गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, बुधवार – ५ सितंबर २०१८)
अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में दीर्घ श्रृंखला समाप्त करने के बाद एक विचार मन में निरंतर घूमता रहता है कि महान लोग किस तरह से महान बनते होंगे. ऐसा कौन सा सबसे बडा गुण है या ऐसी एक कौन सी सबसे बडी विशेषता उनमें होती है जिसके बिना वे महानता की वह ऊँचाई प्राप्त ही नहीं कर सकते?
लगन तो होनी ही चाहिए. जिस क्षेत्र में आप आगे बढ रहे हों, उस क्षेत्र से जुडी प्रतिभा आपमें ठूंस ठूंस कर भरी होनी चाहिए. गायक बनना चाहते हों तो लताजी जैसा गला या क्रिकेटर बनना चाहते हैं तो सचिन जैसी बैटिंग या अभिनय क्षेत्र में बच्चनजी जैसी प्रतिभा या फिर लेखन के क्षेत्र में मुंशी प्रेमचंद की तरह रोचक कथानक या फणीश्वरनाथ रेणु, नागार्जुन जैसी वर्णन शैली जैसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं. बैंकिंग, राजनीति, शिक्षश, बिजनेस, या डॉक्टर-चार्टर्ड अकाउंटेंट-आर्किटेक्ट जैसे प्रोफेशनल्स, क्षेत्र चाहे कोई भी हो उसमें टॉप पर पहुंचने के लिए उस क्षेत्र में जरूरी लगन आपमें कूट कूट कर भरी होनी चाहिए, इस बारे में कोई दो राय नहीं है.
उसके बाद नंबर आता है मेहनत का. टैलेंट चाहे जितना हो लेकिन जब तक उसमें मेहनत का रंग नहीं मिल जाता तब तक उस शौक का कोई मूल्य नहीं है. और मेहनत यानी कितनी मेहनत. पसीने की अंतिम बूंद निचोड ली जाए उतनी मेहनत. बिना आगे पीछे देखे, की गई मेहनत. निजी मौज शौक और परिवार व संबंधियों को एक ओर रखकर की गई मेहनत. आरोग्य के लिए एक सौ दस प्रतिशत ध्यान रख कर खाने पीने से जुडे तमाम परहेज रखते हुए और उचित व्यायाम-योग करते हुए की गई मेहनत. जो मेहनत मोदीजी, लताजी, बच्चनजी, सचिनजी, मुकेशजी ने की है, ऐसी मेहनत. और हां, इस मेहनत में नियमितता का मेल होना चाहिए. सप्ताह भर दिन रात काम कर लिया और फिर छह महीने पडे रहे, ऐसा नहीं चलेगा.
लेकिन हमने देखा है कि जिनमें अपार लगन होती है- जो प्रतिभा के धनी हैं, ऐसे लोग कडी मेहनत करने के बाद भी महान नहीं बनते. सफल होना एक बात है, महानता एक अलग लेवल की बात है. गायक मीका सिंह सफल हैं, जगजीत सिंह महान थे. जॉन अब्राहम सफल हैं, बच्चनजी महान हैं. डॉ. मनमोहन सिंह दस साल तक टिके रहने में सफल रहे, उनकी तुलना में आधी अवधि के लिए सरकार बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी महान थे. वर्तमान हिंदी व्यंग्य लेखक या उपन्यासकार सफल हैं लेकिन परसाई – श्रीलाल शुक्ल- दिनकर महान थे.
हम महानता की बात कर रहे हैं, सफलता की नहीं. सक्सेस और ग्रेटनेस के बीच का अंतर ध्यान में लेने के बाद यह बात हो रही है. सफल होने की कला तो आपको कोई भी मोटिवेशनल स्पीकर दो-पांच लाख रूपए लेकर तीन दिन के सेमिनार में सिखा देगा. महान होने की कला सिखानेवाली कोचिंग क्लासेस नहीं चलती. चल भी नहीं सकतीं. स्वामी विवेकानंद, गांधीजी और सरदार पटेल से लेकर डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या नरेंद्र मोदी – इनमें से किसी को भी सफल बनने के लिए मोटिवेशनल स्पीकर्स के भाषणों की जरूरत नहीं पडी, महान बनने के लिए कोचिंग क्लास जाने की जरूरत भी नहीं पडी थी.
इन सभी में या ऐसे किसी भी महान व्यक्ति में, दुनिया भर के महान लोगों में लगन और मेहनत के अलावा एक तीसरा तथ्य भी होता है जिसके कारण वे महानता के शिखर पर पहुंचते हैं और इस तत्व का नाम भाग्य नहीं है. भाग्य को तो इन सभी ने खुद ही गढा है. पुरुषार्थ करके प्रारब्ध को पलट दिया है.
लगन और मेहनत के अलावा अन्य बडी खासियतें भी होनी चाहिए. जरूर होनी चाहिए. लेकिन ये सभी खासियतें छोटे मोटे मिर्च मसाले जैसी होती हैं. न हों तो काम चल सकता है लेकिन हो तो स्वाद में वृद्धि होती है. या फिर इसे नारियल-धनिया की तरह मान लीजिए. छिडक देते हैं तो अच्छा लगता है, न हो तो भी कोई खास अंतर नहीं पडेगा. हम मुख्य घटक की बात कर रहे हैं. जिसे बिना व्यंजन अधूरा रहता है जैसे कि पानीपूरी में पूरी तो जरूर होनी चाहिए, पानी भी चाहिए. पाव भाजी में भाजी तो चाहिए पर पाव भी चाहिए. ऐसे हजारों उदाहरण दिए जा सकते हैं.
वाजपेयी के जीवन के बारे में लिखते-लिखते महानता का यह तीसरा तत्व मेरे हाथ लगा है. आप अनुमान लगाते रहिए कि यह तीसरा इंग्रेडिएंट कौन सा है. चौबीस घंटे में फिर मिलेंगे.
आज का विचार
२४ घंटों तक बिना कोई शिकायत किए जीकर देखिए. छोटी बडी कोई शिकायत नहीं. मन में भी नहीं. खुद के साथ भी नहीं. फिर देखिए. आपके जीवन में बदलाव शुरू होता है या नहीं.
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रिक्शावाले की बेटी सिल्वर मेडल लाई. रिक्शावाले का बेटा सी.ए. बना. रिक्शावाले की बेटी को ९९% मिले. ऐसे समाचार पढ-पढ कर बका के बेटे ने कहा,“पप्पा, आप भी रिक्शा चलाना शुरू कर दीजिए ना.’
Virodhiyo ko bhi bolne ka chance Dena,
Apni galtiya swikar kar use sudharna..
best think for betar life
thanks