अक्षि तर्पण, शिरोधारा, नस्य और हवन चिकित्सा – हरिद्वार के योगग्राम में १४वां दिन : सौरभ शाह

(गुड मॉर्निंग: चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, विक्रम संवत, २०७९, गुरुवार, १४ अप्रैल २०२२)

मिट्टी की चिकित्सा के बारे में लेख पर एक अच्छी कमेंट आई है. आलाप घिया (alapghiap@gmail.com) लिखते हैं:`मेरे दादा स्व. धीरजलाल घिया भावनगर में `माटी प्रयोगी’ के रूप में पहचाने जाते थे और उनके इलाज से कैंसर के मरीज़ों को भी उन्होंने ठीक किया था, ऐसा मेरे घर के लोग कहा करते. उनके मिट्टी प्रयोग के लिए लिखी और छपी पुस्तकें मैने भी पढ़ी हैं और मेरी दादी मां जब तक जीवित थीं तब तक हम लोग भी मिट्टी बनाकर रखते थे और लोग हमारे यहां से जरूरत पडने पर ले जाते.

`मिट्टी बनाने की प्रक्रिया में खूब मेहनत लगती है. और मेरे दादा या हम लोग भी, कभी उसके पैसे या फीस या अन्य लाभ नहीं लिया करते थे. केवल और केवल लोगों को आरोग्यलक्ष्मी लाभ हो, यही हेतु था.

`मेरे दादा से मिट्टी से इलाज कैसे हो सकता है, यह देखने और समझने के लिए स्व. विनोबा भावे भी आए थे. और उसके बाद से वे भी मिट्टी के प्रयोगों का नियमित उपयोग किया करते थे, ऐसा मैने अपनी दादी से सुना है.

`आपके आज के लेख से मेरी बचपन की स्मृतियॉं ताजा हो गई. आभार.’

आभार तो आपका आलापभाई! ऐसी अनमोल स्मृतियां कमेंट के रूप में `न्यूज़प्रेमी’ के पाठकों के साथ साझा करने के लिए.

जैसा कि मैने कहा था शिरोधारा, अक्षि तर्पण और नस्य की मेरी ट्रीटमेंट पूर्ण हो चुकी है. अक्षि यानी आंख और तर्पण का एक अर्थ होता है-शक्ति देना. आंख की शक्ति बढाने के लिए, आंख का तेज बढाने के लिए, आंख की कमजोरी दूर करने के लिए अक्षि तर्पण उपयोगी है. दोनों आंखों के आसपास उड़द की गीली लोई से एकाध इंच ऊंचा गोल बनाया जाता है. कई जगहों पर गेहूं के आटे का भी उपयोग किया जाता है. फिर उसमें हल्का गर्म गाय का घी धीरे-धीरे डाला जाता है जिसमें त्रिफला इत्यादि औषधियां होती हैं. घर जब डाला जाता है तब आंखें बंद रखनी होती हैं. घी डालने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपको धीरे से आंख खालेने के लिए कहा जाता है. आंख खोलने पर आप घी के आरपार धुंधला सा देख सकते हैं, दृश्य तैर रहे हों, ऐसा लगता है. फिर सूचना दी जाती है कि दोनों आंखों की पुतलियां बाएं ले जाइए, दाएं ले जाएं, ऊपर-नीचे ले जाएं-तीन बार ऐसा करना होता है. फिर दोनों पुतलियों को क्लॉकवाइज़ घुमाना होता है, एंटी क्लॉकवाइज़ घुमाना होता है. ऐसा करते समय आंखें खुली रखनी होती हैं, बंद नहीं करनी होती है.

त्रिफला के कारण शुरू में आंख थोडी चरचराती है तो कोई बात नहीं, कुछ सेकंड के लिए बंद करके यह एक्सरसाइज़ करना होता है. पर्याप्त व्यायाम होने के बाद एक कपडा या टिशू पेपर से सारा घी सोख लिया जाता है और घी बाहर न बह जाय, इसके लिए बनाई गई आटे की गोल बाड को भी हटा दिया जाता है. उसके बाद आंख में गुलाब जल डालकर घी के अवशेषों को दूर करके ठंडक प्रदान की जाती है. अंत में आंख पर गुलाबजल की बूंदें रखकर दो मिनट के लिए शवासन करना होता है.

