`द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ और सोनिया सरकार की असलियत

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – ११ फरवरी २०१९)

इन चारों फिल्मों में से सबसे महत्वपूर्ण फिल्म कौन सी है? वैसे तो चारों ही देखने लायक हैं. हर फिल्म अपनी अपनी तरह से महत्वपूर्ण है, लेकिन उसमें सबसे महत्वपूर्ण फिल्म कौन सी है? मेरे हिसाब से `द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ (टी.ए.पी.एम.). इसका कारण बताऊँ आपको. `उडी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ बेहतरीन फिल्म है, जबरदस्त बनी है. दो सौ करोड से अधिक का बिजनेस किया है और अभी भी हाउसफुल जा रही है. मुझे कितनी पसंद आई है, ये तो आप जानते ही हैं. लेकिन `उडी’ में जो `सर्जिकल स्ट्राइक’ की बात है, उसके बारे में हम सभी जानते हैं, `उडी’ की तरह ही `मणिकर्णिका’ भी अवश्य देखने लायक फिल्म है, लेकिन मान लीजिए कि उस पुराने इतिहास के पन्ने आप आज नहीं पढते हैं तब भी आज की जो परिस्थिति है, उसका विश्लेषण करने में उन्नीस बीस का अंतर पडेगा. `उडी’ और `मणिकर्णिका’ की तरह ही `ठाकरे’ भी देखनी ही चाहिए, लेकिन `ठाकरे’ के बारे में जब मैने लिखा तब खासतौर से उल्लेख किया था कि बालासाहब के स्वर्गवास के बाद की शिवसेना का, हिंदुत्व के लिए लडनेवाले एक दल का स्वर्णयुग खत्म हो गया. अभी की शिवसेना बिलकुल अलग है.

`टी.ए.पी.एम.’ में २००४ से २०१४ तक के कांग्रेस के शासन की जो झलक दिखाई गई है, किस तरह से देश का संचालन हो रहा था, किस तरह से एक परिवार को आगे करने के लिए सारे देश के हितों की बलि चढाई जा रही थी, इसकी झलक है. और शायद इसीलिए इस फिल्म को सेकुलर तथा साम्यवादी समीक्षकों ने खारिज कर दिया. इस फिल्म में जो उभर कर आता है वह सत्य कांग्रेस प्रेमियों से सहा नहीं जाएगा. और फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया है, वह सत्य ही है और सत्य के सिवाय कुछ भी नहीं है. यदि ऐसा न होता तो फिल्म के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए कांग्रेसी वकील कब के सुप्रीम कोट्र में पहुंच चुके होते. फिल्म जिस पर आधारित है, उन संजय बारू की पुस्तक को प्रकाशित हुए पांच साल बीत चुके हैं, लेकिन थोडा-बहुत विरोध के अलावा अभी तक इस पुस्तक की एक भी जानकारी को कांग्रेसी वकीलों ने कोर्ट में गलत साबित करने की कोशिश भी नहीं की है. इसका मतलब है कि कांग्रेस के अहमद पटेल, कपिल सिब्बल या अन्य नेताओं नें, राहुल-प्रियंका ने, खुद सोनिया ने और पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकर कर लिया है कि पीएम के उस समय के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने पुस्तक में जो कुछ भी लिखा है वह सत्य लिखा है और उस पुस्तक के आधार पर जो फिल्म बनी है उसमें भी वही सत्य उद्घाटित हुआ है.

मनमोहन सिंह की सरकार कठपुतली सरकार थी. प्रधान मंत्री का पद सांवैधानिक पद है. उनकी सत्ता का दुरूपयोग कोई दूसरा नहीं कर सकता. पृथ्वीराज चौहान किसी जमाने में महाराष्ट्र के १७वें मुख्य मंत्री थे (२०१० से २०१४). कांग्रेस का बडे नेता. २००२ दे २०१० के दौरान वे राज्य सभा के सदस्य थे.

फिल्म में जो दृश्य है उसका पुस्तक में संजय बारू ने अपने शब्दों में इस तरह से वर्णन किया है. २००४ में डॉ. मनमोहन सिंह का जब शपथ ग्रहण हुआ तब उनके साथ कई सदस्यों ने भी शपथ ग्रहण किया था, लेकिन किसे कौन सा विभाग मिलेगा, इसकी घोषणा अभी नहीं हुई थी. संजय बारू लिखते हैं: `(राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में) कांग्रेस पार्टी के सभी वरिष्ठ नेता बडे उत्साह से घूम रहे थे. उत्सव का वातावरण था. छह-छह साल के बाद वे फिर से सत्ता प्राप्त कर रहे थे. शायद किसी ने आशा की थी कि वे चुनाव जीत जाएंगे और कइयों को आशंका थी कि कांग्रेस अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सरकार बनाएगी. शपथ विधि पूर्ण होने के बाद मैं डॉ. मनमोहन सिंह को अभिनंद देने के लिए उनकी तरफ गया, लेकिन स्वाभाविक रूप से वे कांग्रेस के बडे – बडे नेताओं से घिरे हुए थे, उसमें से कई तो ऐसे मिनिस्टर थे जिन्हें आशा थी कि उन्हें कोई मालदार मंत्रालय दिया जाएगा. उस भीड में कई पत्रकार भी थे. मैने दूर से ही डॉ. सिंह के साथ आई कॉन्टैक्ट किया और उन्हें दोनों हाथ जोडकर नमस्कार किया. वे मुस्कुराए.

