(गुड मॉर्निंग – चैत्र, शुक्ल तृतीया, विक्रम संवत २०७९. सोमवार, ४ अप्रैल २०२२)
आज के दिन का उपचार काफी महत्वपूर्ण था. यह एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसे आप वर्ष में अधिक से अधिक चार या छह बार ही ले सकते हैं. ब्रह्म मुहूर्त में ही की जा सकती है और यह करीब दो घंटे चलती है इसीलिए आज स्वामीजी के योगाभ्यास में उपस्थित नहीं रहना था.
आयुर्वेद में शंख प्रक्षालन का बहुत महत्व है. प्रक्षालन यानी स्वच्छ करना, यह तो सभी को पता है. शंख शब्द का उपयोग आंत के लिए किया जाता है. शरीर में तीस-चालीस फुट लंबी आंत स्थित होती है. शंख की रचना को ध्यान से देखा होगा तो ध्यान में आएगा कि उसमें जिस तरह की रचना होती है, जिसके कारण फूंक मारने से शंखध्वनि निर्मित होती है, वैसी ही अटपटी रचना आंत की होती है. आंत के लिए शंख शब्द का उपयोग करने का दूसरा कारण है कि शंख अंदर ही अनेक घुमाव होने बावजूद वह बिलकुल साफ होता है. उसी तरह से अपने पाचन तंत्र को उतना ही साफ रखने की क्रिया अर्थात शंख प्रक्षालन.
यह विधि तथा मेरे आरोग्य विषयक किसी भी लेख में वर्णित क्रियाएं या औषधि सेवन इत्यादि अधिकृत, अनुभवी और जिम्मेदार व्यक्ति की देखरेख में हों, यह अनिवार्य है.
बस्ती या एनिमा द्वारा आंत के अंतिम भागों की शुद्धि होती है. शंख प्रक्षालन से गला, पेट और आंत के प्रवेश द्वार से लेकर आंत के अंतिम द्वार तक के तमाम अवयवों का शुद्धिकरण होता है.
ट्रीटमेंट सेंटर के रिसेप्शन एरिया में कई योगमैट्स बिछी थीं. पास ही एक टेबल पर विभिन्न प्रकार की पानी की छोटी टंकियां थीं. मेरे लिए आंवले के गुनगुने पानी से यह विधि करने का प्रिस्क्रिप्शन था.
सबसे पहले कागासन में बैठ कर यानी उकड़ूं बैठक कर चार गिलास आंवला युक्त पानी जल्दी से बिना रुके पीना होता है. प्रैक्टिस नहीं होने के कारण बीच बीच में रुकना पड़ता है. लेकिन धीरे धीरे आ जाता है.
उसके बाद आपके योग प्रशिक्षक आपको हलासन, मर्कटासन, तिर्यक ताडासन, उदराकर्षणासन, वक्रासन, मलासन, कटि चक्रासन इत्यादि आसन करवाते हैं. यह प्रत्येक आसन पेट के हिस्से को मरोड़ता है. कपड़ा धोने के बाद उसे दो सिरे आमने सामने पकड कर जिस तरह से निचोडा जाता है लगभग उसी तरह की क्रिया होती है. ऐसा करते करते आपको तनिक भी प्रेशर आए तो अधिक प्रेशर का इंतजार किए बिना सीधे टॉयलेट में चले जाना चाहिए. निकट में ही वॉशरूम की जगह कहां कहां है यह आपको ले जाकर दिखा दिया जाता है.
अधिकतर आरंभ का आधा घंटा वहां जाने की जरूरत नहीं पडती. पौना-एक घंटा बाद जाना पड़ता है. तब तक विराम लिए बिना आसन करते रहना है. पहली बार जाकर आपने के बाद और एक गिलास आंवले का पानी उकडूं बैठकर गटागट पी जाना होता है और तुरंत योग शिक्षक की सूचना के अनुसार आसन करना है.
पानी-आसन-टॉयलेट. . .पानी-आसन-टॉयलेट. यह संपूर्ण विधि पांच-सात बार चलती है. क्रमश: आपके पेट का कचरा बाहर निकलता जाता है और अंत में बिलकुल प्रवाही रूप में शरीर काचरा बाहर निकलता है. दो घंटे बाद शरीर थककर चूर हो जाता है. आपको रूम पर जाकर आराम करने की सूचना दी जाती है. रूम में आकर फिर एक दो बार वॉशरूम का उपयोग करना पडता है.
ट्रीटमेंट लेने के बाद कुंजल क्रिया करनी होती है, जिससे जो पानी बाहर नहीं निकला है वह मुंह से बाहर निकले. मुझे अभी कुंजल क्रिया कम्फर्टेबल नहीं लग रही.
आज दिन भर नहाने से मना किया गया है. पंखे के नीचे या ठंडी हवा में नहीं रहना है. शरीर से और मन से संपूर्ण आराम करना है. अनिवार्य न हो तो बिस्तर से उठना भी नहीं है. वैसे, खड़े होने जितनी शक्ति भी नहीं होती. बिलकुल निचोड लिए गए हैं, ऐसा लगता है. शक्तिहीन होने का अनुभव होता है, फिर भी शरीर में गजब की स्फूर्ति लग रही है.
