`नमकहराम’ में संगीत देने के लिए आर.डी. बर्मन ने कितने पैसे लिए

गुड मॉर्निंग- सौरभ शाह

(मुंबई समाचार, मंगलवार – ८ जनवरी २०१९)

नदिया से दरिया, दरिया से सागर, सागर से गहरा जाम गीत १९७३ के बिनाका गीतमाला में साल का १८वां श्रेष्ठ गीत था. इसके अलावा आर.डी. बर्मन ने इसी फिल्म `नमकहराम’ के लिए आनंद बक्षी के शब्दों को स्वरबद्ध करके और दो लोकप्रिय गीत बनाए थे: मैं शायर बदनाम और दिए जलते हैं फूल खिलते हैं. आर.डी. बर्मन को हृषिकेष मुखर्जी द्वारा निर्देशित यह फिल्म प्रोड्यूसर सतीष वागले के कारण मिली थी. आर.डी. बर्मन के बहुत पुराने मित्र सतीष वागले पहले वैजयंतीमाला- धर्मेंद्र को लेकर `प्यार ही प्यार’ (१९६९) बना चुके थे. इसमें उन्होंने बतौर संगीत निर्देशक शंकर-जयकिशन को लिया था. `नमकहराम’ (१९७३) जब बनाने फैसला हुआ तब जयकिशनजी का निधन हो गया (१९७१). सतीष वागले तब आर.डी. बर्मन के पास आए. आर.डी. ने पूछा,`आपके बैनर में तो शंकर जयकिशन का म्यूजिक होता है. जयकिशन यदि जीवित होते तो क्या आप मेरे पास आते? सतीष वागले ने स्पष्टता से कहा कि, `इन दैट केस शंकर जयकिशन ने ही मारी सारी फिल्मों में म्यूजिक दिया होता.’

अब आर.डी. की महानता देखिए, साहब. उन्होंने कहा,`आज जब शंकर अकेले हैं तब उन्हें मिलनेवाली फिल्म मुझे ऑफर हो रही है. जयकिशन नहीं रहे तो इसमें शंकर का कोई दोष नहीं है. उनके हक की फिल्म करने से पहले मुझे उनसे पूछना चाहिए और यदि वे हां कहते हैं तो ही मैं यह फिल्म करूंगा.’

शंकरजी ने आशीर्वाद दिया. आर.डी. ने `नमकहराम’ साइन की? पैसे? आर.डी. ने कहा: `इसमें मेरी कोई फीस नहीं होगी. म्यूजीशियन्स-रेकॉर्डिंग-गायकों का जो खर्च होगा उसका कवर आप सीधे उन लोगों को दे दीजिएगा. मैं यह फिल्म जयकिशन को अपनी ओर से श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित करता हूँ. मुझसे एक भी रूपया नहीं लिया जाएगा.’

इतना ही नहीं सतीष वागले की राजेश खन्ना-राजकपूर वाली फिल्म `नौकरी’ तथा सतीष वागले के मराठी टीवी धारावाहिक और एक मराठी फिल्म (जिसका उल्लेख कल किया गया) के लिए भी आर.डी. बर्मन ने इसी शर्त पर काम किया. आर.डी. जानते थे कि जयकिशन जीवित होते तो यह सारा काम सतीष वागले ने शंकर-जयकिशन को ही दिया होता.

जिस फिल्म इंडस्ट्री में बडे बडे एक्टर्स, डायरेक्टर्स, संगीतकार दूसरों का काम छीनने के लिए जद्दोजहद करते हैं, चमचागिरी करते हैं और भविष्य में जिस इंडस्ट्री की रेकॉर्ड कंपनियों ने आर.डी. का बॉयकॉट किया हो उस इंडस्ट्री के कई गटर छाप लोगों के साथ रहकर भी आर.डी. बर्मन ने अपनी नैतिकता, अपनी स्वच्छता, अपनी निर्दोषता और अपने सिद्धांतों को बरकरार रखा था.

ऐसे राहुल देव बर्मन की २५वीं पुण्यतिथि पर लोग मुंबई से पुणे तक की यात्रा करें तो इसमें कौन सी नई बात है.

पिछले डेढ-दो दशक में आर.डी. के संगीत को केंद्र में रखकर अनेक ऑर्केस्ट्रा के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. उनमें से कई असाधारण होते हैं जैसे कि केवल इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक बजाकर (बिना किसी गायक-गायिका के) होने वाले डॉ. अजित देवल द्वारा आयोजित कार्यक्रम जिनके बारे में पहले लिखा जा चुका है. कई कार्यक्रम ऐसे भी होते हैं जो शायद पंचम के फैंस को आनंद तो दे सकते हैं लेकिन उनमें तनिक भी गहराई नहीं होती तथा साथ ही तीसरे इस प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जिनका उद्देश्य केवल पंचम का नाम भुना कर दो पैसे कमाने का होता है.