अक्षि तर्पण करने के बाद एक घंटा सूर्व के सामने देखना नहीं होता, मोबाइल स्क्रीन देखनी नहीं है और घंटे भर तक आंखें धोनी नहीं हैं तता दो घंटा तक नहाना नहीं है,ऐसी सूचना दी जाती है.

पांच हजार साल पुरानी यह उपचार पद्धति अब काफी लोकप्रिय हो गई है. पंचकर्म में इसका समावेश होता है. तेल के बदले घी का भी उपयोग हो सकता है. कभी कभी दूध या पानी भी प्रयोग में लाया जाता है. डिप्रेशन और हाई बीपी में भी लाभ मिलता है.

अक्षि तर्पण करने से पहले उसी ट्रीटमेंट रूम की लंबी बेंच पर सुलाकर शिरोधारा ली. ये काफी प्रचलित उपचार है. केरल की यात्रा के दौरान आपमें से कइयों ने यदि आयुर्वेद उपचार केंद्र गए होंगे तो, इस उपचार पद्धति से अवगत होंगे. अब तो कई फाइव स्टार होटल्स में भी मसाज के बाद शिरोधारा दी जाने लगी है. मैने अपने एक मित्र के साथ ठाणे की यऊर की पहाडी पर उपचार केंद्र में काफी वर्ष पहले शिरोधारा ली थी. उसके बाद यह दूसरी बार है. आपके माथे पर एक पीतल की हंडिया लोहे की श्रृंखला से लटकाई जाती है. पात्र के नीचे खुलने-बंद होनेवाली चाबी होती है. आपकी आंख पर तेल की धार न जाय इसीलिए नैपकिन से उसे ढंककर चाकी खोलने पर बिलकुल पतली औषधियुक्त धारा माथे के मध्य भाग पर गिरती है. लटके पात्र को थोडा सा हिलाकर दाएं बाएं झुलाया जाता है ताकि तेल की धार एक से दूसरी तरफ और दूसरी से पहली तरफ गिरती रहे. यह धारा बाल पर रिसती रहती है. तकरीबन दो से तीन लीटर औषधियुक्त तेल इस तरह से धार के रूप में डाला जाता है. इसकी गंध बहुत ही तेज होती है. एक बार उपयोग में लाए गए तेल का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता. करीब तीस मिनट तक यह प्रक्रिया चलती है. फिर तौलिए से बाल पर गिरा सारा तेल सोख कर पांच मिनट तक हल्के हाथ से मसाज किया जाता है. मस्तिष्क का तनाव बिलकुल दूर हो जाता है. थकान उतर जाती है. बिलकुल रिलैक्स महसूस होता है. पांच हजार साल पुरानी यह उपचार पद्धति अब काफी लोकप्रिय हो गई है. पंचकर्म में इसका समावेश होता है. तेल के बदले घी का भी उपयोग हो सकता है. कभी कभी दूध या पानी भी प्रयोग में लाया जाता है. डिप्रेशन और हाई बीपी में भी लाभ मिलता है. शिरोधारा घर में भी ली जा सकती है, ऐसा सुना है लेकिन यह कैसे होती है इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.

नस्य कई प्रकार के होते हैं. सर्दी होने पर टोप में गर्म पानी लेकर (उसमें कभी विक्स वेपोरब डालकर) सिर पर तौलिया डालकर भाप लेते हैं, वह भी नस्य ही है. कई लोग उसे `भाप लेना’ कहते हैं. अब तो कोरोना के समय बिजली से चलनेवाले वेपराइज़र घर घर आ गए हैं.

यहां नस्य थोडा अलग था. सबसे पहले चेहरे पर बादाम के शुद्ध तेल से मालिश की गई. फर ए‍क कुकर जैसा स्टीमर लाया गया जिसके साथ बाथरूम में हैंडशॉवर का नल जैसे होता है वैसा नल जोडा गया था. उसमें से भाप छोडी जाती है, अंदर औषधि युक्त पानी होता है. इस मेडिकेटेड भाप की फुहार आपको नाक से सॉंस लेकर मुंह से बाहर निकालनी होती है. कुछ देर बाद मुंह से सांस लेकर नाक से बाहर निकालनी होती है. पांच मिनट बाद भाप बंद करके दोनों नासिकाओं में औषधीय तेल की बूंदें डाली जाती हैं और सूचना दी जाती है कि इसके कारण आपके गले में कुछ तरल पदार्थ उतरेगा जिसे पेट में नहीं जाने देना है, पास में बाथरूम में जाकर थूक देना है. नाक साफ हो जाने के बाद, गले तक पहुंच कर फंसे हुए बाकी कचरे को दूर करने के लिए नमकीन पानी से गरारा करना होता है.