आज ब्रेकफास्ट के लिए देर से जाना था. साढ़े आठ बजे डायनिंग हॉल में एक बडा बाउल भरकर खिचडी दी गई जिसमें ऊपर तक घी तैर रहा था. यहत्र की साफसफाई करने के बाद उसमें नया तेल जैसे डाला जाता है उसी तरह शरीर में घी डालकर सभी अंगों को अंदर से कोटिंग कर लेना जरूरी होता है.
खिचडी मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती. अपवाद स्वरूप बिरयानी जैसी मसाले से युक्त `निदा फाजली की खिचडी’ बनाया करता हूं. वर्षों पहले निदा फाजली के घर मेरे कवि मित्र शोभित देसाई मुझे ले गए थे.
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता.
आशा भोसले के स्वर में `आहिस्ता आहिस्ता’ में आपने निदा फाजली की यह विख्यात रचना सुनी होगी.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार संसद में निदा साहब की इस रचना का वाचन किया था (ये रही लिंक).
वर्षों पहले `एकोज़’ नामक अलबम में चित्रा सिंह ने गाया है:
सफर में धूप तो होगी
जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड में
तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते
राहें कहां बदलती हैं
तुम अपने आपको
खुद ही बदल सको तो चलो
यहां किसी को
कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के
अगर तुम संभल सको तो चलो
यही है जिंदगी
कुछ ख्वाब, चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से
तुम भी बहल सको तो चलो
सफर में धूप तो होगी
जो चल सको तो चलो
निदा फाजली के घर जगजीत सिंह से मिलना था. देर रात तक दोनों सृजकों के सान्निध्य में पीने के बाद खूब भूख लगी. उस जमाने में मुंबई में भी देर रात के बाद खुले रहनेवाले रेस्टोरेंट शायद ही रहे होंगे और स्विगी-जोमैटो को आने में अभी दशकों का समय था. निदा फाजली ने रसोई घर में जाकर सिर्फ पंद्रह मिनट में बिरयानी के स्वाद को भी टक्कर दे, ऐसी खिचडी बनाकर ले आए जिसका स्वाद मुंह में रह गया. अगले दिन उन्हें फोन करके रेसिपी जानी. उसके बाद वर्षों से मैं निदा फाजली वाली खिचडी बनाता हूँ. ईटीवी के लिए `संवाद’ कार्यक्रम जब किया करता था तब मेरे खाने के शौक को जानकर ईटीवी के `रसोई शो’ के प्रोड्यूसर एक बार अपने सेट पर ले गए. जहां मैने `निदा फाजली की खिचडी’ बनाकर दर्शकों के साथ उसकी रेसिपी साझा की थी. (ये रही लिंक).
तो बात ऐसी है. योग ग्राम में तो ऐसी मसालेवाली खिचडी नहीं होगी. और आज शंख प्रक्षालन करने के बाद मेरे लिए घी से सराबोर खिचडी खाना अनिवार्य था. पौना घंटे तक चम्मच-आधा चम्मच खाकर पूरा बाउल खाली किया.
दोपहर दो बजे स्वामी रामदेव ने अपने निवास स्थान पर आने का निमंत्रण दिया था. मन में चिंता थी कि इस हालत में, जब शरीर में कोई ऊर्जा ही नहीं रही तब उनसे मिलकर क्या बातें करूंगा. इसके बावजूद पौने दो बजे खडे होकर उनसे मुलाकात के लिए उपयुक्त कपडे पहनकर तैयार हो गया और स्वामीजी के संदेश का इंतजार करने लगा. दोपहर में पोटली मसाज इत्यादि उपचार लेने थे लेकिन स्वामीजी से मिलना अधिक महत्वपूर्ण था. ट्रीटमेंट तो फिर से कभी भी लिया जा सकता है. पचास दिन की यात्रा का अभी तो चौथा ही दिन है.
लेकिन स्वामीजी की ओर से कोई संदेश नहीं आया. बाद में पता चला कि बापू की रामकथा से इंडिया टीवी वाले उन्हें शूटिंग के लिए गंगा किनारे ले गए थे. दोपहर को डायनिंग हॉल में एक संतरा मिला. मुख को स्वाद मिला. शाम को केकेटीएसजी जूस. शाम का योग सत्र मिस किया. उसके बजाय रूम में ही बालकनी में हवन किया.