ये तीनों प्रकार के कार्यक्रम वर्षों से हो रहे हैं और वर्षों से होते रहेंगे. लेकिन पुणे में चार रीयल पंचमप्रेमियों ने जो काम तकरीबन सन २००० से किया है वह एकदम अनूठा है. पहली बात ये है कि यह कोई ऑर्केस्ट्रा का कार्यक्रम नहीं है. दूसरी बात ये कि कार्यक्रम का एक एक पल पंचम के संगीत से सराबोर होता है. कोई व्यर्थ की चमकदमक नहीं, कोई बेकार का दिखावा नहीं, लोगों को इंप्रेस करने की युक्तियॉं नहीं, कार्यक्रम की कंपेयरिंग करनेवालों की ओर से शब्दों का आडंबर या विशेषणों की उल्टी नहीं, तालियों की चाह नहीं, नेम ड्रॉपिंग नहीं, अपनी जानकारी- विषय में निपुणता का प्रदर्शन नहीं. बिलकुल सीधासादा कार्यक्रम जिसमें आर.डी. बर्मन का संगीत तथा उनसे जुडी कई सारी बातें होती हैं, ऐसी जानकारियों का पिटारा खोल दिया जाता है और ग्यारह सौ की क्षमतावाले ऑडिटोरियम में बैठे पंचम प्रेमियों के सामने एक के बाद एक मोती, हीरे, रत्न प्रकट किए जाते हैं.

आर.डी. की जयंती (२७ जून) तथा पुण्यतिथि (४ जनवरी) के दिन हर साल दो बार कार्यक्रम होता है. इसका आयोजन चार मित्र करते हैं. अंकुश चिचणकर मुंबई के हैं. बाकी तीन मित्र पुणेकर हैं: राज नागुल, आशुतोष सोमण और महेश केतकर. चारों ही संगीतप्रेमी अपने अपने विषयों में धुरंधर हैं, इंडस्ट्री के साथ वेल कनेक्टेड हैं, डेडिकेटेड पंचमप्रेमी हैं. इससे पहले गुलजार साहब उनके कार्यक्रमों में तीन बार मंच पर आकर स्टेज पर लिए गए साक्षात्कार में पंचम के बारे में बहुमूल्य बातें शेयर करके गए हैं. भूपिंदर-मिताली भी तीन बार आ चुके हैं. आर.डी. बर्मन के साथ जुडा कौन सा छोटा बडा व्यक्ति यहां नहीं आया, ये पूछिए. हर किसी के आर.डी. के साथ अपने अनुभवों, आर.डी. के व्यक्तित्व और संगीत की खासियतें बताई हैं, छोटे बडे यादगार प्रसंग बताए हैं, उनका संकलन यदि किया जाए तो एनसायक्लोपीडिया तैयार हो जाएगा. वैसे हम तो पहली बार ही इस कार्यक्रम में गए थे. इस बार के मेहमानों की सूची में शीर्षस्थ नाम लुई बैंक्स का था. पियानिस्ट लुई बैंक्स का आर.डी. बर्मन के साथ किया गया काम आपको याद करना हो तो यह लेख पढना अलग रखकर अभी के अभी यूट्यूब पर `जीवन के दिन छोटे सही फुल लेंथ सॉन्ग’ सर्च करेंगे तो ४ मिनट ३४ सेकंड का जो वीडियो आएगा उसे देखिएगा, सुनिएगा. पहले सेकंड से ४७ सेकंड तक पियानो सुनिएगा. वही लुई बैंक्स हैं. ऐसे तो उन्होंने कई सारे कमाल आर.डी. के लिए किए हैं.

