वो जमाना था जब सेकुलर-लेफ्टिस्टों के रास्ते में आने पर आपको सजा मिलती थी

गुड मॉर्निंग – सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार- 13 मार्च 2019)

2014 के बाद से भारत में अलग ही वातावरण है. आप जोर लगाकर सार्वजनिक रूप से हिंदुओं की तरफदारी कर सकते हैं, सेकुलरवादियों का नाम देकर भरपूर आलोचना कर सकते हैं, कट्टरवादी मुसलमान नेताओं तथा वामपंथी अलगाववादियों की कलई खोल सकते हैं.

सोनिया-मनमोहन के राज में ऐसा वातावरण नहीं था. बल्कि वाजपेयी सरकार के दौर में भी सेकुलर ब्रिग्रेड की पकड इतनी मजबूत थी कि आप चूं भी करें तो फेंक दिए जाएंगे. वाजपेयी सरकार बनने से पहले तो सेंसरशिप जैसा वातावरण था. बाबरी जब टूटी तब सेकुलरवादियों या वामपंथियों के कुकर्मों के विरुद्ध कुछ भी लिखना या बोलना आत्महत्या जैसा कदम माना जाता था. भारत में बहुत ही कम मर्दों ने 1992 से 2002 के दौरान सेकुलरवादियों की असलियत को पहचान कर उनकी पोल खोलने का काम किया. 2002 के बाद कई सेकुलरवादियों ने अपने ब्रेड पर किस तरफ बटर लग सकता है, ये देखा और क्रमश: पलटा खाना शुरू कर दिया और यू टर्न लेनेवालों की भीड इतनी बढ गई कि विधिवत ट्रैफिक जान लग गया. 2014 के बाद तो स्थिति पूरी तरह से बदल गई. अब देशद्रोहियों के अलावा और दो मुहें लोगों के अलावा कोई भी एंटी हिंदू बात नहीं करता, अब प्रो सेकुलर तथा प्रो लेफ्टिस्ट विचार रखनेवालों को समाज को रक्तपिपासू माना जाने लगा है. लेकिन पहले का जमाना ही कुछ और था.
उस जमाने में के.के. मुहम्मद नामक मुस्लिम बहादुर ने पुरातत्व विभाग की अपनी सरकारी नौकरी छीनी जा सकती है, इसे देखते हुए भी बहादुरी का काम किया. ‘मैं हूँ भारतीय’ में उन्होंने इस बारे में लिखा है.

1990-91 की बात है. मुहम्मद साहब उस समय मद्रास में पुरातत्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर के रूप में कार्यरत थे. (तब चेन्नई नामकरण नहीं हुआ था. 1996 में मद्रास का चेन्नई हो गया). ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की मद्रास आवृत्ति में के.के. मुहम्मद ने ऐरावतम महादेनन नामक एक निवृत्त आई.ए.एस. अफसर का लेख पढा. सिंधु नागरी लिपि के बारे में एक पुस्तक लिखनेवाले महादेवन आदरणीय विद्वान हैं. केंद्र सरकार में सचिव के उच्च पद से निवृत्त होने के बाद महादेवन प्रसिद्ध तमिल दैनिक ‘दिनमणि’ में संपादक के नाते काम कर रहे थे. (‘दिनमणि’ भी ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ग्रुप का ही अखबार है). ऐरावतम महादेवन ने लिखा था: ‘बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अंश हैं और मंदिर के अंश नहीं हैं- ऐसे दो भिन्न विचार हैं. इसका निराकरण उस जगह पर खुदाई होने पर संभव है. लेकिन एक ऐतिहासिक भूल को सुधारने के लिए उसी ऐतिहासिक स्मारक (बाबरी मस्जिद) को तोड देना गलत बात है.’

के.के. मुहम्मद ने यह लेख पढा. वे खुद पहले ही 15 दिसंबर 1990 को सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि बाबरी मस्जिद के नीचे उन्होंने खुद मंदिर के अंश देखे हैं.
मुहम्मद ने महादेवन को अभिनंदन करता हुआ पत्र लिखा. पत्र में 1976-77 के दौरान उस स्थान पर हुए उत्खनन कार्य में खुद भाग लेने की बात का उल्लेख भी किया. पत्र में उन्होंने यह भी लिखा:‘आपके विचार के अनुसार एक ऐतिहासिक भूल को सुधारने के लिए उसी ऐतिहासिक स्मारक को तोडने की भूल नहीं करनी चाहिए- ये विचार अभिनंदन के पात्र हैं. आपने पाठकों के सामने अपना व्यापक दृष्टिकोण व्यक्त किया है.’

