संडे मॉर्निंग- सौरभ शाह
(मुंबई समाचार, रविवार – १६ दिसंबर २०१८)
जिंदगी की जद्दोजहद बडी भारी है और बडी मुश्किल से दो सिरे साथ मिलते हैं, ऐसा जमाना है. बाप दादा भी इसी तरह की शिकायत किया करते थे. उनकी बात भी सच थी. उनके जमाने में उनकी मुसीबतें अलग होती थीं. अब उबर वाले को बुलाते हैं तो पीक आवर्स में पंद्रह-पंद्रह मिनट तक इंतजार करना पडता है, उस जमाने में शायद एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए दो-दो सप्ताह तक गाडीवाला मिलता नहीं होगा.
बजुर्ग लोग सब जैसेतैसे करके सर्वाइव कर गए. और वे सर्वाइव हुए तभी तो हम आए. यदि वे जिंदगी से परेशान हो गए होते और उन्होंने बच्चे पैदा करना बंद कर दिया होता या उससे भी खराब स्थिति होती और उन्होंने हताशा में जीवन से लडना छोडकर आत्महत्या कर दी होती तो हम पैदा ही न हुए होते, हम जीवन के इस जद्दोजहद से भी उबर गए होते. लेकिन हम जन्मे और सर्वाइव भी हुए. अब हमारी अगली पीढी को टिके रहना है. जद्दोजहद करके सर्वाइव होना है. उसके बाद उनकी अगली पीढी को, उसके बाद उसकी अगली पीढी को….
एक बात समझनी होगी. जिंदगी में थ्राइव होना है तो पहले सर्वाइव होना होगा. थ्राइव करना यानी फलना-फूलना, सोलह कलाओं से खिल जाना, समृद्धि के आशियाने में निखरना. जिंदगी केवल सर्वाइव होने के लिए नहीं बल्कि थ्राइव होने के लिए है यह बात ध्यान में रखनी चाहिए. जिंदगी खा-पीकर मजा करने के लिए नहीं है, सिर्फ सर्वाइव होने के लिए नहीं है.
लेकिन थ्राइव होने के लिए मूलभूत सर्वाइवल जरूरी है, गडबडी ये हुआ करती है कि कई सपने देखनेवाले थ्राइव होने के चक्कर में सर्वाइव होने की मूलभूत शर्त को भूल जाते हैं और बिना कुछ लिए दिए तहस-नहस हो जाते हैं, अपना अस्तित्व मिटने तक वे अपने सर्वाइवल के प्रति लापरवाह हो जाते हैं.
एक बांसुरीवादक है जो पं. हरिप्रसाद चौरसिया बनना चाहता है और उसके पास ऐसी जिद, लगन और परिस्थिति भी है. एक फिल्ममेकर है जो राज कपूर, हृषिकेश मुखर्जी, यश चोपडा या फिर अनुराग कश्यप बनना चाहता है. उसमें भी सारे आवश्यक इंग्रेडिएंट्स हैं. और भी कोई भी है….प्रत्येक व्यक्ति यदि जिंदगी में टिका रहेगा तो ही फल-फूल सकेगा. उसे अपने दो वक्त के भोजन, घर तथा जीवन की मूलभूत जरूरतों को पूरा करके भी सर्वाइव होना है. तभी जाकर वह जिंदगी में जो कुछ करना चाहता है, वह कर सकेगा. उसे सर्वाइवल का समाधान केवल अपनी जरूरतें को पूरा करने के लिए करना है, न कि अपनी कला के लिए. उसे यदि पं. हरिप्रसाद चौरसिया या अनुराग कश्यम बनना हो तो अपने क्षेत्र की दकियानूसी बातों में नहीं पडना चाहिए. अनुराग कश्यप फिल्ममेकर ही बनना चाहते थे. उन्होंने महीने में लाख- दो लाख रूपए देनेवाला वह टीवी सीरियल छोड दिया जो वर्षों तक चलनेवाला था. क्यों? उनके पास एक फिल्म की पटकथा लिखने का ऑफर आया. हर महीने केवल दस हजार रूपए पर और वह भी सिर्फ दस महीने तक. कोई भरोसा नहीं. फिल्म बनेगी या नहीं और बनेगी भी तो कैसी बनेगी. अनुराग कश्यप ने जीवन