गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, सोमवार – २५ फरवरी २०१९)
आचार्य विजयपाल प्रचेता ने `योग संदेश’ नामक मासिक में यह लेख लिखा है जो स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा प्रकाशित किया जाता है. यहां पर उसमें लिखी हुई जानकारी के संदर्भ में बात करनी है.
अपने सभी प्राचीन विचारकों ने विद्यार्थी जीवन में भाषा से जुडी परिपक्वता के बारे में और शास्त्रों को कंठस्थ करने पर अधिक बल दिया है. भाषा से संबंधित परिपक्वता में विद्यार्थी के उच्चारण सबसे महत्वपूर्ण हैं. संस्कृत भाषा में उच्चारण की स्पष्टता को बहुत बडा गुण माना गया है. विद्यार्थी के बौद्धिक विकास के लिए अभिव्यक्ति की मधुरता, लयबद्धता और स्पष्टता सबसे अहम है. विद्यार्थी जो कुछ भी सीखता है, उसमें से याद रखकर कितना व्यक्त कर सकता है उसका काफी महत्व है. प्राचीन काल में विद्यार्थी को प्रारंभ से ही `शिक्षा सूत्र’ पढाए जाते थे. ये सूत्र आज की तारीख में भी उतने ही सुसंगत हैं. इस `शिक्षा सूत्र’ में याज्ञवल्क्य शिक्षा, पाणिनीय शिक्षा, मांडुकी शिक्षा इत्यादि सबसे महत्वपूर्ण हैं.
मूल लेख में संस्कृत श्लोक उद्धृत करके बात की गई है. हम मूल श्लोक के अर्थ का संदर्भ लेकर बात करेंगे.
याज्ञवल्क्य शिक्षा में कहा गया है:`जो विद्यार्थी उपांशु (अर्थात भुनभुनाहट की तरह धीमा( बोलता है, या दनादन तेज बोलता है या इस तरह से डर-डर कर उच्चारण करता है मानो भयभीत हो, इस प्रकार से वह भले ही हजारों शब्दों को बोल ले फिर भी उसके बोलने में स्पष्टता नहीं आती. इसीलिए विद्यार्थी को न तो उपांशु न ही शीघ्रतापूर्वक उच्चारण करना चाहिए. भय छोडकर धैर्य से बोलना चाहिए.’
इस बात को जरा विस्तार से समझते हैं. विदयार्थी काल से स्पष्ट बोलने की आदत डालनी चाहिए. उच्चारण के अनुसार होंठ का आकार बदलना चाहिए. बोलना सीखना केवल अभिनेता, वक्ता, नेता इत्यादि के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है. एक आम आदमी जब पर्याप्त चढाव-उतार के साथ किंतु सहजता से, सही उच्चारण के साथ, सामनेवाले को सुनाई दे इस तरह से धैर्यपूर्वक बोलता है तब उसका प्रभाव तो पडेगा ही. याज्ञवल्क्य की ये सलाह आज की पीढी के हर विद्यार्थी के लिए,और फॉर दैट मैटर जो पढ-लिखकर नौकरी-व्यवसाय कर रहे हैं, उन सभी पर लागू होता है. अपने आस-पास हमने ऐसे अनेक लोगों को देखा-सुना है जो भुनभुनाते हुए बोलते हैं या चिल्लाकर बातें करते हैं या फिर कर्कश आवाज में बात करते हैं. मधुरता से बोलने की शिक्षा बचपन से ही व्यक्ति को मिलना चाहिए, ऐसी हमारी प्राचीन परंपरा है.
पाणिनी का एक श्लोक उद्धृत करके कहा गया है कि बोलने वाले को यह बात विशेष कर ध्यान में रखनी चाहिए: `माधुर्य, अक्षरव्यक्ति (उच्चारण की स्पष्टता), पदच्छेद (अल्पविराम, पूर्ण विराम का ध्यान रखकर उचित जगह पर पॉज लेना), सुस्वर, धैर्य और लययुक्तता- बोलनेवाले में ये छह गुण होने चाहिए.’
