आजादी की ७१वीं वर्षगांठ पर

संडे मॉर्निंग : सौरभ शाह

बैंगलोर में कई टिफिन सेवाएँ चलती हैं. हाल ही में किसी ने `प्योर ब्राह्मण मील’ नाम से विज्ञापन दिया था. और मीडिया तथा सोशल मीडिया के जुनूनी लोग उस पर टूट पडे. `ब्राह्मण भोजन’! मारो साले को, ये तो जातिवादी है, मनुवादी है, दलित विरोधी है.

उत्तर में घूमनेवालों ने वैष्णो ढाबे में जरूर खाया होगा. गुजरात -मुंबई ही नहीं, देश-विदेश में कई जगहों पर, बल्कि प्लेन में भी आपको जैन भोजन मिलता है. जो मुस्लिम पोर्क (सूअर का मांस) नहीं खाते हैं उनके लिए और जो लोग हलाल का ही मांस खाते हैं, उनके लिए तथा उसी प्रकार से जो यहूदी धर्म का पालन करते हं उनके लिए विदेश में- प्लेन में अलग प्रेफरेंस होता है. तो फिर बैंगलोर के शुद्ध ब्राह्मण भोजन को लेकर क्या परेशानी हैै?

इस देश में सेकुलर भाई ऐसा खेल हमेशा खेलते आए हैं. ये जुनूनी और ईर्ष्यालु वर्ग भारत का सुख नहीं देख सकता. महाराष्ट्र में जिस तरह से आषाढी एकादशी के मौके पर जगह जगह से याथी पद यात्रा करके पंढरपुर पहुंचते हैं, उसी प्रकार से उत्तर प्रदेश में श्रावण महीने में कावड यात्रा का बडा महत्व है. दूर दूर से आकर श्रद्धालु गंगाजल से कांवड भर कर अपने अपने गांव लौटते हैं, शिवजी का अभिषेक करते हैं और इस तरह से जीवन में जल के महत्व को स्थापित करते हैं, ऐसी वर्षों पुरानी धार्मिक- सामाजिक परंपरा है.

इस लंबी यात्रा में लाखों लोग अलग अलग जगह से आकर समूह बनाकर आगे बढते हैं, इसमें अशांति न हो इसलिए पुलिस व्यवस्था होती है. ट्रैफिक की समस्या न खडी हो इसके लिए क्राउड मैनेजमेंट करने के लिए यूपी पुलिस ने हेलिकॉप्टर का सहारा लिया. और हेलिकॉप्टर में बैठे पुलिस अधिकारियों ने नीचे जुटे समूहों का अभिवादन करके उनसे सहयोग प्राप्त करने के लिए उन पर गुलाब की पंखुडियां बरसाईं.

मीडिया के हमारे सेकुलर भाई और साम्यवादी जुनूनी लोग टूट पडे. हिंदू श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा करने के लिए पब्लिक की तिजोरी से लाखों रूपयों की बर्बादी! ऐसे शीर्षक लिखे. योगी आदित्यनाथ के बजाय अखिलेश या मायावती जैसों की सरकार यूपी में होती तो किसी ने इस पर ध्यान भी नहीं दिया होता. पुलिस फूल बरसाने के लिए, बल्कि क्राउड मैनेजमेंट के लिए हेलिकॉप्टर का उपयोग कर रही है, यह समझने के बावजूद देशद्रोही लोग हमें उकसा रहे हैं. अमेरिका इत्यादि देशों में तो ट्रैफिक प्रबंधन के लिए पुलिस के हेलिकॉप्टर्स का घूमना एक आम बात है.

लेकिन हिंदू जनता की छवि किस तरह से मलिन की जाए, यही इन देशद्रोहियों का प्रयास होता है. आपको पता है कि मोदी के आने के बाद `असहिष्णुता’ की बातें खूब चलीं. वे लोग आपके धर्म के बारे में, आपकी संस्कृति के बारे में, आपके गौरव के बारे में चाहे जो बोलें, आपको आते जाते आडे हाथों लेते रहें और आपको चुपचाप सहन लेना चाहिए. भूल से भी आपने अपना बचाव किया या उनकी गलत बातों के विरुद्‌ध खडे हुए तो आपने अपनी सहनशीलता खो दी, आप असहिष्णु बना गए. और अगर आप उनके धर्म का काला पक्ष उजागर करते हैं या उनके धर्म गुरुओं के पाखंड के बारे में लिखें या नकी परंपरा में निहित कुरीतियों के बारे में कुछ कहें तो फिर आप पर शामत आ जाएगी- आप फंडामेंटलिस्ट बन गए.

