न्यूजव्यूज: सौरभ शाह
(newspremi.com, शनिवार, १४ मार्च २०२०)
धरती से मानवजाति का अंत होने वाला है, ऐसा माहौल है. ये वातावरण किसने बनाया है? कोरोना वायरस ने? नहीं. मीडिया ने? नहीं. मीडिया ने तो केवल इस वायरस को फैलाया है, उसका आतंक खडा किया है. डर का माहौल बनाया है गहलोतों, केजरीवालों और उद्धवों ने- उनके नेतृत्व वाली राज्य सरकारों ने.
केंद्र सरकार ने समुचित रूप से विदेश से आनेवालों पर नियंत्रण लगा दिया. केंद्र सरकार ने विदेश से आनेवालों की स्क्रीनिंग के लिए, डाउटफुल लगनेवालों के लिए विस्तृत जांच के लिए और जहां जरूरत हो वहां आइसोलेशन के लिए या फिर उपचार के लिए बेहतरीन कदम कदम उठाए हैं. समय पर उठाए हैं. वुहान, इटली, ईरान इत्यादि जगहों पर फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए युद्ध स्तर पर विमान- डॉक्टर्स तथा जॉंच के लिए प्रयोगशालाओं पर करोडो रूपए खर्च करके व्यवस्था की. मास्क तथा सैनेटाइजर्स के काला बाजार को रोकने के लिए उसे एसेंशियल गुड्स की सूची में डालने की घोषणा की. स्वयं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को तथा `सार्क’ के पडोसी देशों को भयभीत न होने और सतर्कता बरतने के लिए सामने से अपील की. केंद्र सरकार ने अपनी सारी मशीनरी को काम पर लगा दिया. इस संबंध में जो कुछ भी करना चाहिए, वह सब करने के लिए सारे तंत्र को काम पर लगा दिया. मोदी को दिखावा करने में नहीं काम करने में और परिणाम लाने में रुचि है, यह बात फिर एक बार साबित हो गई.
और फिर एक बार साबित हो गया कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार को, दिल्ली की आप सरकार को या महाराष्ट्र की मिली जुली सरकार को केवल दिखावा करने में रुचि है. काम करने की न तो इच्छा है, न ही चाह है. परिणाम नहीं प्रचार में रुचि है.
केजरीवाल ने पहला कदम उठाया और फट से दिल्ली की तमाम सरकारी प्राथमिक स्कूलों में छुट्टी की घोषणा कर दी. मानो माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों के विद्यार्थी कोरोना प्रूफ हैं. महाराष्ट्र ने तो हद कर दी. थिएटर्स भी बंद कर दिए. सार्वजनिक समारोहों पर पाबंदी लगा दी. दीक्षा समारोह या प्रार्थना सभाएं भी नही. और येपाबंदी केवल मुंबई, ठाणे, पुणे, पिंपरी, चिंचवड, नागपुर तक ही है. मानो शेष महाराष्ट्र कोरोना प्रूफ हो. स्कूलों में भी छुट्टी. तो भाई साहब आफिेसों में क्यों नहीं? राजस्थान में तो मॉल भी बंद करा दिए गए. मुंबई में मुख्यमंत्री ने लोगों को मॉल-रेस्टोरेंस में नहीं जाने की अपील की. लोकल ट्रेन्स तो चल ही रही हैं, बसें भी चल रही हैं. क्या कोरोना वायरस को वहां जाने में कोई बंदी है? मॉल न जाकर लोग सामान्य दुकानों से खरीदारी करेंगे तो क्या वहां कोरोना वायरस नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी है क्या? अरे, अमेजॉन की डिलीवरी देने के लिए आनेवाला इक्का दुक्का डिलीवरी बॉय भी इस रोग का वाहक बन सकता है. महाराष्ट्र में दसवीं- बारहवीं की परीक्षाएं चालू हैं. स्कूल-कॉलेज भले बंद रहें, मानो कोरोना थिएटर्स में मनोरंजन के लिए जानेवाले खाली लोगों के सामने गुस्से में होगा लेकिन जिंदगी में कुछ कर दिखाने के लिए परीक्षाओं में बैठनेवाले मेहनती विद्यार्थियों को छोड देगा.
भय का वातावरण इन लोगों ने पैदा किया है. और ये वातावरण पैदा किया है व्हॉट्सऐप युनिवर्सिटी ने. बिना कोई संदर्भ जाने भडकाऊ फेसबुक पोस्ट के हिंदी अनुवाद बेरोकटोक फेकते रहते हैं. किसी अस्पताल में कोरोना का मरीज आता है तो वहां के स्टाफ को सावधानी के तौर पर आयसोलेट कर दिया जाता है, जो कि स्वाभाविक है. अपने लोग इसे जानकर भी अफवाहों की लहर पैदा करते हैं: अस्पताल का सारा स्टाफ कारोना से संक्रमित हो गया है. आयसोलेशन और इंफेक्शन के बीच का अंतर पढे लिखे लोगों को भी समझाना पडता है, ऐसा भडकाऊ वातावरण पैदा हुआ जो अनावश्यक है.
