी नहीं चाहि‍ए.

महान लोगों को आप उनका काम करता देंखेगे तो आपको ध्यान में आएगा कि उनमें उनके क्षेत्र से जुडा पैशन कितना ठूंस ठूंस कर भरा है. मोदी को भाषण देते हुए सुनिए, रामदेव को योग सिखाते हुए देखिए, मोरारीबापू को कथा करते सुनो, शिवकुमार शर्मा को संतूर बजाते हुए देखिए, पंडित जसराज को गाते देखिए, सचिन तेंडुलकर को बैटिंग करते हुए देखिए, अमिताभ बच्चन को सिल्वर स्क्रीन पर देखिए या फिर टीवी पर केबीसी में देखिए- हर महान पुरुष जब अपनी पसंद का काम करता है तब उनका बारीकी निरीक्षण कीजिए. आपको उनकी आवाज में, उनके हाव भाव में, उनकी आंखों में यह पैशन नजर आएगा. मार्क कीजिएगा. इवन मुकेश अंबानी में भी आप यह देख सकते हैं. स्टीव जॉब्स में भी यह नजर आता था. इंदिरा गांधी भले ही आपको नापसंद हों, लेकिन उनके रोम रोम में पैशन प्रकट होते आप देख सकते थे.

जीवन में महान काम करने के लिए और मरने के बाद आपको लोग उन कार्यों के लिए महान इंसान के रूप में पूजें, इसके लिए लगन जरूरी है, मेहनत जरूरी है, सभी को साथ लेकर चलने की कला जरूरी है और साथ ही पैशन भी उतना ही जरूरी है. महानता की पालखी को ये चार विशेषताएँ उठाकर चलती हैं.

बस, इतना ही.

आज का विचार

लगभग सभी कंपनियां ने फ्री कॉल्स की स्कीम रखी है, लेकिन साहब, लंबी बात चलाने जैसे संबंध ही कहां रहे हैं?

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट

बका: पका, आज मैने अपने कॉलेज के समय की अपनी `एक्स’ को फेसबुक पर खोज निकाला.

पका: अरे, वाह!

बका: खाक वाह! अब तो वो एक्स एक्स एल हो गई है!

 

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