1976-77 में खुद बाबरी मस्जिद में हिंदू मंदिर के अवशेष देखने के बारे में पत्र में विस्तार से के.के. मुहम्मद ने उल्लेख किया. (जो आप कल इस कॉलम में पढ चुके हैं)
मुहम्मद सावब की ऑफिस उस समय सचिवालय की क्लाइव बिल्डिंग में थी. ये पत्र मिलते ही महादेवन उनके कार्यालय में आए और यह पत्र पाठकों के पत्र के रूप में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपवाना चाहिए, ऐसा कहकर उनसे अनुमति मांगी. मुहम्मद जानते थे कि यह मुद्दा संवेदनशील है. एक सरकारी कर्मचारी होने के कारण ऐसे विषय पर सरकार की अनुमति के बिना कोई भी निर्णय लेना आत्मघाती कदम हो सकता है. वे जानते थे कि पत्र के प्रकाशन हेतु उच्च अधिकारियों की अनुमति नहीं मिलेगी. उन्होंने अपने वरिष्ठ डॉ. नरसिंह और महादेवन के साथ चर्चा करके फैसला किया कि सत्य को छिपा कर रखना उचित नहीं होगा.
के.के. मुहम्मद के विचार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की सभी आवृत्तियों में पाठकों के पत्रों के कॉलम में प्रकाशित हुए. उसके बाद उसका अनुवाद कई जगहों पर छपा. कइयों ने उन्हें बधाई दी तो कइयों ने धमकी भरे फोन किए.

यह पत्र प्रकाशित होने के कुछ दिन बाद केंद्रीय संस्कृति विभाग के जॉइंट सेक्रेटरी आर.सी. त्रिपाठी तथा आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ए.एस.आई.) के निदेशक डॉ. ए.सी. जोशी किसी आधिकारिक काम से मद्रास आए थे.

डॉ. जोशी ने मुहम्मद को बुलाकर डांटा: ‘सरकार की अनुमति के बिना आपने इस जटिल समस्या पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी क्यों की? इस मामले में नियमानुसार जाँच करके आपको सस्पेंड किया जाएगा.’

मुहम्मद ने प्रेम से कहा, ‘सर, मुझे पता है कि मैने यदि अनुमति मांगी होती तो मुझे मना कर दिया गया होता. मैने देश की भलाई के लिए एक प्रामाणिक बयान दिया है.’ इतना कहकर मुहम्मद ने अपने तर्क के समर्थन में एक संस्कृत श्लोक उद्धृत किया.

इलाहाबाद के ब्राह्मण त्रिपाठी को क्रोध आया: ‘(मुस्लिम होकर) आप मुझे संस्कृत सिखा रहे हैं? मैं आपको तत्काल सस्पेंड करता हूँ.’

मुहम्मद ने शांतिपूर्वक जवाब दिया: ‘स्वधर्मे निधनं श्रेय:’ अपना काम करते करते यदि मृत्यु भी आ जाए तो उसका स्वागत है.

यह सुनकर त्रिपाठी का मिजाज बदल गया. उन्होंने कहा,‘मिस्टर मुहम्मद, आपका ये अडिग निर्णय निश्चित ही अभिनंदनीय है. एक पुरातत्वविद को जो कहना चाहिए, वही आपने कहा है. आप एक प्रमाणिक और सच्चे पुरातत्वविद हैं. लेकिन आप पर कार्रवाई करने के लिए हमारे ऊपर चारों तरफ से भारी दबाव है.’

‘मुझे पता है, सर,’ मुहम्मद ने कहा,‘बहुत सोच विचार करने के बाद मैने वह पत्र छपवाया है.’

अब बारी थी डॉ. जोशी की. उन्होंने पूछा,‘लेकिन आपने अपना पता और अपना पद पत्र के नीचे क्यों लिखा?’

मुहम्मद ने कहा,‘सर, पूरा पता न लिखा होता किसे पता चलता कि कौन मुहम्मद, कहां का मुहम्मद? जो लिखा उसमें पारदर्शिता होनी चाहिए. इसीलिए मैने अपना पूरा पता दिया.’

मुहम्मद पर कार्रवाई होने को समाचार मिलते ही ‘दिनमणि’ के संपादक महादेवन उन दोनों अधिकारियों से मिले.

सस्पेंशन तो अटका दिया लेकिन सजा के रूप में ट्रांसफर कर दिया गया. मूलत: केरल के निवासी के.के. मुहम्मद के लिए मद्रास दूसरे घर के समान था. उन्हें मद्रास से उठाकर सीधे गोवा फेंक दिया गया.

आज का विचार

उसके बाद नरेंद्र मोदी चाइना ‘जाता’ है…मसूद अजहर ‘जी’ के साथ बैठकर….
(राहुल गांधी ने सोमवार का दिल्ली के भाषण में पीएम मोदी को तू तडाक से संबोधित किया, जब कि आतंकी मसूद अजहर के लिए सम्मानजनक संबोधन किया, उसी वीडियो क्लिप का अंश)

एक मिनट!

बका: मुझे सोनियाजी का ठाठ अच्छा लगा…
पका: क्यों?
बका: सामान्य महिला बच्चे को संभालने के लिए आया रखती है, पर उन्होंने तो पूरी पार्टी रखी है.

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