पुणे में पंचम की पच्चीसवीं पुण्यतिथि पर

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, सोमवार – ७ जनवरी २०१९)

आर.डी. बर्मन की संगीतवाली ऐसी कौन सी फिल्म है जिसमें पिता एस.डी. बर्मन ने गाया हो? राइट. `अमरप्रेम’. डोली में बिठाई के कहार, लाए मोहे सजना के द्वार, बीते दिन खुशियां के चार. आनंद बक्षी के इन शब्दों को राहुल देव बर्मन ने संगीतबद्ध किया और पिता सचिनदा से गवाया.

यह तो आसान था. अब ये बताइए कि पिता सचिन देव बर्मन के संगीत में पुत्र राहुल देव बर्मन ने कौन सा गीत गाया था?

यह सवाल पुणे के तिलक स्मारक मंदिर में चार जनवरी की शाम को आयोजित `रोमांसिंग विथ पंचम’ कार्यक्रम में इंटरवल से पहले पूछा गया. १,१०० पंचम के प्रशंसकों से खचाखच भरे हॉल में सन्नाटा छा गया. एक से एक बढचढ कर हिंदी फिल्म के जानकार, रसिक और आर.डी. बर्मन के दीवाने जुटे थे. हम जैसे पंचम के पागल तो मुंबई से रोड जर्नी करके पुणे आए हैं और कार्यक्रम के बाद मुंबई रवाना हो जानेवाले हैं. ऐसा कोई प्रश्न जब पूछा जाता है तब नॉर्मली श्रोताओं में उत्साह आ जाता है और कोई भी तीर-तुक्का लगाकर गेस वर्क करके जवाब दिया जाता है… लेकिन यहां ऐसे सुधि श्रोता थे जिन्हें इस तरह के हंसीमजाक में रुचि नहीं थी. नहीं पता है तो चुप रहना. कॉन्फिडेंट हों तो ही बोलना. कुछ पल के लिए ऑडिटोरियम में पिन ड्रॉप सायलेंस था. पूरा सन्नाटा. अंत में एक क्लू दिया जाता है: `बंगाली गीत है’. कुछ बुदबुदाहट और खुसुर फुसुर के बाद पीछे से किसी ने कहा: `आराधना’- बागों में बहार है!

यस. `आराधना’ के बंगाली वर्जन में इस गीत में मोहम्मद रफी की नहीं आर.डी. बर्मन की आवाज है. हिंदी की `आराधना’ बंगाली में डब करके रेगुलर फिल्म की तरह पूरे तामझाम के साथ रिलीज की गई थी. १९६५ में हिंदी में बनी `आराधना’ को बंगाली में डब करने के बाद १९७४ में तमिल और तेलुगू- दो भाषाओं में उसका रिमेक किया गया. यू ट्यूब पर `माधोबी फुटे छे आई’ सर्च करेंगे तो मूंछवाले राजेश खन्ना फरीदा जलाल के साथ बंगाली गीत गाते हुए मिलेंगे. `बागों में बहार बंगाली’ डालेंगे तो भी चलेगा. आर.डी. बर्मन अपने नेचुरल आवाज में सुनाई देंगे. `आराधना’ बंगाली वर्जन में `गुन गुना रहे हैं भंवरे खिल रही है कली कली’ किशोर कुमार ने गाया है जो मूल हिंदी में मोहम्मद रफी की आवाज में है: गुंजोने डोले जे भ्रमोर….

इस वर्ष चार जनवरी को पंचमदा की २५वीं पुण्यतिथि थी. ४ जनवरी १९९४ में उन्होंने ब्रह्म मुहूर्त में इस संसार से विदा ली थी. अगले दिन पंचम सारा दिन पुणे में ही थे. एक मराठी फिल्म के संगीत के सिलसिले में. शाम को सेल्फ ड्राइव करके मुंबई लौटे थे. शक्ति सामंता के घर पार्टी थी. पार्टी अटेंड करके सांताक्रूज के `मेरीलैंड’ के फ्लैट पर देर से लौटे थे. देर रात को उनकी तबीयत बिगडी. दो हार्ट अटैक और फिर बायपास सर्जरी. ये तीसरा अटैक था. ५४ की उम्र थी. केवल चौवन.

पुणे में पंचम सतीश वागले से मिलने गए थे. वागले की मराठी फिल्म `सुखी संसाराचे बारा (१२) सूत्र’ में संगीत दे रहे थे.