आंख, नाक, मस्तिष्क, मन की शुद्धि के बाद काफी अच्छा लगता है. आज यहां पर मेरा १३वां दिन है. अभी और ३७ दिन मैं यहां हूं. इस दौरान शिरोधारा, अक्षि तर्पण और नस्य की थेरेपियां कई बार होंगी, जिसमें काफ (पिंडली) मसाज बार बार होता है यूं ही. अच्छा लगता है.

थोडी बात यज्ञ या हवन या होम के बारे में कर लेते हैं. स्वामी रामदेव के कारण ही मुझे घर में हवन करने की प्रेरणा मिली. वर्षों पहले मैने अपनी ऑफिस में शारदीय नवरात्रि के समय नवचंडी यज्ञ कराया था. इसके अलावा प्रसंगवश मित्रों-सगे संबंधियों के घर विभिन्न अवसरों पर होनेवाली पूजा में हवन होते देखा है. हवन के कारण द्रव्यों की बर्बादी होती है, ऐसी कई सारी बातें प्रचलित हुई हैं लेकिन जैसे महादेव को दूध चढ़ाने में या हनुमानजी को तेल चढाने में कोई बर्बादी होती है ऐसा मैं नहीं मानता उसी प्रकार से हवन में भी घी या धन –धान्य की बर्बादी होने की बात भी मैं नहीं मानता. यदि कोई मानता हो तो मेरे सामने तर्क न करे, सभी के अपने अपने विचार हैं, मेरे पास मेरे विचार हैं. जहां तक उन विचारों से किसी का कोई नुकसान नहीं होता है तो उन विचारों का विरोध करनेवालों को नजरअंदाज किया जाना चाहिए. वैसे भी विरोधियों का जवाब देने के बजाय उनकी उपेक्षा करना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है. हमें निष्ठापूर्वक अपनी विचारधारा के अनुसार अपने काम में व्यस्त रहना चाहिए.

मुझे विधिवत यज्ञ करना नहीं आता. मैं अपनी बुद्धि के अनुसार और थोडी बहुत जानकारी के अनुसार मन में गायत्री मंत्र का जाप जारी रखकर पहले तो एक दिया जलाता हूं और उसके बाद हवनकुंड में एक कपूर की टिकिया से अग्नि प्रज्ज्वलित करके तीन से पांच समिधा जुटाकर उस पर स्वाहा के उच्चारण के साथ गाय का घी डालता जाता हूं. मुंबई में मेरे पास माटुंगा की एक फेमस साउथ इंडियन शॉप से खरीदे गए दो हवनकुंड हैं, एक छोटा है दूसरा थोडा बडा है, दोनों ही तांबे के हैं. अमेजॉन पर सर्च करेंगे तो काफी सारे विकल्प मिल जाएंगे. हवन सामग्री भी शुरू में मैने अमेजॉन से ही मंगाई थी. आम के पेड की लकडियों की समिधा के अलावा पीपल की डालियों की समिधा की खेप मैने मंगा रखी है.

हवन की अग्नि शांत होने के बाद चिंगारी पर छोटी मुट्ठी भर गुगल डालने पर जो श्वेत धुम्र निकलता है वह अत्यंत लाभकारी होता है. इसकी सुगंध भी अच्छी होती है. आधा घंटे से लेकर पौना घंटे के दौरान हवन की विधि पूरी करके अग्निकुंड को साष्टांग दंडवत करके घर के कोने कोने में धूम्रपान कराया जाय तो अच्छा है. धूम्रपान दुर्भाग्य से सिगरेट स्मोकिंग के साथ प्रचलित हुआ है. काफी बुरा हुआ. इस तरह से कर्स शब्दों को और शब्द प्रयोगों को बिगाड दिया गया है जैसे कि “होली का नारियल’, `बहती गंगा में हाथ धो लेना’ इत्यादि.

धूम्रपान शब्द असल में यज्ञ से जुडा है और वेदों में इसका उपयोग हुआ है.

आप घर में भी हवनसामग्री बना सकते हैं और समिधा के रूप में वृक्ष की लकडियों के बजाय गाय के गोबर से बनी समिधा भी उपयोग में ला सकते हैं. पतंजलि ने ऐसी `गोमय समिधा’ बनाई है लेकिन उसकी मांग इतनी है कि वह न तो देश भर में फैले पतंजलि के छोटे मोटे स्टोर्स में उपलब्ध है, न ऑनलाइन बिकता है.