भीड से दूर जाकर मैं यूँ ही लोगों से मिल रहा था कि कहीं मुझे अपने अखबार के लिए कोई समाचार शायद मिल जाए.’

उस समय संजय बारू `द फायनांशियल एक्सप्रेस’ दैनिक के चीफ एडिटर थे. पी.एम. बनने के कुछ दिन बाद मनमोहन सिंह ने संजय बारू को अपना मीडिया सलाहकार बनाया.

राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में शपथ विधि समाप्त होने के बाद कौन मिला, यह बात करते हुए संजय बारू लिखते हैं: `अचानक मेरी मुलाकात पृथ्वीराज चौहान से हुई. मैं उन्हें एक दशक से जानता था. नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में सैटरर्ड ग्रुप मे अनौपचारिक नाम से परिचित वीकली लंच-चर्चा में हम दोनो रेगुलर हाजिरी लगाते थे. पृथ्वीराज ने राज्य स्तर के मंत्री के रूप में शपथ लिया था. मैने उनसे पूछा कि आपको कौन सा मंत्रालय मिलनेवाला है? उनका मुंह प्रफुल्लित हो गया. वे खुशी से बोले: पीएम ने मुझसे व्यक्तिगत रूप से कहा है कि मुझे वित्त मंत्रालय सौंपा जाएगा.’

संजय बारू लिखते हैं:`यह तो मेरे लिए फ्रंट पेज की न्यूज थी. मैने तुरंत ही पृथ्वीराज से दूसरा सवाल पूछा. तो फिर वित्त मंत्रालय में कैबिनेट मिनिस्टर कौन होगा? पृथ्वीराज ने मेरे करीब आकर मेरे कान में कहा: पी.एम. खुद फायनांस मिनिस्ट्री संभालेंगे.’

बारू लिखते हैं कि,`मुझे मेरी हेडलाइन मिल गई.’

भले ही यह औपचारिक रूप से कंफर्म नहीं था, लेकिन फ्रॉम द हॉर्सेस माउथ सुना था इसीलिए अगले यह समाचार संजय बारू ने फ्रंट पेज पर लीड आइटम के रूप में `द फायनांशियल एक्सप्रेस’ में छापा.

बारू लिखते हैं: `सुबह अखबार प्रकाशित होने पर मुझे पी. चिदंबरम का फोन आया. उन्होंने १९९६ में अल्पकाल के लिए चली जोड तोड वाली सरकार के समय वित्त मंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी, उस समय वे कांग्रेस से अलग हुए समूह द्वारा बनाई गई पार्टी में थे और २००४ के चुनाव से कुछ समय पहले ही कांग्रेस में लौट आए थे. चिदंबरम ने मुझसे पूछा:`आपने जो समाचार छापा है, क्या वह सच है?’ मैने कहा बिलकुल सच है, मैने हॉर्सेस माउथ से सुना है. उन्होंने पूछा:`आपसे किसने कहा? पी.एम. ने? मैने कहा:`नहीं मिनिस्टर ऑफ स्टेट (पृथ्वीराज) ने’ कहा. यह सुनकर चिदंबरम ने फोन पर मुझसे कहा:`पी.एम. यदि खुद वित्त मंत्रालय रखेंगे तो मुझे क्या दिया जाएगा?’

राजनीति के खेल का सस्पेंस जासूसी उपन्यास के रहस्य से भी अधिक गहरा होता है और कांग्रेसी नेताओं की राजनीति का खेल तो राजमाता के सर्वोच्च आसन से संचालित होता था इसीलिए उसमें तो बेहतरीन उपन्यास से भी अधिक तेज झटके और मोड आएंगे.

(क्रमश:)

आज का विचार

पडोसन ने मना कर दिया हो और उससे बदला लेना हो तो १३ फरवरी की मध्यरात्रि में उसके दरवाजे के सामने चॉकलेट, फूल और बिना कोई नाम लिखे बडा कार्ड रख देना चाहिए. फिर वह जाने और उसका पति!

– व्हॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका: आज सारे नेपाली दिल्ली के जंतरमंतर पर जुटकर धरना देनेवाले हैं/

पका: क्यों?

बका: मैने उनमें से कई से पूछा तो कहते हैं: ऊऊऊ शाबजी, यो कांग्रेस कैसी बोलती कि शब चौकीदार चोर है?

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