मांडुक्य लिखते हैं: सुतीर्थ (अर्थात श्रेष्ठ गुरू) से सीख कर, चेहरा सौम्य रखकर, उत्तम स्वर में व्यक्त होनेवाले वेद मंत्रों को सुनना अच्छा लगता है. कुतीर्थ (अज्ञानी अध्यापक) से सीखकर मिले अशुद्ध वेद मंत्रोच्चारों की आदत के पाप से आजीवन मुक्ति नहीं मिलती. इसीलिए बाल्यकाल से ही शुद्ध उच्चारण के साथ बोलना सीखना चाहिए.
यहां पर वेद मंत्रोच्चारण की बात कही गई है. किंतु हम किसी भी बात में उच्चारण की शुद्धि का आग्रह रख सकते हैं.
याज्ञवल्क्य कहते हैं: पांच प्रकार के विद्यार्थी विद्याग्रहण नहीं कर सकते. १. चंड (उग्र, कलह प्रिय), २. स्तब्ध (उद्धत, घमंडखोर), ३. आलसी, ४. रोगी, ५. आसक्त (स्त्री या किसी भी विद्या विरोधी प्रवृत्ति में लिप्त हो).
विद्या किसे प्राप्त होती है? १. जो जनसमूह को सर्प मानकर अपने से दूर रखकर एकांतसेवी बनता है, २. जो मान-प्रतिष्ठा से नर्क समान मानकर डरता है, ३. जो स्त्री विषयक आसक्ति से इस प्रकार डरता है मानो किसी राक्षसी से डर रहा हो, ऐसा विद्यार्थी ही विद्या प्राप्त कर सकता है. जो विद्यार्थी भोजनावलंबी न हो और स्त्री के प्रति आसक्त न हो वही गरुड और हंस के समान दूर-दूर के देशों में जाकर विद्याभ्यास कर सकता है.
और भी कुछ शिक्षा के सूत्र हैं. खूब काम के हैं. हर प्राचीन सूत्र आज के जमाने में भी उपयोगी है. हर सूत्र का निहितार्थ आज के समय के अनुसार करना चाहिए. भोजनावलंबी होने का अर्थ है कि भोजन के लिए आसक्ति नहीं होनी चाहिए. अभी उसके अर्थ का विस्तार करके ऐसा कहा जा सकता है कि भोजन के प्रति आसक्ति न होना यानी पसंद के भोजन नहीं खाना. लेकिन मुझे मां के हाथ के पराठे अच्छे लगते हैं या पत्नी के हाथ का बना गाजर का हलवा पसंद, ऐसा आग्रह रखता है तो वह घर से बाहर विदेश जाकर शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता. उसे अमेरिका जाकर बर्गर और इटली जाकर पास्ता का स्वाद लेना होगा. तभी वह हार्वर्ड में पढने जा सकता है या फैशन डिजाइनिंग के अध्ययन में आगे बढ सकता है.
जो बात भोजन पर लागू होती है, वही औरत के लिए भी. इस बारे में ज्यादा लप्पन छप्पन करने की जरूरत नहीं है.
इस विषय में यदि मजा आया हो तो शिक्षा सूत्र के बारे में एक और लेख सोमवार को रखेंगे.
आज का विचार
कदम जहां नहीं धरता वहां ऐ खुदा,
न दिखाना हाथ धरने के दिन.
एक मिनट!
बका: पका, याद है? दस साल पहले २६/११ को मुंबई हमले के बाद सारा पाकिस्तान खुश था….
पका: बिलकुल याद है.
बका: और आज पुलवामा हमले के बाद सारा पाकिस्तान भयभीत है.
पका: बस, यही फर्क है भाजपा की सरकार और कांग्रेस की सरकार में.