टेंशन का रन वे

गुड मॉर्निंग

सौरभ शाह

कश्मीर सिरीज का दूसरा अध्याय शुरू करने से पहले आइए थोडा जायका बदलते हैं. कुछ नए विषयों पर विचार करते हैं.

आजकल स्ट्रेस और मानसिक अशांति को दूर भगानेवाले कंसल्टेंट्स, मोटिवेशनल स्पीकर्स, उपदेशक, प्रवचनकार और हमारे हितचिंतक होने का दिखावा करनेवाले व्यवसायी स्पिरिचुअल दलाल गली गली में देखने को मिलते हैं. जो अप्राकृतिक है ऐसी परिस्थितियों, ऐसे संबंधों, ऐसे आदर्शों और ऐसे विचारों के पीछे हमें दौडाने से इन सभी का बिजनेस धुआंधार तरीके से चलता है. ये सभी छद्म चिंतक और ढोंगी विचारक व्यवहार की वास्तविकता के धरातल रहकर सोचने के बदले असंभव या बिलकुल अनावश्यक और बनावटी आदर्शों की बातें करके हमें भ्रमित करते रहते हैं. हमें उद्वेलित करते रहते हैं.

`मानसिक शांति की खोज’ एक ऐसी ही बनावटी यात्रा है, ऐसा ही एक भ्रामक सफर है.

दो प्रश्न हैं: क्या मनुष्य के लिए हमेशा के लिए मानसिक शांति पाना संभव है? दूसरा सवाल: मान लीजिए कि संभव है तो क्या यह जरूरी है? यानी क्या ये जरूरी है कि मानसिक शांति सदा के लिए हो?

आइए देखते हैं.

जिस प्रकार हद से ज्यादा मानसिक तनाव हानिकारक है उसी प्रकार से स्थायी मानसिक शांति भी अनावश्यक है. जीवन में टेंशन जरूरी है. पुरानी उपमा को विस्तार दिए बिना सीधी बात करें तो सितार का तार यदि ज्यादा तान दिया जाय तो वह टूट जाएगा और ढीला हो तो उसमें से संगीत नहीं निकलेगा.

मनुष्य के लिए मानसिक तनाव-टेंशन का उचित परिमाण क्या है? प्लेन टेक ऑफ करते समय तो पायलट ठंडे कलेजे से नहीं बैठता. उसके दिमाग पर भयंकर टेंशन होता है. कॉकपिट के कंट्रोल पैनल पर उसकी उंगलियां दर्जन भर स्थानो को छूती रहती हैं. उसके आंख-कान- जुबान भी पूरी क्षमता से काम करते हैं. पायलट के लिए यह टेंशन अनिवार्य है. पीस ऑफ माइंड की खोज में निकला कोई लल्लू पायलट ऐसी टेंशन लेने से इंकार कर दे तो सैकडों इंसानों का जीवन खतरे में पड जाएगा. हवाई जहाज एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचाने के बाद ऑटो पायलट पर रखकर चालक दो घडी रिलैक्स हो सकता है लेकिन उस समय मानसिक शांति से उसे दूर रहना पडता है.

कई लोग मेंटल टेंशन और एकाग्रता को एक-दूसरे का दुश्मन का मानते हैं. यह गलत बात है. मन पर तनाव होने के बावजूद मनुष्य संपूर्ण एकाग्रता के साथ काम कर सकता है. आपने खुद भी ऐसा अनुभव लिया होगा.

एक से ज्यादा विषयों का टेंशन जब होता है तब जिस मामले को आप अधिक महत्व देते हैं उसके ऊपर ही मन एकाग्र होता जाता है. मन को लगातार पैसे की चिंता सताती रहती है ऐसा कोई कहे या फिर पत्नी के साथ मेरे टूटते संबंधों को लेकर मैं चौबीसों घंटे विचारमग्न रहता हूं, ऐसा कोई कहता है या फिर मेरी नौकरी छूट जाएगी, इस विचार से मुझे नींद नहीं आती, ऐसा कोर्ई कहे तब समझ लीजिए कि इस विशिष्ट विषय पर उसका मन एकाग्र हो गया है. उसकी एकाग्रता शायद वास्तविक जगह पर हो ऐसा हो सकता है. इसी के कारण उसे उस समस्या का समाधान भी मिल जाता है. शायद कभी वह एकाग्रता गलत जगह पर जाकर चिपक गई है, ऐसा लगता है तो भी उसका कॉन्सेंट्रेशन तो पक्का ही है, यह बात तो साबित हो गई है. इसका आभास होने पर उस मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए मशक्कत करने के बजाय किसी व्यापक हित का- विस्तृत धरातल पर किसी काम का पॉजिटिव टेंशन ले लेना चाहिए जिसका परिमाण पिछले निगेटिव टेंशन से बहुत ज्यादा हो.

हमेशा की मानसिक शांति असंभव है, अनावश्यक है. मानसिक अशांति और मानसिक अस्वस्थता के बीच अंतर है. टेंशन के वक्त भी मन स्वस्थ रह सकता है. संपूर्ण और स्थायी मानसिक शांति मनुष्य को मंद बना देती है. उसे सुषुप्तावस्था में ढकेल देती है. निष्क्रियता में प्रवेश कर जाने का खतरा पैदा करनेवाली मानसिक शांति से बचना चाहिए. जब जब जीवन में मानसिक शांति का लम्हा आए तब उसका उपयोग नए सिरे से पैदा होने वाले टेंशन के लिए रन वे के रूप में करना चाहिए.

आज का विचार

मुंबई पर घिरे बादलों को देखकर लगता है कि आज बर्फ गिरने की संभावना है…

…गिलास में.

एक मिनट!

बका: किसी लडकी की उम्र जाननी हो तो क्या करना चाहिए, पता है?

पका: क्या करना चाहिए?

बका: उसे ‘आंटी’ कह कर पुकारना चाहिए. तब वो तुरंत कहेगी: ओ, हैल्लो, आय एम जस्ट थर्टी टू हं…!

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