संजय बारू को नई दिल्ली से मनमोहन सिंह ने ऑफर भेजा था

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, गुरुवार – १४ फरवरी २०१९)

एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर में पत्रकार संजय बारू लिखते हैं कि २२ मई २००४ को डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री के नाते शपथ लेने के बाद बारू को नई दिल्ली से पी.एम. के प्रिंसिपल सेक्रेटरी का फोन आया. उस दिन संजय बारू दिल्ली में नहीं थे, हैदराबाद में अपने पैरेंट्स के घर थे. उस दिन संजय बारू की ५०वीं वर्षगांठ थी. शुक्रवार, २८ मई को फोन आया:`पी.एम. आज शाम आपसे मिलना चाहते हैं.’ लेकिन ये संभव नहीं था. सोमवार सुबह संजय बारू नई दिल्ली में ७ रेसकोर्स रोड पर स्थित निवास स्थान पर पहुंचे. लुटियन्स दिल्ली और डिप्लोमेटिक एंक्लेव से सटे `सेवन आरसीआर’ के रूप में पहचाना जाने वाला प्रधान मंत्री का `घर’ एक विशाल जगह है.

लुटियन्स दिल्ली के बारे में आपको थोडा जान लेना चाहिए, क्योंकि आजक `लुटियन्स मीडिया’ शब्द अत्यंत प्रचलित हो रहा है, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी उपयोग करने लगे हैं. ब्रिटिश राज के समय सर एड्विन लुटियन्स नाम के आर्किटेक्ट ने नई दिल्ली क्षेत्र की रचना की, कई सारे भवन उसी के बनाए हुए हैं. एड्विन लुटियन्स और उसके साथी आर्किटेक्ट हर्बर्ट बेकर तथा उनकी टीम ने दिल्ली के संसद भवन का डिजाइन तैयार किया है. नई दिल्ली के इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन (मूलत: वाइसरॉय हाउस) तथा हैदराबाद हाउस जैसे लैंडमार्क्स भी लुन्यन्स तथा उनकी टीम के डिजाइन की देन है. नई दिल्ली के सबसे पॉश इलाके लुटियन्स बंगलो जोन (एल.बी.जेड) है. करीब २५ या २६ वर्ग किलोमीटर के उस इलाके में कुल एकाध हजार विशाल-भव्य बंगले हैं, बाकी हरियाली है- गार्डन्स और पार्क्स तथा चौडे रास्ते हैं. ये सब लुन्यन्स और उनकी टीम ने डिजाइन किया है. इस पूरे क्षेत्र की ९० प्रतिशत जमीन सरकारी स्वामित्व की है, शेष दस प्रतिशत जमीने निजी हैं. १२ एकड में फैला प्रधान मंत्री का निवास स्थान भी यही हैं. (रेसकोर्स रोड को २०१६ से लोक कल्याण मार्ग के नाम से पहचाना जाता है). लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधान मंत्री थे तब १० जनपथ पर रहते थे. उनकी अकाल मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी ने उसे हडप कर पार्टी का हेडक्वार्टर बना दिया और एक छोटे हिस्से में कहने के लिए शास्त्रीजी का म्युजियम बनाया. अभी १०,जनपथ में राजमाता सोनिया विराजमान हैं. उनके कुंवर किसी अन्य सरकारी बंगले में रहते हैं. उनके दामाद-पुत्री भी तीसरे-चौथे बंगलों में रहते हैं.

बात निकली ही है तो जान लें कि `सेवन आरसीआर’ का पी.एम. का बंगला एक बंगला नहीं, १,३,५,७ और ९ को मिलाकर पांच बंगलों का समूह है. १ नंबर पर हेलीपैड है. ३ में मनमोहन सिंह जब पीएम थे तब रहते थे, अब पीएम का गेस्ट हाउस है. ५ और ७ में वर्तमान प्रधान मंत्री का निवास स्थान है तथा उनके औपचारिक कार्यालय के रूप में भी उपयोग में लाया जा रहा है. ९ नंबर का बंगला स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एस.पी.जी.) के गार्ड्स के लिए सुरक्षित है. २०१० में इस `सेवन आरसीआर’ के पंचवटी कॉम्प्लेक्स से दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट तक डेढ किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ जो २०१४ में पूरा हुआ. इस भूगर्भ मार्ग का सबसे पहला उपयोग प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने किया.

लुटियन्स जोन में बडे-बडे मंत्रियों, रसूखदार लोगों के बंगले हैं. इन सत्ताधारी लोगों की चापलूसी करके जो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया २००४ से २०१४ के दौरान एक दशक में तगडा हुआ था, उस सेकुलर, साम्यवादी मीडिया को अब लुटियन्स मीडिया की तिरस्कृत पहचान दी गई है.

प्रधान मंत्री के निवास के एक तरफ लुटियन्स जोन है, दूसरी तरफ दुनिया भर के देशों के डिप्लोमेट्स के घर- कार्यालय हैं जिसे डिप्लोमेटिक एन्क्लेव के रूप में जाना जाता है. लुटियन्स मीडिया उस समय के सत्ताधारी दल की गोद में पिल्ले की तरह खेलता था और राडिया टेप्स कांड जब उजागर हुआ तब साबित हुआ कि ये मीडिया सत्ताधारियों के लिए लॉबिंग करता था, उनकी ओर से दलाली करता था और बदले में जो बिस्किट के टुकडे फेंके जाते थे उन्हें खुशी से खाकर जो डकार लेता था, वह हमें अखबार के फ्रंट पेज पर तथा उनके टीवी चैनल्स के प्राइम टाइम की चर्चाओं के दौरान सुनन को मिलता था. भला हो वर्ष २०१४ का कि नई सरकार आने के बाद कई मीडिया ऐसे कडे हुए जिनके दिल में देशहित में बसता है और जो लुटियन्स मीडिया की हरकतों की कलई खोलकर हमारी आंखों में झोंकी जा रही धूल को साफ कर रहा है.