स्कूल्स, थिएटर्स या मॉल्स बंद कर देने से कोरोना वायरस से सुरक्षा नहीं मिलनेवाली क्योंकि ट्रेन्स, बसों में कई सार्वजनिक स्थानों पर संक्रमण हो सकता है. स्कूल-थिएटर-समारोहों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार को फतवा जारी करने के अलावा और कुछ नहीं करना है. केवल प्रचार के प्रकाश में रहना है. हमने हमसे बन पडनेवाला हर कदम उठाया है, ऐसा सर्टिफिकेट मिल जाय तो समझो गंगा नहा लिया.
सबका शटर डशुन करने, सबकुछ स्थगित करने के बजाय या हर तरफ प्रतिबंध लगाने के बजाय सावधानी बरतने के लिए मेहनत करनी पडती है, जिसका बेहतरीन वर्तमान उदाहरण है आज से शुरू हुई पूज्य मोरारीबापू की राजूला (रामपरा) रामकथा. ये कथा न हो, इसके लिए लोगों ने तरह तरह के प्रयास किए- कोरोना के नाम पर. असल में उन विरोधियों का पेट दर्द हो रहा था पर वे सिर पीट रहे थे. पू. बापू ने सावरकुंडला में अपनी कथा द्वारा विशाल नि:शुल्क अस्पताल सफलतापूर्वक शुरू किया. अब राजुला में एक हजार से पंद्रह सौ मरीजों का समावेश करने में सक्षम और एक रुपया लिए बिना संपूर्ण इलाज देनेवाला `महात्मा गांधी आरोग्य मंदिर’ नामक अस्पताल बनाने तथा भगवान का मंदिर बनाने के लिए `मानस मंदिर’ शीर्षक से पू. बापू ने रामकथा का आरंभ किया, गुजरात के स्वास्थ्य विभाग की अनुमति से. तमाम सावधानी के उपायों के साथ. कथा के दौरान चौबीस घंटे डॉक्टर की सेवा, सेनेटाइजर, मास्क इत्यादि के साथ पर्याप्त तैयारी है. कथा मंडप में श्रोता एक दूसरे से दो से तीन फुट के अंतर पर बैठें, ऐसी उद्घोषणा व्यासपीठ से की गई. गुजरात से बाहर के तथा भारत से बाहर के श्रोताओं को टीवी पर ही कथा सुनने की सूचना पहले से दी गई थी.
इन सारे सतर्कता भरे कदम उठाने के बावजूद भगवान न करे कोई अप्रत्याशित घटना हो जाय तो पू. बापू ने कथा को बीच में छोडकर घर चले जाने की तैयारी भी दिखाई. सामान्य रूप से वे ऐसा कभी नहीं करते. कठिन से कठिन और आसमान टूट पडने जैसी परिस्थितियों में भी उन्होंने नौ दिन की कथा पूर्ण की है. एकाध अपवाद को छोडकर. लेकिन व्यासपीठ से उन्होंने कहा कि `मुझे केवल गुजरात ही नहीं, भारत के ही नहीं, सारे विश्व के तमाम लोगों के कल्याण की चिंता है, सबके आरोग्य की फिक्र है.’
इसके अलावा कोरोना वायरस के कारण उन्होंने नेपाल की कथा रद्द की है, तथा जरूरत पडने पर आगामी कथाओं को भी रद्द करने की तैयारी दिखाई है.
केजरीवाल-फेजरीवाल और उद्धव-बुद्धवों को पूज्य मोरारी बापू की इस कथा से सीखना है. विद्यालय-थिएटर्स-समारोहों को बंद करके डर फैलाने के बजाय सतर्कता भरे कदम उठाते हुए चलते रहते तो देश में अभी जैसा है वैसा माहौल न बनता मानो दुनिया खत्म होने जा रही है.
आज का विचार
सकारात्मक बने रहें. अपने आस-पास व्याप्त सारी नकारात्मकताओं के बीच इसके लिए खूब प्रयास करने की जरूरत होती है.
छोटी सी बात
मंदिर की आरती के बाद पुजारी प्रसाद दे रहे थे. बका की हथेली पर भी दो बूंदें डाली.
बका: ये तो कडवा है.
पुजारी: मूर्ख, सैनेटाइजर है. प्रसाद देना अभी बाकी है.
Superb article. I totally agree with you. I would like to add one more point there is a conspiracy against Modi government. The reasons behind closing malls,theters and other things is not corona virus threat but to kill the economy and subsequently blame Modi government.