में सर्वाइव होने के लिए समझौते किए होंगे. टैक्सी के बजाय रिक्शे में सफर करके या फिर मंहंगी जगह के बदले मामूली फ्लैट में रहकर या फिर चमकदमक भरी लाइफस्टाइल अपनाने के बजाय सादगी से रहकर उन्होंने समझौते किए होंगे. क्योंकि उनके लिए मुंबई में सर्वाइव होना महत्वपूर्ण था, मुंबई में ही क्यों- इस धरती पर सर्वाइव करना महत्वपूर्ण था. लेकिन एक बार, किसी न किसी तरह से- समझौते – जोडतोड करके भी सर्वाइव होने के बाद उन्होंने समझौते करना छोड दिया, क्योंकि वे थ्राइव होना चाहते थे, अपने पैशन को पूरे निखार पर लाना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने अपनी प्रतिभा के लिए तुच्छ या चिरकुट जैसा टीवी सीरियल बनाने का काम छोडकर फिल्म की पटकथा लिखना स्वीकार किया. दो साल बाद वह फिल्म रिलीज हुई जिसका नाम था:`सत्या’. राम गोपाल वर्मा की पाथ ब्रेकिंग, महान और बॉक्स ऑफिस पर खूब पैसे कमानेवाली फिल्म जिसने एक मानक तैयार किया कि क्राइम फिल्में कैसी होनी चाहिए और जिससे प्रेरणा लेकर, जिससे चुराकर कई बेहतरीन फिल्में तो कई सिक्स्थ फोटोकॉपी जैसी फिल्में बनीं.
अनुराग ने यदि सोचा होता कि उन्हें फिल्मों में सर्वाइव होने के लिए समझौते करेंगे पडेंगे तो आज वे `क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से लेकर `तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के स्तर का काम करते रहते. लेकिन अब जब वे थ्राइव होने लगे हैं, उनकी सृजनशीलता पुष्पित पल्लवित हो चुकी है तो ऐसे में वे टीवी के लिए कुछ करने की सोचेंगे भी तो गुलजार की तरह `मिर्जा गालिब’ जैसे टीवी सीरियल के समकक्ष सृजन कर सकेंगे. नेटफ्लिक्स की `सैक्रेड गेम्स’ में कई आकर्षक बातों को देखकर लगता है कि विक्रम चंद्रा के थर्ड रेट नॉवेल में भी यदि वे जान भर सकते हैं तो भविष्य में गालिब से भी चार कदम आग जाने की क्षमता रखनेवाली टीवी सिरीज भी बना सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी था कि उस समय समझौते करके टीवी सीरियल बनाने में ही वे उलझे न रहें. ऐसे आकर्षक किंतु थैकलेस जॉब को ठुकराकर उन्होंने सींग चने के दाम पर रिस्की प्रपोजल स्वीकार कर लें.
जिन्हें जिंदगी में कुछ करना है उनके लिए ये दो बातें हैं. और ये दोनों ही सीखें किसी पाठ्यपुस्तक से आपको नहीं मिलेंगी. यह तो गिर-पडकर ही मिलेगी: एक, जिंदगी में थ्राइव करना है तो पहले सर्वाइव होना होगा. और दो, जिंदगी थ्राइव होने के लिए है, सिर्फ सर्वाइव होने के लिए नहीं.
आज की बात
इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेखबर
शहर में तेरी जी से ज्यादा मेरी हार के चर्चे हैं.
– विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के बाद वॉट्सएप पर पढा हुआ एक प्रचलित शेर.
संडे ह्यूमर
बका: अरे भई, पका.
पका: बोल, भई बका.
बका: ये ईशा अंबानी की शादी को देखकर तो ऐसा लगता है कि दीपिका, प्रियंका की शादियां तो मानो आर्य समाज में हुई हों!
पका: हां, और हम लोगों ने तो मानो भाग कर शादी की हो!