आर.डी. बर्मन अंतिम समय तक बिजी थे. हिंदी फिल्में कम मिल रही थीं लेकिन उससे पहले के साल में उन्होंने छह बंगाली फिल्में की थीं. मराठी में भी संगीत दिया करते थे. टीवी सीरियल भी किया. हिंदी फिल्मों में रेकॉर्ड कंपनी वालों की दादागिरी बढ गई थी. रेकॉर्ड कंपनियां यहां तक तानाशाही करने लगी थीं कि किस फिल्म में कौन संगीत देगा, कौन गाएगा, कौन सी ट्यून ली जाएगी. उस जमाने में अंडरवर्ल्ड का पैसा भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री पर ग्रहण लगा चुका था.

आर.डी. बर्मन को जीवन में अंत तक कभी पैसों की तंगी नहीं रही. विदा लेते समय उनके घर में तीन परमानेंट नौकर थे. `ओडिना’ से जब `मेरीलैंड’ में रहने आए तब जुहू में यश चोपडा की ऑफिस के बंगले के आसपास एकाध करोड में कोई अच्छा बंगला मिल जाए तो अब फ्लैट से वहां शिफ्ट हो जाएंगे, ऐसी प्लानिंग भी थी.

पैसे बचाने के लिए उन्होंने पाई पाई की कंजूसी नहीं की थी. जो भी कमाई होती थी उसे खुले हाथ से खर्च करते थे. अपने आनंद के लिए और दूसरों को भी सुखी करने के लिए. उनके परकशनिस्ट (तालवादक) कांचा (रणजीत गजमेर) को जब स्लिप डिस्क की तकलीफ हुई तब छह महीने तक हर दिन की सिटिंग मनी (ओवरटाइम के साथ) पंचम ने होमी मुल्ला द्वारा कांचा के घर पहुंचाई थी, यह बात तो रेकॉर्ड पर है. ऐसे अनेक किस्से हैं. ये कांचा यानी `घर’ फिल्म गीत `तेरे बिना जिया जाए ना’ में जिसने अनुठे स्वर में तबला बजाया है वही हैं. और होमी मुल्ला भी परकशनिस्ट हैं जिन्होंने पंचम की कई फिल्मों में रेशो रेशो सहित अनेक साइड रिदम्स बजाने में साथ दिया है. रेशो रेशो यानी `पडोसन’ फिल्म के `मेरे सामनेवाली खिडकी’ गीत में शुरू में जो झाडू पर कंघी घिसने जैसी आवाज निकाली गई है, वह वाद्य. वैसे रेकॉर्डिंग में झाडू- कंघी नहीं बजाए जाते.

किसी को खर्चीले लग सकते हैं लेकिन आर.डी. बर्मन उदार थे. हर साल सरस्वती पूजा करते थे. वसंत पंचमी के दिन इंडस्ट्री के मित्रों, साथी संगीतकारों को तो निमंत्रित करते ही थे लेकिन `ओडिना’ में रहनेवाले एक फ्लैटधारक ने कहा है कि पंचम पूरी बिल्डिंग के हर फ्लैट में पर्सनली जाकर निमंत्रण देते थे. खुद पंचम! जरा सोचिए. बंगाली भोजन होता था. शाकाहारी. कभी रेस्टोरेंट में दोस्तों के साथ डिनर के लिए गए हों और वहीं दूर के टेबल पर बिल्डिंग का कोई पडोसी या परिचित परिवार के साथ दिख जाए तो उनके लिए अपनी ओर से स्टार्टर का कोई व्यंजन वेटर द्वारा भिजवा कर `हैलो’ करते थे.

आर.डी. बर्मन अपने लिए और दूसरों के लिए खर्च करने में उदार रहे और उन्होंने अपने लिए महंगी गाडियां या आलीशान बंगले नहीं खरीदे या लंबे इनवेस्टमेंट्स नहीं किए. अच्छी तरह से रहे. अंत तक. मीडिया ने उनके निधन के पश्चात केवल सनसनी के लिए उनकी आर्थिक हालत के बारे में बिलकुल गलत बातें प्रचारित कीं. यह सारी बातें हमें पंचम पर पांच पीएचडी करने की काबिलियत धरानेवाले गुजराती पंचम प्रेमी अजय शेठ ने कही. अयोध्या-बनारस की तीर्थयात्रा से लौटकर अगले दिन उन्हीं के साथ हम सभी मित्र लंबी गाडी में दोपहर को मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे की जब आनंददायी तीर्थयात्रा की तब मन में आर.डी. बर्मन के बजन की धुन घूम रही थी: प्यार हमें किस मोड पे ले आया…

शेष कल

आज का विचार

कोई बाहर रहकर इस कदर हमारे अंदर होता है.

जैसे उडते पंछी की परछाईं धरती पर होती है.

– डॉ. मुकुल चोक्सी

एक मिनट!

`ऐसे क्या काम करते हैं?’

`जी, मैं रोज शाम को कुत्तों को एक-दूसरे से लडाने का काम करता हूं.’

`अरे, ये कैसा काम है?’

`जी, मैं न्यूज चैनल का एंकर हूं.’

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