उत्तरायण और दक्षिणायन

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, बुधवार – १६ जनवरी २०१९)

कलवाली बात को आगे बढाते हैं. परिवर्तनकाल में, संक्रांति के काल में कोई भी निर्णय लेने के बजाय कुछ समय इंतजार करना अच्छा होता है. नदी या समुद्र में जब हम तैरते हैं और बहाव या लहरों में जब अटक जाते हैं या डूबने लगते हैं तब हमारा पहला कर्तव्य ये है कि सिर पानी के बाहर रखने के लिए जद्दोजहद करें. सिर अभी किस दिशा में हैं- जिस दिशा में जा रहे हैं उस दिशा में है या नहीं- इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. दिशा बाद में तय हो जाएगी. दिशा ध्यान में न आए तो देखा जाएगा. लेकिन अभी दिशा खोजकर उस तरफ आगे बढने का समय नहीं है. अभी समय की मांग है कि पानी में हम डूब न जाएँ. सिर पानी के ऊपर रहे.

संक्रांति काल में, जीवन में मोड आ रहा हो तो ऐसे समय में यह बात याद रखने लायक है. एक करफ कुछ अधूरा छूट रहा होता है, कुछ पूरा हो रहा होता है और दूसरी तरफ कुछ नया शुरू हो रहा होता है तब जो कुछ भी घटित होता है वह परिवर्तन है. वह दौर संक्रांति का दौर है. पुराना अधूरा रह जाने का या पुराना पूर्ण हो जाने का आनंद हो भी हो सकता है और शोक भी हो सकता है. नया आरंभ करने के रोमांच का आनंद लेने के लिए मन चल रही आनंद – शोक की भावनाओं का प्रवाह अन्यत्र मोड देना होता है. अन्यथा नए में भी आप पुराने की ही खोज करेंगे. नया कुछ भी हो, नया बिजनेस- नई नौकरी- नई जगह- नए संबंध – नया करियर, नवीनता के रोमांच का आनंद लेने के लिए या फिर नई शुरूआत के भावावेश में पडे बिना ठीक से मूल्यांकन करने के लिए पुराने हर्ष और विषाद के प्रवाह को अन्यत्र मोड देना चाहिए अन्यथा आपको भविष्य भी उसी भूतकाल जैसा मिलेगा. ऐसे बासी भविष्य का हमें भला क्या काम. जीवन में आगे बढने के लिए न तो भूतकाल के आनंददायी क्षणों का पुनरावर्तन चाहिए, न ही भूतकाल के शोकग्रस्त दिनों का पुनरावर्तन ही होना चाहिए. तभी जीवन हमेशा तरोताजा बना रहता है, फ्रेश बना रहता है.

परिवर्तन के दौर में कुछ समय स्थिर रह जाएंगे तो अपने दिशा मिलेगी, क्योंकि तब छटपटाहट का शमन होकर उसे धैर्य में रूपांतरित होने के लिए पर्याप्त समय मिल चुका होगा.

`चैन आना’ शब्द हमारे जीवन में बहुत ही उपयोगी है. केवल शारीरिक चोट लगने पर ही नहीं, मानसिक अघात के बाद भी चैन मिलना चाहिए. आघात ही नहीं, अनपेक्षित खुशी के समाचार के बाद भी उमंग से छलकते हृदय को चैन पाने का समय देना चाहिए, ऐसा आपने अनुभव किया होगा. यह चैन मिलने का समय यानी परिवर्तन के दौरान थम जाने या निष्क्रिय हो जाने का समय है. आवेश के ज्वार और भाटे के दौरान निर्णय लेना टालना ही मेरे हिसाब से संक्रांति, मकरसंक्रांति का संदेश है और यह संक्रांति हर वर्ष आती है इसका अर्थ ये है कि परिवर्तन प्रकृति का स्वभाव है. प्रकृति के इस स्वभाव के कारण हम सतर्कता से जीना सीखते हैं, आशा के साथ जीना सीखते हैं. अब से छह महीने तक प्रतिदिन सुबह पूर्व के क्षितिज पर उगता सूरज थोड थोडा उत्तर की तरफ सकरते हुए उदित होगा. छह महीने बाद दक्षिक्ष की तरफ सरकते हुए उगेगा, उसके छह महीने बाद फिर एक बार उत्तरायण होगा, बाद में फिर से दक्षिणायन.

हम केवल प्रकृति से सीखने लगें तो जीवन में किसी गुरु, उपदेशक, मार्गदर्शक, मोटिवेटर या कॉलमनिस्ट की जरूरत नहीं पडेगी.

आज का विचार

रोज सुबह ऑफिस पहुँच कर बैग से लैपटॉप, चार्जर, माउस, यूएसबी ड्राइव, हेडफोन, इंटरनेट का डोंगल, मोबासल और पावर बैंक बाहर निकालते हैं….

तब मदारी जैसा फील होता है.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

मेहसाणा की महिला न्यूजर्सी के एयरपोर्ट पर फंसी- विक्स की डिब्बी के कारण.

अमेरिकन पुलिस ने पूछा, `क्या है इसमें?’

महिला ने कहा: `बॉम’

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