अब तो मेरे पास बहुत सारी हवन सामग्रियां हैं जिन्हें मैने पतंजलि के ऑनलाइन स्टोर से मंगाया है. पतंजलि ने लगभग एक दर्जन प्रकार की हवन सामग्रियां तैयार कीहैं. कैंसर के लिए `कर्केष्टि’ अनिद्रा-स्ट्रेस के इलाज के लिए `मधेष्टि’, वातरोगों के लिए `वातेष्टि’, पित्तरोगों के लिए `पित्तेष्टि’, कफ के रोगों के लिए `कफेष्टि’, चर्मरोगों के लिए `चर्मेष्टि’, हृदय विकारों के लिए `हृदयेष्टि’, डायबिटीज़ के लिए `मधुइष्टि’ इत्यादि.

इष्टि यानी हवन या यज्ञ. मृत्यु के बाद मनुष्य की अत्येष्टि होती है अर्थात उसके जीवन का अंतिम यज्ञ होता है.

पतंजलि का गुगल भी अच्छा होता है. शुद्ध गुगल वैसे भी काफी महंगा और दुर्लभ है. अमेजॉन से मंगाया अफगानी गुगल भी मुझे अच्छा लगा. इसी तरह से कपूर भी उच्च कोटि का उपयोग में लाए ताकि वह रसायनमुक्त हो, बिलकुल प्राकृतिक हो.
आप घर में भी हवनसामग्री बना सकते हैं और समिधा के रूप में वृक्ष की लकडियों के बजाय गाय के गोबर से बनी समिधा भी उपयोग में ला सकते हैं. पतंजलि ने ऐसी `गोमय समिधा’ बनाई है लेकिन उसकी मांग इतनी है कि वह न तो देश भर में फैले पतंजलि के छोटे मोटे स्टोर्स में उपलब्ध है, न ऑनलाइन बिकता है. योगग्राम में यज्ञसामग्री बेचनेवाली दुकान में मिलता है. बहुत ही वाजिब दाम है. मैने पांच सो-छह सौ रुपए में मिलनेवाला बीस किलो का पूरा कार्टन ले लिया है जो मुंबई में मेरे काम आएगा. इसके अलावा योगग्राम में ५० दिन तक कमरे की बालकनी में हवन करने के लिए एक हवन किट भी खरीदा है जो अदरवाइज ऑनलाइन या पतंजलि के स्टोर्स में आसानी से नहीं मिलता.

हवन कुंड बनाने के लिए तीन चरणों वाली वेदी कहीं नहीं बिकती है, यह देख कर और यहां पर दो-तीन साइज में मिलती है इसीलिए मैने अपने अनुकूल साइज की वेदी भी ले ली है. काफी वजनदार है.

किसी को विधिवत यज्ञ करना हो तो उसकी जानकारी देनेवाली पत्रिका मेरे पास है-उसके आगे पीछे दोनों तरफ की तस्वीरें इस लेख के साथ रखने की कोशिश कर रहा हूं.

खुद हवन सामग्री बनानी हो तो उसमें क्या क्या होना चाहिए? ऐसा सवाल एक बार मेरे मन में आया था. मैने घंटों तक खोजबीन करके यह सूची तैयार की है. ये सब कहां मिलेगा इसकी जानकारी मुझे नहीं है. तलाश करूंगा तो पता चलेगा. मुंबई, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, वडोदरा जैसे अन्य कई बडे शहरों में तो काफी जगहों पर उपलब्ध होगा. ऑनलाइन भी मिलेगा किंतु काफी महंगा पडेगा.

इस सूची में दी गई सारी सामग्री होने पर ही हवन होता है, ऐसा नहीं है. आप अपनी अनुकूलता और हवन की परंपरा के अनुसार सामग्री ला सकते हैं. सूची इस प्रकार है:

१. श्यामा तुलसी, २. गिलोय, ३. बहेडा, ४, कचुरा, ५ देवदार, ६ जटामांसी, ७. कपूर काचरी, ८. बावची, ९. एरंडी, १०. नागरमोथा, ११. बेल के फूल की गरी, १२ तेजपत्ता, १३ छबिला, १४.मुसकदाना, १५. पलाश बीज, १६, इलायची, १७. हाउबेर, १८. वन तुलसी, १९. रक्त चंतन, २०. सुगंध कोकिला, २१. खैर के बीज, २२. गूगल, २३ नीलगिरी तेल, २४ एरंडी तेल.