हिंदू विरोधी राष्ट्रद्रोहियों ने चर्चा की परिभाषा बदल दी है. वे अपनी मनगढंत व्याख्याओं के अनुसार आप पर लेबल चिपकाते रहे हैं.

अब उन्होंने नया कुछ शुरू किया है. इसी सेकुलर लेफ्टिस्ट जनता ने नए `हिंदूवादी’ और `हिदू धर्म के विशेषज्ञों’ को खडा किया है. ऐसे लोग `एपिक’ जैसे चैनल्स में घुस कर हिंदू परंपरा का अत्यंत परोक्ष रूप से निरादर करते हैं, आपको पता भी नहीं चलता इस तरह से आपकी संस्कृति को बदनाम करते हैं, आपके मन में ऐसी धारणा बिठा देते हैं कि आप पिछडी-गंवार और असभ्य समाज के वारिस हो. ऐसे कइयों में से एक की पोल राजीव मलहोत्रा जैसे प्रखर और दृढ हिंदूवादी ने खोली है. देवदत्त पटनायक एक स्यूडो हिंदुत्ववादी है जिसकी पोल खोलनेवाली राजीव मलहोत्रा की लंबी चर्चा आप यू ट्यूब पर देख सकते हैं.

हिंदुत्व का माल आजकल ज्यादा बिकने लगा है, जिसे देख कर देवदत्त पटनायक जैसे कई लोग यहां घुसकर रातोंरात नाम और दाम कमाने की चालें चलेंगे. वाजपेयी सरकार के समय भी सुधींद्र कुलकर्णी जैसे कट्टर साम्यवादी लोग खुद हिंदू बन जाने का दिखावा करने लगे और सीधे पी.एम. की ऑफिस तक पहुंच कर सलाहकार बन गए. बाद में चलकर उनकी पोल खुल गई. ऐसा ही चंदन मित्रा के साथ भी हुआ. भाजपा ने दो टर्म तक उन्हें राज्यसभा में रखा. बीच में हुगली से लोकसभा का टिकट भी भाजपा ने दिया था, वे हार गए. डेढ-दो साल से चंदन मित्रा खाली बैठे थे, भाजपा में कोई भाव नहीं दे रहा था. हिंदूवादी बनकर लाभ लेने आया यह मार्क्सवादी पत्रकार हाल ही में पाला बदलकर ममता बैनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस की चलती गाडी में सवार हो गया है.

ऐसे कई लोग हमारे आसपास हैं. जो कल कुछ थे, आज कुछ हैं और भविष्य में कुछ होंगे.

पंद्रह अगस्त आ रहा है. देश की आजादी के ७१ साल पूर्ण हो रहे हैं. देश का अहित करनेवाले सेकुलरों, साम्यवादियों और मौकापरस्तों के अलावा दिखावटी हिंदुओं को पहचान लीजिए और उनसे सावधान रहिए. देश अगर फिर एक बार ऐस लोगों की चपेट में आ गया तो भगवान भी हमें नहीं बचा सकते.

आज का विचार

भले ही मोदी जी से सारा कचरा साफ नहीं हुआ हो, लेकिन एक जगह पर इकट्ठा जरूर हो गया है!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

संडे ह्यूमर

पका: बका, तेरी रोजी रोटी कैसे चलती है?

बका: मेरी रोजी रोटी तबले से चलती है.

पका: लेकिन मैने तो तुझे कभी भी तबला बजाते नहीं देखा.

बका: नहीं ही देखा होगा ना. सोसायटी वाले मिल कर मुझे नहीं बजाने के लिए महीने के पचास हजार रूपए देते हैं!

(मुंबई समाचार, रविवार – १२ अगस्त २०१८)

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