लुई बैंक्स ७८ वर्ष के हैं और उन्हें आप पियानो बजाते देखेंगे तो उनकी स्फूर्ति-एनर्जी ३५ वर्ष के नौजवान जैसी लगेगी. अब मजा देखिए साहब. आर.डी. के साथ जिन्होंने रेकॉर्डिंग में अपना वाद्य बजाया हो वे म्यूजीशियन अपना वाद्य साथ लाते हैं. बांसुरीवादक को तो शायद ही कोई भार उठाना पडता है. ट्रंपेट, सेक्सोफोन, गिटार या संतूर भी अच्छी तरह से उनके बॉक्स में संभाल कर लाया जा सकता है. लेकिन लुई बैंक्स आनेवाले हों तो क्या करें‍? साहब मुंबई से पूरे का पूरा कॉन्सर्ट ग्रैंड पियानो उठाकर पुणे के तिलक स्मारक मंदिर के स्टेज पर लाया जाता है. करीब आठ फुट चौडा और उससे भी अधिक लंबा यह पियानो बजाने के लिए आपके हाथ कानून से भी लंबे होने चाहिए. हमने कंफर्म किया कि मुंबई से आए इस पियानो के लिए ५०,००० रूपए किराया चुकाया गया है: ट्रांसपोर्टेशन और ट्यूनिंग अलग. माल-सामान का परिवहन करनेवाले मूवर्स एंड पैकर्स की तरह पियानो मूवर्स अलग होते हैं. जैसे घर में इस्तेमाल होनेवाली वॉशिंग मशीन आपको अन्य स्थान पर ले जाते समय कंपनी वाले वॉशिंग मशीन की मोटर को तथा हिलनेडुलने वाले पुर्जों को खास साधनों से बिलकुल स्थिर कर देते हैं बिलकुल उसी प्रकार से पियानो के एक्सटीरियर को, उसकी पॉलिश की चमक को कोई नुकसान न हो यह भी देखा जाता है. इसके लिए उन्होंने क्या चार्ज लिए होंगे ये तो भगवान जाने. संगीत का हर वाद्य बजाने से पहले वादक उसे ट्यून करता है. खुद जिस स्केल गाना चाहता है उसके अनुसार उसकी ट्यूनिंग करता है. यह काम वे खुद करते हैं जिसके लिए दो-पांच मिनट से लेकर कभी कभी दस मिनट तक भी लग जाता है. पियानो की ट्यूनिंग पियानो वादक खुद नहीं करते. पियानो वादक को किस स्केल में ट्यूनिंग करनी है और उससे जुडी अन्य तकनीकी जानकारियों के अनुसार पियानो ट्यूनर उसकी ट्यूनिंग करता है आर इस काम में दो तीन घंटे आराम से निकल जाते हैं.

पुणे के महाराष्ट्रीयन व्यंजन परोसनेवाले एक बेहतरीन रेस्टोरेंट `दुर्वांकुर’ (सदाशिव पेठ में तिलक स्मारक मंदिर से पांच मिनट की दूरी पर है) में थालीपीठ-मटकी मिसल- साबूदाना वडा इत्यादि तरह तरह के व्यंजनों वाली थाली चट करके हम ऑडिटोरियम में जब पहुंचे तब हमारी बाईं तरफ रखे कॉन्सर्ट गैंड पियानो को देखकर हम अत्यंत प्रभावित हुए. लेकिन ये पियानो किसी को इम्प्रेस करने के लिए नहीं बल्कि इसीलिए लाया गया था कि आर.डी. बर्मन के लिए लुई बैंक्स ने जो संगीत बजाया है उसका डेमोन्स्ट्रेशन वे कर सकें.

लुई बैंक्स का सेशन इंटरवल के बाद था. इंटरवल से पहले स्टेज पर उस गुजराती व्यक्ति को बुलाया गया जिसने `ओ मेरे दिल के चैन, चैन आए मेरे दिल को दुआ कीजिए’, `चला जाता हुं किसी की धुन में’, आओ ना गले लगाओ ना’ तथा `दीवाना ले के आया है दिल का तराना’ जैसे आर.डी. बर्मन के सुपरहिट गीतों वाली हिंदी फिल्में प्रोड्यूस की थीं. उनकी बात कल करेंगे. और कल उनकी कही एक ऐसी अनोखी बात होगी जिसकी जानकारी अभी तक इंडस्ट्री में भी किसी को नहीं होगी. `दीवाना ले के आया है’ गीत में राजेश खन्ना पर एक बार ट्रॉली से शॉट लेते समय कैमरा घुमाया गया है. स्टूडियो में पटरी लगाकर उसके ऊपर रखी ट्रॉली को धक्का मारने का काम कैमरा मैन का कोई जूनियर असिस्टेंट करता है. रवि नागाइच द्वारा निर्देशित इस फिल्म में इस गीत के लिए शॉट लेते समय पटरी पर ट्रॉली को किसने धक्का मारा था? इसकी बात कल.

आज का विचार

परफेक्ट जोडी चप्पल में ही देखने को मिलती है. बाकी सब अंधविश्वास है: स्वामी पतिदेवानंद.

– वॉट्सएप पर पढा हुआ

एक मिनट!

बका और पका का तीसरा दोस्त है जिगर. आज जिगर बहुत खुश था. बका ने कारण पूछा. तो जिगर ने कहा:`मेरे पडोस में रहनेवाली भाभी अपनी ननद से कह रही थी कि ऐसी ठंडी में नहाने के लिए तो जिगर चाहिए.’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here