इसके अलावा: १ काला तिल, २ जौ, ३ अक्षत से भी हवन सामग्री बनती है.

उसी प्रकार: १. चंदन पावडर, २. भोजपत्र, ३.नागकेसर, ४. कमल गट्टा, ५. खारेक, ६. काजू, ७. बादाम (समूचा),८. किशमिश, ९.मखाना, १०. शक्कर, ११ अगर, १२ टगर, १३ जायफल, १४. जावित्री भी हवन सामग्री में शामिल होती है.
गाय के घी के साथ शहद भी हवन में प्रयुक्त होता है.

आदर्श हवन सामग्री में मिष्ट, पुष्टिकारक, सुगंधित और रोगनिवारक-ऐसे चार प्रकार के पदार्थ होते हैं.

मिसरी और मध मिष्ट हैं. बादाम, मखाना और अश्वगंधा पुष्टिकारक हैं. चंदन, जावित्री, जायफल, इलायची, लौंग सुगंधित हैं. गुगल, गिलोय इत्यादि रोगनिवारक है.

हवन की सामग्री शुद्ध होगी और समिधा के रूप में उपयोग में लाया जानेवाला काष्ठ (या फिर गाय के गोबर से बनी समिधा) सूखे हों और जंतु मुक्त हों और शुद्ध गाय का घी, शुद्ध गुगल, शुद्ध कपूर हो तो उस हवन का धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होगा.

यहां आने से पूर्व करीब दो-तीन महीने से मैने अपने घर में-अपने स्टडी रूम में-हवन करना शुरू किया था. इतनी कम अवधि में भी मैने अनुभव किया कि मेरी मानसिक ताज़गी काफी बढ गई. हरेक यज्ञ का फल किसी को मिले ऐसी प्रार्थना करता रहता हूं. मेरे संपर्क में रहने वाले एक एक व्यक्ति को बारी बारी से याद करके प्रतिदिन यज्ञ का फल उनके जीवन को अधिक उज्ज्वल बनाए ऐसी प्रार्थना करताहूं. सप्ताह में एक बार मैं `न्यूज़प्रेमी’ के अपने तमाम पाठकों को याद करके यज्ञ फल आप सभी को मिले, ऐसी प्रार्थना करता हूं.

अंत में सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:/ सर्वे भ्रद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्‌ दु:ख भाग्‌भवेत बोलकर ओम शांति: शांति: शांति: का उच्चारण करने के बाद प्रसन्न चित्त होकर आसन से उठकर अग्निदेव को साष्टांग नमन करता हूं. यज्ञ की भव्य परंपरा हमारे यहां पुरानी है. अथर्ववेद से लेकर कई सारे शास्त्रों में यज्ञ की महिमा गाई गई है. आदर्श तरीका तो ये है कि सुबह शाम दो बार घर में यज्ञ हो. यह संभव न हो तो एक बार हो. किसी के लिए यह भी संभव न हो तो सप्ताह में एक बार, रविवार के दिन तथा तीज त्यौहारों पर या शुभ मौकों पर हवन तो होना ही चाहिए. हवन करने में थोड बहुत खर्च तो होगा ही. परिवार के साथ पिज्जा, आइसक्रीम या पावभाजी खाने जाते हैं तो खर्च तो होता ही है. मल्टीप्लेक्स में पिक्चर की टिकटों के पीछे या वहां के महंगे पॉपकॉर्न तथा वहां के अन्य नाश्ता-पानी के पीछे खर्च करते हैं तो पैसे की तरफ कोई नहीं देखता. यज्ञ से, हवन से, होम से सारे घर का वातावरण घंटों तक शुद्धि प्राप्त करता है, प्रफुल्लित रहता है. यह तो इसका अवशिष्ट लाभ हुआ. मूल लाभ तो हवन करनेवाले के तन और मन को होता है.

आज १४ अप्रैल है. बाबासाहब आंबेडकर का जन्मदिन. आज बैसाखी का त्यौहार और रमण महर्षि की पुण्यतिथि है. मेरे लिए भी पावन दिन था. सुबह योग का सत्र पूर्ण करने के बाद स्वामीजी इंडिया टीवी के लाइव टेलिकास्ट के लिए जा रहे थे तब उन्हें साष्टांग प्रणाम करके आशीर्वाद लिया.

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