संजय बारू सोमवार, ३१ मई को सुबह `सेवन आरसीआर’ पर प्रधान मंत्री को मिलने गए. स्वाभाविक रूप से यहां सिक्योरिटी एकदम सख्त तो रहने ही वाली है. बारू ने अपनी पुस्तक में इसका वर्णन किया है. पी.एम. के पर्सनल सेक्रेटरी द्वारा जो नाम एस.पी.जी. को मिले हों, उन्हीं को प्रवेश मिलता है. बाहर के पहले गेट से आप अपनी कार से अंदर दूसरे गेट तक जब पहुंचते हैं तब वहां गाडी छोड देनी पडती है. सिर्फ मंत्रियों, विदेशी महानुभावों तथा अन्य कई उच्च अधिकारियों को ही दूसरे गेट से गाडी को आग ले जाने की अनुमति मिलती है. वहां से आगे उन्हें भी एस.पी.जी. के वाहन में पी.एम. हाउस तक पहुंचना होता है. बाकी लोगों को चलकर विजिटर्स रूम तक जाना होता है और वहां पर अपना मोबाइल फोन जमा कराना होता है. उसके बाद उनकी स्क्रीनिंग होती है. तत्पश्चात उन्हें भी एस.पी.जी. की मारूति कारों का काफिले में पी.एम. के घर तक ले जाया जाता है.

एस.पी.जी. के नियम नेशनल सिक्योरिटी एड्वाइजर से लेकर पी.एम. के संबंधियों- मित्रों पर लागू होता है. केवल बिलकुल निकट के परिवारजनों को ही इससे बाहर रखा जाता है. यानी मनमोहन सिंह जब प्रधान मंत्री थे तब उनकी पत्नी – पुत्री को इससे बाहर रखा गया था. नरेंद्र मोदी को तो ऐसी कोई जरूरत है ही नहीं. पी.एम. हाउस के एक बंगले से अन्य बंगलों तक जाने वाले कॉरिडोर को भी बुलेट-प्रूफ ग्लास से ढंका गया है. यह सारा इलाका नो-फ्लाय जोन तो है ही. इसके अलावा, मेन रोड की सीमा पर कांक्रीट की बडी दीवार बनाई गई है ताकि कोई सुसाइड ट्रक-कार बॉम्बर उस न जाय. पी.एम. के घर के आसपास सम्राट होटल इत्यादि की ऊँची इमारतें हैं, जिसमें जिन कमरों से पी.एम. हाउस नजर आता है, उन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो ने ले लिया है और वहां पर चौबीस घंटे पहरा देने के लिए सिपाही तैनात रहते हैं. दिल्ली जिमखाना भी बगल में है जहां वॉच टॉवर्स खडे किए गए हैं.

इस पंचवटी कॉम्प्लेक्स में उसका अपना पावर स्टेशन है और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सायंसेस (एम्स) के डॉक्टर्स-नर्सों की फौज भी चौबीसों घंटे सातों दिन हाजिर रहती है. एंबुलेंस हमेशा पी.एम. जहां जाते हैं उनके पीछे ही रहती है. प्रधान मंत्री निवास में वेल मेंटेन्ड गार्डन्स लॉन्स हैं जहां गुलमोहर, अर्जुन वृक्ष तथा अन्य कई वृक्ष हैं. खूब सारे पक्षी आते हैं, मोर तो खास रहता है. सारे परिसर की देखभाल के लिए माली, चपरासी, इलेक्ट्रिशियन, प्लमर इत्यादि का २०० लोगों का स्टाफ है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना सादा भोजन बनाने के लिए गांधीनगर के सी.एम. हाउस में जिस बदरी नाम के रसोइए को रखा था उसे ही दिल्ली में अपने यहां बुला लिया है. बदरी का वेतन तथा अपने खाने पीने का खर्च प्रधान मंत्री अपने वेतन से सरकार को चुकाते हैं. गुजरात में सीएम के रूप में उन्होंने अपने वेतन से जो भी खर्च किया था उसके अलावा जो बचत होती थी, वह सारी बचत गांधीनगर को छोडते समय सचिवालय के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की बेटियों की पढाई के लिए दे दिया था.

संजय बारू से मिलते ही प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा,

`संजय, आई वॉज नॉट प्रिपेयर्ड फॉर दिस रोल. ये बिलकुल नया अनुभव है और काम आसान नहीं है. गठबंधन सरकार के पास पूरा बहुमत नहीं है इसीलिए लेफ्ट (साम्यवादी) दलों से समर्थन लेना अनिवार्य था लेकिन वे बाहर से समर्थन करनेवाले हैं, सरकार में शामिल हुए बिना. कांग्रेस ने कभी गठबंधन सरकार नहीं चलाई है. मुझे उसकी सफलता के लिए काम करना है. मुझे एक प्रेस सेक्रेटरी की जरूरत पडनेवाली है. मैं आपको जानता हूं. आप मेरे साथ काम करेंगे तो मुझे खुशी होगी. मैं जानता हूं कि आपको आर्थिक दृष्टि से नुकसान होगा लेकिन इस मौके को आप देश सेवा के रूप में देखिए.’

मनमोहन सिंह ने संजय बारू को जो प्रस्ताव दिया वह अच्छा किया या बुरा, इसकी जानकारी उस समय न तो उन्हें थी, न ही संजय बारू को.

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– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ.

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