कल ही मुझे विचार आया था कि यज्ञशाला में जाकर दूसरों केसाथ हवन चिकित्सा करने के बदले रूम पर ही हवन करना हो तो कैसा रहे? कल हमने ई-रिक्शा बुलाई और योगग्राम में पतंजलि की हवन सामग्री बेचने वाले स्टोर पर पहुंच गए. वहां हमसे कहा गया कि रूम पर हवन करना हो तो अनुमति लेना बेहतर है. हम उसी ई-रिक्शा से फिर रिसेप्शन पर लौटे और नीरज जी मिले. उन्होंने डॉ. माहेश्वरी के पास भेजा. डॉक्टर ने खुशी से अनुमति दे दी. तब स्टोर में जाकर पतंजलि की हवन किट खरीद ली. मुंबर्स में दो एक महीने से रोज शाम को हवन करते ही हैं इसीलिए अभ्यास था ही. साथ ही गोमय समिधा खरीदी जो ऑनलाइन नहीं मिलती है. गाय के गोबर मे अनेक सामग्रियां डालकर यह समिधा तैयार की जाती है, जिसे आप आम या पीपल की लकडी की समिधा की जगह पर उपयोग में ला सकते है. इसके अलावा हवन सामग्री के रूप में गुगल, हृदयेष्टि, मधुइष्टि, मद्येष्टि और वातेष्टि के डिब्बे लिए. साथ ही दशांगम पावडर की एक पुडिया भी ले ली. कपूर और बाती यहां नहीं थे. मेगास्टोर में मिल जाएंगे. ई-रिक्शा का ड्राइवर धैर्यवान था. मेगास्टोर में ऐसे भी गाय का घी लेने तो जाना ही था. बाती भी मिल गई, कपूर नहीं था. अचानक याद आया कि माचिस तो है ही नहीं. मेगास्टोर में नहीं रखते. यज्ञ सामान बेचनेवाले स्टेर में फिर लौटे. माचिस? यहां भी नहीं रखते. माचिस के बिना हवन कैसे होगा? आयडिया! यज्ञ शाला में जाकर निवेदन किया कि माचिस की डिब्बी और कपूर मिल जाए तो बड़ी कृपा होगी. शाम तक सहर्ष मिल जाने का आश्वासन प्राप्त हुआ.
कल शाम के बजाय आज सबेरे कपूर-माचिस रूम पर आ गई. अत: आज शाम को शांतिस से गायत्री मंत्र के उच्चारण के साथ हवन करके आप सभी के सुख, समृद्धि, शांति और स्वास्थ्य के लिए भगवान से प्रार्थना की. मिट्टी के छोटे हवन पात्र में शांत अग्नि लेकर उस पर गुगल रखकर धूप करके कमरे में हर जगह घुमाया.
रात को भोजन की बिलकुल इच्छा नहीं थी. डायनिंग हॉल में जाकर SP, BV (सूप, बॉइल्ड वेजिटेबल्स) तथा खिचडी के बदले यदि संभव हो तो एकाध फल मिल जाय तो बेहतर, ऐसी प्रार्थना की जिसे स्वीकार किया गया. अनार का दाने से भरी कटोरी और एक कटा सेब मिल गया. खाने से पहले करेले का रस तो पीना ही था. पिया. रात सोने से पहले एक क्वाथ पीना था. उसके बाद थकान उतारने के लिए जो बिस्तर में पडे तो सबेरे ही नींद खुली.
कल सबेरे स्वामीजी के साथ योगाभ्यास के लिए गार्डन में जाते समय सिर पर पहनने के लिए गर्म टोपी और विन्डचीटर जैसा जैकेट साथ ले जाना पडेगा ऐसा लग रहा है. सबेरे पांच बजे हवा के झोंकों का काफी जोर होता है और अभी थोडी सर्दी-खांसी जैसा लग रहा है. जो आज के ट्रीटमेंट के बाद नॉर्मल कहा जा सकता है, ऐसा मुझे बताया गया था. सुबह गार्डन में बिछाई गई योग-मैट्स के ऊपर की चादर बिलकुल गीली हो जाती है, जिसे हटाकर हम पहले ही दिन से बडी टर्किश टॉवेल और उस पर हरिद्वार से इसी हेतु ली गई रंगीन चादर बिछा देते हैं.
शंख प्रक्षालन की चिकित्सा का अनुभव कुल मिलाकर बहुत ही अच्छा रहा. मुझे लगता है कि हमारे पास शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खूब सारी जानकारी है. अलोपथी के उपचारों के कारण ये सब कुछ काफी हद तक एक आवरण में चला गया था, वह जानकारी स्वामी रामदेव के पच्चीस-तीस वर्ष के दिन-रात किए गए भगीरथ प्रयासों के कारण आज सारी दुनिया में फैल रही है.
स्वामीजी के जीवन और उनके काम के बारे में चिंतन करते करते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. सबेरे चार बजे यहां सभी को रिसेप्शन से फोन आता ही है:`ओम सुप्रभातम’. फोन आने पर उनींदेपन की आवाज में प्रत्युत्तर न दें इसीलिए पौने चार बजे का अलार्म लगाकर सोने का क्रम रखा है.
कठीन उपक्रम फिर भे अनिवार्य और प्रेरक
जय श्री राम 🚩🙏🚩
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अद्भुत व कठिन प्रक्रियाएं।